भीम हनुमान भेंट

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भीमसेन हनुमान की पूंछ उठाते हुए

जब पांडव वन में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। तभी एक दिन वहां उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल आ गया उसकी गंध बहुत ही मनमोहक थी उस कमल को द्रौपदी ने देख लिया। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीम से कहा- यह कमल बहुत ही सुंदर है, मैं यह कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करूंगी। अगर आप मुझसे प्रेम करते हैं तो ऐसे बहुत से कमल मेरे लिए कदलीवन से लेकर आइये।

भीम का बंदर से मिलना

द्रौपदी के कहने पर भीम पुष्प की तलाश में आगे बढ़ते गए। रास्ते में एक बड़ा-सा बंदर लेटा हुआ था। भीम ने गरजकर उसे रास्ता छोड़ने को कहा पर बंदर ने कहा कि मैं बुड्ढा हूँ। तुम्हीं, मेरी पूँछ उठाकर एक ओर रख दो। भीम ने पूँछ उठाने की बहुत कोशिश की, पर भीम से उसकी पूँछ हिली तक नहीं। भीम हाथ जोड़कर उस बंदर के आगे आ खड़े हो गये और पूछने लगे कृपया अपना परिचय दें।

बंदर का भीम को परिचय

बूढ़े बंदर ने कहा कि मैं राम का दास हनुमान हूँ। तुम मेरे छोटे भाई हो। भीम ने हनुमान से माफी माँगी और प्रार्थना की कि आप मेरे भाई अर्जुन के नंदिघोष रथ की ध्वजा पर बैठकर महाभारत का युद्ध देखिए। हनुमान ने भीम की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।

पुष्प लाना

हनुमान ने भीम को कमल सरोवर का पता भी बताया। सरोवर पर पहुँचकर भीम ने फूल तोड़ने शुरू कर दिए तो सरोवर के राक्षस यक्षों ने उन्हें रोका। भीम राक्षसों को मारने लगे। जब सरोवर के स्वामी कुबेर को पता चला कि पांडव यहाँ आए हैं, तो प्रसन्नता से वहाँ के फल-फूल पांडवों के पास भेजे।

अर्जुन आगमन

यहीं रहकर पांडव अर्जुन की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ समय बाद आकाश से एक रथ आया तथा अर्जुन उसमें से उतरे। पांडवों तथा द्रौपदी की प्रसन्नता की सीमा न रही।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 150 |


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