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विवरण देवनागरी वर्णमाला के कवर्ग का दूसरा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से ‘ख्’ कंठ्य, अघोष, महाप्राण और स्पर्श है। इसका अल्पप्राण रूप ‘क्’ है।
व्याकरण [ संस्कृत खर्व्‌+ड ] पुल्लिंग- आकाश, सूर्य, कुआँ
विशेष ‘ख्’ के संयुक्त रूपों में ख् + य का ‘ख्य’ (विख्यात, मुख्य, ख्याति आदि) र् + ख का ‘र्ख’ (चर्खा आदि) तथा ड़ + ख का ङ्ख/खं (पङ्ख/पंख शङ्ख/शंख) रूप ध्यान देने योग्य हैं।
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अन्य जानकारी 'ख' से मिलती–जुलती फ़ारसी ध्वनि ‘ख़’ कंठ्य तथा अघोष है परंतु स्पर्श नहीं, संघर्षी है और हिन्दी-भाषी सामान्य जन साधारणतया शब्दों के ‘ख़’ को ‘ख’ मानकर ही बोलते/लिखते हैं। जैसे- ‘ख़रीदना’ को ‘खरीदना’।

देवनागरी वर्णमाला के कवर्ग का दूसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से ‘ख्’ कंठ्य, अघोष, महाप्राण और स्पर्श है। इसका अल्पप्राण रूप ‘क्’ है।

विशेष
  • महाप्राण ध्वनि होने के कारण इसका उच्चारण / प्रयोग अघोष अल्पप्राण स्पर्श के बाद ही होता है। जैसे- ‘मख्खी’ शब्द नहीं, ‘मक्खी’ ही सही है।
  • ‘ख्’ के संयुक्त रूपों में ख् + य का ‘ख्य’ (विख्यात, मुख्य, ख्याति आदि) र् + ख का ‘र्ख’ (चर्खा आदि) तथा ड़ + ख का ङ्ख/खं (पङ्ख/पंख शङ्ख/शंख) रूप ध्यान देने योग्य हैं।
  • ’ख’ से मिलती–जुलती फ़ारसी ध्वनि ‘ख़’ कंठ्य तथा अघोष है परंतु स्पर्श नहीं, संघर्षी है और हिन्दी-भाषी सामान्य जन साधारणतया शब्दों के ‘ख़’ को ‘ख’ मानकर ही बोलते/लिखते हैं। जैसे- ‘ख़रीदना’ को ‘खरीदना’, ‘ख़ास’ को ‘खास’, ‘आख़िरी’ को ‘आखिरी’ इत्यादि परंतु फ़ारसी भाषा आदि पढ़े हुए अथवा अपने पारिवारिक संस्कारों के कारण ‘ख़’ का सही उच्चारण करने वाले भी बड़ी संख्या में हैं।
  • [ संस्कृत खर्व्‌+ड ] पुल्लिंग- आकाश, शून्य, स्वर्ग, इंद्रिय, नगर, खेत, रंध्र, छेद, सुराख़ या बिल, शरीर का कोई छिद्र (मुख / कान / नेत्र, नथुने इत्यादि), घाव, आनंद, ज्ञान, क्रिया/कर्म, गङ्ढा, सूर्य, कुआँ, शब्द।

ख की बारहखड़ी

खा खि खी खु खू खृ खे खै खो खौ खं खः

ख अक्षर वाले शब्द



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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