वैष्णवास्त्र
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वैष्णवास्त्र एक दिव्य अस्त्र था, जिसका उल्लेख पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' में मिलता है।[1]
- 'महाभारत द्रोण पर्व' में एक स्थान पर प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त और अर्जुन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन हुआ है। युद्ध के दौरान अर्जुन के कंकपत्रयुक्त सुन्दर पाँख वाले बाणों द्वारा अत्यन्त घायल होकर राजा भगदत्त उन पर कुपित हो उठे। उन्होंने श्वेतवाहन अर्जुन के मस्तक पर तोमरों का प्रहार किया और जोर से गर्जना की। उन तोमरों ने समरभूमि में अर्जुन के किरीट को उलट दिया। उलटे हुए किरीट को ठीक करते हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन ने भगदत्त से कहा– "राजन! अब इस संसार को अच्छी तरह देख लो।"
- अर्जुन के ऐसा कहने पर भगदत्त ने अत्यन्त कुपित होकर एक तेजस्वी धनुष हाथ में लेकर श्रीकृष्ण सहित अर्जुन पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। अर्जुन ने उसके धनुष को काटकर उनके तूणीरों के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फिर तुरंत ही बहत्तर बाणों से उनके सम्पूर्ण मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी। उन बाणों से घायल होकर अत्यन्त पीड़ित होकर भगदत्त ने वैष्णवास्त्र प्रकट किया। उसने कुपित होकर अपने अंकुश को ही वैष्णवास्त्र से अभिमन्त्रित करके पाण्डुनन्दन अर्जुन की छाती पर छोड़ दिया। भगदत्त का छोड़ा हुआ अस्त्र सबका विनाश करने वाला था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ओट में करके स्वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व, अध्याय 29, श्लोक 1-18