अन्यथासिद्धि
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
अन्यथासिद्धि कार्य की उत्पति में अनावश्यकता। कार्य की उत्पति में साक्षात् सहायक कारण कहलाता है, किंतु जो किसी के माध्यम से कार्य की उत्पत्ति में सहायक होता है उसे अन्यथासिद्धि कहते हैं। ऐसे कारणों के रहने या न रहने का कार्य की उत्पत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। न्याय दर्शन में पाँच प्रकार की अन्यथासिद्धियों का वर्णन मिलता है। घड़े की उत्पत्ति में दंडत्व, दंड का रूप, आकाश, कुम्हार का पिता और मिट्टी जाने वाला गधा, ये अन्यथासिद्ध कारण हैं। अन्यथासिद्धि की यह कल्पना न्यायशास्त्र में सर्वप्रथम गंगेशोपाध्याय (13वीं शताब्दी) से प्रारंभ हुई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 130,131 |