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प्रेम समुद्र परयो गहिरे अभिमान के फेन रह्यो गहि रे मन ।
 
प्रेम समुद्र परयो गहिरे अभिमान के फेन रह्यो गहि रे मन ।
 
कोप तरँगन ते बहि रे अकुलाय पुकारत क्योँ बहिरे मन ।
 
कोप तरँगन ते बहि रे अकुलाय पुकारत क्योँ बहिरे मन ।
देवजू लाज जहाज ते कूद भरयो मुख बूँद अजौँ रहि रे मन ।
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देवजू लाज जहाज़ ते कूद भरयो मुख बूँद अजौँ रहि रे मन ।
 
जोरत तोरत प्रीति तुही अब तेरी अनीति तुही सहि रे मन ।
 
जोरत तोरत प्रीति तुही अब तेरी अनीति तुही सहि रे मन ।
  

14:47, 25 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

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प्रेम समुद्र परयो गहिरे -देव
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कवि देव
जन्म सन 1673 (संवत- 1730)
मृत्यु सन 1768 (संवत- 1825)
मुख्य रचनाएँ भाव-विलास, भवानी-विलास, कुशल-विलास, रस-विलास, प्रेम-चंद्रिका, सुजान-मणि, सुजान-विनोद, सुख-सागर
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
देव की रचनाएँ

प्रेम समुद्र परयो गहिरे अभिमान के फेन रह्यो गहि रे मन ।
कोप तरँगन ते बहि रे अकुलाय पुकारत क्योँ बहिरे मन ।
देवजू लाज जहाज़ ते कूद भरयो मुख बूँद अजौँ रहि रे मन ।
जोरत तोरत प्रीति तुही अब तेरी अनीति तुही सहि रे मन ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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