एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"मन मेरे सोई सरूप बिचार -रैदास" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "२" to "2")
छो (Text replace - "३" to "3")
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
 
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।2।।
 
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।2।।
 
आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे।
 
आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे।
है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।३।।
+
है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।3।।
 
कहै रैदास प्रकास परम पद, का जप तप ब्रत पूजा।
 
कहै रैदास प्रकास परम पद, का जप तप ब्रत पूजा।
 
एक अनेक येक हरि, करौं कवण बिधि दूजा।।४।।  
 
एक अनेक येक हरि, करौं कवण बिधि दूजा।।४।।  

10:10, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण

Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
मन मेरे सोई सरूप बिचार -रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

मन मेरे सोई सरूप बिचार।
आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।।
जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा।
जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।1।।
कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई।
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।2।।
आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे।
है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।3।।
कहै रैदास प्रकास परम पद, का जप तप ब्रत पूजा।
एक अनेक येक हरि, करौं कवण बिधि दूजा।।४।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख