"लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "३" to "3")
छो (Text replace - "४" to "4")
पंक्ति 38: पंक्ति 38:
 
गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥3॥
 
गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥3॥
 
भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये।
 
भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये।
सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥४॥
+
सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥4॥
 
गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये।
 
गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये।
 
तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके पछिताये॥५॥  
 
तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके पछिताये॥५॥  

10:45, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण

लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास
तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

लाभ कहा मानुष-तनु पाये।
काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज पराये॥1॥
जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये।
तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥2॥
पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये।
गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥3॥
भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये।
सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥4॥
गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये।
तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके पछिताये॥५॥

संबंधित लेख