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'''कबीरदास / Kabirdas / Kabir'''
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[[चित्र:Kabirdas.jpg|कबीरदास<br />Kabirdas|thumb|200px|right]]
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{{कबीर विषय सूची}}
महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म के कर्मकांड, विधान और पाखंड से धर्म का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ।
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==जीवन परिचय==
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कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे गुरु रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से [[काशी]] की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। उसे नीरु नाम का जुलाहा अपने घर ले आया। उनकी माता का नाम "नीमा'था। उसी ने उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। एक जगह कबीरदास ने कहा है :-
 
<poem>
 
जाति जुलाहा नाम कबीरा
 
बनि बनि फिरो उदासी।
 
</poem>
 
कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी [[रामानंद]] के प्रभाव से उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुईं। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी [[गंगा नदी|गंगा]] स्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल `राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में-
 
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हम कासी में प्रकट भये हैं,
 
रामानन्द चेताये।
 
</poem>
 
महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं। कबीरदास ने स्वयं को [[काशी]] का जुलाहा कहा है। कबीरपंथ के अनुसार उनका निवासस्थान काशी था। बाद में कबीरदास काशी छोड़कर मगहर चले गए थे। ऐसा उन्होंने स्वयं कहा हैं :-
 
<poem>
 
सकल जनम शिवपुरी गंवाया।
 
मरती बार मगहर उठि आया।।
 
ऐसा कहा जाता है कि कबीरदास का सम्पूर्ण जीवन काशी में ही बीता, किन्तु वह अन्त समय मगहर चले गए थे।
 
अब कहु राम कवन गति मोरी।
 
तजीले बनारस मति भई मोरी।।
 
कबीर का विवाह कन्या "लोई' के साथ हुआ था। जनश्रुति के अनुसार उन्हें एक पुत्र कमाल तथा पुत्री कमाली थी। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे-
 
मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।   
 
कबीर का पुत्र कमाल उनके मत का विरोधी था।
 
बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
 
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।
 
</poem>
 
==रचनायें==
 
{| id="textboxrt"
 
 
|
 
|
यह ऐसा संसार  हैजैसा सेंबल  फूल ।
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{{सूचना बक्सा साहित्यकार
 
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|चित्र=Sant-Kabirdas.jpg
दिन दस के व्यौहार को, झूठे रंग न भूलि ॥
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|चित्र का नाम=संत कबीरदास
 
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|पूरा नाम=संत कबीरदास
- '''कबीर''' (कबीर ग्रथावली, पृ. 21)
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|अन्य नाम=कबीरा, कबीर साहब
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|जन्म=सन 1398 (लगभग)
काजल  केरी  कोठरी, काजल ही का कोट ।
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|जन्म भूमि=[[लहरतारा|लहरतारा ताल]], [[काशी]]
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|अभिभावक=
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|पालक माता-पिता=नीरु और नीमा
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|पति/पत्नी=लोई
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|संतान=कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
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|कर्म भूमि=[[काशी]], [[बनारस]]
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|कर्म-क्षेत्र=समाज सुधारक कवि
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|मृत्यु=सन 1518 (लगभग)
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|मृत्यु स्थान=[[मगहर]], [[उत्तर प्रदेश]]
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|मुख्य रचनाएँ=[[साखी]], [[सबद]] और [[रमैनी]]
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|विषय=सामाजिक
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|भाषा=[[अवधी भाषा|अवधी]], सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
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|विद्यालय=
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|शिक्षा=निरक्षर  
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|पुरस्कार-उपाधि=
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|प्रसिद्धि=
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|विशेष योगदान=
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|नागरिकता=भारतीय
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|संबंधित लेख=[[कबीर ग्रंथावली]], [[कबीरपंथ]], [[बीजक]], [[कबीर के दोहे]] आदि  
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|अन्य जानकारी=कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है।
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! कबीर की रचनाएँ
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{{कबीर की रचनाएँ}}
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</div></div>
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'''कबीर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kabir'', जन्म- सन् 1398 [[काशी]] - मृत्यु- सन् 1518 [[मगहर]]) का नाम कबीरदास, कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है। ये [[मध्यकालीन भारत]] के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर [[कबीरपंथ]] नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत-सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। इनका कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर [[जनश्रुति|जनश्रुतियों]], सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। फलत: इस संबंध में तथा इनके मत के भी विषय में बहुत कुछ मतभेद पाया जाता है।
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<blockquote>संत कबीर दास [[हिंदी साहित्य]] के [[भक्ति काल]] के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।</blockquote>
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[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी|डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] ने लिखा है कि साधना के क्षेत्र में वे युग-युग के गुरु थे, उन्होंने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर [[साहित्य]] क्षेत्र में नव निर्माण किया था।
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==जीवन परिचय==
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{{Main|कबीर का जीवन परिचय}}
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====जन्म====
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* कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक [[किंवदंती|किंवदन्तियाँ]] हैं। कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में [[लहरतारा]] तालाब में उत्पन्न [[कमल]] के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी [[रामानंद]] के प्रभाव से उन्हें [[हिन्दू धर्म]] की बातें मालूम हुईं। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी [[गंगा नदी|गंगा]] स्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में-
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<blockquote><poem>हम कासी में प्रकट भये हैं,
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रामानन्द चेताये।</poem></blockquote>
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[[चित्र:Sant kabir das.jpg|thumb|कबीरदास|200px|left]]
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* कबीरपंथियों में इनके जन्म के विषय में यह पद्य प्रसिद्ध है-  
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<blockquote><poem>चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
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जेठ सुदी बरसायत को पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
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घन गरजें दामिनि दमके बूँदे बरषें झर लाग गए।
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लहर तलाब में कमल खिले तहँ कबीर भानु प्रगट भए॥<ref>{{cite web |url=http://www.hindisamay.com/kabir-granthawali/kabirgranth-prastawna.html |title=कबीर ग्रंथावली |accessmonthday=2 अगस्त |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदी समय डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref></poem></blockquote>
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====मृत्यु====
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कबीर ने [[काशी]] के पास [[मगहर]] में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। [[हिन्दू]] कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे [[फूल]] हिन्दुओं ने ले लिए और आधे [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है। जन्म की भाँति इनकी मृत्यु तिथि एवं घटना को लेकर भी मतभेद हैं किन्तु अधिकतर विद्वान् उनकी मृत्यु संवत 1575 विक्रमी (सन 1518 ई.) मानते हैं, लेकिन बाद के कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु 1448 को मानते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/religion/personality/0906/06/1090606073_1.htm |title=संत कवि कबीर |accessmonthday=4 अगस्त |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया |language=हिंदी }}</ref>
  
बलिहारी ता दास की, जे रहै राम की ओट ॥
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==समकालीन सामाजिक परिस्थिति==
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{{Main|कबीर का समकालीन समाज}}
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महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में [[भारत]] की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ [[हिन्दू धर्म]] के कर्मकांड, विधान और पाखंड से [[धर्म]] का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ। जिस [[युग]] में कबीर आविर्भूत हुए थे, उसके कुछ ही पूर्व [[भारत|भारतवर्ष]] के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना घट चुकी थी। यह घटना [[इस्लाम]] जैसे एक सुसंगठित सम्प्रदाय का आगमन था। इस घटना ने भारतीय धर्म–मत और समाज व्यवस्था को बुरी तरह से झकझोर दिया था। उसकी अपरिवर्तनीय समझी जाने वाली जाति–व्यवस्था को पहली बार ज़बर्दस्त ठोकर लगी थी। सारा भारतीय वातावरण संक्षुब्ध था। बहुत–से पंडितजन इस संक्षोभ का कारण खोजने में व्यस्त थे और अपने–अपने ढंग पर भारतीय समाज और धर्म–मत को सम्भालने का प्रयत्न कर रहे थे।
  
- '''कबीर''' (कबीर ग्रथावली, पृ. 50)
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{{seealso|कबीरपंथ|सूफ़ी आन्दोलन|भक्ति आन्दोलन}}
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==साहित्यिक परिचय==
हम देखत जग जात हैं, जब देखत हम जांह ।
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कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। उनकी कविता का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय की पोल खोल धज्जियाँ उड़ाता चला गया। कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी पलीता था। सत्य भी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशान बन चोट भी करता है और खोट भी निकालता है।
  
ऐसा  कोई  ना  मिलै,  पकड़ि  छुड़ावै  बांह ॥
+
<div align="center">'''[[कबीर का जीवन परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div>
 
 
- '''कबीर''' (कबीर ग्रथावली, पृ. 67)
 
|}
 
कबीरदास ने हिन्दू-मुसलमान का भेद मिटा कर हिन्दू-भक्तों तथा मुसलमान फकीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को हृदयांगम कर लिया। संत कबीर ने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से बोले और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। कबीरदास अनपढ़ थे। कबीरदास के समस्त विचारों में राम-नाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, [[ईद-उल-फ़ितर|ईद]], मस्ज़िद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे। कबीर के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के अनुसार भिन्न-भिन्न है। कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं-
 
#रमैनी
 
#सबद
 
#साखी
 
==भाषा==
 
बीजक पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, [[अवधी]], पूरबी, [[ब्रजभाषा]] आदि कई भाषाओं की खिचड़ी है। कबीरदास ने बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है।
 
==जीवन दर्शन==
 
कबीर परमात्मा को मित्र, माता, पिता और पति के रूप में देखते हैं। वे कहते हैं-
 
'''हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया ।''' तो कभी कहते हैं-
 
'''हरि जननी मैं बालक तोरा।''' उस समय हिंदु जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था। कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी। उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई। इनके पंथ मुसलमान-संस्कृति और गोभक्षण के विरोधी थे। कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका आदर होता है।
 
----
 
वृद्धावस्था में यश और कीर्त्ति ने उन्हें बहुत कष्ट दिया। उसी हालत में उन्होंने [[बनारस]] छोड़ा और आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएँ कीं। इसी क्रम में वे कालिंजर ज़िले के पिथौराबाद शहर में पहुँचे। वहाँ रामकृष्ण का छोटा सा मन्दिर था। वहाँ के संत भगवान गोस्वामी जिज्ञासु साधक थे किंतु उनके तर्कों का अभी तक पूरी तरह समाधान नहीं हुआ था। संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हुआ। कबीर की एक साखी ने उन के मन पर गहरा असर किया-
 
<poem>
 
बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान।
 
करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।
 
मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए कबीरदास ने कहा है-
 
पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार।
 
या ते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार।।
 
११९ वर्ष की अवस्था में उन्होंने मगहर में देह त्याग किया।
 
</poem>  
 
  
  
  
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक2 |पूर्णता= |शोध= }}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 +
<references/>
 +
* [[अनिल चौधरी]] द्वारा निर्देशित दूरदर्शन पर बना धारावाहिक "कबीर" एक उत्कृष्ट रचना है।
 +
* [[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] की रचना "[[कबीर -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी|कबीर]]" संत कबीर पर सबसे उत्कृष्ट रचना है।
 +
*[http://www.rachanakar.org/2009/11/blog-post_17.html प्रोफेसर महावीर सरन जैन का आलेख : कबीर की साधना]
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==बाहरी कड़ियाँ==
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; यू-ट्यूब लिंक
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*[http://www.youtube.com/watch?v=vbMAjo_Ei3Y&feature=player_embedded मगहर का विडियो (यू ट्यूब पर)]
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*[http://www.youtube.com/watch?v=cNl_pK0u9-k झीनी चदरिया (आवाज- पं. कुमार गंधर्व)]
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*[http://www.youtube.com/watch?v=f5Vlsdv_z0s सुनता है गुरु ज्ञानी (आवाज- पं. कुमार गंधर्व)]
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*[http://www.youtube.com/watch?v=EHy0r12mfcA निर्भय निर्गुण गुन रे गाऊंगा (आवाज- पं. कुमार गंधर्व और विदुषी वसुंधरा कोमकली)]
 +
*[http://www.youtube.com/watch?v=mKc3gy-SHmE उड़ जायेगा हंस अकेला (आवाज- पं. कुमार गंधर्व)]
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==संबंधित लेख==
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{{कबीर}}{{भारत के कवि}}{{समाज सुधारक}}
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[[Category:कवि]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:निर्गुण भक्ति]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:समाज सुधारक]][[Category:भक्ति काल]][[Category:कबीर]][[Category:दार्शनिक]][[Category:चयनित लेख]]
 
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[[Category:साहित्य]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:निर्गुण भक्ति]]
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14:25, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

कबीर विषय सूची
कबीर
संत कबीरदास
पूरा नाम संत कबीरदास
अन्य नाम कबीरा, कबीर साहब
जन्म सन 1398 (लगभग)
जन्म भूमि लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु सन 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
पालक माता-पिता नीरु और नीमा
पति/पत्नी लोई
संतान कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
कर्म भूमि काशी, बनारस
कर्म-क्षेत्र समाज सुधारक कवि
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
विषय सामाजिक
भाषा अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
शिक्षा निरक्षर
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख कबीर ग्रंथावली, कबीरपंथ, बीजक, कबीर के दोहे आदि
अन्य जानकारी कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

कबीर (अंग्रेज़ी: Kabir, जन्म- सन् 1398 काशी - मृत्यु- सन् 1518 मगहर) का नाम कबीरदास, कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है। ये मध्यकालीन भारत के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर कबीरपंथ नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत-सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। इनका कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। फलत: इस संबंध में तथा इनके मत के भी विषय में बहुत कुछ मतभेद पाया जाता है।

संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।

डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि साधना के क्षेत्र में वे युग-युग के गुरु थे, उन्होंने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नव निर्माण किया था।

जीवन परिचय

जन्म

  • कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुईं। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगा स्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में-

हम कासी में प्रकट भये हैं,
रामानन्द चेताये।

कबीरदास
  • कबीरपंथियों में इनके जन्म के विषय में यह पद्य प्रसिद्ध है-

चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
घन गरजें दामिनि दमके बूँदे बरषें झर लाग गए।
लहर तलाब में कमल खिले तहँ कबीर भानु प्रगट भए॥[1]

मृत्यु

कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है। जन्म की भाँति इनकी मृत्यु तिथि एवं घटना को लेकर भी मतभेद हैं किन्तु अधिकतर विद्वान् उनकी मृत्यु संवत 1575 विक्रमी (सन 1518 ई.) मानते हैं, लेकिन बाद के कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु 1448 को मानते हैं।[2]

समकालीन सामाजिक परिस्थिति

महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म के कर्मकांड, विधान और पाखंड से धर्म का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ। जिस युग में कबीर आविर्भूत हुए थे, उसके कुछ ही पूर्व भारतवर्ष के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना घट चुकी थी। यह घटना इस्लाम जैसे एक सुसंगठित सम्प्रदाय का आगमन था। इस घटना ने भारतीय धर्म–मत और समाज व्यवस्था को बुरी तरह से झकझोर दिया था। उसकी अपरिवर्तनीय समझी जाने वाली जाति–व्यवस्था को पहली बार ज़बर्दस्त ठोकर लगी थी। सारा भारतीय वातावरण संक्षुब्ध था। बहुत–से पंडितजन इस संक्षोभ का कारण खोजने में व्यस्त थे और अपने–अपने ढंग पर भारतीय समाज और धर्म–मत को सम्भालने का प्रयत्न कर रहे थे।

इन्हें भी देखें: कबीरपंथ, सूफ़ी आन्दोलन एवं भक्ति आन्दोलन

साहित्यिक परिचय

कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। उनकी कविता का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय की पोल खोल धज्जियाँ उड़ाता चला गया। कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी पलीता था। सत्य भी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशान बन चोट भी करता है और खोट भी निकालता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कबीर ग्रंथावली (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) हिंदी समय डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 2 अगस्त, 2011।
  2. संत कवि कबीर (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 4 अगस्त, 2011।

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