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इन उल्लेखों से विदित होता है कि चर्पटीनाथ [[गोरखनाथ]] के परवर्ती और नागार्जुन के समसामयिक सिद्ध थे, अत: अनुमान किया जा सकता है कि वे 11वीं 12वीं [[शताब्दी]] में हुए होंगे। रज्जब की सर्वागी में इन्हें चारणी के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है, किंतु [[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल|डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]] ने इनका नाम चम्ब रियासत की राजवंशावली में खोज निकाला है। एक सबदी में "सत-सत भाषंत श्री चरपटराव" कहकर कदाचित् चर्पटीनाथ ने स्वयं राजवंश से अपने सम्बन्ध का संकेत किया है।
 
===वर्ण विषय ===
 
===वर्ण विषय ===
चर्पटीनाथ की किसी स्वतंत्र रचना का प्रमाण नहीं मिला। [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी]] ने उनकी एक तिब्बती भाषा में लिखी कृति 'चतुर्भवाभिशन' का उल्लेख किया है। 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' में चर्पटीनाथ की 59 सवदियाँ और 5 [[श्लोक]] संकलित हैं। इनका वर्ण्य-विषय लौकिक पाखण्डों का खण्डन तथा कामिनी-कंचन की निन्दा आदि है। एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।<ref>[सहायक ग्रंथ-पुरातत्त्व निबन्धावली: महापण्डित राहिल सांकृत्यायन; हिन्दी काव्यधारा: महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन; नाथ सम्प्रदाय: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; नाथ सिद्धों की बानियाँ: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; योग प्रवाह: डा. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।]</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=183|url=}}</ref>
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चर्पटीनाथ की किसी स्वतंत्र रचना का प्रमाण नहीं मिला। [[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी|डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]] ने उनकी एक तिब्बती भाषा में लिखी कृति 'चतुर्भवाभिशन' का उल्लेख किया है। 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' में चर्पटीनाथ की 59 सवदियाँ और 5 [[श्लोक]] संकलित हैं। इनका वर्ण्य-विषय लौकिक पाखण्डों का खण्डन तथा कामिनी-कंचन की निन्दा आदि है। एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।<ref>[सहायक ग्रंथ-पुरातत्त्व निबन्धावली: महापण्डित राहिल सांकृत्यायन; हिन्दी काव्यधारा: महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन; नाथ सम्प्रदाय: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; नाथ सिद्धों की बानियाँ: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; योग प्रवाह: डा. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।]</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=183|url=}}</ref>
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12:47, 15 जनवरी 2017 का अवतरण

चर्पटीनाथ
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पूरा नाम चर्पटीनाथ
अन्य नाम रसेश्वरसिद्ध
मुख्य रचनाएँ 'चतुर्भवाभिशन'
भाषा तिब्बती भाषा
प्रसिद्धि लेखक
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी, गोरखनाथ
अन्य जानकारी एक सबदी में "सत-सत भाषंत श्री चरपटराव" कहकर कदाचित् चर्पटीनाथ ने स्वयं राजवंश से अपने सम्बन्ध का संकेत किया है।

चर्पटीनाथ चौरासी सिद्धों में से एक थे, जिन्हें राहुल सांकृत्यायन की सूची में 59वाँ और 'वर्ण रत्नाकार' की सूची में 31वाँ सिद्ध बताया गया है। एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।

जीवन परिचय

राहुल जी ने चर्पटीनाथ जी को गोरखनाथ का शिष्य मानकर इनका समय 11वीं शती अनुमित किया है। 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' में इनकी सबदी संकलित है। उसमें एक स्थल पर कहा गया है-

"आई भी छोड़िये, लैन न जाइये। कुहे गोरष कूता विचारि-विचारि षाइये।।"

सबदी में कई स्थलों पर अवधूत या शब्द का भी प्रयोग हुआ है। एक सबदी में नागार्जुन को सम्बोधित किया गया है-

"कहै चर्पटी सोंण हो नागा अर्जुन।"

इन उल्लेखों से विदित होता है कि चर्पटीनाथ गोरखनाथ के परवर्ती और नागार्जुन के समसामयिक सिद्ध थे, अत: अनुमान किया जा सकता है कि वे 11वीं 12वीं शताब्दी में हुए होंगे। रज्जब की सर्वागी में इन्हें चारणी के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है, किंतु डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने इनका नाम चम्ब रियासत की राजवंशावली में खोज निकाला है। एक सबदी में "सत-सत भाषंत श्री चरपटराव" कहकर कदाचित् चर्पटीनाथ ने स्वयं राजवंश से अपने सम्बन्ध का संकेत किया है।

वर्ण विषय

चर्पटीनाथ की किसी स्वतंत्र रचना का प्रमाण नहीं मिला। डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने उनकी एक तिब्बती भाषा में लिखी कृति 'चतुर्भवाभिशन' का उल्लेख किया है। 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' में चर्पटीनाथ की 59 सवदियाँ और 5 श्लोक संकलित हैं। इनका वर्ण्य-विषय लौकिक पाखण्डों का खण्डन तथा कामिनी-कंचन की निन्दा आदि है। एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।[1][2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. [सहायक ग्रंथ-पुरातत्त्व निबन्धावली: महापण्डित राहिल सांकृत्यायन; हिन्दी काव्यधारा: महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन; नाथ सम्प्रदाय: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; नाथ सिद्धों की बानियाँ: डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी; योग प्रवाह: डा. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।]
  2. हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 |लेखक: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 183 |

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