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}}'''कपिल देव द्विवेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kapil Dev Dwivedi'', जन्म- [[16 दिसम्बर]], [[1998]]; मृत्यु- [[28 अगस्त]], [[2011]]) [[वेद]], वेदांग, [[संस्कृत]], व्याकरण एवं भाषा विज्ञान के अप्रतिम विद्धान थे। उन्होंने इन विषयों पर 75 से अधिक ग्रंथ लिखे। आपने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया तथा छ: माह तक कठोर कारावास भोगा। कपिल देव द्विवेदी 'गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय' के कुलपति भी रहे। इन्हें [[भारत सरकार]] ने [[1991]] में ‘[[पद्म श्री]]’ से अलंकृत किया था। कपिल देव द्विवेदी की गणना विश्व के प्रमुख प्राच्यविद्याविदों, भाषाविदों और वेदविदों में की जाती है। वह संस्कृत के सरलीकरण पद्धति के उन्नायक एवं प्रवर्तक माने जाते हैं। संस्कृत को लोकप्रिय बनाने में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
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}}'''कपिल देव द्विवेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kapil Dev Dwivedi'', जन्म- [[6 दिसम्बर]], [[1998]]; मृत्यु- [[28 अगस्त]], [[2011]]) [[वेद]], वेदांग, [[संस्कृत]], व्याकरण एवं भाषा विज्ञान के अप्रतिम विद्धान थे। उन्होंने इन विषयों पर 75 से अधिक ग्रंथ लिखे। आपने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया तथा छ: माह तक कठोर कारावास भोगा। कपिल देव द्विवेदी 'गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय' के कुलपति भी रहे। उन्हें [[भारत सरकार]] ने [[1991]] में ‘[[पद्म श्री]]’ से अलंकृत किया था। कपिल देव द्विवेदी की गणना विश्व के प्रमुख प्राच्यविद्याविदों, भाषाविदों और वेदविदों में की जाती है। वह संस्कृत के सरलीकरण पद्धति के उन्नायक एवं प्रवर्तक माने जाते हैं। संस्कृत को लोकप्रिय बनाने में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
पद्मश्री, वेदरत्न, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, राष्ट्रपति सम्मान आदि जैसे सम्मानों से विभूषित एवं वेद, वेदाङ्ग, संस्कृत व्याकरण एवं भाषाविज्ञान के अप्रतिम विद्धान डॉ. कपिल देव द्विवेदी का जन्म 16 दिसम्बर, 1998 को [[उत्तर प्रदेश]] के गाजीपुर जिले के बारा (बारे, बिहार के बक्सर जिला अंतर्गत प्रसिद्घ चौसा के निकट यानी कर्मनाशा नदी के पार) में एक प्रतिष्ठित [[परिवार]] के बलरामदास और [[माता]] वसुमती देवी के यहां हुआ था। [[पिता]] त्यागी, तपस्वी समाजसेवी थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश सेवा में लगाया। बाबा यानी दादाजी छेदीलाल जी प्रसिद्ध उद्योगपति थे।<ref name="pp">{{cite web |url= http://shoot2pen.in/2020/12/16/dr-kapildev/|title=कपिल देव द्विवेदी|accessmonthday=10 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=shoot2pen.in |language=हिंदी}}</ref>
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पद्मश्री, वेदरत्न, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, राष्ट्रपति सम्मान आदि जैसे सम्मानों से विभूषित एवं वेद, वेदाङ्ग, संस्कृत व्याकरण एवं भाषाविज्ञान के अप्रतिम विद्धान डॉ. कपिल देव द्विवेदी का जन्म 6 दिसम्बर, 1998 को [[उत्तर प्रदेश]] के गाजीपुर ज़िले के बारा (बारे, [[बिहार]] के ज़िला बक्सर अंतर्गत प्रसिद्ध [[चौसा]] के निकट यानी कर्मनाशा नदी के पार) में एक प्रतिष्ठित [[परिवार]] के बलरामदास और [[माता]] वसुमती देवी के यहां हुआ था। [[पिता]] त्यागी, तपस्वी समाजसेवी थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश सेवा में लगाया। बाबा यानी दादाजी छेदीलाल जी प्रसिद्ध उद्योगपति थे।<ref name="pp">{{cite web |url= http://shoot2pen.in/2020/12/16/dr-kapildev/|title=कपिल देव द्विवेदी|accessmonthday=10 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=shoot2pen.in |language=हिंदी}}</ref>
 
==शिक्षा==
 
==शिक्षा==
कपिल देव जब चौथी कक्षा पास हो गए, तब अध्ययन के लिए उन्हें 10 वर्ष की अल्प आयु में ही गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर, [[हरिद्वार]] में संस्कृत की उच्च शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां उन्होंने वर्ष [[1928]] से [[1939]] तक गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। गुरुकुल में रहते हुए उन्होंने शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की और गुरुकुल की उपाधि विद्याभास्कर प्राप्त हुई। सभी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। यहाँ रहते हुए उन्होंने दो [[वेद]] ([[यजुर्वेद]] और [[सामवेद]]) कंठस्थ किए और उसके परिणामस्वरूप गुरुकुल से द्विवेदी की उपाधि प्रदान की गई। गुरुकुल में रहते हुए बंगला और [[उर्दू]] भी सीखी। साथ ही उन्होंने भारतीय व्यायाम, लाठी, तलवार, युयुत्सु और पिरामिड बिल्डिंग आदि की शिक्षा भी प्राप्त की। साथ ही वहां रहते हुए वर्ष 1939 में स्वतंत्रता संग्राम के अंग हैदराबाद आर्य-सत्याग्रह आन्दोलन में छ: मास कारावास में भी रहे।
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कपिल देव जी जब चौथी कक्षा पास हो गए, तब अध्ययन के लिए उन्हें 10 वर्ष की अल्प आयु में ही गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर, [[हरिद्वार]] में संस्कृत की उच्च शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां उन्होंने वर्ष [[1928]] से [[1939]] तक गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। गुरुकुल में रहते हुए उन्होंने 'शास्त्री' परीक्षा उत्तीर्ण की और गुरुकुल की उपाधि 'विद्याभास्कर' प्राप्त हुई। सभी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। यहाँ रहते हुए उन्होंने दो [[वेद]] ([[यजुर्वेद]] और [[सामवेद]]) कंठस्थ किए और उसके परिणामस्वरूप गुरुकुल से 'द्विवेदी' की उपाधि प्रदान की गई। गुरुकुल में रहते हुए बंगला और [[उर्दू]] भी सीखी। साथ ही उन्होंने भारतीय व्यायाम, लाठी, तलवार, युयुत्सु और पिरामिड बिल्डिंग आदि की शिक्षा भी प्राप्त की। साथ ही वहां रहते हुए वर्ष [[1939]] में स्वतंत्रता संग्राम के अंग हैदराबाद आर्य-सत्याग्रह आन्दोलन में छ: मास कारावास में भी रहे।
 
==ग्रन्थ लेखन==
 
==ग्रन्थ लेखन==
कपिल देव द्विवेदी ने 35 वर्ष की अवस्था से ही ग्रन्थों का लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था और देहान्त के एक वर्ष पूर्व तक निरन्तर लेखन कार्य करते रहे। उन्होंने 80 से अधिक ग्रन्थो की रचना की। उत्कृष्ठ रचनाओं से उन्होंने [[संस्कृत साहित्य]] को समृद्ध किया और अनेक सम्मान और पुरस्कारों से अलंकृत हुए। उनकी कृतियां से 5 लाख से भी अधिक व्यक्ति संस्कृत भाषा सीख चुके है। ये ग्रन्थ आज भी संस्कृत भाषा के प्रचार और प्रसार के महत्वपूर्ण माध्यम है। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक वेदामृत ग्रन्थमाला 40 के माध्यम से वेदों के दुरूह ज्ञान को सरल बनाकर सामान्य जन तक पहुचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ज्ञानपुर की धरती पर रहकर आपने अपनी कृतियो के साथ ज्ञानपुर को भी अमर कर दिया है।<ref name="pp"/>
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कपिल देव द्विवेदी ने 35 वर्ष की अवस्था से ही ग्रन्थों का लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था और देहान्त के एक वर्ष पूर्व तक निरन्तर लेखन कार्य करते रहे। उन्होंने 80 से अधिक ग्रन्थों की रचना की। उत्कृष्ठ रचनाओं से उन्होंने [[संस्कृत साहित्य]] को समृद्ध किया और अनेक सम्मान और पुरस्कारों से अलंकृत हुए। उनकी कृतियों से 5 लाख से भी अधिक व्यक्ति संस्कृत भाषा सीख चुके हैं। ये ग्रन्थ आज भी संस्कृत भाषा के प्रचार और प्रसार के महत्वपूर्ण माध्यम हैं। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक वेदामृत ग्रन्थमाला 40 के माध्यम से वेदों के दुरूह ज्ञान को सरल बनाकर सामान्य जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ज्ञानपुर की धरती पर रहकर आपने अपनी कृतियों के साथ ज्ञानपुर को भी अमर कर दिया।<ref name="pp"/>
 
==सम्मान एवं पुरस्कार==
 
==सम्मान एवं पुरस्कार==
देश-विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा कपिल देव द्विवेदी को दो दर्जन से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
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देश-विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा कपिल देव द्विवेदी जी को दो दर्जन से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए हैं-
*[[संस्कृत साहित्य]] में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कपिल देव द्विवेदी को [[भारत सरकार]] ने वर्ष [[1991]] में ‘[[पद्म श्री]]’ अलंकरण से विभूषित किया।
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*[[संस्कृत साहित्य]] में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए उनको [[भारत सरकार]] ने वर्ष [[1991]] में ‘[[पद्म श्री]]’ अलंकरण से विभूषित किया।
*भारतीय विद्याभवन बंगलौर द्वारा गुरु गंगेश्वरानन्द वेदरत्न पुरस्कार ([[2005]])
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*भारतीय विद्याभवन बंगलौर द्वारा गुरु गंगेश्वरानन्द वेदरत्न पुरस्कार ([[2005]]) मिला।
*दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा महर्षि वाल्मीकि सम्मान ([[2010]]-[[2011]])
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*दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा महर्षि वाल्मीकि सम्मान ([[2010]]-[[2011]]) दिया गया।
*भारत सरकार द्वारा [[15 अगस्त]], [[2010]] को संस्कृत भाषा की सेवा के लिए राष्ट्रपति सम्मान।
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*भारत सरकार द्वारा [[15 अगस्त]], [[2010]] को संस्कृत भाषा की सेवा के लिए राष्ट्रपति सम्मान से पुरस्कृत किया गया।
 
==मृत्यु==
 
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कपिल देव द्विवेदी जी की मृत्यु [[28 अगस्त]], [[2011]] को हुई।
 
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*[https://www.vbrinstitute.org/ कपिल देव द्विवेदी]
 
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कपिल देव द्विवेदी
कपिल देव द्विवेदी
पूरा नाम कपिल देव द्विवेदी
जन्म 6 दिसम्बर, 1998
जन्म भूमि ज़िला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 28 अगस्त, 2011
अभिभावक पिता- बलरामदास

माता- वसुमती देवी

कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र संस्कृत साहित्यकार व भाषा विज्ञान के अप्रतिम विद्धान
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री (1991), वेदरत्न, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, राष्ट्रपति सम्मान
प्रसिद्धि भाषा विद्वान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी कपिल देव द्विवेदी की गणना विश्व के प्रमुख प्राच्यविद्याविदों, भाषाविदों और वेदविदों में की जाती है। वह संस्कृत के सरलीकरण पद्धति के उन्नायक एवं प्रवर्तक माने जाते हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कपिल देव द्विवेदी (अंग्रेज़ी: Kapil Dev Dwivedi, जन्म- 6 दिसम्बर, 1998; मृत्यु- 28 अगस्त, 2011) वेद, वेदांग, संस्कृत, व्याकरण एवं भाषा विज्ञान के अप्रतिम विद्धान थे। उन्होंने इन विषयों पर 75 से अधिक ग्रंथ लिखे। आपने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया तथा छ: माह तक कठोर कारावास भोगा। कपिल देव द्विवेदी 'गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय' के कुलपति भी रहे। उन्हें भारत सरकार ने 1991 में ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया था। कपिल देव द्विवेदी की गणना विश्व के प्रमुख प्राच्यविद्याविदों, भाषाविदों और वेदविदों में की जाती है। वह संस्कृत के सरलीकरण पद्धति के उन्नायक एवं प्रवर्तक माने जाते हैं। संस्कृत को लोकप्रिय बनाने में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

परिचय

पद्मश्री, वेदरत्न, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, राष्ट्रपति सम्मान आदि जैसे सम्मानों से विभूषित एवं वेद, वेदाङ्ग, संस्कृत व्याकरण एवं भाषाविज्ञान के अप्रतिम विद्धान डॉ. कपिल देव द्विवेदी का जन्म 6 दिसम्बर, 1998 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर ज़िले के बारा (बारे, बिहार के ज़िला बक्सर अंतर्गत प्रसिद्ध चौसा के निकट यानी कर्मनाशा नदी के पार) में एक प्रतिष्ठित परिवार के बलरामदास और माता वसुमती देवी के यहां हुआ था। पिता त्यागी, तपस्वी समाजसेवी थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश सेवा में लगाया। बाबा यानी दादाजी छेदीलाल जी प्रसिद्ध उद्योगपति थे।[1]

शिक्षा

कपिल देव जी जब चौथी कक्षा पास हो गए, तब अध्ययन के लिए उन्हें 10 वर्ष की अल्प आयु में ही गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर, हरिद्वार में संस्कृत की उच्च शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां उन्होंने वर्ष 1928 से 1939 तक गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। गुरुकुल में रहते हुए उन्होंने 'शास्त्री' परीक्षा उत्तीर्ण की और गुरुकुल की उपाधि 'विद्याभास्कर' प्राप्त हुई। सभी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। यहाँ रहते हुए उन्होंने दो वेद (यजुर्वेद और सामवेद) कंठस्थ किए और उसके परिणामस्वरूप गुरुकुल से 'द्विवेदी' की उपाधि प्रदान की गई। गुरुकुल में रहते हुए बंगला और उर्दू भी सीखी। साथ ही उन्होंने भारतीय व्यायाम, लाठी, तलवार, युयुत्सु और पिरामिड बिल्डिंग आदि की शिक्षा भी प्राप्त की। साथ ही वहां रहते हुए वर्ष 1939 में स्वतंत्रता संग्राम के अंग हैदराबाद आर्य-सत्याग्रह आन्दोलन में छ: मास कारावास में भी रहे।

ग्रन्थ लेखन

कपिल देव द्विवेदी ने 35 वर्ष की अवस्था से ही ग्रन्थों का लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था और देहान्त के एक वर्ष पूर्व तक निरन्तर लेखन कार्य करते रहे। उन्होंने 80 से अधिक ग्रन्थों की रचना की। उत्कृष्ठ रचनाओं से उन्होंने संस्कृत साहित्य को समृद्ध किया और अनेक सम्मान और पुरस्कारों से अलंकृत हुए। उनकी कृतियों से 5 लाख से भी अधिक व्यक्ति संस्कृत भाषा सीख चुके हैं। ये ग्रन्थ आज भी संस्कृत भाषा के प्रचार और प्रसार के महत्वपूर्ण माध्यम हैं। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक वेदामृत ग्रन्थमाला 40 के माध्यम से वेदों के दुरूह ज्ञान को सरल बनाकर सामान्य जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ज्ञानपुर की धरती पर रहकर आपने अपनी कृतियों के साथ ज्ञानपुर को भी अमर कर दिया।[1]

सम्मान एवं पुरस्कार

देश-विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा कपिल देव द्विवेदी जी को दो दर्जन से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए हैं-

  • संस्कृत साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए उनको भारत सरकार ने वर्ष 1991 में ‘पद्म श्री’ अलंकरण से विभूषित किया।
  • भारतीय विद्याभवन बंगलौर द्वारा गुरु गंगेश्वरानन्द वेदरत्न पुरस्कार (2005) मिला।
  • दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा महर्षि वाल्मीकि सम्मान (2010-2011) दिया गया।
  • भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त, 2010 को संस्कृत भाषा की सेवा के लिए राष्ट्रपति सम्मान से पुरस्कृत किया गया।

मृत्यु

कपिल देव द्विवेदी जी की मृत्यु 28 अगस्त, 2011 को हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कपिल देव द्विवेदी (हिंदी) shoot2pen.in। अभिगमन तिथि: 10 जनवरी, 2022।

बाहरी कड़ियाँ

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