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मरै करकसा नारि, मरै वह खसम निखट्टू | मरै करकसा नारि, मरै वह खसम निखट्टू | ||
बाम्हन सो मरि जाय, हाथ लै मदिरा प्यावै। | बाम्हन सो मरि जाय, हाथ लै मदिरा प्यावै। | ||
− | पूत वही मर जाय, जो कुल में | + | पूत वही मर जाय, जो कुल में दाग़ लगावै |
अरु बेनियाव राजा मरै, तबै नींद भर सोइए। | अरु बेनियाव राजा मरै, तबै नींद भर सोइए। | ||
बैताल कहै विक्रम सुनौ, एते मरे न रोइए</poem> | बैताल कहै विक्रम सुनौ, एते मरे न रोइए</poem> |
12:22, 9 अगस्त 2011 का अवतरण
- बैताल जाति के बंदीजन थे और राजा विक्रमसाहि की सभा में रहते थे।
- यदि ये विक्रम सिंह चरखारी वाले प्रसिद्ध विक्रमसाहि ही हैं जिन्होंने 'विक्रम सतसई' आदि कई ग्रंथ लिखे हैं और जो खुमान, प्रताप कई कवियों के आश्रयदाता थे, तो बैताल का समय संवत् 1839 और 1886 के बीच मानना पड़ेगा।
- 'शिवसिंह सरोज' में इनका जन्मकाल संवत् 1734 लिखा हुआ है।
- बैताल ने गिरिधर राय के समान नीति की कुंडलियों की रचना की हैं और प्रत्येक कुंडलियाँ विक्रम को संबोधन कर के कही हैं।
- इन्होंने लौकिक व्यवहार संबंधी अनेक विषयों पर सीधे सादे पर जोरदार पद्य कहे हैं।
- गिरिधर राय के समान इन्होंने भी वाक्चातुर्य या उपमा रूपक आदि लाने का प्रयत्न नहीं किया है। बिल्कुल सीधी सादी बात ज्यों की त्यों छंदोबद्ध कर दी गई है। फिर भी कथन के ढंग में अनूठापन है -
मरै बैल गरियार, मरै वह अड़ियल टट्टू।
मरै करकसा नारि, मरै वह खसम निखट्टू
बाम्हन सो मरि जाय, हाथ लै मदिरा प्यावै।
पूत वही मर जाय, जो कुल में दाग़ लगावै
अरु बेनियाव राजा मरै, तबै नींद भर सोइए।
बैताल कहै विक्रम सुनौ, एते मरे न रोइए
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 228।
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