"अर्जुन की प्रतिज्ञा -मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर
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उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, | उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, | ||
− | मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर | + | मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा। |
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, | मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, | ||
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? | प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? | ||
युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से, | युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से, | ||
− | अब | + | अब रोष के मारे हुए, वे दहकते अंगार-से । |
निश्चय अरुणिमा-मिस अनल की जल उठी वह ज्वाल ही, | निश्चय अरुणिमा-मिस अनल की जल उठी वह ज्वाल ही, | ||
− | तब तो दृगों का जल गया शोकाश्रु जल तत्काल | + | तब तो दृगों का जल गया शोकाश्रु जल तत्काल ही। |
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं, | साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं, | ||
− | पूरा करूँगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ | + | पूरा करूँगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं। |
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी, | जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी, | ||
− | वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे | + | वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी। |
अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है, | अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है, | ||
इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है, | इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है, | ||
उस खल जयद्रथ को जगत में मृत्यु ही अब सार है, | उस खल जयद्रथ को जगत में मृत्यु ही अब सार है, | ||
− | उन्मुक्त बस उसके लिये | + | उन्मुक्त बस उसके लिये रौरव नरक का द्वार है। |
उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है, | उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है, | ||
पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है । | पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है । | ||
अतएव कल उस नीच को रण-मघ्य जो मारूँ न मैं, | अतएव कल उस नीच को रण-मघ्य जो मारूँ न मैं, | ||
− | तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न | + | तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं। |
अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, | अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, | ||
− | साक्षी रहे सुन ये बचन रवि, शशि, अनल, अंबर, | + | साक्षी रहे सुन ये बचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मही। |
− | सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ- | + | सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वध करूँ, |
− | तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल | + | तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ। |
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13:59, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण
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उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, |
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