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यहु सब झूठी बंदिगी, बरियाँ पंच निवाज ।
 
यहु सब झूठी बंदिगी, बरियाँ पंच निवाज ।
सांचै मारे झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज ॥3॥
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सांचै मारे झूठ पढ़ि, क़ाज़ीकरै अकाज ॥3॥
  
 
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
 
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तन-मन तापर वारहूँ, जो कोइ बोलै सांच ॥5॥
 
तन-मन तापर वारहूँ, जो कोइ बोलै सांच ॥5॥
  
काजी मुल्लां भ्रंमियां, चल्या दुनीं कै साथ ।
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क़ाज़ीमुल्लां भ्रंमियां, चल्या दुनीं कै साथ ।
 
दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथ ॥6॥
 
दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथ ॥6॥
  

13:11, 14 मई 2013 के समय का अवतरण

सांच का अंग -कबीर
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

लेखा देणां सोहरा, जे दिल सांचा होइ ।
उस चंगे दीवान में, पला न पकड़ै कोइ ॥1॥

साँच कहूं तो मारिहैं, झूठे जग पतियाइ ।
यह जग काली कूकरी, जो छेड़ै तो खाय ॥2॥

यहु सब झूठी बंदिगी, बरियाँ पंच निवाज ।
सांचै मारे झूठ पढ़ि, क़ाज़ीकरै अकाज ॥3॥

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जिस हिरदे में सांच है, ता हिरदै हरि आप ॥4॥

प्रेम-प्रीति का चोलना, पहिरि कबीरा नाच ।
तन-मन तापर वारहूँ, जो कोइ बोलै सांच ॥5॥

क़ाज़ीमुल्लां भ्रंमियां, चल्या दुनीं कै साथ ।
दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथ ॥6॥

साईं सेती चोरियां, चोरां सेती गुझ ।
जाणैंगा रे जीवणा, मार पड़ैगी तुझ ॥7॥

खूब खांड है खीचड़ी, माहि पड्याँ टुक लूण ।
पेड़ा रोटी खाइ करि, गल कटावे कूण ॥8॥

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