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गरब न कीजै बावरे, हरि गरब प्रहारी।
 
गरब न कीजै बावरे, हरि गरब प्रहारी।
गरबहितें रावन गया, पाया दुख भारी॥1॥
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गरबहितें रावन गया, पाया दु:ख भारी॥1॥
 
जरन खुदी रघुनाथके, मन नाहिं सुहाती।
 
जरन खुदी रघुनाथके, मन नाहिं सुहाती।
 
जाके जिय अभिमान है, ताकि तोरत छाती॥2॥
 
जाके जिय अभिमान है, ताकि तोरत छाती॥2॥

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गरब न कीजै बावरे -मलूकदास
मलूकदास
कवि मलूकदास
जन्म 1574 सन् (1631 संवत)
मृत्यु 1682 सन् (1739 संवत)
मुख्य रचनाएँ रत्नखान, ज्ञानबोध, भक्ति विवेक
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मलूकदास की रचनाएँ

गरब न कीजै बावरे, हरि गरब प्रहारी।
गरबहितें रावन गया, पाया दु:ख भारी॥1॥
जरन खुदी रघुनाथके, मन नाहिं सुहाती।
जाके जिय अभिमान है, ताकि तोरत छाती॥2॥
एक दया और दीनता, ले रहिये भाई।
चरन गहौ जाय साधके रीझै रघुराई॥3॥
यही बड़ा उपदेस है, पर द्रोह न करिये।
कह मलूक हरि सुमिरिके, भौसागर तरिये॥4॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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