है यह पतझड़ की शाम, सखे! नीलम से पल्लव टूट गए, मरकत से साथी छूट गए, अटके फिर भी दो पीत पात, जीवन-डाली को थाम, सखे! है यह पतझड़ की शाम, सखे! लुक-छिप करके गानेवाली, मानव से शरमानेवाली, कू-कू कर कोयल माँग रही, नूतन घूँघट अविराम, सखे! है यह पतझड़ की शाम, सखे! नंगी डालों पर नीड़ सघन, नीड़ों में है कुछ-कुछ कंपन, मत देख, नज़र लग जाएगी; यह चिड़ियों के सुखधाम, सखे! है यह पतझड़ की शाम, सखे!