राधाचरण गोस्वामी

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राधाचरण गोस्वामी (जन्म- 25 फरवरी, 1859, मृत्यु- दिसंबर, 1925) ब्रज के निवासी एक साहित्यकार, नाटककार और संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने ब्रज भाषा का समर्थन किया। राधाचरण गोस्वामी खड़ी बोली के पद्य के विरोधी थे। आपको यह आशंका थी कि खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार हो जाएगा।

परिचय

राधाचरण गोस्वामी भारतेंदु युग के साहित्यकार, नाटककार के होने के साथ-साथ संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने सदा सामाजिक बुराईयों का कड़ा विरोध किया और इस कारण आप ब्रह्म समाज की ओर भी आकृष्ट हुए थे।[1]

योगदान

गोस्वामी जी ने मौलिक नाटकों की रचना की और बांग्ला भाषा की अनेक पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं इस प्रकार हैं:

  1. 'सती चंद्रावती'
  2. 'अमर सिंह राठौर'
  3. 'सुदामा'
  4. 'तन मन धन श्री गोसाई जी को अर्पण'

समर्थक एवं विरोधी

आपने सदा ब्रज भाषा का समर्थन किया और खड़ी बोली के पद्य के विरोधी थे। आपको यह डर था कि कहीं खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार न हो जाये। उस समय इस विषय को लेकर साहित्य क्षेत्र में बढ़ा विवाद चला था।

मृत्यु

दिसंबर 1925 में राधाचरण गोस्वामी जी का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 719 |

बाहरी कड़ियाँ

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