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अरबिंदो श्री का मूल नाम अरविंदो घोष (जन्म- [[15 अगस्त]], [[1872]], [[कोलकाता]] - मृत्यु- [[5 दिसम्बर]], [[1950]], [[पुदुचेरी|पाण्डिचेरी]]), अरविंद भी कहा जाता है। अरविंदो घोष कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से सार्वभौमिक मोक्ष का दर्शन प्रतिपादित किया।
 
==जन्म==
 
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अरबिंदो घोष का जन्म [[15 अगस्त]], [[1872]] कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) [[भारत]] में हुआ था।
 
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==शिक्षा==
 
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अरबिंदो घोष की शिक्षा दार्जिलिंग में ईसाई कॉन्वेंट स्कूल में प्रारम्भ हुई और लड़कपन में ही उन्हें आगे की स्कूली शिक्षा के लिए [[इंग्लैण्ड]] भेज दिया गया। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ पर वे दो शास्त्रीय और तीन आधुनिक यूरोपीय भाषाओं के कुशल ज्ञाता बन गए। 1892 में [[भारत]] लौटने पर उन्होंने बड़ौदा (वर्तमान [[वडोदरा]]) और कलकत्ता में विभिन्न प्रशासनिक व प्राध्यापकीय पदों पर कार्य किया। बाद में उन्होंने अपनी देशज संस्कृति की ओर ध्यान दिया और पुरातन संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं तथा योग का गहन अध्ययन प्रारम्भ कर दिया।
 
अरबिंदो घोष की शिक्षा दार्जिलिंग में ईसाई कॉन्वेंट स्कूल में प्रारम्भ हुई और लड़कपन में ही उन्हें आगे की स्कूली शिक्षा के लिए [[इंग्लैण्ड]] भेज दिया गया। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ पर वे दो शास्त्रीय और तीन आधुनिक यूरोपीय भाषाओं के कुशल ज्ञाता बन गए। 1892 में [[भारत]] लौटने पर उन्होंने बड़ौदा (वर्तमान [[वडोदरा]]) और कलकत्ता में विभिन्न प्रशासनिक व प्राध्यापकीय पदों पर कार्य किया। बाद में उन्होंने अपनी देशज संस्कृति की ओर ध्यान दिया और पुरातन संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं तथा योग का गहन अध्ययन प्रारम्भ कर दिया।
 
 
==राजनीतिक गतिविधियाँ==
 
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अरबिंदो के लिए 1902 से 1910 के वर्ष हलचल भरे थे, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन से [[भारत]] को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया था। वह अपनी राजनीतिक गतिविधियों और क्रान्तिकारी साहित्यिक प्रयासों के लिए 1908 में बन्दी बना लिए गए। दो वर्ष के बाद ब्रिटिश [[भारत]] से भागकर उन्होंने दक्षिण–पूर्वी [[भारत]] में फ़्राँसीसी उपनिवेश पाण्डिचेरी में शरण ली, जहाँ उन्होंने अपना शेष जीवन पूरी तरह से अपने दर्शन को विकसित करने में लगा दिया। उन्होंने वहाँ पर आध्यात्मिक विकास के अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में एक आश्रम की स्थापना की, जिसकी ओर विश्व भर के छात्र आकर्षित हुए।  
 
अरबिंदो के लिए 1902 से 1910 के वर्ष हलचल भरे थे, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन से [[भारत]] को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया था। वह अपनी राजनीतिक गतिविधियों और क्रान्तिकारी साहित्यिक प्रयासों के लिए 1908 में बन्दी बना लिए गए। दो वर्ष के बाद ब्रिटिश [[भारत]] से भागकर उन्होंने दक्षिण–पूर्वी [[भारत]] में फ़्राँसीसी उपनिवेश पाण्डिचेरी में शरण ली, जहाँ उन्होंने अपना शेष जीवन पूरी तरह से अपने दर्शन को विकसित करने में लगा दिया। उन्होंने वहाँ पर आध्यात्मिक विकास के अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में एक आश्रम की स्थापना की, जिसकी ओर विश्व भर के छात्र आकर्षित हुए।  
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अरबिंदो घोष के सार्वभौमिक मोक्ष के सिद्धान्त के अनुसार, ब्रह्म के साथ एकाकार होने के दोमुखी रास्ते हैं—बोधत्व ऊपर से आता है (प्रमेय), जबकि आध्यात्मिक मस्तिष्क यौगिक प्रकाश के माध्यम से नीचे से ऊपर पहुँचने की कोशिश करता है (अप्रमेय)। जब ये दोनों शक्तियाँ एक–दूसरे में मिलती हैं, तब संशय से भरे व्यक्ति का सृजन होता है (संश्लेषण)। यह यौगिक प्रकाश, तर्क व अंतर्बोध से परे अंततः व्यक्ति को वैयक्तिकता के बंधन से मुक्त करता है। इस प्रकार, अरबिंदो ने न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समूची मानवता के लिए मुक्ति की तार्किक पद्धति का सृजन किया।  
 
अरबिंदो घोष के सार्वभौमिक मोक्ष के सिद्धान्त के अनुसार, ब्रह्म के साथ एकाकार होने के दोमुखी रास्ते हैं—बोधत्व ऊपर से आता है (प्रमेय), जबकि आध्यात्मिक मस्तिष्क यौगिक प्रकाश के माध्यम से नीचे से ऊपर पहुँचने की कोशिश करता है (अप्रमेय)। जब ये दोनों शक्तियाँ एक–दूसरे में मिलती हैं, तब संशय से भरे व्यक्ति का सृजन होता है (संश्लेषण)। यह यौगिक प्रकाश, तर्क व अंतर्बोध से परे अंततः व्यक्ति को वैयक्तिकता के बंधन से मुक्त करता है। इस प्रकार, अरबिंदो ने न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समूची मानवता के लिए मुक्ति की तार्किक पद्धति का सृजन किया।  
 
==साहित्यिक कृतियाँ==
 
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अरबिंदो घोष की वृहद और जटिल साहित्यिक कृतियों में दार्शनिक चिंतन, कविता, नाटक और अन्य लेख सम्मिलित हैं। उनकी कृतियाँ हैं—
 
अरबिंदो घोष की वृहद और जटिल साहित्यिक कृतियों में दार्शनिक चिंतन, कविता, नाटक और अन्य लेख सम्मिलित हैं। उनकी कृतियाँ हैं—
 
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12:46, 13 मार्च 2011 का अवतरण

अरबिंदो घोष
Aurobindo-Ghosh.jpg
पूरा नाम अरविंदो घोष
जन्म 15 अगस्त, 1872
जन्म भूमि कोलकाता, भारत
मृत्यु 5 दिसम्बर, 1950
मृत्यु स्थान पाण्डिचेरी, भारत
कर्म भूमि पाण्डिचेरी
कर्म-क्षेत्र कवि, दार्शनिक, स्वतन्त्रता सेनानी
मुख्य रचनाएँ एस्सेज़ आन गीता (1928), द लाइफ़ डिवाइन (1940), कलेक्टेड पोयम्स एण्ड प्लेज (1942), द सिंथेसिस ऑफ़ योगा (1948), द ह्यूमन साइकिल (1949), द आईडियल ऑफ़ ह्यूमन यूनिटी (1949), ए लीजेंड एण्ड ए सिंबल (1950) और ऑन द वेदा (1956)।
विषय दार्शनिक चिंतन, कविता, नाटक और अन्य लेख
विद्यालय ईसाई कॉन्वेंट स्कूल, कैंब्रिज विश्वविद्यालय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

अरबिंदो श्री का मूल नाम अरविंदो घोष (जन्म- 15 अगस्त, 1872, कोलकाता - मृत्यु- 5 दिसम्बर, 1950, पाण्डिचेरी), अरविंद भी कहा जाता है। अरविंदो घोष कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से सार्वभौमिक मोक्ष का दर्शन प्रतिपादित किया।

जन्म

अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) भारत में हुआ था।

शिक्षा

अरबिंदो घोष की शिक्षा दार्जिलिंग में ईसाई कॉन्वेंट स्कूल में प्रारम्भ हुई और लड़कपन में ही उन्हें आगे की स्कूली शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया गया। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ पर वे दो शास्त्रीय और तीन आधुनिक यूरोपीय भाषाओं के कुशल ज्ञाता बन गए। 1892 में भारत लौटने पर उन्होंने बड़ौदा (वर्तमान वडोदरा) और कलकत्ता में विभिन्न प्रशासनिक व प्राध्यापकीय पदों पर कार्य किया। बाद में उन्होंने अपनी देशज संस्कृति की ओर ध्यान दिया और पुरातन संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं तथा योग का गहन अध्ययन प्रारम्भ कर दिया।

राजनीतिक गतिविधियाँ

अरबिंदो के लिए 1902 से 1910 के वर्ष हलचल भरे थे, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया था। वह अपनी राजनीतिक गतिविधियों और क्रान्तिकारी साहित्यिक प्रयासों के लिए 1908 में बन्दी बना लिए गए। दो वर्ष के बाद ब्रिटिश भारत से भागकर उन्होंने दक्षिण–पूर्वी भारत में फ़्राँसीसी उपनिवेश पाण्डिचेरी में शरण ली, जहाँ उन्होंने अपना शेष जीवन पूरी तरह से अपने दर्शन को विकसित करने में लगा दिया। उन्होंने वहाँ पर आध्यात्मिक विकास के अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में एक आश्रम की स्थापना की, जिसकी ओर विश्व भर के छात्र आकर्षित हुए।

सिद्धान्त

अरबिंदो घोष के सार्वभौमिक मोक्ष के सिद्धान्त के अनुसार, ब्रह्म के साथ एकाकार होने के दोमुखी रास्ते हैं—बोधत्व ऊपर से आता है (प्रमेय), जबकि आध्यात्मिक मस्तिष्क यौगिक प्रकाश के माध्यम से नीचे से ऊपर पहुँचने की कोशिश करता है (अप्रमेय)। जब ये दोनों शक्तियाँ एक–दूसरे में मिलती हैं, तब संशय से भरे व्यक्ति का सृजन होता है (संश्लेषण)। यह यौगिक प्रकाश, तर्क व अंतर्बोध से परे अंततः व्यक्ति को वैयक्तिकता के बंधन से मुक्त करता है। इस प्रकार, अरबिंदो ने न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समूची मानवता के लिए मुक्ति की तार्किक पद्धति का सृजन किया।

साहित्यिक कृतियाँ

अरबिंदो घोष

अरबिंदो घोष की वृहद और जटिल साहित्यिक कृतियों में दार्शनिक चिंतन, कविता, नाटक और अन्य लेख सम्मिलित हैं। उनकी कृतियाँ हैं—

  • द लाइफ़ डिवाइन (1940),
  • द ह्यूमन साइकिल (1949),
  • द आईडियल आफ़ ह्यूमन यूनिटी (1949),
  • आन द वेदा (1956),
  • कलेक्टेड पोयम्स एण्ड प्लेज (1942),
  • एस्सेज़ आन गीता (1928),
  • द सिंथेसिस आफ़ योगा (1948) और
  • ए लीजेंड एण्ड ए सिंबल (1950)।

मृत्यु

अरबिंदो घोष की मृत्यु 5 दिसम्बर, 1950 में पाण्डिचेरी में हुई थी।



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