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*चिंतामणि त्रिपाठी [[रीति काल]] के कवि थे।  
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'''चिंतामणि त्रिपाठी''' [[रीति काल]] के कवि थे। ये [[तिकवांपुर]], ज़िला [[कानपुर]] के रहने वाले थे। चिंतामणि का जन्मकाल [[संवत]] 1666 के लगभग और कविता काल संवत 1700 के आस-पास का लगता है। इनका 'कविकुल कल्पतरु' नामक [[ग्रंथ]] संवत 1707 में लिखा गया था।
*चिंतामणि त्रिपाठी तिकवाँपुर<ref> ज़िला-कानपुर</ref> के रहने वाले और इनके चार भाई थे -  
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==पारिवारिक परिचय==
#[[भूषण]],  
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चिंतामणि त्रिपाठी के तीन भाई थे- [[भूषण]], [[मतिराम]] और जटाशंकर। ये सभी भाई कवि थे, जिनमें प्रथम तीन भाई तो हिन्दी साहित्य में बहुत यशस्वी हुए। इनके [[पिता]] का नाम 'रत्नाकर त्रिपाठी' था। कुछ विवाद है कि [[भूषण]] न तो चिंतामणि और न ही [[मतिराम]] के भाई थे, न [[शिवाजी]] के दरबार में थे।
#मतिराम और  
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====रचनाएँ====
#जटाशंकर।  
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इनके संबंध में 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है- 'ये बहुत दिन तक [[नागपुर]] में सूर्यवंशी भोंसला मकरंद शाह के यहाँ रहे और उन्हीं के नाम पर 'छंद विचार' नामक पिंगल का बहुत बड़ा ग्रंथ बनाया और 'काव्य विवेक', 'कविकुल कल्पतरु', 'काव्यप्रकाश', 'रामायण' ये पाँच ग्रंथ इनके लिखे हुए हैं। इनके द्वारा रचित 'रामायण' कवित्त और अन्य नाना छंदों में बहुत अपूर्व है। बाबू रुद्रसाहि सोलंकी, [[शाहजहाँ]] बादशाह और जैनदीं अहमद ने इनको बहुत दान दिए हैं। इन्होंने अपने ग्रंथ में कहीं कहीं अपना नाम '''मणिमाल''' भी कहा है।'
*चारों भाई कवि थे, जिनमें प्रथम तीन भाई तो [[हिन्दी]] साहित्य में बहुत यशस्वी हुए।  
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==वर्णन प्रणाली==
*इनके पिता का नाम 'रत्नाकर त्रिपाठी' था।  
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इस विवरण से स्पष्ट होता है कि चिंतामणि ने काव्य के सब अंगों पर ग्रंथ लिखे। इनकी [[भाषा]] 'ललित' और 'सानुप्रास' होती थी। [[अवध]] के कवियों की [[भाषा]] देखते हुए इनकी [[ब्रजभाषा]] विशुद्ध दिखाई पड़ती है। विषय वर्णन की प्रणाली भी मनोहर है। ये वास्तव में एक उत्कृष्ट कवि थे-  
*कुछ विवाद है कि [[भूषण]] न तो चिंतामणि और [[मतिराम]] के भाई थे, न [[शिवाजी]] के दरबार में थे।  
 
*चिंतामणि का जन्मकाल संवत 1666 के लगभग और कविता काल संवत 1700 के आसपास का लगता है।
 
*इनका 'कविकुल कल्पतरु' नामक ग्रंथ संवत 1707 का लिखा है।
 
*इनके संबंध में 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है - 'ये बहुत दिन तक [[नागपुर]] में सूर्यवंशी भोंसला मकरंद शाह के यहाँ रहे और उन्हीं के नाम पर 'छंद विचार' नामक पिंगल का बहुत बड़ा ग्रंथ बनाया और 'काव्य विवेक', 'कविकुल कल्पतरु', 'काव्यप्रकाश', 'रामायण' ये पाँच ग्रंथ इनके लिखे हुए हैं। इनके द्वारा रचित 'रामायण' कवित्त और अन्य नाना छंदों में बहुत अपूर्व है। बाबू रुद्रसाहि सोलंकी, [[शाहजहाँ]] बादशाह और जैनदीं अहमद ने इनको बहुत दान दिए हैं। इन्होंने अपने ग्रंथ में कहीं कहीं अपना नाम '''मणिमाल''' भी कहा है।'
 
*इस विवरण से स्पष्ट होता है कि चिंतामणि ने काव्य के सब अंगों पर ग्रंथ लिखे। इनकी [[भाषा]] 'ललित' और 'सानुप्रास' होती थी।  
 
*[[अवध]] के कवियों की [[भाषा]] देखते हुए इनकी [[ब्रजभाषा]] विशुद्ध दिखाई पड़ती है।  
 
*विषय वर्णन की प्रणाली भी मनोहर है।  
 
*ये वास्तव में एक उत्कृष्ट कवि थे -  
 
 
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06:59, 10 मई 2012 के समय का अवतरण

चिंतामणि त्रिपाठी रीति काल के कवि थे। ये तिकवांपुर, ज़िला कानपुर के रहने वाले थे। चिंतामणि का जन्मकाल संवत 1666 के लगभग और कविता काल संवत 1700 के आस-पास का लगता है। इनका 'कविकुल कल्पतरु' नामक ग्रंथ संवत 1707 में लिखा गया था।

पारिवारिक परिचय

चिंतामणि त्रिपाठी के तीन भाई थे- भूषण, मतिराम और जटाशंकर। ये सभी भाई कवि थे, जिनमें प्रथम तीन भाई तो हिन्दी साहित्य में बहुत यशस्वी हुए। इनके पिता का नाम 'रत्नाकर त्रिपाठी' था। कुछ विवाद है कि भूषण न तो चिंतामणि और न ही मतिराम के भाई थे, न शिवाजी के दरबार में थे।

रचनाएँ

इनके संबंध में 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है- 'ये बहुत दिन तक नागपुर में सूर्यवंशी भोंसला मकरंद शाह के यहाँ रहे और उन्हीं के नाम पर 'छंद विचार' नामक पिंगल का बहुत बड़ा ग्रंथ बनाया और 'काव्य विवेक', 'कविकुल कल्पतरु', 'काव्यप्रकाश', 'रामायण' ये पाँच ग्रंथ इनके लिखे हुए हैं। इनके द्वारा रचित 'रामायण' कवित्त और अन्य नाना छंदों में बहुत अपूर्व है। बाबू रुद्रसाहि सोलंकी, शाहजहाँ बादशाह और जैनदीं अहमद ने इनको बहुत दान दिए हैं। इन्होंने अपने ग्रंथ में कहीं कहीं अपना नाम मणिमाल भी कहा है।'

वर्णन प्रणाली

इस विवरण से स्पष्ट होता है कि चिंतामणि ने काव्य के सब अंगों पर ग्रंथ लिखे। इनकी भाषा 'ललित' और 'सानुप्रास' होती थी। अवध के कवियों की भाषा देखते हुए इनकी ब्रजभाषा विशुद्ध दिखाई पड़ती है। विषय वर्णन की प्रणाली भी मनोहर है। ये वास्तव में एक उत्कृष्ट कवि थे-

येई उधारत हैं तिन्हैं जे परे मोह महोदधि के जल फेरे।
जे इनको पल ध्यान धारैं मन, ते न परैं कबहूँ जम घेरे
राजै रमा रमनी उपधान अभै बरदान रहैं जन नेरे।
हैं बलभार उदंड भरे हरि के भुजदंड सहायक मेरे

इक आजु मैं कुंदन बेलि लखी मनिमंदिर की रुचिवृंद भरैं।
कुरविंद के पल्लव इंदु तहाँ अरविंदन तें मकरंद झरैं
उत बुंदन के मुकतागन ह्वै फल सुंदर द्वै पर आनि परै।
लखि यों दुति कंद अनंद कला नँदनंद सिलाद्रव रूप धारैं

ऑंखिन मुँदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै।
कैहूँ कहूँ मुसकाय चितै अंगराय अनूपम अंग दिखावै
नाह छुई छल सो छतियाँ हँसि भौंह चढ़ाय अनंद बढ़ावै।
जोबन के मद मत्ता तिया हित सों पति को नित चित्त चुरावै


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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