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'''बुद्ध पूर्णिमा''' वैशाख पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे 'बुद्ध जयंती' के नाम से भी जाना जाता है। यह [[बौद्ध धर्म]] में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। [[पूर्णिमा]] के दिन ही [[गौतम बुद्ध]] का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को 'बुद्धत्व' की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के [[दिन]] दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। यह [[स्नान]] लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, [[सत्तू]], जलपात्र, [[वस्त्र]] दान करने तथा [[पितर|पितरों]] का [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।
 
'''बुद्ध पूर्णिमा''' वैशाख पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे 'बुद्ध जयंती' के नाम से भी जाना जाता है। यह [[बौद्ध धर्म]] में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। [[पूर्णिमा]] के दिन ही [[गौतम बुद्ध]] का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को 'बुद्धत्व' की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के [[दिन]] दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। यह [[स्नान]] लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, [[सत्तू]], जलपात्र, [[वस्त्र]] दान करने तथा [[पितर|पितरों]] का [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।
 
==सत्य विनायक पूर्णिमा==
 
==सत्य विनायक पूर्णिमा==
यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। [[श्रीकृष्ण]] के बचपन के श्रीकृष्ण दरिद्र [[ब्राह्मण]] [[सुदामा]] जब [[द्वारिका]] उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। इस दिन [[धर्मराज]] की पूजा करने का विधान है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। [[वैशाख]] की [[पूर्णिमा]] को ही [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के नौवें अवतार [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिवस को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।  
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यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। भगवान [[श्रीकृष्ण]] के बचपन के दरिद्र मित्र [[ब्राह्मण]] [[सुदामा]] जब [[द्वारिका]] उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। इस दिन [[धर्मराज]] की [[पूजा]] करने का विधान है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। [[वैशाख]] की [[पूर्णिमा]] को ही [[विष्णु|भगवान विष्णु]] का नौवाँ [[अवतार]] [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिवस को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।
 
==उत्सव और अनुष्ठान==
 
==उत्सव और अनुष्ठान==
इस दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मरात के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे [[तिल]] दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के [[जल]] से स्नान करके [[घी]], चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से [[अग्नि]] में आहुति दें अथवा तिल और [[शहद]] का दान करें, तिल के तेल के [[दीपक]] जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा [[गंगा]] आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके [[पूर्णिमा]], [[चंद्रमा]] अथवा [[सत्यनारायण व्रत|सत्यनारायण का व्रत]] करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।  
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'बुद्ध पूर्णिमा' के दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे [[तिल]] दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के [[जल]] से स्नान करके [[घी]], चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से [[अग्नि]] में आहुति दें अथवा तिल और [[शहद]] का दान करें, तिल के तेल के [[दीपक]] जलाएं, [[जल]] और तिलों का तर्पण करें अथवा [[गंगा]] आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके [[पूर्णिमा]], [[चंद्रमा]] अथवा [[सत्यनारायण व्रत|सत्यनारायण का व्रत]] करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।
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====समारोह====
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[[बौद्ध धर्म]] के अनुयायियों के लिए 'बुद्ध पूर्णिमा' सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन सारे विश्व में जहाँ कहीं भी बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं, वहाँ अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए जाते हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%80-1090506117_1.htm|title=बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती|accessmonthday=14 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
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#गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
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06:02, 14 मई 2014 का अवतरण

बुद्ध पूर्णिमा
अभिलिखित अभय मुद्रा में बुद्ध, राजकीय संग्रहालय मथुरा
अन्य नाम वैशाख पूर्णिमा, सत्य विनायक पूर्णिमा
अनुयायी बौद्ध, हिंदू
उद्देश्य बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं।
तिथि वैशाख की पूर्णिमा
धार्मिक मान्यता बुद्ध पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में भगवान बुद्ध अवतरित हुए थे और इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था।
अन्य जानकारी यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

बुद्ध पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे 'बुद्ध जयंती' के नाम से भी जाना जाता है। यह बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को 'बुद्धत्व' की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। यह स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।

सत्य विनायक पूर्णिमा

यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के दरिद्र मित्र ब्राह्मण सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। इस दिन धर्मराज की पूजा करने का विधान है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु का नौवाँ अवतार भगवान बुद्ध के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिवस को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।

उत्सव और अनुष्ठान

'बुद्ध पूर्णिमा' के दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

समारोह

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए 'बुद्ध पूर्णिमा' सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन सारे विश्व में जहाँ कहीं भी बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं, वहाँ अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए जाते हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।[1]

  1. श्रीलंकाई इस दिन को 'वेसाक उत्सव' के रूप में मनाते हैं, जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।
  2. इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।
  3. दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं।
  4. बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।
  5. मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।
  6. बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएँ सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं।
  7. इस दिन मांसाहार का परहेज होता है, क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे।
  8. इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।
  9. पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।
  10. गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
  11. दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 मई, 2014।

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