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होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो,
 
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मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।
 
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।
नही भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
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नहीं भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
 
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो!
 
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो!
 
रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
 
रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
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मुझे फूल मत मारो -मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त
कवि मैथिलीशरण गुप्त
जन्म 3 अगस्त, 1886
मृत्यु 12 दिसंबर, 1964
मृत्यु स्थान चिरगाँव, झाँसी
मुख्य रचनाएँ पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, झंकार, जयभारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ

            मुझे फूल मत मारो,
मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो।
होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो,
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।
नहीं भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो!
रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
लो, यह मेरी चरण-धूलि उस रति के सिर पर धारो!

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