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मोहन हो-हो, हो-हो होरी । | मोहन हो-हो, हो-हो होरी । | ||
काल्ह हमारे आँगन गारी दै आयौ, सो को री ॥ | काल्ह हमारे आँगन गारी दै आयौ, सो को री ॥ | ||
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अब क्यों दुर बैठे जसुदा ढिंग, निकसो कुंजबिहारी । | अब क्यों दुर बैठे जसुदा ढिंग, निकसो कुंजबिहारी । | ||
− | उमँगि-उमँगि आई गोकुल की , वे सब भई धन बारी ॥ | + | उमँगि-उमँगि आई गोकुल की, वे सब भई धन बारी ॥ |
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तबहिं लला ललकारि निकारे, रूप सुधा की प्यासी । | तबहिं लला ललकारि निकारे, रूप सुधा की प्यासी । | ||
लपट गईं घनस्याम लाल सों, चमकि-चमकि चपला सी ॥ | लपट गईं घनस्याम लाल सों, चमकि-चमकि चपला सी ॥ | ||
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काजर दै भजि भार भरु वाके, हँसि-हँसि ब्रज की नारी । | काजर दै भजि भार भरु वाके, हँसि-हँसि ब्रज की नारी । | ||
कहै ’रसखान’ एक गारी पर, सौ आदर बलिहारी ॥ | कहै ’रसखान’ एक गारी पर, सौ आदर बलिहारी ॥ | ||
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11:00, 14 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
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मोहन हो-हो, हो-हो होरी । |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |