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'''श्रीनाथ''' (जन्म- 1380 से 1460 के बीच)  [[तेलुगु भाषा]] के प्रसिद्ध [[कवि]] थे। उन्हें बचपन में ही [[संस्कृत]] और तेलुगू भाषा में अच्छी योग्यता प्राप्त हो गई थी और छोटी उम्र से ही [[काव्य]] रचना करने लगे थे।  
 
'''श्रीनाथ''' (जन्म- 1380 से 1460 के बीच)  [[तेलुगु भाषा]] के प्रसिद्ध [[कवि]] थे। उन्हें बचपन में ही [[संस्कृत]] और तेलुगू भाषा में अच्छी योग्यता प्राप्त हो गई थी और छोटी उम्र से ही [[काव्य]] रचना करने लगे थे।  
 
==परिचय==
 
==परिचय==
श्रीनाथ [[तेलुगु भाषा]] के प्रसिद्ध [[कवि]] श्रीनाथ का समय 1380 से 1460 ई. के बीच माना जाता है। इन्हें विजयनगर के राजा ने 'कवि सार्वभोम' की उपाधि प्रदान की थी। बचपन में ही [[संस्कृत]] और तेलुगू भाषा में अच्छी योग्यता प्राप्त हो जाने के बाद वे छोटी उम्र से ही [[काव्य]] रचना करने लगे थे। आरंभ में इनको अनेक राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ। लेकिन इनका अंत समय बड़े कष्ट में बीता। राज्याश्रय और उसके साथ सुख सुविधाएं न रहने के कारण जीवन के अंतिम दिनों में इन्हें पेट पालने के लिए स्वयं हल चलाकर खेती करनी पड़ी थी। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=869|url=}}</ref>
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[[तेलुगु भाषा]] के प्रसिद्ध [[कवि]] श्रीनाथ का समय 1380 से 1460 ई. के बीच माना जाता है। इन्हें [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] के राजा ने 'कवि सार्वभोम' की उपाधि प्रदान की थी। बचपन में ही [[संस्कृत]] और तेलुगू भाषा में अच्छी योग्यता प्राप्त हो जाने के बाद वे छोटी उम्र से ही [[काव्य]] रचना करने लगे थे। आरंभ में इनको अनेक राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ। लेकिन इनका अंत समय बड़े कष्ट में बीता। राज्याश्रय और उसके साथ सुख सुविधाएं न रहने के कारण जीवन के अंतिम दिनों में इन्हें पेट पालने के लिए स्वयं हल चलाकर खेती करनी पड़ी थी। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=869|url=}}</ref>
 
==रचनाएं==
 
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इनके [[काव्य]] [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में निम्नलिखित इस प्रकार हैं-
 
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08:30, 11 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

श्रीनाथ (जन्म- 1380 से 1460 के बीच) तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें बचपन में ही संस्कृत और तेलुगू भाषा में अच्छी योग्यता प्राप्त हो गई थी और छोटी उम्र से ही काव्य रचना करने लगे थे।

परिचय

तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध कवि श्रीनाथ का समय 1380 से 1460 ई. के बीच माना जाता है। इन्हें विजयनगर के राजा ने 'कवि सार्वभोम' की उपाधि प्रदान की थी। बचपन में ही संस्कृत और तेलुगू भाषा में अच्छी योग्यता प्राप्त हो जाने के बाद वे छोटी उम्र से ही काव्य रचना करने लगे थे। आरंभ में इनको अनेक राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ। लेकिन इनका अंत समय बड़े कष्ट में बीता। राज्याश्रय और उसके साथ सुख सुविधाएं न रहने के कारण जीवन के अंतिम दिनों में इन्हें पेट पालने के लिए स्वयं हल चलाकर खेती करनी पड़ी थी। [1]

रचनाएं

इनके काव्य ग्रंथों में निम्नलिखित इस प्रकार हैं-

  1. श्रीहर्ष कृत 'नैषध' काव्य का रूपांतर
  2. शालिवाहन
  3. सप्तशती
  4. भीमखंड
  5. काशीखंड
  6. हरविलास
  7. वीचिनाटक
  8. शिवरात्रि महात्म्य आदि प्रसिद्ध हैं।

श्रीनाथ ने तेलुगू भाषा को विविध रूपों में संपन्न किया और राजा से लेकर जनसामान्य के सम्मान के पात्र रहे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 869 |

बाहरी कड़ियाँ

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