"श्रीभट्ट" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
श्रीभट्ट [[निंबार्क संप्रदाय]] के प्रसिद्ध विद्वान 'केशव कश्मीरी' के प्रधान शिष्य थे। इनका जन्म [[संवत्]] 1595 में अनुमान किया जाता है अत: इनका कविताकाल संवत् 1625 या उसके कुछ आगे तक माना जा सकता है। इनकी कविता सीधी सादी और चलती [[भाषा]] में है। पद भी प्राय: छोटे छोटे हैं। इनकी कृति भी अधिक विस्तृत नहीं है पर 'युगल शतक' नाम का इनका 100 पदों का एक ग्रंथ कृष्णभक्तों में बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। 'युगल शतक' के अतिरिक्त इनकी एक छोटी सी पुस्तक 'आदि वाणी' भी मिलती है। ऐसा प्रसिद्ध है कि जब ये तन्मय होकर अपने पद गाने लगते थे तब कभी कभी उस पद के ध्यानानुरूप इन्हें भगवान की झलक प्रत्यक्ष मिल जाती थी। एक बार वे यह मलार गा रहे थे -
+
'''श्रीभट्ट''' [[निंबार्क संप्रदाय]] के प्रसिद्ध विद्वान 'केशव कश्मीरी' के प्रधान शिष्य थे। इनका जन्म [[संवत्]] 1595 में अनुमान किया जाता है अत: इनका कविताकाल संवत् 1625 या उसके कुछ आगे तक माना जा सकता है। इनकी कविता सीधी सादी और चलती [[भाषा]] में है। पद भी प्राय: छोटे छोटे हैं। इनकी कृति भी अधिक विस्तृत नहीं है पर 'युगल शतक' नाम का इनका 100 पदों का एक ग्रंथ कृष्णभक्तों में बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। 'युगल शतक' के अतिरिक्त इनकी एक छोटी सी पुस्तक 'आदि वाणी' भी मिलती है। ऐसा प्रसिद्ध है कि जब ये तन्मय होकर अपने पद गाने लगते थे तब कभी कभी उस पद के ध्यानानुरूप इन्हें भगवान की झलक प्रत्यक्ष मिल जाती थी। एक बार वे यह मलार गा रहे थे -
 
<poem>भीजत कब देखौं इन नैना।
 
<poem>भीजत कब देखौं इन नैना।
 
स्यामाजू की सुरँग चूनरी, मोहन को उपरैना
 
स्यामाजू की सुरँग चूनरी, मोहन को उपरैना
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
  
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
{{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 135| chapter =प्रकरण 5}}
 
{{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 135| chapter =प्रकरण 5}}
 
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भारत के कवि}}
 
{{भारत के कवि}}
 
[[Category:कवि]]  
 
[[Category:कवि]]  
 
[[Category:निर्गुण भक्ति]]   
 
[[Category:निर्गुण भक्ति]]   
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
+
[[Category:चरित कोश]]  
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]  
 
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:भक्ति काल]]  
 
[[Category:भक्ति काल]]  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

08:57, 11 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

श्रीभट्ट निंबार्क संप्रदाय के प्रसिद्ध विद्वान 'केशव कश्मीरी' के प्रधान शिष्य थे। इनका जन्म संवत् 1595 में अनुमान किया जाता है अत: इनका कविताकाल संवत् 1625 या उसके कुछ आगे तक माना जा सकता है। इनकी कविता सीधी सादी और चलती भाषा में है। पद भी प्राय: छोटे छोटे हैं। इनकी कृति भी अधिक विस्तृत नहीं है पर 'युगल शतक' नाम का इनका 100 पदों का एक ग्रंथ कृष्णभक्तों में बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। 'युगल शतक' के अतिरिक्त इनकी एक छोटी सी पुस्तक 'आदि वाणी' भी मिलती है। ऐसा प्रसिद्ध है कि जब ये तन्मय होकर अपने पद गाने लगते थे तब कभी कभी उस पद के ध्यानानुरूप इन्हें भगवान की झलक प्रत्यक्ष मिल जाती थी। एक बार वे यह मलार गा रहे थे -

भीजत कब देखौं इन नैना।
स्यामाजू की सुरँग चूनरी, मोहन को उपरैना

  • कहते हैं कि राधा कृष्ण इसी रूप में इन्हें दिखाई पड़ गए और इन्होंने पद इस प्रकार पूरा किया -

स्यामा स्याम कुंजतर ठाढ़े, जतन कियो कछु मैं ना।
श्रीभट उमड़ि घटा चहुँ दिसि से घिरि आई जल सेना

  • इनके 'युगल शतक' से दो पद उध्दृत किए जाते हैं -

ब्रजभूमि मोहनि मैं जानी।
मोहन कुंज, मोहन वृंदावन, मोहन जमुना पानी
मोहन नारि सकल गोकुल की बोलति अमरित बानी।
श्रीभट्ट के प्रभु मोहन नागर, 'मोहनि राधा रानी'

बसौ मेरे नैननि में दोउ चंद।
गोर बदनि बृषभानु नंदिनी, स्यामबरन नँदनंद
गोलक रहे लुभाय रूप में निरखत आनंदकंद।
जय श्रीभट्ट प्रेमरस बंधान, क्यों छूटै दृढ़ फंद


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 5”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 135।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख