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'''सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी''' ([[अंग्रेजी]]: ''C. Narayana Reddy'', जन्म: [[29 जुलाई]], [[1931]], [[आंध्र प्रदेश]]) [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित [[तेलुगु भाषा]] के प्रख्यात [[कवि]] हैं। ये अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक जाने-माने कवियों में से एक हैं। ये पांच दशकों से भी अधिक समय तक काव्य रचना में लगे हुए है, अब तक इनकी 40 से भी अधिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें [[कविता]], गीत, [[संगीत]], [[नाटक]], नृत्य-नाट्य, [[निबंध]], यात्रा संस्मरण, साहित्यालोचन तथा [[ग़ज़ल|ग़ज़लें]] (मौलिक तथा अनूदित) सम्मिलित हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-5|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=131|url=}}</ref>
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==जन्म एवं शिक्षा==
 
==जन्म एवं शिक्षा==
सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी का जन्म 29 जुलाई, 1931 को आंध्र प्रदेश के दूरदराज़ के गांव हनुमाजीपेट के एक कृषक परिवार में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा [[उर्दू]] माध्यम से हुई। किशोरावस्था में इन पर लोकगीतों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हरि-कथा, विथि-भागवत आदि लोकशैलियों की गहरी छाप पड़ी। यह [[संगीत|संगीत-प्रेमी]] हैं और सुमधुर कंठ के स्वामी हैं, जिसका यह अपने [[काव्य]] पाठों में पूरा लाभ उठाते हैं।
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सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी का जन्म 29 जुलाई, 1931 को तत्कालीन हैदराबाद राज्य ([[तेलंगाना|तेलंगाना राज्य]]) के दूरदराज़ के गांव हनुमाजीपेट के एक कृषक [[परिवार]] में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा [[उर्दू]] माध्यम से हुई। किशोरावस्था में इन पर लोकगीतों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हरि-कथा, विथि-भागवत आदि लोकशैलियों की गहरी छाप पड़ी। वे [[संगीत|संगीत-प्रेमी]] और सुमधुर कंठ के स्वामी थे, जिसका यह अपने [[काव्य]] पाठों में पूरा लाभ उठाते थे।
 
==कवि का विकास चरण==
 
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सी. नारायन रेड़्ड़ी को [[कवि]] के विकासक्रम के विभिन्न चरणों में रखा जा सकता है, ये है, रूमानी, प्रगतिशील तथा मानवतावादी चरण, यह वर्गीकरण कवि की विकास यात्रा में पड़ने वाले किसी एक पड़ाव से जुड़ी रचनाओं में पाए जाने वाले सर्वप्रथम तत्त्व को निर्दिष्ट करने मात्र के लिए है। इन सभी चरणों के दौरान मनुष्य की अंतर्निहित अच्छाई और अंतत: सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक बुराई पर उसकी विजय की अवश्यंभाविता में [[कवि]] की गहन एवं अटूट आस्था एक अंरर्धारा की भांति निरंतर प्रवहमान रहती है।  
 
सी. नारायन रेड़्ड़ी को [[कवि]] के विकासक्रम के विभिन्न चरणों में रखा जा सकता है, ये है, रूमानी, प्रगतिशील तथा मानवतावादी चरण, यह वर्गीकरण कवि की विकास यात्रा में पड़ने वाले किसी एक पड़ाव से जुड़ी रचनाओं में पाए जाने वाले सर्वप्रथम तत्त्व को निर्दिष्ट करने मात्र के लिए है। इन सभी चरणों के दौरान मनुष्य की अंतर्निहित अच्छाई और अंतत: सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक बुराई पर उसकी विजय की अवश्यंभाविता में [[कवि]] की गहन एवं अटूट आस्था एक अंरर्धारा की भांति निरंतर प्रवहमान रहती है।  

08:29, 13 जून 2017 का अवतरण

सी. नारायण रेड्डी
सी. नारायन रेड़्ड़ी
पूरा नाम सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी
जन्म 29 जुलाई, 1931
जन्म भूमि आंध्र प्रदेश
मृत्यु 12 जून, 2017
कर्म-क्षेत्र काव्य
मुख्य रचनाएँ 'मुखामुखी' (1971), 'मनिषि चिलक' (1962), 'उदयं ना हृदयं' (1963)
भाषा तेलुगु भाषा
पुरस्कार-उपाधि 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1988)
प्रसिद्धि कवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सी. नारायण रेड्डी पर किशोरावस्था से ही लोकगीतों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हरि-कथा, विथि-भागवत आदि लोकशैलियों की गहरी छाप पड़ी। यह संगीत-प्रेमी और सुमधुर कंठ के स्वामी हैं
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी (अंग्रेजी: C. Narayana Reddy, जन्म: 29 जुलाई, 1931, आंध्र प्रदेश; मृत्यु- 12 जून, 2017) ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तेलुगु भाषा के प्रख्यात कवि थे। वे अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक जाने-माने कवियों में से एक थे। वे पांच दशकों से भी अधिक समय तक काव्य रचना में लगे रहे। अब तक उनकी 40 से भी अधिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें कविता, गीत, संगीत, नाटक, नृत्य-नाट्य, निबंध, यात्रा संस्मरण, साहित्यालोचन तथा ग़ज़लें (मौलिक तथा अनूदित) सम्मिलित हैं।[1]

जन्म एवं शिक्षा

सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी का जन्म 29 जुलाई, 1931 को तत्कालीन हैदराबाद राज्य (तेलंगाना राज्य) के दूरदराज़ के गांव हनुमाजीपेट के एक कृषक परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू माध्यम से हुई। किशोरावस्था में इन पर लोकगीतों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हरि-कथा, विथि-भागवत आदि लोकशैलियों की गहरी छाप पड़ी। वे संगीत-प्रेमी और सुमधुर कंठ के स्वामी थे, जिसका यह अपने काव्य पाठों में पूरा लाभ उठाते थे।

कवि का विकास चरण

सी. नारायन रेड़्ड़ी को कवि के विकासक्रम के विभिन्न चरणों में रखा जा सकता है, ये है, रूमानी, प्रगतिशील तथा मानवतावादी चरण, यह वर्गीकरण कवि की विकास यात्रा में पड़ने वाले किसी एक पड़ाव से जुड़ी रचनाओं में पाए जाने वाले सर्वप्रथम तत्त्व को निर्दिष्ट करने मात्र के लिए है। इन सभी चरणों के दौरान मनुष्य की अंतर्निहित अच्छाई और अंतत: सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक बुराई पर उसकी विजय की अवश्यंभाविता में कवि की गहन एवं अटूट आस्था एक अंरर्धारा की भांति निरंतर प्रवहमान रहती है।

कवियों के लिए जीवन में कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार, जिस-तिस साधन से सुलझाना ही है और न वह कोई मधुर सुखात्मक कथा है, जिसका प्रफुल्लतापूर्ण आस्वादन किया जाए। वह कठोर परिश्रम और मानव कल्याण की सिद्धि का साधना स्थल है। कवि के इन सभी विकास चरणों में उनका काव्य दुनिया के बेज़ुबान जूझते करोड़ों लोगों को अपने ढंग से निरंतर वाणी देता है। स्वभावत: उनकी तरुणाई का काव्य रूमानी उमंग से परिपूर्ण है। इनमें भाषा तथा बिंब विधान पर उनके अधिकार तथा प्रकृति एवं सौंदर्य के प्रति अनुराग है।

रचनाएँ

सी. नारायन रेड़्ड़ी के काव्य के रूमानी दौर की सर्वाधिक प्रतिनिधि काव्य रचना 26 वर्ष की आयु में रचित "कपूर वसंतरायलु" (1956) है। इसने उन्हें उग्रणी कवियों में प्रतिष्ठित कर दिया। वर्तमान समाज में बेहद कठिन स्थितियों के बीच चिथड़े-चिथड़े होते मनुष्य की दुर्दशा कवि को यातना देती है। वह ऐसे लोगों से दो-चार होते हैं, जिसके हाथों में सत्ता है चाहे वह धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक, ये लोग उत्तरदायित्व की किसी विवेकशील भावना या मानवीय सरोकार के बिना सत्ता का उपभोग करते हैं। उपर्युक्त धारा में आने वाले इनके प्रमुख संग्रह हैं-

  1. मुखामुखी (1971)
  2. मनिषि चिलक (1962)
  3. उदयं ना हृदयं (1963)


सी. नारायन रेड़्ड़ी की 1977 में प्रकाशित रचना भूमिका मानवतावादी चरण की सर्वाधिक उल्लेखनीय रचना है। इनका काव्य मूलत: जीवन की पुष्टि का काव्य है और इन्हें उसे, उसके संपूर्ण बहुमुखी गौरव तथा उसके समस्त कोलाहल सहित चित्रित करने में हर्षानुभूमि होती है। यह रचना अगली रचना "विश्वंभरा (1980)" की भूमिका का काम करती है, यह सी. नारायण रेड्डी की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति है, प्रस्तुत काव्य की कहानी आदि काल से लेकर आज तक की गई मानव यात्रा के माध्यम से प्रतीकात्मक भाषा में परत-दर-परत खुलती है। जीवन और सृष्टि का स्वभाव समझने की दिशा में मनुष्य का अन्वेषण इस यात्रा की एक प्रमुख विशेषता है।

प्रमुख कृतियां

सी. नारायन रेड़्ड़ी की प्रमुख कृतियां निम्न प्रकार हैं-

कविता - स्वप्नभंगम् (1954), नागार्जुन सागरम् (1955), कर्पूण वसंतरायलु (1957), दिव्वेल मुव्वलु (1959), विश्वंभरा (1980), अक्षराल गवाक्षालु (1966), भूमिका (1977), मृत्युवु नुंचि (1979), रेक्कलु (1982)
नाटक - अजंता सुंदरी 1954
प्रदीर्घ गीत - विश्वगीति (1954)
गद्य - मा ऊरु माट्लाडिंदि (1980), व्यासवाहिनी (1965)
समीक्षा - मंदारमकरंदालु (1972)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-5 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 131 |

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