एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

"सूदन" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "युध्द" to "युद्ध")
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
  
 
{{main|सुजानचरित}}
 
{{main|सुजानचरित}}
सूदन का 'सुजानचरित' [[वीर रस|वीररसात्मक]] [[ग्रंथ]] है, और इसमें भिन्न-भिन्न युध्दों का ही वर्णन है। इसके अध्यायों का नाम 'जंग' रखा गया है। सात जंगों में ग्रंथ समाप्त हुआ है। [[छंद]] बहुत से प्रयुक्त हुए हैं-
+
सूदन का 'सुजानचरित' [[वीर रस|वीररसात्मक]] [[ग्रंथ]] है, और इसमें भिन्न-भिन्न युद्धों का ही वर्णन है। इसके अध्यायों का नाम 'जंग' रखा गया है। सात जंगों में ग्रंथ समाप्त हुआ है। [[छंद]] बहुत से प्रयुक्त हुए हैं-
 
<poem>बखत बिलंद तेरी दुंदुभी धुकारन सों,
 
<poem>बखत बिलंद तेरी दुंदुभी धुकारन सों,
 
दुंद दबि जात देस देस सुख जाही के।  
 
दुंद दबि जात देस देस सुख जाही के।  
पंक्ति 45: पंक्ति 45:
 
[[Category:कवि]]  
 
[[Category:कवि]]  
 
[[Category:रीति_काल]]
 
[[Category:रीति_काल]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
+
[[Category:रीतिकालीन कवि]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]  
+
[[Category:चरित कोश]]  
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

08:13, 13 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

सूदन मथुरा के रहने वाले माथुर चौबे थे। इनके पिता का नाम 'बसंत' था। सूदन भरतपुर के महाराज बदनसिंह के पुत्र 'सुजानसिंह' उपनाम सूरजमल के यहाँ रहते थे। उन्हीं के पराक्रमपूर्ण चरित्र का वर्णन इन्होंने 'सुजानचरित' नामक प्रबंध काव्य में किया है। मुग़ल साम्राज्य के गिरे दिनों में भरतपुर के जाट राजाओं का कितना प्रभाव बढ़ा था, यह इतिहास में प्रसिद्ध है।

चरित्रनायक की प्राप्ति

जाटों ने शाही महलों और खज़ानों को कई बार लूटा था। पानीपत की अंतिम लड़ाई के संबंध में इतिहासज्ञों की धारणा है कि यदि पेशवा की सेना का संचालन भरतपुर के अनुभवी महाराज के कथनानुसार हुआ होता और ये रूठकर न लौट आए होते, तो मराठों की हार कभी न होती। इतने ही से भरतपुर वालों के आतंक और प्रभाव का अनुमान हो सकता है। अत: सूदन को एक सच्चा वीर चरित्रनायक मिल गया।

सुजानचरित

सूदन का 'सुजानचरित' वीररसात्मक ग्रंथ है, और इसमें भिन्न-भिन्न युद्धों का ही वर्णन है। इसके अध्यायों का नाम 'जंग' रखा गया है। सात जंगों में ग्रंथ समाप्त हुआ है। छंद बहुत से प्रयुक्त हुए हैं-

बखत बिलंद तेरी दुंदुभी धुकारन सों,
दुंद दबि जात देस देस सुख जाही के।
दिन दिन दूनो महिमंडल प्रताप होत,
सूदन दुनी में ऐसे बखत न काही के
उद्ध त सुजानसुत बुद्धि बलवान सुनि,
दिल्ली के दरनि बाजै आवज उछाही के।
जाही के भरोसे अब तखत उमाही करैं,
पाही से खरे हैं जो सिपाही पातसाही के

दुहुँ ओर बंदूक जहँ चलत बेचूक,
रव होत धुकधूक, किलकार कहुँ कूक।
कहुँ धानुष टंकार जिहि बान झंकार
भट देत हुंकार संकार मुँह सूक
कहुँ देखि दपटंत, गज बाजि झपटंत,
अरिब्यूह लपटंत, रपटंत कहुँ चूक।
समसेर सटकंत, सर सेल फटकंत,
कहुँ जात हटकंत, लटकंत लगि झूक

दब्बत लुत्थिनु अब्बत इक्क सुखब्बत से।
चब्बत लोह, अचब्बत सोनित गब्बत से
चुट्टित खुट्टित केस सुलुट्टित इक्क मही।
जुट्टित फुट्टित सीस, सुखुट्टित तेग गही
कुट्टित घुट्टित काय बिछुट्टित प्रान सही।
छुट्टित आयुधा; हुट्टित गुट्टित देह दही



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 250-52।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख