किससे अब तू छिपता है? -बुल्ले शाह
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हुण किस थे आप छपाई दा, |
हिन्दी अनुवाद
किससे अब तू छिपता है?
मंसूर भी तुझ पर आया है,
सूली पर उसे चढ़ाया है।
क्या साईं से नहीं डरता है?।।1।।
कभी शेख़ रूप में आता है,
कभी निर्जन बैठा रोता है,
तेरा अन्त किसी ने न पाया है।।2।।
बुल्ले से अच्छी अँगीठी है,
जिस पर रोटी भी पकती है,
करी सलाह फ़कीरों ने मिल जब
बाँटे टुकड़े छोटे-छोटे तब।।3।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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