राग हंस नारायण आली[1] , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥ लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई , तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी[2] है॥ सखियां मिल दोय चारी, बावरी[3] सी भई न्यारी[4], हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥ चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै[5], जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥ बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव, मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥