खबर क्या आई
'कृष्ण आ रहे हैं .....'
अल्हड़ उम्र सी
निकल पड़ी थी राधा
बृज की गलियों में
पायल पहन छम छम
बिखरा बिखरा रूप
पसीने की कुछ बूंदें चेहरे पर
सुधबुध खोयी, बावली सी
....
आज भी कुछ आँखें थीं साथ
बातें थीं ज़ुबान में
ठिठकी थी राधा
लौटी वर्तमान में ....
संभाला खुद को
अपने मान के सर पे आँचल रखा
खामोश सी धूल उड़ते रास्ते के किनारे
वृक्ष की ओट लिए खड़ी हो गई ....
....
'मुझसे मिले बगैर कृष्ण की यात्रा अधूरी होगी'
सोचकर आँखें मूंद लीं
प्रतीक्षा के पल पलकों का कम्पन बन गए
कृष्ण के नाम के पूर्व अपने नाम को रटती
प्रेममई राधा कैसे विश्वास तजती
.....
किसी सहेली ने झकझोरा ...
'कृष्ण मथुरा लौट रहे;'
सन्नाटे सी चित्रलिखित राधा ने
पलकें उठाईं
भरमाई सी
खुद में बिखरती हुई
'कान्हा'
बस यही तो कह पाई,
कृष्ण की एक झलक ...एक पल
और फिर एक युग का इंतज़ार