महाभारत युद्ध तेरहवाँ दिन

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युद्ध के तेरहवें दिन त्रिगर्तों और संसप्तकों ने अर्जुन को ललकारा। अर्जुन उनका पीछा करते हुए बहुत दूर चले गए। उसी समय कौरवों के दूत ने युधिष्ठिर को चक्रव्यूह के युद्ध का संदेश पत्र दिया। युधिष्ठिर चिंतित हो गए। इसी समय अभिमन्यु ने आकर युधिष्ठिर को प्रणाम किया और चक्रव्यूह भेदन की आज्ञा माँगी। न चाहते हुए भी युधिष्ठिर को अपनी सहमति देनी पड़ी।

  • चक्रव्यूह के पहले द्वार पर जयद्रथ तैनात था। अभिमन्यु ने जयद्रथ पर बाण चलाया तथा व्यूह को भेदकर भीतर पहुँच गया। भीम तथा अन्य पांडव भीतर न जा सके।
  • अभिमन्यु ने दूसरे द्वार पर द्रोणाचार्य को, तीसरे पर कर्ण को तथा चौथे द्वार पर अश्वत्थामा को हराकर पाँचवें द्वार पर बढ़ गया। कर्ण की सलाह पर सातों रथियों ने अभिमन्यु को घेर लिया।
  • सात महारथियों के साथ अभिमन्यु ने घोर संग्राम किया, पर चारों ओर से प्रहार होने पर वह घायल हो गया। उसका सारथी मारा गया, घोड़े भी घायल होकर गिर पड़े। वह तलवार लेकर आगे बढ़ा, किन्तु उसकी तलवार कट गई। अब वह रथ का चक्र लेकर टूट पड़ा। तभी दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण ने अभिमन्यु के सिर पर गदा फेंककर मारी। अभिमन्यु घायल हो गया, पर उसने वही गदा लक्ष्मण की ओर फेंकी। अभिमन्यु तथा लक्ष्मण दोनों के प्राण एक साथ निकल गए।
  • अभिमन्यु की मृत्यु से पांडव शोक में डूब गए। यह समाचार पाकर सुभद्रा और उत्तरा विलाप करती हुई चक्रव्यूह के सातवें द्वार पर पहुँच गईं। सुभद्रा अपने पुत्र का सिर गोद में लेकर बिलख-बिलखकर रो पड़ी। उत्तरा ने सती होने की इच्छा प्रकट की, पर उसके गर्भवती होने के कारण सुभद्रा ने मना कर दिया।
  • इस दिन के युद्ध में त्रिगर्तों और संसप्तकों को पूरी तरह नष्ट करके अर्जुन लौटे तो चक्रव्यूह के युद्ध में अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार मिला। वे अत्यंत व्याकुल हो उठे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सांत्वना दी तथा कहा कि- "अभिमन्यु की मृत्यु का कारण जयद्रथ है, क्योंकि उसे शिव से यह वरदान मिला हुआ है कि अर्जुन को छोड़कर बाकी चारों पांडव तुम्हें नहीं जीत सकते। इसीलिए उसे पहले द्वार पर रखा गया था कि भीम आदि चक्रव्यूह में प्रवेश न कर सकें।"[1]
  • अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि- "कल सूर्यास्त से पहले यदि जयद्रथ का वध मैं नहीं कर सका तो अपना शरीर भी अग्नि को समर्पित कर दूँगा।" अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ काँपने लगा। द्रोणाचार्य ने आश्वासन दिया कि- "वे ऐसा व्यूह बनाएँगे कि अर्जुन जयद्रथ को न देख सकेगा। वे स्वयं अर्जुन से लड़ते रहेंगे तथा व्यूह के द्वार पर स्वयं रहेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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