महाभारत युद्ध पंद्रहवाँ दिन

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चौदहवें दिन की रात्रि में घटोत्कच द्वारा किये गए आक्रमण से कौरव बहुत क्रोधित थे। द्रोणाचार्य को भी कम क्रोध न था। अत: पंद्रहवें दिन के युद्ध में उन्होंने हज़ारों पांडव-सैनिकों को मार डाला तथा युधिष्ठिर की रक्षा में खड़े द्रुपद तथा विराट दोनों को मार दिया।

  • द्रोणाचार्य के उग्र रूप को देखकर कृष्ण भी चिंतित हो उठे थे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने अर्जुन से कहा कि- "आचार्य को यह समाचार देना कि अश्वत्थामा का निधन हो गया है।" अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।
  • श्रीकृष्ण ने कहा कि- "अवंतिराज के हाथी का नाम भी अश्वत्थामा है, जिसे भीम ने अभी मार डाला है।" श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पास रथ ले जाकर कहा कि- "यदि द्रोणाचार्य अश्वत्थामा के मरने के बारे में पूछें तो आप हाँ कह दीजिएगा। अभी भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मारा है।" तभी चारों ओर शोर मच गया कि 'अश्वत्थामा मारा गया'। द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा, जिन्होंने कहा- "हाँ। पर नर नहीं, कुंजर"।[1]
  • युधिष्ठिर के नर कहते ही श्रीकृष्ण ने ज़ोर से शंख बजा दिया, जिस कारण द्रोणाचार्य आगे के शब्द न सुन सके। द्रोणाचार्य ने अस्त्र-शस्त्र फेंक दिए तथा रथ पर ही ध्यान-मग्न होकर बैठ गए। तभी द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने खड्ग से द्रोणाचार्य का सिर काट दिया।
  • द्रोणाचार्य के निधन से कौरवों में हाहाकार मच गया तथा अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर भीषण युद्ध किया, जिसके सामने अर्जुन के अतिरिक्त और कोई न टिक सका।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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