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- तजकिरात उल वाकियात
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- तजब छोभु जनि छाड़िअ छोहू
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- तज़किरात उल वाक़यात
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- तजि मद मोह कपट छल नाना
- तजि माया सेइअ परलोका
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- तदपि असंका कीन्हिहु सोई
- तदपि एक मैं कहउँ उपाई
- तदपि करब मैं काजु तुम्हारा
- तदपि करहिं सम बिषम बिहारा
- तदपि कही गुर बारहिं बारा
- तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी
- तदपि जाइ तुम्ह करहु
- तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई
- तदपि साप सठ दैहउँ तोही
- तद्भव
- तन काम अनेक अनूप छबी
- तन की दुति स्याम सरोरुह -तुलसीदास
- तन की हवस -गोपालदास नीरज
- तन कीन कोउ अति
- तन छार ब्याल कपाल
- तन धन जोबन -शिवदीन राम जोशी
- तन धन जोबन / शिवदीन राम जोशी
- तन पुलक निर्भर प्रेम
- तन पुलकित मुख बचन न आवा
- तन बिनु परस नयन बिनु देखा
- तन मन बचन उमग अनुरागा
- तन सकोचु मन परम उछाहू
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- तनर सिंगल सिस्टम
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- तपती पृथ्वी को प्रेम करना -अजेय
- तपन कुमार गोगोई
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- तपन सिन्हा
- तपनराय चौधरी
- तपबल तेहि करि आपु समाना
- तपबल बिप्र सदा बरिआरा
- तपबल रचइ प्रपंचु बिधाता
- तपबल संभु करहिं संघारा
- तपर्ण (श्राद्ध)
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- तफ़सीर
- तब-तब कथा मुनीसन्ह गाई
- तब अंगद उठि नाइ सिरु
- तब अति सोच भयउ मन मोरें
- तब अदृस्य भए पावक
- तब अनुजहि समुझावा
- तब आपन प्रभाउ बिस्तारा
- तब उठि भूप बसिष्ट
- तब कछु काल मराल
- तब कपीस रिच्छेस बिभीषन
- तब कर अस बिमोह अब नाहीं
- तब कह गीध बचन धरि धीरा
- तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा
- तब किछु कीन्ह राम रुख जानी
- तब केवट ऊँचे चढ़ि धाई
- तब खगपति बिरंचि पहिं गयऊ
- तब खिसिआनि राम पहिं गई
- तब गनपति सिव सुमिरि
- तब चले बान कराल
- तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ
- तब जनक पाइ बसिष्ठ
- तब जनमेउ षटबदन कुमारा
- तब जानकी सासु पग लागी
- तब तब अवधपुरी मैं जाऊँ
- तब तब जाइ राम पुर रहऊँ
- तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी
- तब तव बदन पैठिहउँ आई
- तब ते जीव भयउ संसारी
- तब ते मोहि न ब्यापी माया
- तब दसकंठ बिबिधि बिधि
- तब देखी मुद्रिका मनोहर
- तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए
- तब नारद गवने सिव पाहीं
- तब नारद सबही समुझावा
- तब नारद हरि पद सिर नाई
- तब नृप दूत निकट बैठारे
- तब नृप सीय लाइ उर लीन्ही
- तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए
- तब प्रभु भूषन बसन मगाए
- तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए
- तब फिरि जीव बिबिधि बिधि
- तब बंदीजन जनक बोलाए
- तब बसिष्ठ मुनि समय
- तब बिग्यानरूपिनी बुद्धि
- तब बिदेह बोले कर जोरी
- तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा
- तब ब्रह्माँ धरनिहि समुझावा
- तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा
- तब मधुबन भीतर सब आए
- तब मन हरषि बचन कह राऊ
- तब मयना हिमवंतु अनंदे
- तब मारीच हृदयँ अनुमाना
- तब मारुतसुत मुठिका हन्यो
- तब मुनि कहेउ सुमंत्र
- तब मुनि बोले भरत
- तब मुनि सादर कहा बुझाई
- तब मुनि हृदयँ धीर
- तब मुनीस रघुपति गुन गाथा
- तब मेरी पीड़ा अकुलाई! -गोपालदास नीरज
- तब मैं कहा कृपानिधि
- तब मैं निर्गुन मत कर दूरी
- तब मैं भागि चलेउँ उरगारी
- तब मैं हृदयँ बिचारा
- तब रघुनाथ कौसिकहि कहेऊ
- तब रघुपति अनुसासन पाई
- तब रघुपति बोले मुसुकाई
- तब रघुपति रावन के
- तब रघुबीर अनेक बिधि
- तब रघुबीर कहा मुनि पाहीं
- तब रघुबीर पचारे
- तब रघुबीर श्रमित सिय जानी
- तब राम राम कहि गावैगा -रैदास
- तब रावन दस सूल चलावा
- तब रावन निज रूप देखावा
- तब रावन मयसुता उठाई
- तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही
- तब लगि कुसल न जीव
- तब लगि हृदयँ बसत खल नाना
- तब संकर प्रभु पद सिरु नावा
- तब सक्रोध निसिचर खिसिआना
- तब सत बान सारथी मारेसि
- तब सिय देखि भूप अभिलाषे
- तब सुग्रीव चरन गहि नाना
- तब सुग्रीव बिकल होइ भागा
- तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए
- तब सेवकन्ह सरस थलुदेखा
- तब हनुमंत उभय दिसि
- तब हनुमंत कही सब
- तब हनुमंत नगर महुँ आए
- तब हनुमंत नाइ पद माथा
- तबक
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- तबकाते नासिरी
- तबतें बहुरि न कोऊ आयौ -सूरदास
- तबरहिंद
- तबरहिन्द
- तबरी
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- तबला वादक
- तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं
- तबहिं लखन रघुबर रुख जानी
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