"बौद्ध धर्म": अवतरणों में अंतर
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बौद्ध धर्म [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] है। इसके संस्थापक | |चित्र=Buddhism-Symbol.jpg | ||
|चित्र का नाम=बौद्ध धर्म का प्रतीक | |||
|विवरण='''बौद्ध धर्म''' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] है। | |||
|शीर्षक 1=संस्थापक | |||
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|पाठ 2=[[थेरवाद]], [[महायान]] और [[वज्रयान]] | |||
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|पाठ 3=पाँचवी शताब्दी ई. में [[फ़ाह्यान]] भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में [[हुएन-सांग]] ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। | |||
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|पाठ 6=[[ह्वेन त्सांग]], [[मिलिंद (मिनांडर)]], [[अशोक|सम्राट अशोक]], [[फ़ाह्यान]], [[कनिष्क]] | |||
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|संबंधित लेख= | |||
|अन्य जानकारी=बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। | |||
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'''बौद्ध धर्म''' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] है। इसके संस्थापक भगवान बुद्ध, शाक्यमुनि ([[गौतम बुद्ध]]) थे। बुद्ध राजा [[शुद्धोदन]] के पुत्र थे और इनका जन्म [[लुंबिनी]] नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: [[थेरवाद]], [[महायान]] और [[वज्रयान]]। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। | |||
==मुख्य सम्प्रदाय== | |||
बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं: | बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं: | ||
;थेरवाद | |||
थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है। | थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है। | ||
;महायान | |||
महायान बुद्ध की पूजा करता है। ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक् हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा। देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया। भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] और [[असंग बौद्धाचार्य|असंग]] के नाम प्रमुख हैं। | महायान बुद्ध की पूजा करता है। ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक् हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा। देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया। भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] और [[असंग बौद्धाचार्य|असंग]] के नाम प्रमुख हैं। | ||
[[चित्र:Buddha-3.jpg|thumb|left|[[बुद्ध]] प्रतिमा | [[चित्र:Buddha-3.jpg|thumb|left|[[बुद्ध]] प्रतिमा<br /> [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]]] | ||
==ब्रज (मथुरा) में बौद्ध धर्म== | ==ब्रज (मथुरा) में बौद्ध धर्म== | ||
[[मथुरा]] और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था। जो [[बुद्ध]] के जीवन-काल से [[कुषाण काल|कुषाण-काल]] तक अक्षु्ण रहा। '[[अंगुत्तरनिकाय]]' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार मथुरा आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था।<ref>अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257</ref> 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है।<ref>भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109</ref> पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी। <ref>[[दिव्यावदान]], पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही मथुरा की यात्रा की थी। भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:।'' [[पालि भाषा|पालि]] परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।</ref> मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की। <ref>उल्लेखनीय है कि वेरंजा उत्तरापथ मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।</ref> भगवान बुद्ध के शिष्य [[महाकाच्यायन]] मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे। इस नगर में [[अशोक]] के गुरु [[उपगुप्त]]<ref>वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199</ref>, [[ध्रुव]] ([[स्कंद पुराण]], काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका [[वासवदत्ता]]<ref>मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352</ref> भी निवास करती थी। मथुरा राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था। मथुरा उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था।<ref>आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ 5</ref> राजगृह से [[तक्षशिला]] जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था।<ref>भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440</ref> | [[मथुरा]] और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था। जो [[बुद्ध]] के जीवन-काल से [[कुषाण काल|कुषाण-काल]] तक अक्षु्ण रहा। '[[अंगुत्तरनिकाय]]' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार मथुरा आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था।<ref>अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257</ref> 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है।<ref>भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109</ref> पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी। <ref>[[दिव्यावदान]], पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही मथुरा की यात्रा की थी। भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:।'' [[पालि भाषा|पालि]] परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।</ref> मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की। <ref>उल्लेखनीय है कि वेरंजा [[उत्तरापथ]] मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।</ref> भगवान बुद्ध के शिष्य [[महाकाच्यायन]] मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे। इस नगर में [[अशोक]] के गुरु [[उपगुप्त]]<ref>वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199</ref>, [[ध्रुव]] ([[स्कंद पुराण]], काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका [[वासवदत्ता]]<ref>मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352</ref> भी निवास करती थी। मथुरा राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था। मथुरा [[उत्तरापथ]] और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था।<ref>आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ 5</ref> राजगृह से [[तक्षशिला]] जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था।<ref>भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440</ref> | ||
==बौद्ध मूर्तियाँ== | ==बौद्ध मूर्तियाँ== | ||
मथुरा के कुषाण शासक जिनमें से अधिकांश ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया मूर्ति निर्माण के पक्षपाती थे। यद्यपि कुषाणों के पूर्व भी मथुरा में बौद्ध धर्म एवं अन्य धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था। विदित हुआ है कि कुषाण काल में मथुरा उत्तर भारत में सबसे बड़ा मूर्ति निर्माण का केन्द्र था और यहाँ विभिन्न धर्मों सम्बन्धित मूर्तियों का अच्छा भण्डार था। इस काल के पहले बुद्ध की स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिलती है। बुद्ध का पूजन इस काल से पूर्व विविध प्रतीक | मथुरा के कुषाण शासक जिनमें से अधिकांश ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया मूर्ति निर्माण के पक्षपाती थे। यद्यपि कुषाणों के पूर्व भी मथुरा में बौद्ध धर्म एवं अन्य धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था। विदित हुआ है कि कुषाण काल में मथुरा उत्तर भारत में सबसे बड़ा मूर्ति निर्माण का केन्द्र था और यहाँ विभिन्न धर्मों सम्बन्धित मूर्तियों का अच्छा भण्डार था। इस काल के पहले बुद्ध की स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिलती है। बुद्ध का पूजन इस काल से पूर्व विविध प्रतीक चिह्नों के रूप में मिलता है। परन्तु कुषाण काल के प्रारम्भ से महायान भक्ति, पंथ भक्ति उत्पत्ति के साथ नागरिकों में बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियों का निर्माण होने लगा। बुद्ध के पूर्व जन्म की [[जातक कथा|जातक कथायें]] भी पत्थरों पर उत्कीर्ण होने लगी। मथुरा से बौद्ध धर्म सम्बन्धी जो अवशेष मिले हैं, उनमें प्राचीन धार्मिक एवं लौकिक जीवन के अध्ययन की अपार सामग्री है। मथुरा कला के विकास के साथ–साथ बुद्ध एवं बौधित्सव की सुन्दर मूर्तियों का निर्माण हुआ। गुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमाओं में अंग प्रत्यंग के कला पूर्ण विन्यास के साथ एक दिव्य सौन्दर्य एवं आध्यात्मिक गांभीर्य का समन्वय मिलता है। | ||
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[[चित्र:Buddha1.jpg|thumb|[[बुद्ध]] प्रतिमा | {| class="bharattable-purple" cellpadding="0" cellspacing="3" | ||
पाँचवी शताब्दी ई. में [[फ़ाह्यान]] भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में [[हुएन-सांग]] ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। "पीतू" देश से होता हुआ चीनी यात्री फ़ाह्यान 80 [[योजन]] चलकर मताउला <ref>`मूचा' (मोर का शहर) का विस्तार 27° 30' उत्तरी आक्षांश से 77° 43' पूर्वी देशांतर तक था। यह [[कृष्ण]] की जन्मस्थली थी जिसका | |+ [[मथुरा संग्रहालय|मथुरा]] और [[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|दिल्ली संग्रहालय]] से प्राप्त बुद्ध प्रतिमाएँ | ||
बौद्ध ग्रंथों में [[शूरसेन]] के शासक अवंति पुत्र की चर्चा है, जो [[उज्जयिनी]] के राजवंश से संबंधित था। इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था।<ref>मज्झिमनिकाय, भाग दो, पृ 83 और आगे; मललसेकर, डिक्शनरी आँफ् पालि प्रापर नेम्स, भाग 2, पृ 438</ref> भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार [[मथुरा]] गए थे, जहाँ [[आनंद]] ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था।<ref> | |- | ||
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==ऐतिहासिक उल्लेख== | |||
[[चित्र:Buddha1.jpg|thumb|[[बुद्ध]] प्रतिमा <br /> [[राजकीय संग्रहालय मथुरा|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]]] | |||
पाँचवी शताब्दी ई. में [[फ़ाह्यान]] भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में [[हुएन-सांग]] ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। "पीतू" देश से होता हुआ चीनी यात्री फ़ाह्यान 80 [[योजन]] चलकर मताउला <ref>`मूचा' (मोर का शहर) का विस्तार 27° 30' उत्तरी आक्षांश से 77° 43' पूर्वी देशांतर तक था। यह [[कृष्ण]] की जन्मस्थली थी जिसका राजचिह्न मोर था।</ref>मथुरा) जनपद पहुँचा था। इस समय यहाँ बौद्ध धर्म अपने विकास की चरम सीमा पर था। उसने लिखा है कि यहाँ 20 से भी अधिक [[संघाराम]] थे, जिनमें लगभग तीन सहस्र से अधिक भिक्षु रहा करते थे।<ref>जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान , पृ 42</ref> यहाँ के निवासी अत्यंत श्रद्धालु और साधुओं का आदर करने वाले थे। राजा भिक्षा (भेंट) देते समय अपने मुकुट उतार लिया करते थे और अपने परिजन तथा अमात्यों के साथ अपने हाथों से दान करते (देते) थे। यहाँ अपने-आपसी झगड़ों को स्वयं तय किया जाता था; किसी न्यायाधीश या क़ानून की शरण नहीं लेनी पड़ती थीं। नागरिक राजा की भूमि को जोतते थे तथा उपज का कुछ भाग राजकोष में देते थे। मथुरा की जलवायु शीतोष्ण थी। नागरिक सुखी थे। राजा प्राणदंड नहीं देता था, शारीरिक दंड भी नहीं दिया जाता था। अपराधी को अवस्थानुसार उत्तर या मध्यम अर्थदंड दिया जाता था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। अपराधों की पुनरावृत्ति होने पर दाहिना हाथ काट दिया जाता था। फ़ाह्यान लिखता हैं कि पूरे राज्य में चांडालों को छोड़कर कोई निवासी जीव-हिंसा नहीं करता था। मद्यपान नहीं किया जाता था और न ही लहसुन-प्याज का सेवन किया जाता था। चांडाल (दस्यु) नगर के बाहर निवास करते थे। क्रय-विक्रय में सिक्कों एवं कौड़ियों का प्रचलन था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। | |||
बौद्ध ग्रंथों में [[शूरसेन]] के शासक अवंति पुत्र की चर्चा है, जो [[उज्जयिनी]] के राजवंश से संबंधित था। इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था।<ref>मज्झिमनिकाय, भाग दो, पृ 83 और आगे; मललसेकर, डिक्शनरी आँफ् पालि प्रापर नेम्स, भाग 2, पृ 438</ref> भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार [[मथुरा]] गए थे, जहाँ [[आनंद]] ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था।<ref>दिव्यावदान, पृ 348-349</ref> [[मिलिन्दपन्ह]]<ref>मिलिन्दपन्ह (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 331</ref> में इसका वर्णन भारत के प्रसिद्ध स्थानों में हुआ है। इसी ग्रंथ में प्रसिद्ध नगरों एवम् उनके निवासियों के नाम के एक प्रसंग में माधुर का (मथुरा के निवासी का भी उल्लेख मिलता है<ref>मिलिंदपन्हों (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 324</ref> जिससे ज्ञात होता है कि राजा [[मिलिंद (मिनांडर)|मिलिंद]] (मिनांडर) के समय (150 ई. पू.) मथुरा नगर पालि परंपरा में एक प्रतिष्ठित नगर के रूप में विख्यात हो चुका था। | |||
==बौद्ध धर्म के अनुयायी== | |||
====ह्वेन त्सांग==== | |||
[[चित्र:Xuanzang.jpg|thumb|[[ह्वेन त्सांग]]|x300px]] | |||
{{Main|ह्वेन त्सांग}} | |||
[[भारत]] में ह्वेन त्सांग ने बुद्ध के जीवन से जुड़े सभी पवित्र स्थलों का भ्रमण किया और उपमहाद्वीप के पूर्व एवं पश्चिम से लगे इलाक़ो की भी यात्रा की। उन्होंने अपना अधिकांश समय नालंदा मठ में बिताया, जो बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जहाँ उन्होंने [[संस्कृत]], [[बौद्ध दर्शन]] एवं भारतीय चिंतन में दक्षता हासिल की। इसके बाद ह्वेन त्सांग ने अपना जीवन बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद में लगा दिया जो 657 ग्रंथ थे और 520 पेटियों में भारत से लाए गए थे। इस विशाल खंड के केवल छोटे से हिस्से (1330 अध्यायों में क़रीब 73 ग्रंथ) के ही अनुवाद में महायान के कुछ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं। | |||
====मिलिंद (मिनांडर)==== | |||
{{Main|मिलिंद (मिनांडर)}} | |||
उत्तर-पश्चिम [[भारत]] का 'हिन्दी-यूनानी' राजा 'मनेन्दर' 165-130 ई. पू. लगभग ( भारतीय उल्लेखों के अनुसार 'मिलिन्द') था। प्रथम पश्चिमी राजा जिसने [[बौद्ध धर्म]] अपनाया और [[मथुरा]] पर शासन किया। भारत में राज्य करते हुए वह [[बौद्ध]] श्रमणों के सम्पर्क में आया और आचार्य [[नागसेन]] से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। [[चित्र:Menandros-Coin.jpg|thumb|left|150px|मिलिंद (मिनांडर) का सिक्का]]बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम 'मिलिन्द' आया है। 'मिलिन्द पञ्हो' नाम के पालि ग्रंथ में उसके [[बौद्ध धर्म]] को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है। मिनान्डर के अनेक सिक्कों पर बौद्ध धर्म के 'धर्मचक्र' प्रवर्तन का चिह्न 'धर्मचक्र' बना हुआ है, और उसने अपने नाम के साथ 'ध्रमिक' (धार्मिक) विशेषण दिया है। | |||
====अशोक ==== | |||
{{Main|अशोक}} | |||
[[चित्र:Ashoka.jpg|thumb|अशोक|100px]] | |||
सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा [[बौद्ध]] धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। जीवन के उत्तरार्ध में अशोक [[गौतम बुद्ध]] के भक्त हो गए और उन्हीं (महात्मा बुद्ध) की स्मृति में उन्होंने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी [[नेपाल]] में उनके जन्मस्थल-[[लुम्बिनी]] में मायादेवी मन्दिर के पास [[अशोक स्तम्भ]] के रूप में देखा जा सकता है। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा [[श्रीलंका]], अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, [[मिस्र]] तथा [[यूनान]] में भी करवाया। [[अशोक के अभिलेख|अशोक के अभिलेखों]] में प्रजा के प्रति कल्याणकारी द्रष्टिकोण की अभिव्यक्ति की गई है। | |||
====फ़ाह्यान==== | |||
{{Main|फ़ाह्यान}} | |||
'''फ़ाह्यान''' का जन्म [[चीन]] के 'वु-वंग' नामक स्थान पर हुआ था। यह [[बौद्ध धर्म]] का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ मित्रों 'हुई-चिंग', 'ताओंचेंग', 'हुई-मिंग', 'हुईवेई' के साथ [[भारत]] यात्रा प्रारम्भ की। फ़ाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्हीं स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे। | |||
====कनिष्क ==== | |||
{{Main|कनिष्क}} | |||
कुषाण राजा कनिष्क के विशाल साम्राज्य में विविध धर्मों के अनुयायी विभिन्न लोगों का निवास था, और उसने अपनी प्रजा को संतुष्ट करने के लिए सब धर्मों के देवताओं को अपने सिक्कों पर अंकित कराया था। पर इस बात में कोई सन्देह नहीं कि कनिष्क [[बौद्ध धर्म]] का अनुयायी था, और बौद्ध इतिहास में उसका नाम [[अशोक]] के समान ही महत्त्व रखता है। आचार्य [[अश्वघोष]] ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था। इस आचार्य को वह [[पाटलिपुत्र]] से अपने साथ लाया था, और इसी से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। | |||
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==वीथिका== | ==वीथिका== | ||
<gallery | <gallery> | ||
चित्र:Standing-Buddha-in-Abhaya-Mathura-Museum-6.jpg|अभय मुद्रा में खड़े भगवान [[बुद्ध]] | चित्र:Standing-Buddha-in-Abhaya-Mathura-Museum-6.jpg|अभय मुद्रा में खड़े भगवान [[बुद्ध]] | ||
चित्र:Headless-Image-of-Buddha-Mathura-Museum-22.jpg|सिर विहीन [[बुद्ध]] प्रतिमा | चित्र:Headless-Image-of-Buddha-Mathura-Museum-22.jpg|सिर विहीन [[बुद्ध]] प्रतिमा | ||
चित्र:Torso-Of-Buddha-Image-Mathura-Museum-27.jpg|[[बुद्ध]] मुर्ति का धड़ | चित्र:Torso-Of-Buddha-Image-Mathura-Museum-27.jpg|[[बुद्ध]] मुर्ति का धड़ | ||
चित्र:Head Of Buddha Mathura-Museum-5.jpg|[[बुद्ध]] मस्तक | चित्र:Head Of Buddha Mathura-Museum-5.jpg|[[बुद्ध]] मस्तक | ||
चित्र:Relief-Showing-Buddha's-Descent-From-Trayastrimsa-Heaven-Mathura-Museum-47.jpg|[[बुद्ध]] | चित्र:Relief-Showing-Buddha's-Descent-From-Trayastrimsa-Heaven-Mathura-Museum-47.jpg|[[बुद्ध]] | ||
चित्र:First-Bath-Of-Baby-Buddha-Mathura-Museum-4.jpg|शिशु [[बुद्ध]] का प्रथम स्नान | चित्र:First-Bath-Of-Baby-Buddha-Mathura-Museum-4.jpg|शिशु [[बुद्ध]] का प्रथम स्नान | ||
चित्र:Buddha-Mathura-Museum-46.jpg|[[बुद्ध]] | चित्र:Buddha-Mathura-Museum-46.jpg|[[बुद्ध]] | ||
चित्र:Buddha-Image-Installed-by-Kayastha-Bhatti-Priya-Mathura-Museum-3.jpg|[[बुद्ध]] प्रतिमा | चित्र:Buddha-Image-Installed-by-Kayastha-Bhatti-Priya-Mathura-Museum-3.jpg|[[बुद्ध]] प्रतिमा | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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[[Category:बौद्ध दर्शन]] | [[Category:बौद्ध दर्शन]] | ||
[[Category:बौद्ध धर्म]] | [[Category:बौद्ध धर्म]] | ||
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12:06, 27 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
बौद्ध धर्म
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विवरण | बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। |
संस्थापक | गौतम बुद्ध |
सम्प्रदाय | थेरवाद, महायान और वज्रयान |
ऐतिहासिक उल्लेख | पाँचवी शताब्दी ई. में फ़ाह्यान भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में हुएन-सांग ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। |
प्रमुख अनुयायी | ह्वेन त्सांग, मिलिंद (मिनांडर), सम्राट अशोक, फ़ाह्यान, कनिष्क |
अन्य जानकारी | बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। |
बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक भगवान बुद्ध, शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजा शुद्धोदन के पुत्र थे और इनका जन्म लुंबिनी नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।
मुख्य सम्प्रदाय
बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं:
- थेरवाद
थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।
- महायान
महायान बुद्ध की पूजा करता है। ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक् हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा। देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया। भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में अश्वघोष, नागार्जुन और असंग के नाम प्रमुख हैं।
ब्रज (मथुरा) में बौद्ध धर्म
मथुरा और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था। जो बुद्ध के जीवन-काल से कुषाण-काल तक अक्षु्ण रहा। 'अंगुत्तरनिकाय' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार मथुरा आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था।[1] 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है।[2] पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी। [3] मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की। [4] भगवान बुद्ध के शिष्य महाकाच्यायन मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे। इस नगर में अशोक के गुरु उपगुप्त[5], ध्रुव (स्कंद पुराण, काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका वासवदत्ता[6] भी निवास करती थी। मथुरा राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था। मथुरा उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था।[7] राजगृह से तक्षशिला जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था।[8]
बौद्ध मूर्तियाँ
मथुरा के कुषाण शासक जिनमें से अधिकांश ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया मूर्ति निर्माण के पक्षपाती थे। यद्यपि कुषाणों के पूर्व भी मथुरा में बौद्ध धर्म एवं अन्य धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था। विदित हुआ है कि कुषाण काल में मथुरा उत्तर भारत में सबसे बड़ा मूर्ति निर्माण का केन्द्र था और यहाँ विभिन्न धर्मों सम्बन्धित मूर्तियों का अच्छा भण्डार था। इस काल के पहले बुद्ध की स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिलती है। बुद्ध का पूजन इस काल से पूर्व विविध प्रतीक चिह्नों के रूप में मिलता है। परन्तु कुषाण काल के प्रारम्भ से महायान भक्ति, पंथ भक्ति उत्पत्ति के साथ नागरिकों में बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियों का निर्माण होने लगा। बुद्ध के पूर्व जन्म की जातक कथायें भी पत्थरों पर उत्कीर्ण होने लगी। मथुरा से बौद्ध धर्म सम्बन्धी जो अवशेष मिले हैं, उनमें प्राचीन धार्मिक एवं लौकिक जीवन के अध्ययन की अपार सामग्री है। मथुरा कला के विकास के साथ–साथ बुद्ध एवं बौधित्सव की सुन्दर मूर्तियों का निर्माण हुआ। गुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमाओं में अंग प्रत्यंग के कला पूर्ण विन्यास के साथ एक दिव्य सौन्दर्य एवं आध्यात्मिक गांभीर्य का समन्वय मिलता है।
ऐतिहासिक उल्लेख
पाँचवी शताब्दी ई. में फ़ाह्यान भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में हुएन-सांग ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। "पीतू" देश से होता हुआ चीनी यात्री फ़ाह्यान 80 योजन चलकर मताउला [9]मथुरा) जनपद पहुँचा था। इस समय यहाँ बौद्ध धर्म अपने विकास की चरम सीमा पर था। उसने लिखा है कि यहाँ 20 से भी अधिक संघाराम थे, जिनमें लगभग तीन सहस्र से अधिक भिक्षु रहा करते थे।[10] यहाँ के निवासी अत्यंत श्रद्धालु और साधुओं का आदर करने वाले थे। राजा भिक्षा (भेंट) देते समय अपने मुकुट उतार लिया करते थे और अपने परिजन तथा अमात्यों के साथ अपने हाथों से दान करते (देते) थे। यहाँ अपने-आपसी झगड़ों को स्वयं तय किया जाता था; किसी न्यायाधीश या क़ानून की शरण नहीं लेनी पड़ती थीं। नागरिक राजा की भूमि को जोतते थे तथा उपज का कुछ भाग राजकोष में देते थे। मथुरा की जलवायु शीतोष्ण थी। नागरिक सुखी थे। राजा प्राणदंड नहीं देता था, शारीरिक दंड भी नहीं दिया जाता था। अपराधी को अवस्थानुसार उत्तर या मध्यम अर्थदंड दिया जाता था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। अपराधों की पुनरावृत्ति होने पर दाहिना हाथ काट दिया जाता था। फ़ाह्यान लिखता हैं कि पूरे राज्य में चांडालों को छोड़कर कोई निवासी जीव-हिंसा नहीं करता था। मद्यपान नहीं किया जाता था और न ही लहसुन-प्याज का सेवन किया जाता था। चांडाल (दस्यु) नगर के बाहर निवास करते थे। क्रय-विक्रय में सिक्कों एवं कौड़ियों का प्रचलन था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। बौद्ध ग्रंथों में शूरसेन के शासक अवंति पुत्र की चर्चा है, जो उज्जयिनी के राजवंश से संबंधित था। इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था।[11] भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार मथुरा गए थे, जहाँ आनंद ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था।[12] मिलिन्दपन्ह[13] में इसका वर्णन भारत के प्रसिद्ध स्थानों में हुआ है। इसी ग्रंथ में प्रसिद्ध नगरों एवम् उनके निवासियों के नाम के एक प्रसंग में माधुर का (मथुरा के निवासी का भी उल्लेख मिलता है[14] जिससे ज्ञात होता है कि राजा मिलिंद (मिनांडर) के समय (150 ई. पू.) मथुरा नगर पालि परंपरा में एक प्रतिष्ठित नगर के रूप में विख्यात हो चुका था।
बौद्ध धर्म के अनुयायी
ह्वेन त्सांग
भारत में ह्वेन त्सांग ने बुद्ध के जीवन से जुड़े सभी पवित्र स्थलों का भ्रमण किया और उपमहाद्वीप के पूर्व एवं पश्चिम से लगे इलाक़ो की भी यात्रा की। उन्होंने अपना अधिकांश समय नालंदा मठ में बिताया, जो बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जहाँ उन्होंने संस्कृत, बौद्ध दर्शन एवं भारतीय चिंतन में दक्षता हासिल की। इसके बाद ह्वेन त्सांग ने अपना जीवन बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद में लगा दिया जो 657 ग्रंथ थे और 520 पेटियों में भारत से लाए गए थे। इस विशाल खंड के केवल छोटे से हिस्से (1330 अध्यायों में क़रीब 73 ग्रंथ) के ही अनुवाद में महायान के कुछ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं।
मिलिंद (मिनांडर)
उत्तर-पश्चिम भारत का 'हिन्दी-यूनानी' राजा 'मनेन्दर' 165-130 ई. पू. लगभग ( भारतीय उल्लेखों के अनुसार 'मिलिन्द') था। प्रथम पश्चिमी राजा जिसने बौद्ध धर्म अपनाया और मथुरा पर शासन किया। भारत में राज्य करते हुए वह बौद्ध श्रमणों के सम्पर्क में आया और आचार्य नागसेन से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम 'मिलिन्द' आया है। 'मिलिन्द पञ्हो' नाम के पालि ग्रंथ में उसके बौद्ध धर्म को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है। मिनान्डर के अनेक सिक्कों पर बौद्ध धर्म के 'धर्मचक्र' प्रवर्तन का चिह्न 'धर्मचक्र' बना हुआ है, और उसने अपने नाम के साथ 'ध्रमिक' (धार्मिक) विशेषण दिया है।
अशोक
सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। जीवन के उत्तरार्ध में अशोक गौतम बुद्ध के भक्त हो गए और उन्हीं (महात्मा बुद्ध) की स्मृति में उन्होंने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल-लुम्बिनी में मायादेवी मन्दिर के पास अशोक स्तम्भ के रूप में देखा जा सकता है। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। अशोक के अभिलेखों में प्रजा के प्रति कल्याणकारी द्रष्टिकोण की अभिव्यक्ति की गई है।
फ़ाह्यान
फ़ाह्यान का जन्म चीन के 'वु-वंग' नामक स्थान पर हुआ था। यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ मित्रों 'हुई-चिंग', 'ताओंचेंग', 'हुई-मिंग', 'हुईवेई' के साथ भारत यात्रा प्रारम्भ की। फ़ाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्हीं स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।
कनिष्क
कुषाण राजा कनिष्क के विशाल साम्राज्य में विविध धर्मों के अनुयायी विभिन्न लोगों का निवास था, और उसने अपनी प्रजा को संतुष्ट करने के लिए सब धर्मों के देवताओं को अपने सिक्कों पर अंकित कराया था। पर इस बात में कोई सन्देह नहीं कि कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था, और बौद्ध इतिहास में उसका नाम अशोक के समान ही महत्त्व रखता है। आचार्य अश्वघोष ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था। इस आचार्य को वह पाटलिपुत्र से अपने साथ लाया था, और इसी से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
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वीथिका
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अभय मुद्रा में खड़े भगवान बुद्ध
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सिर विहीन बुद्ध प्रतिमा
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बुद्ध मुर्ति का धड़
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बुद्ध मस्तक
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शिशु बुद्ध का प्रथम स्नान
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बुद्ध प्रतिमा
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257
- ↑ भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109
- ↑ दिव्यावदान, पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही मथुरा की यात्रा की थी। भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:। पालि परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।
- ↑ उल्लेखनीय है कि वेरंजा उत्तरापथ मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।
- ↑ वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199
- ↑ मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352
- ↑ आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ 5
- ↑ भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440
- ↑ `मूचा' (मोर का शहर) का विस्तार 27° 30' उत्तरी आक्षांश से 77° 43' पूर्वी देशांतर तक था। यह कृष्ण की जन्मस्थली थी जिसका राजचिह्न मोर था।
- ↑ जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान , पृ 42
- ↑ मज्झिमनिकाय, भाग दो, पृ 83 और आगे; मललसेकर, डिक्शनरी आँफ् पालि प्रापर नेम्स, भाग 2, पृ 438
- ↑ दिव्यावदान, पृ 348-349
- ↑ मिलिन्दपन्ह (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 331
- ↑ मिलिंदपन्हों (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 324
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