"स्वतंत्रता दिवस": अवतरणों में अंतर

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सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महायज्ञ का प्रारम्भ [[दयानंद सरस्वती|महर्षि दयानन्द सरस्वती]] ने प्रारम्भ किया और अपने प्राणों को भारत माता पर मंगल पांडे ने न्यौछावर किया और देखते ही देखते यह चिंगारी एक महासंग्राम में बदल गयी जिसमें झांसी की [[रानी लक्ष्मीबाई]], [[तात्या टोपे]], [[नाना साहब|नाना साहेब]], 'सरफरोशी की तमन्ना' लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक,  
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[[चंद्रशेखर आज़ाद]], भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव आदि देश के लिए शहीद हो गए। [[बाल गंगाधर तिलक|तिलक]] ने '''स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है''' का सिंहनाद किया और [[सुभाष चंद्र बोस]] ने कहा -  '''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।''' <br />
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{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
|चित्र=First-Independence-Day-3.jpg
|चित्र का नाम=15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस का अवसर
|विवरण=इसी महान् दिन की याद में [[भारत के प्रधानमंत्री]] प्रत्येक वर्ष [[लाल क़िला दिल्ली|लाल क़िले]] की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज [[तिरंगा]] फहराकर देश को सम्बोधित करते हैं।
|शीर्षक 1=उद्देश्य
|पाठ 1= ऐसा दिन है जब हम अपने महान् राष्‍ट्रीय नेताओं और स्‍वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्‍होंने विदेशी नियंत्रण से [[भारत]] को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्‍यौछावर कर दिए।
|शीर्षक 2=पहली बार
|पाठ 2=[[भारत]] के प्रथम प्रधानमंत्री [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] ने पहली बार [[15 अगस्त]] [[1947]] को लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। उसी दिन से हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
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|शीर्षक 10=विशेष आयोजन
|पाठ 10= राज्‍य स्‍तर पर विशेष स्‍वतंत्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें झण्‍डा फहराने के आयोजन, मार्च पास्‍ट और सांस्‍कृतिक आयोजन शामिल हैं। इन आयोजनों को राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किया जाता है और [[मुख्‍यमंत्री]] इन कार्यक्रमों की अध्‍यक्षता करते हैं। छोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्‍थानों, आवास संघों, सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों और राजनीतिक संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
|संबंधित लेख=[[लार्ड रिपन]], [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]], [[भारतीय क्रांति दिवस]], [[ग़दर पार्टी]], [[भारत का विभाजन]]
|अन्य जानकारी=[[राष्‍ट्रपति]] द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन [[प्रधानमंत्री]] प्रातः 7 बजे लाल क़िले पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|13:23, 16 अगस्त 2017 (IST)}}
}}
'''स्‍वतंत्रता दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Independence Day'') ऐसा दिन है जब हम अपने महान् राष्‍ट्रीय नेताओं और स्‍वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्‍होंने विदेशी नियंत्रण से [[भारत]] को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्‍यौछावर कर दिए। [[15 अगस्त]] [[1947]] को भारत के निवासियों ने लाखों कुर्बानियां देकर [[ब्रिटिश शासन]] से स्वतन्त्रता प्राप्त की थी। यह राष्ट्रीय पर्व भारत के गौरव का प्रतीक है। प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को सरकारी बिल्डिंगों पर [[तिरंगा]] झण्डा फहराया जाता है तथा रौशनी की जाती है। [[प्रधानमंत्री]] प्रातः 7 बजे [[लाल क़िला|लाल क़िले]] पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं। हज़ारों लोग उनका भाषण सुनने के लिए लाल क़िले पर जाते हैं। स्कूलों में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है और बच्चों में मिठाईयाँ भी बाँटी जाती हैं। 14 अगस्त को रात्रि 8 बजे [[राष्ट्रपति]] अपने देश वासियों को सन्देश देते हैं, जिसका रेडियो तथा [[टेलीविज़न]] पर प्रसारण किया जाता है। <br />
सन [[1857]] के [[प्रथम स्वतंत्रता संग्राम]] के महायज्ञ का प्रारम्भ [[दयानंद सरस्वती|महर्षि दयानन्द सरस्वती]] ने प्रारम्भ किया और अपने प्राणों को [[भारत]] माता पर [[मंगल पांडे]] ने न्यौछावर किया और देखते ही देखते यह चिंगारी एक महासंग्राम में बदल गयी जिसमें [[झांसी]] की [[रानी लक्ष्मीबाई]], [[तात्या टोपे]], [[नाना साहब|नाना साहेब]], '[[सरफ़रोशी की तमन्ना]]' लिए [[रामप्रसाद बिस्मिल]], [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ|अशफ़ाक]], [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[भगत सिंह]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] आदि देश के लिए शहीद हो गए। [[बाल गंगाधर तिलक|तिलक]] ने '''स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है''' का सिंहनाद किया और [[सुभाष चंद्र बोस]] ने कहा -  '''तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।'''
[[चित्र:Tricolor.jpg|thumb|left|[[तिरंगा]]]]
'अहिंसा' और '[[असहयोग आंदोलन|असहयोग]]' लेकर [[महात्मा गाँधी]] और ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़ने के लिए 'लौह पुरुष' [[सरदार पटेल]] जैसे महापुरुषों ने कमर कस ली। 90 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को 'भारत को स्वतंत्रता' का वरदान मिला। भारत की आज़ादी का संग्राम बल से नहीं वरन् सत्‍य और अहिंसा के सिद्धांत के आधार पर विजित किया गया। इतिहास में स्‍वतंत्रता के संघर्ष का एक अनोखा और अनूठा अभियान था जिसे विश्व भर में प्रशंसा मिली।
==इतिहास==
{{Main|स्वतंत्रता दिवस का इतिहास}}
[[मई]] [[1857]] में [[दिल्ली]] के कुछ [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में यह भविष्यवाणी छपी कि [[प्लासी का युद्ध|प्लासी के युद्ध]] के पश्चात् [[23 जून]] 1757 ई. को भारत में जो अंग्रेज़ी राज्य स्थापित हुआ था वह 23 जून 1857 ई. तक समाप्त हो जाएगा। यह भविष्यवाणी सारे देश में फैल गई और लोगों में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जोश की लहर दौड़ गई। इसके अतिरिक्त 1856 ई. में [[लार्ड कैनिंग]] ने सामान्य भर्ती क़ानून पास किया। जिसके अनुसार भारतीय सैनिकों को यह लिखकर देना होता था कि सरकार जहाँ कहीं भी उन्हें युद्ध करने के लिए भेजेगी वह वहीं पर चले जाएँगे। इससे भारतीय सैनिकों में असाधारण असन्तोष फैल गया। कम्पनी की सेना में उस समय तीन लाख सैनिक थे, जिनमें से केवल पाँच हज़ार ही यूरोपियन थे। बाकी सब अर्थात् यूरोपियन सैनिकों से 6 गुनाह भारतीय सैनिक थे।<ref name="buap">{{cite book | last =गुप्ता | first = वेद प्रकाश | title =भारतीय उत्सव और पर्व | edition = | publisher = | location =  | language =  | pages =112  | chapter =भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास}}</ref>
====सिपाही क्रांति====
{{Main|सिपाही क्रांति 1857}}
{| class="bharattable-purple" align="left"
|+ भारत के अमर शहीद
|-
| [[चित्र:Mangal Panday.jpg|200px|border|center]]
|-
| <CENTER> [[मंगल पांडे]]</CENTER>
|-
| [[चित्र:Rani-Laxmibai-2.jpg|200px|border|center]]
|-
| <CENTER> [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|लक्ष्मीबाई]]</CENTER>
|-
| [[चित्र:Tatya-Tope.jpg|200px|border|center]]
|-
| <CENTER> [[तात्या टोपे]]</CENTER>
|}
जब देश में चारों ओर असन्तोष का वातावरण था, तो अंग्रेज़ी सरकार ने सैनिकों को पुरानी बन्दूकों के स्थान पर नई राइफलें देने का निश्चय किया। इन राइफलों के कारतूस में [[सूअर]] तथा [[गाय]] की चर्बी प्रयुक्त की जाती थी और सैनिकों को राइफलों में गोली भरने के लिए इन कारतूसों के सिरे को अपने दाँतों से काटना पड़ता था। इससे [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]] सैनिक भड़क उठे। उन्होंने ऐसा महसूस किया कि अंग्रेज़ सरकार उनके धर्म को नष्ट करना चाहती है। इसलिए जब [[मेरठ]] के सैनिकों में ये कारतूस बाँटे गए तो 85 सैनिकों ने उनका प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। इस पर उन्हें कठोर दण्ड देकर बन्दीगृह में डाल दिया गया। सरकार के इस व्यवहार पर भारतीय सैनिकों ने 10 मई, 1857 के दिन "हर–हर महादेव, मारो फिरंगी को" का नारा लगाते हुए विद्रोह कर दिया।
====लार्ड रिपन====
[[चित्र:Lord-Ripon.jpg|thumb|[[लार्ड रिपन]]]]
{{Main|लॉर्ड रिपन}}
लार्ड रिपन ने भारत में हर दस वर्ष में जनगणना करने का नियम बनाया और सन् 1881 में पहली बार गणना कराई, जोकि अब तक हर दस साल के बाद की जाती है। 1882 ई. में लार्ड रिपन ने कई सुधार किए। उसने म्यूनिसिपल बोर्ड तथा शिक्षा में सुधार किया। वित्तीय शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया। केन्द्रीय सूची में अफ़ीम, रेल, डाकघर, नमक टैक्सटाइल आदि साधन रखे गए। प्रान्तीय सूची में शिक्षा, [[भारतीय पुलिस|पुलिस]], जेल, प्रेस, तथा सार्वजनिक कार्य रखे गए। तीसरी सूची में भूमिकर, जंगल स्टैम्प कर आदि रखे गए, इन मुद्दों के द्वारा प्राप्त आय को केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों में बाँटा गया। लार्ड रिपन ने सारे देश में स्थानीय बोर्डों का जाल बिछा दिया और गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ा दी। <br />
[[चित्र:Gopal-Krishna-Gokhle.jpg|thumb|left|[[गोपाल कृष्ण गोखले]]]]
====लार्ड कर्ज़न====
{{Main|लॉर्ड कर्ज़न}}
[[1905]] से [[1919]] के बीच में राष्ट्रीय आंदोलन उग्रवादियों के हाथ में रहा। उग्रवादियों के प्रमुख नेता बाल, लाल, पाल ([[बाल गंगाधर तिलक]], [[लाला लाजपत राय]] और [[विपिन चन्द्र पाल]]) थे। लाला लाजपत राय ने उदारवादियों की नीति पर असन्तुष्ट होकर कहा था कि हमें बीस लगातार आंदोलन करने के बाद भी रोटी के बदले पत्थर मिले। हम अंग्रेज़ों के आगे अब और अधिक समय तक भीख नहीं माँगेंगे और न ही उनके सामने गिड़गिड़ायेंगे। [[दक्षिण अफ्रीका]] में तो भारतीयों की हालत बहुत शोचनीय थी। रंगभेद की दृष्टि के कारण उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें अस्पतालों तथा होटलों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। बच्चे उच्च संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते थे। रजिस्ट्रेशन एक्ट (1907) के तहत भारतीयों को अपराधियों के तरह दफ़्तरों में अपने नाम लिखवाने पड़ते थे और अपनी अंगुलियों की छाप देनी पड़ती थी। [[लार्ड कर्ज़न]] की दमन नीति (1898 से 1905) ने भारतीयों पर अनेक अत्याचार किए थे। उसने अपने भाषण में भारतीयों को बहुत ही अपमानजनक शब्द कहे थे और कार्यकुशलता के नाम पर कलकत्ता कार्पोरेशन आफिसयल सीक्रेट एक्ट, इंडियन यूनीवर्सटी एक्ट, कई ऐसे क़दम उठाए जिनका उद्देश्य भारतीय एकता को दुर्बल करना तथा भारतीय भावनाओं का गला घोंटना था। 1907 ई. में बंगाल भंग सम्बन्धी घोषणा होते ही गरम दल सक्रिय हो गया। उन्होंने [[दिसम्बर]] [[1907]] में बंगाल के गवर्नर की गाड़ी पर बम फैंकने का प्रयत्न किया। फिर ढाका के मजिस्ट्रेट पर गोली चलाई। परन्तु वह बच निकला। मुजफ़्फ़पुर बम फटने से कैनेडी तथा उसकी पुत्री की मृत्यु हो गई। [[पंजाब]] और [[महाराष्ट्र]] में भी इस तरह की घटनाएँ होने लगीं।<ref name="buap"/>


'अहिंसा' और 'असहयोग' लेकर [[महात्मा गाँधी]] और ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़ने के लिए 'लौह पुरूष' सरदार पटेल ने जैसे महापुरूषों ने कमर कस ली। 90 वर्षों लम्बे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को 'भारत को स्वतंत्रता' का वरदान मिला। 15 अगस्त भारत का स्वतंत्रता दिवस है। <br />
====ग़दर पार्टी की स्थापना====
{{Main|ग़दर पार्टी }}
[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg|thumb|250px|[[बाल गंगाधर तिलक]]]]
सन् [[1913]] में [[अमेरिका]] में बसने वाले भारतीयों ने गदर पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी के प्रमुख नेता [[सोहनसिंह भकना]], [[लाला हरदयाल]], बाबा बसाखा सिंह, पं. काशीराम और उधमसिंह थे। इस पार्टी के हज़ारों भारतवासी अमेरिका से भारत आए। उन्होंने [[लाहौर]], [[फ़िरोजपुर]], [[अम्बाला]], [[मेरठ]], [[आगरा]] आदि सैनिक छावनियों में सैनिकों को विद्रोह करने की प्रेरणा दी और [[25 फरवरी]] [[1915]] को गदर का दिन रखा। लेकिन कुपाल सिंह के विश्वासघात ने इस योजना को असफल कर दिया। गदर पार्टी की तरह इंडो जर्मन मिशन ने भी टर्की और [[काबुल]] का सहयोग प्राप्त करके भारत को स्वतंत्र कराने की योजना बनाई और अस्थायी भारत सरकार की स्थापना की, जिसके राष्ट्रपति [[राजा महेन्द्र प्रताप]] और प्रधान मंत्री बरकत अल्लाह थे। लेकिन परिस्थिति अनुकूल न होने के कारण ये देशभक्त भी सफल नहीं हो सके।  सौभाग्य से दक्षिण अफ्रीका में भारतवासियों को [[महात्मा गांधी]] के रूप में एक ऐसा नेता मिला जिसने सब भारतवासियों को संगठित किया। उन्होंने [[सत्याग्रह आंदोलन]] चलाया और भारतीयों पर लगाए गए क़ानून रोक दिए।
====गांधी जी के आंदोलन====
[[चित्र:Mahatma-Gandhi-4.jpg|thumb|250px|[[महात्मा गाँधी]]]]
बम्बई प्रान्त में जितेन्द्रनाथ ने 61 दिन भूख हड़ताल करके अपने प्राण त्याग दिए। गांधी ने [[नमक सत्याग्रह|नमक]] क़ानून तोड़ने के लिए डांडी मार्च किया। क़ानून तोड़ने पर अंग्रेज़ों ने गांधी जी को गिरफ़्तार कर लिया। लेकिन देश में आंदोलन ज़ोर पकड़ गया, इसलिए गांधी जी को रिहा कर दिया गया। अंग्रेज़ों ने तीन बार [[लन्दन]] में गोल मेज कांफ़्रेन्स बुलाई, लेकिन गांधीजी हर बार निराश ही वापस लौटे। [[3 सितम्बर]] [[1939]] को द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। [[8 अगस्त]] [[1942]] को कांग्रेस अधिवेशन बम्बई में हुआ। उसमें "[[भारत छोड़ो आंदोलन|भारत छोड़ो]]" प्रस्ताव पास हुआ। [[पंडित मोतीलाल नेहरू]] तथा [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] ने भी स्वतंत्रता के लिए बहुत काम किया। अंग्रेज़ सरकार ने दमन नीति का सहारा लिया। इस बीच नेताजी [[सुभाष चन्द्र बोस]] ने [[भारत]] से बाहर रहकर भारत को स्वतंत्र कराने का प्रयत्न किया। उनका विचार था कि द्वितीय विश्वयुद्ध का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने [[आज़ाद हिन्द फ़ौज]] की स्थापना की। और "दिल्ली चलो" का नारा दिया। लेकिन नेताजी किसी दुर्घटना में मारे गए, इसलिए यह आंदोलन भी असफल हो गया। तत्पश्चात् [[18 फरवरी]] [[1946]] को बम्बई में सैनिक विद्रोह उठ खड़े हुए। सैनिकों ने अपनी बैरकों से निकलकर अंग्रेज़ सैनिकों पर धावा बोल दिया और पाँच दिन तक अंग्रेज़ी सैनिकों को मौत के घाट उतारते रहे। अन्त में अंग्रेज़ों को यह बात स्पष्ट हो गई कि अब वे भारत को अधिक समय तक अपना ग़ुलाम बनाकर नहीं रख सकते।
==स्‍वतंत्रता की राह==
20वीं शताब्‍दी में [[भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस]] और अन्‍य राजनीतिक संगठनों ने [[महात्मा गाँधी]] के नेतृत्‍व में एक देशव्‍यापी आंदोलन चलाया। महात्‍मा गांधी ने हिंसापूर्ण संघर्ष के विपरीत '[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन|सविनय अवज्ञा अहिंसा आंदोलन]]' को सशक्‍त समर्थन दिया। उनके द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए मार्च, प्रार्थना सभाएं, विदेशी वस्‍तुओं का बहिष्‍कार और भारतीय वस्‍तुओं को प्रोत्‍साहन देना आदि अचूक हथियार थे। इन रास्तों को भारतीय जनता ने समर्थन दिया और स्‍थानीय अभियान 'राष्‍ट्रीय आंदोलन' में बदल गए। इनमें से कुछ मुख्‍य आयोजन - '[[असहयोग आंदोलन]]', '[[दांडी मार्च]]', 'नागरिक अवज्ञा अभियान' और '[[भारत छोड़ो आंदोलन]]' थे। शीघ्र ही यह स्‍पष्‍ट हो गया कि भारत अब उपनिवेशवादी शक्तियों के नियंत्रण में नहीं रहेगा और ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं की मांग को मान लिया। यह निर्णय लिया गया कि यह अधिकार भारत को सौंप दिया जाए और 15 अगस्‍त 1947 को भारत को यह अधिकार सौंप दिया गया।
==भारतवर्ष का विभाजन==
[[15 अगस्त]] [[1947]] को भारतवर्ष हिन्दुस्तान तथा [[पाकिस्तान]] दो हिस्सों में बँटकर स्वतंत्र हो गया। [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] ने 15 अगस्त 1947 को लाल क़िले पर [[तिरंगा]] झण्डा फहराया। उसी दिन से हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। सरकारी बिल्डिंगों पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है तथा रौशनी की जाती है। प्रधानमंत्री प्रातः 7 बजे लाल क़िले पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं। हज़ारों लोग उनका भाषण सुनने के लिए लाल क़िले पर जाते हैं। स्कूलों में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है और बच्चों में मिठाईयाँ भी बाँटी जाती हैं। 14 अगस्त को रात्रि 8 बजे [[राष्ट्रपति]] अपने देश वासियों को सन्देश देते हैं, जिसका रेडियो तथा [[टेलीविज़न]] पर प्रसारण किया जाता है।<ref name="buap"/>
==स्वतंत्र भारत की घोषणा==
[[चित्र:First-Independence-Day-2.jpg|thumb|250px|[[15 अगस्त]] [[1947]] स्वतंत्रता दिवस पर [[जवाहरलाल नेहरू]], [[लॉर्ड माउन्ट बैटन]] और एडविना]]
14 अगस्‍त 1947 को रात को 11.00 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्‍वतंत्रता को मनाने की एक बैठक आरंभ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12.00 बजे भारत को आज़ादी मिल गई और भारत एक स्‍वतंत्र देश बन गया। तत्‍कालीन स्‍वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री [[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] ने अपना प्रसिद्ध भाषण 'नियति के साथ भेंट' दिया।


इस वर्ष भारत ब्रिटिश शासन से आज़ादी की 62वीं वर्षगांठ मना रहा है। स्‍वतंत्रता दिवस पर हम अपने उन महान राष्‍ट्रीय नायकों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्‍होंने भारत को आजाद कराने के लिए बलिदान दिए और अपना जीवन न्‍यौछावर कर दिया।
<blockquote>'“जैसे ही मध्‍य रात्रि हुई, और जब दुनिया सो रही थी, भारत जाग रहा होगा और अपनी आज़ादी की ओर बढ़ेगा। एक ऐसा पल आता है जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर जाते हैं. . . क्‍या हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिए पर्याप्‍त बहादुर और बुद्धिमान हैं और हम भविष्‍य की चुनौती को स्‍वीकार करने के लिए तैयार हैं?”' - [[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]]</blockquote>
इसके बाद [[राष्‍ट्रीय ध्‍वज|तिरंगा झण्‍डा]] फहराया गया और [[लाल क़िला दिल्ली|लाल क़िले]] की प्राचीर से [[राष्ट्रीय गान]] गाया गया।
==आयोजन==
स्‍वतंत्रता दिवस समीप आते ही चारों ओर खुशियां फैल जाती है। सभी प्रमुख शासकीय भवनों को रोशनी से सजाया जाता है। तिरंगा झण्‍डा घरों तथा अन्‍य भवनों पर फहराया जाता है। स्‍वतंत्रता दिवस, 15 अगस्‍त एक राष्‍ट्रीय अवकाश है, इस दिन का अवकाश प्रत्‍येक नागरिक को बहादुर स्‍वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान को याद करके मनाना चाहिए।  स्‍वतंत्रता दिवस के एक सप्‍ताह पहले से ही विशेष प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा देश भक्ति की भावना को प्रोत्‍साहन दिया जाता है। रेडियो स्‍टेशनों और टेलीविज़न चैनलों पर इस विषय से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। शहीदों की कहानियों के बारे में फिल्‍में दिखाई जाती है और राष्‍ट्रीय भावना से संबंधित कहानियां और रिपोर्ट प्रकाशित की जाती हैं।
====स्वतंत्रता की पूर्व संध्या====
राष्‍ट्रपति द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन लाल क़िले से तिरंगा झण्‍डा फहराया जाता है। राज्‍य स्‍तर पर विशेष स्‍वतंत्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें झण्‍डा फहराने के आयोजन, मार्च पास्‍ट और सांस्‍कृतिक आयोजन शामिल हैं। इन आयोजनों को राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किया जाता है और मुख्‍यमंत्री इन कार्यक्रमों की अध्‍यक्षता करते हैं। छोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्‍थानों, आवास संघों, सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों और राजनीतिक संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
====स्‍वतंत्रता दिवस का प्रतीक पतंग====
[[चित्र:Red-Fort-Delhi.jpg|thumb|300px|left|स्वतंत्रता दिवस के दिन [[लाल क़िला दिल्ली|लाल क़िले]] पर [[राष्‍ट्रीय ध्‍वज|तिरंगा झण्‍डा]] लहराया जाता है]]
स्‍वतंत्रता दिवस का एक और प्रतीक [[पतंग]] उड़ाने का खेल है। आकाश में ढेर सारी पतंगें दिखाई देती हैं जो लोग अपनी अपनी छतों से उड़ा कर भारत की स्‍वतंत्रता का समारोह मनाते हैं। अलग अलग प्रकार, आकार और रंगों की पतंगों तथा तिरंगे बाज़ार में उपलब्‍ध हैं। इस दिन पतंग उड़ाकर अपने संघर्ष के कौशलों का प्रदर्शन किया जाता है।
====प्रभातफेरी====
स्कूलों और संस्थाओं द्वारा प्रात: ही प्रभातफेरी निकाली जाती हैं जिनमें बच्चे, युवक और बूढ़े देशभक्ति के गाने गाते हैं और उन वीरों की याद में नुक्क्ड़ नाटक और प्रशस्ति गान करते हैं।
====देशभक्ति का प्रदर्शन====
भारत एक समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत वाला देश है और यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ के नागरिक देश को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने की वचनबद्धता रखते हैं जहां तक इसके संस्‍थापकों ने इसे पहुंचाने की कल्‍पना की। जैसे ही आसमान में तिरंगा लहराता है, प्रत्‍येक नागरिक देश की शान को बढ़ाने के लिए कठिन परिश्रम करने का वचन देता है और भारत को एक ऐसा राष्‍ट्र बनाने का लक्ष्‍य पूरा करने का प्रण लेता है जो मानवीय मूल्‍यों के लिए सदैव अटल है।
==तिरंगे के साथ ही दिखने लगा इंद्रधनुष==
[[15 अगस्त]], [[1947]] को यूं तो देश आजाद हो गया था, लेकिन 15 अगस्त को जब पहली बार [[तिरंगा]] फहराया गया तो उस समय अचानक से आसमान में इंद्रधनुष नजर आया, जिसे देखकर सब लोग हैरान रह गए थे। आजादी के बाद से ही हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम [[दिल्ली]] के लाल क़िले पर आयोजित किया जाता है। यह ऐतिहासिक कार्यक्रम [[16 अगस्त]], [[1947]] से चला आ रहा है, जब लाल क़िले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ध्वजारोहण किया था। तब पूरा देश जश्न के माहौल में डूबा हुआ था और हर जगह लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे।<ref>{{cite web |url=https://www.timesnowhindi.com/india/article/independence-day-special-a-rainbow-appeared-when-the-indian-flag-was-raised-on-august-15/307793 |title=आजादी की वो सुबह, जब पहली बार तिरंगा फहराते ही आसमान में नजर आने लगा इंद्रधनुष|accessmonthday=15 अगस्त|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=timesnowhindi.com |language=हिंदी}}</ref>
====उमड़ पड़ा था जनसैलाब====
[[इतिहास]] के झरोखों से देखें तो दिल्ली की सड़कों पर तब लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था और वे एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे। लोग सड़कों, पार्कों और चौराहों पर गीत गा रहे थे और अधिकतर लोग तिरंगे को हाथ में लेकर [[संसद]] की तरफ बढ़ रहे थे। कहा जाता है कि यह एक ऐसा सैलाब था जिसका जोश सातवें आसमान पर था और यह दृश्य वाकई में अद्भुत था, जिसकी कोई कल्पना भी कोई नही कर सकता था। युवा पूरी रात घूमते रहे। इसी तरह की खबरें तब देश के अन्य हिस्सों से भी आ रहीं थीं।
====इंद्रधनुष का नज़र आना====
इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो तब देश के पहले [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने [[16 अगस्त]] की सुबह-सुबह साढ़े आठ बजे लाल क़िले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया। इतिहासकारों की मानें तो उस समय पंडित नेहरू ने [[सुभाषचंद्र बोस]] के 'चलो दिल्ली' के नारे और लाल क़िले से आजादी का झंडा फहराए जाने के सपने का जिक्र किया था। [[कोलकाता]] के रहने वाले शेखर चक्रवर्ती ने अपने संस्मरणों 'फ्लैग्स एंड स्टैम्प्स' में लिखा है- ''15 अगस्त, 1947 के दिन वायसराइल लॉज (अब [[राष्ट्रपति भवन]]) में जब नई सरकार को शपथ दिलाई जा रही थी, तो लॉज के सेंट्रल डोम पर सुबह साढ़े दस बजे आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहली बार फहराया गया था। इस दौरान आसमान में इंद्रधनुष दिखाई दिया, जिसे देखकर हर कोई हैरान रह गया।''
 
इंद्रधनुष की इस घटना का जिक्र [[लॉर्ड  माउंट बेटन]] ने भी अपनी रिपोर्ट में किया था, जिसमें उन्होंने इंद्रधनुष के रहस्यमयी तरीके से अचानक दिखने का जिक्र करते हुए इसे चमत्कार से कम नहीं कहा था। 15 अगस्त, 1947 को जब [[संसद]] के सामने तिरंगा फहराया गया तो ऐसा लगा कि आसमान भी प्रफुल्लित हो उठा है और उसी समय बारिश की हल्की बौछारें होने लगीं और कुछ देर बाद इंद्रधनुष निकल आया। इन सबके अलावा एक घटना का अक्सर जिक्र होता है जिसके अनुसार, जब पंडित नेहरू लाल क़िले की प्राचीर से झंडा फहरा रहे थे तो उस समय साफ नीले आसमान में एक इंद्रधनुष नजर आया है। इस इंद्रधनुष को देखकर वहां उपस्थित हर शख्स हैरान रह गया था।


भारत की आज़ादी का संग्राम बल से नहीं वरन सत्‍य और अहिंसा के सिद्धांत के आधार पर विजित की गई। इतिहास में स्‍वतंत्रता के संघर्ष का एक अनोखा और अनूठा अभियान था जिसे विश्व भर में प्रशंसा मिली।
==स्‍वतंत्रता की राह==
{{tocright}}
भारत की आज़ादी का संघर्ष [[मेरठ]] में सिपाहियों की बग़ावत के साथ 1857 में प्रारम्भ हुआ।  20वीं शताब्‍दी में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस और अन्‍य राजनैतिक संगठनों ने [[महात्मा गाँधी]] के नेतृत्‍व में एक देशव्‍यापी आंदोलन चलाया। महात्‍मा गांधी ने हिंसापूर्ण संघर्ष के विपरीत 'सविनय अवज्ञा अहिंसा आंदोलन' को सशक्‍त समर्थन दिया। उनके द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए मार्च, प्रार्थना सभाएं, विदेशी वस्‍तुओं का बहिष्‍कार और भारतीय वस्‍तुओं को प्रोत्‍साहन देना आदि अचूक हथियार थे।


इन रास्तों को भारतीय जनता ने समर्थन दिया और स्‍थानीय अभियान 'राष्‍ट्रीय आंदोलन' में बदल गए। इनमें से कुछ मुख्‍य आयोजन - 'असहयोग आंदोलन', 'दांडी मार्च', 'नागरिक अवज्ञा अभियान' और 'भारत छोड़ो आंदोलन' थे। शीघ्र ही यह स्‍पष्‍ट हो गया कि भारत अब उपनिवेशवादी शक्तियों के नियंत्रण में नहीं रहेगा और ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं की मांग को मान लिया। यह निर्णय लिया गया कि यह अधिकार भारत को सौंप दिया जाए और 15 अगस्‍त 1947 को भारत को यह अधिकार सौंप दिया गया।


==स्वतंत्र भारत की घोषणा==
14 अगस्‍त 1947 को रात को 11.00 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्‍वतंत्रता को मनाने की एक बैठक आरंभ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12.00 बजे भारत को आजादी मिल गई और भारत एक स्‍वतंत्र देश बन गया। तत्‍कालीन स्‍वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री [[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] ने अपना प्रसिद्ध भाषण 'नियति के साथ भेंट' दिया।


<blockquote>'“जैसे ही मध्‍य रात्रि हुई, और जब दुनिया सो रही थी, भारत जाग रहा होगा और अपनी आजादी की ओर बढ़ेगा। एक ऐसा पल आता है जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर जाते हैं. . . क्‍या हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिए पर्याप्‍त बहादुर और बुद्धिमान हैं और हम भविष्‍य की चुनौती को स्‍वीकार करने के लिए तैयार हैं?”' - पंडित जवाहरलाल नेहरू
==लाल क़िले पर तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्री==
</blockquote>
<div style="width:180px; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px; padding:10px; float:right;">
इसके बाद [[राष्‍ट्रीय ध्‍वज|तिरंगा झण्‍डा]] फहराया गया और [[लाल क़िला|लाल क़िले]] की प्राचीर से [[राष्ट्रीय गान]] गाया गया।
'''लाल क़िले पर तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्री'''
<div style="height:400px; overflow:auto; overflow-x: hidden;">
{| class="bharattable-pink" border="1" align="right"
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| [[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru.jpg|120px|link=जवाहर लाल नेहरू]]
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| [[चित्र:Lal-Bahadur-Shastri.jpg|120px|link=लाल बहादुर शास्त्री]]
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| [[चित्र:Indira-Gandhi.jpg|120px|link=इंदिरा गांधी]]
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| [[चित्र:Morarji Desai.jpg|120px|link=मोरारजी देसाई]]
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| [[चित्र:Chaudhary-Charan-Singh.jpg|120px|link=चरण सिंह चौधरी]]
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| [[चित्र:Rajiv-Gandhi.jpg|120px|link=राजीव गांधी]]
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| [[चित्र:V-P-Singh.jpg|120px|link=विश्वनाथ प्रताप सिंह]]
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| [[चित्र:Narsing-Rao.jpg|120px|link=पी. वी. नरसिंह राव]]
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| [[चित्र:Atal-Bihari-Vajpayee.jpg|120px|link=अटल बिहारी वाजपेयी]]
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| [[चित्र:HD Deve-Gowda.jpg|120px|link=एच. डी. देवगौड़ा]]
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| [[चित्र:Inder-Kumar-Gujral.jpg|120px|link=इन्द्र कुमार गुजराल]]
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| [[चित्र:Manmohan-Singh.jpg|120px|link=डॉ. मनमोहन सिंह]]
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| [[चित्र:Narendra-Modi.jpg|120px|link=नरेन्द्र मोदी]]
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जश्न-ए-आजादी के सिलसिले में लाल किले की प्राचीर से सबसे ज्यादा 17 बार [[तिरंगा]] लहराने का अवसर प्रथम [[प्रधानमंत्री]] [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] को मिला, वहीं उनकी पुत्री [[इंदिरा गाँधी]] ने भी राष्ट्रीय राजधानी स्थित सत्रहवीं शताब्दी की इस धरोहर पर 16 बार राष्ट्रध्वज फहराया। नेहरू ने आजादी के बाद सबसे पहले [[15 अगस्त]], [[1947]] को लाल किले पर झंडा फहराया और अपना बहुचर्चित संबोधन दिया। नेहरू जी [[27 मई]], [[1964]] तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। इस अवधि के दौरान उन्होंने लगातार 17 स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया। आजाद भारत के इतिहास में [[गुलजारी लाल नन्दा|गुलजारी लाल नंदा]] और [[चंद्रशेखर]] ऐसे नेता रहे जो प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का एक भी बार मौका नहीं मिल सका। नेहरू के निधन के बाद 27 मई, [[1964]] को नंदा प्रधानमंत्री बने, लेकिन उस वर्ष 15 अगस्त आने से पहले ही [[9 जून]], 1964 को वह पद से हट गए और उनकी जगह [[लाल बहादुर शास्त्री]] प्रधानमंत्री बने। नंदा 11 से [[24 जनवरी]], [[1966]] के बीच भी प्रधानमंत्री पद पर रहे। इसी तरह चंद्रशेखर [[10 नवंबर]], [[1990]] को [[प्रधानमंत्री]], बने लेकिन [[1991]] के स्वतंत्रता दिवस से पहले ही उस वर्ष [[21 जून]] को पद से हट गए।
लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद नंदा कुछ दिन प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन बाद में 24 जनवरी, 1966 को नेहरू की पुत्री [[इंदिरा गाँधी]] ने सत्ता की बागडोर संभाली। नेहरू के बाद सबसे अधिक बार जिस प्रधानमंत्री ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, वह इंदिरा ही रहीं। इंदिरा 1966 से लेकर [[24 मार्च]], [[1977]] तक और फिर [[14 जनवरी]], [[1980]] से लेकर [[31 अक्टूबर]], [[1984]] तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं। बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने 11 बार और दूसरे कार्यकाल में पाँच बार लाल किले पर झंडा फहराया। स्वतंत्रता दिवस पर सबसे कम बार राष्ट्रध्वज फहराने का मौका [[चौधरी चरण सिंह]]-[[28 जुलाई]], [[1979]] से [[14 जनवरी]], [[1980]]; [[विश्वनाथ प्रताप सिंह]]-[[2 दिसंबर]], [[1989]] से [[10 नवंबर]], [[1990]]; [[एच. डी. देवगौड़ा]]-[[1 जून]], [[1996]] से [[21 अप्रैल]], [[1997]] और [[इंद्र कुमार गुजराल]]-[[21 अप्रैल]], [[1997]] से लेकर [[28 नवंबर]], 1997 को मिला। इन सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों ने एक-एक बार [[15 अगस्त]] को लाल किले से राष्ट्रध्वज फहराया।


==आयोजन==
9 जून, 1964 से लेकर 11 जनवरी, 1966 तक प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री और 24 मार्च, 1977 से लेकर 28 जुलाई, 1979 तक प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई को दो- दो बार यह सम्मान हासिल हुआ। स्वतंत्रता दिवस पर पाँच या उससे अधिक बार तिरंगा फहराने का मौका नेहरू और इंदिरा गाँधी के अलावा राजीव गाँधी, पी. वी. नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मिला है। राजीव 31 अक्टूबर, 1984 से लेकर एक दिसंबर, 1989 तक और नरसिंह राव 21 जून, 1991 से 10 मई, 1996 तक प्रधानमंत्री रहे। दोनों को पाँच-पाँच बार ध्वज फहराने का मौका मिला। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर चुके अटल बिहारी वाजपेयी जब 19 मार्च, 1998 से लेकर 22 मई, 2004 के बीच प्रधानमंत्री रहे तो उन्होंने कुल छह बार लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। इससे पहले वह एक जून 1996, को भी [[प्रधानमंत्री]] बने, लेकिन 21 अप्रैल, 1997 को ही उन्हें पद से हटना पड़ा था। वर्ष [[2004]] के आम चुनाव में राजग की हार के बाद संप्रग सत्ता में आया और मनमोहन सिंह ने 22 मई, 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उन्हें छ: बार तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/independence-day-2010/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0-110080900060_1.htm |title=तिरंगा:किसने लहराया, कितनी बार |accessmonthday=06 अगस्त |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=webdunia.com |language= हिंदी}}</ref>
स्‍वतंत्रता दिवस समीप आते ही चारों ओर खुशियां फैल जाती है। सभी प्रमुख शासकीय भवनों को रोशनी से सजाया जाता है। तिरंगा झण्‍डा घरों तथा अन्‍य भवनों पर फहराया जाता है। स्‍वतंत्रता दिवस, 15 अगस्‍त एक राष्‍ट्रीय अवकाश है, इस दिन का अवकाश प्रत्‍येक नागरिक को बहादुर स्‍वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान को याद करके मनाना चाहिए।


स्‍वतंत्रता दिवस के एक सप्‍ताह पहले से ही विशेष प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा देश भक्ति की भावना को प्रोत्‍साहन दिया जाता है। रेडियो स्‍टेशनों और टेलीविज़न चैनलों पर इस विषय से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। शहीदों की कहानियों के बारे में फिल्‍में दिखाई जाती है और राष्‍ट्रीय भावना से संबंधित कहानियां और रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है।
==वीथिका==
==स्वतंत्रता की पूर्व संध्या==
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राष्‍ट्रपति द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन लाल क़िले से तिरंगा झण्‍डा फहराया जाता है। राज्‍य स्‍तर पर विशेष स्‍वतंत्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें झण्‍डा फहराने के आयोजन, मार्च पास्‍ट और सांस्‍कृतिक आयोजन शामिल हैं। इन आयोजनों को राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किया जाता है और मुख्‍यमंत्री इन कार्यक्रमों की अध्‍यक्षता करते हैं। छोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्‍थानों, आवास संघों, सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों और राजनैतिक संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
चित्र:First-Independence-Day-8.jpg|[[15 अगस्त]] [[1947]] स्वतंत्रता दिवस का अवसर
==प्रभातफेरी==
चित्र:First-Independence-Day-6.jpg|प्रथम स्वतंत्रता दिवस पर आयोजन
स्कूलों और संस्थाओं द्वारा प्रात: ही प्रभातफेरी निकाली जाती हैं जिनमें बच्चे, युवक और बूढ़े देशभक्ति के गाने गाते हैं और उन वीरों की याद में नुक्क्ड़ नाटक और प्रशस्ति गान करते हैं।
चित्र:Newspaper-15-August-1947.jpg|[[15 अगस्त]] [[1947]] का अख़बार
==स्‍वतंत्रता दिवस का प्रतीक पतंग==
चित्र:First-Independence-Day-1.jpg|[[15 अगस्त]] [[1947]] का अख़बार
स्‍वतंत्रता दिवस का एक और प्रतीक पतंग उड़ाने का खेल है। आकाश में ढेर सारी पतंगें दिखाई देती हैं जो लोग अपनी अपनी छतों से उड़ा कर भारत की स्‍वतंत्रता का समारोह मनाते हैं। अलग अलग प्रकार, आकार और रंगों की पतंगो तथा तिरंगे बाजार में उपलब्‍ध हैं। इस दिन पतंग उड़ाकर अपने संघर्ष के कौशलों का प्रदर्शन किया जाता है।
चित्र:First-Independence-Day-4.jpg|स्वतंत्रता दिवस मनाते भारतीय, [[15 अगस्त]] [[1947]], [[राजपथ]], [[नई दिल्ली]]
==देशभक्ति का प्रदर्शन==
चित्र:First-Independence-Day-5.jpg|स्वतंत्रता दिवस मनाते भारतीय, [[15 अगस्त]] [[1947]], [[राजपथ]], [[नई दिल्ली]]
भारत एक समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत वाला देश है और यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां के नागरिक देश को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने की वचनबद्धता रखते हैं जहां तक इसके संस्‍थापकों ने इसे पहुंचाने की कल्‍पना की। जैसे ही आसमान में तिरंगा लहराता है, प्रत्‍येक नागरिक देश की शान को बढ़ाने के लिए कठिन परिश्रम करने का वचन देता है और भारत को एक ऐसा राष्‍ट्र बनाने का लक्ष्‍य पूरा करने का प्रण लेता है जो मानवीय मूल्‍यों के लिए सदैव अटल है।
चित्र:First-Independence-Day-7.jpg|स्वतंत्रता दिवस मनाते भारतीय, [[15 अगस्त]] [[1947]], [[राजपथ]], [[नई दिल्ली]]
चित्र:Parade-On-Motor-Cycle.JPG|[[15 अगस्त]] के दिन मोटर साइकिल पर परेड
चित्र:Children-Performing.jpg|स्वतंत्रता दिवस पर नाटक पेश करते बच्चे
चित्र:Independence-Day-1.jpg|आधी रात को स्वतंत्रता
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'''जय हिंद'''
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://bharat.gov.in/myindia/photogal_15aug/15aug_photogallery.php भारत की अधिकारिक वेबसाइट]
* [http://bharat.gov.in/spotlight/spotlight_archive.php?id=45 स्‍वतंत्रता दिवस आयोजन]
* [http://dharmendrabchouhan.blogspot.com/2010/04/15-1947.html अखबार की बात]
* [http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/special08/independenceday/ वेबदुनिया]
* [http://www.bharatdarshan.co.nz/hindi/index.php?page=Independence-Day भारत-दर्शन]
* [http://www.ians.in/stories/aug08/14ans4.html www.ians.in]
* [http://www.fulldhamaal.com/image-gallery/15-august-1947-the-first-independence-day-rare-8-pictures-20014.htm fulldhamaal.com]


==संबंधित लेख==
{{राष्ट्रीय दिवस}}{{भारत का विभाजन}}{{स्वतन्त्रता सेनानी}}{{भारत गणराज्य}}{{महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दिवस}}
[[Category:राष्ट्रीय पर्व और त्योहार]]
[[Category:राष्ट्रीय पर्व और त्योहार]]
[[Category:राष्ट्रीय दिवस]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:महत्त्वपूर्ण_दिवस]]
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05:19, 15 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

स्वतंत्रता दिवस
15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस का अवसर
15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस का अवसर
विवरण इसी महान् दिन की याद में भारत के प्रधानमंत्री प्रत्येक वर्ष लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराकर देश को सम्बोधित करते हैं।
उद्देश्य ऐसा दिन है जब हम अपने महान् राष्‍ट्रीय नेताओं और स्‍वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्‍होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्‍यौछावर कर दिए।
पहली बार भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार 15 अगस्त 1947 को लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। उसी दिन से हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
विशेष आयोजन राज्‍य स्‍तर पर विशेष स्‍वतंत्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें झण्‍डा फहराने के आयोजन, मार्च पास्‍ट और सांस्‍कृतिक आयोजन शामिल हैं। इन आयोजनों को राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किया जाता है और मुख्‍यमंत्री इन कार्यक्रमों की अध्‍यक्षता करते हैं। छोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्‍थानों, आवास संघों, सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों और राजनीतिक संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
संबंधित लेख लार्ड रिपन, ईस्ट इण्डिया कम्पनी, भारतीय क्रांति दिवस, ग़दर पार्टी, भारत का विभाजन
अन्य जानकारी राष्‍ट्रपति द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन प्रधानमंत्री प्रातः 7 बजे लाल क़िले पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं।
अद्यतन‎

स्‍वतंत्रता दिवस (अंग्रेज़ी: Independence Day) ऐसा दिन है जब हम अपने महान् राष्‍ट्रीय नेताओं और स्‍वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्‍होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्‍यौछावर कर दिए। 15 अगस्त 1947 को भारत के निवासियों ने लाखों कुर्बानियां देकर ब्रिटिश शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त की थी। यह राष्ट्रीय पर्व भारत के गौरव का प्रतीक है। प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को सरकारी बिल्डिंगों पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है तथा रौशनी की जाती है। प्रधानमंत्री प्रातः 7 बजे लाल क़िले पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं। हज़ारों लोग उनका भाषण सुनने के लिए लाल क़िले पर जाते हैं। स्कूलों में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है और बच्चों में मिठाईयाँ भी बाँटी जाती हैं। 14 अगस्त को रात्रि 8 बजे राष्ट्रपति अपने देश वासियों को सन्देश देते हैं, जिसका रेडियो तथा टेलीविज़न पर प्रसारण किया जाता है।
सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महायज्ञ का प्रारम्भ महर्षि दयानन्द सरस्वती ने प्रारम्भ किया और अपने प्राणों को भारत माता पर मंगल पांडे ने न्यौछावर किया और देखते ही देखते यह चिंगारी एक महासंग्राम में बदल गयी जिसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब, 'सरफ़रोशी की तमन्ना' लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि देश के लिए शहीद हो गए। तिलक ने स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है का सिंहनाद किया और सुभाष चंद्र बोस ने कहा - तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।

तिरंगा

'अहिंसा' और 'असहयोग' लेकर महात्मा गाँधी और ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़ने के लिए 'लौह पुरुष' सरदार पटेल जैसे महापुरुषों ने कमर कस ली। 90 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को 'भारत को स्वतंत्रता' का वरदान मिला। भारत की आज़ादी का संग्राम बल से नहीं वरन् सत्‍य और अहिंसा के सिद्धांत के आधार पर विजित किया गया। इतिहास में स्‍वतंत्रता के संघर्ष का एक अनोखा और अनूठा अभियान था जिसे विश्व भर में प्रशंसा मिली।

इतिहास

मई 1857 में दिल्ली के कुछ समाचार पत्रों में यह भविष्यवाणी छपी कि प्लासी के युद्ध के पश्चात् 23 जून 1757 ई. को भारत में जो अंग्रेज़ी राज्य स्थापित हुआ था वह 23 जून 1857 ई. तक समाप्त हो जाएगा। यह भविष्यवाणी सारे देश में फैल गई और लोगों में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जोश की लहर दौड़ गई। इसके अतिरिक्त 1856 ई. में लार्ड कैनिंग ने सामान्य भर्ती क़ानून पास किया। जिसके अनुसार भारतीय सैनिकों को यह लिखकर देना होता था कि सरकार जहाँ कहीं भी उन्हें युद्ध करने के लिए भेजेगी वह वहीं पर चले जाएँगे। इससे भारतीय सैनिकों में असाधारण असन्तोष फैल गया। कम्पनी की सेना में उस समय तीन लाख सैनिक थे, जिनमें से केवल पाँच हज़ार ही यूरोपियन थे। बाकी सब अर्थात् यूरोपियन सैनिकों से 6 गुनाह भारतीय सैनिक थे।[1]

सिपाही क्रांति

भारत के अमर शहीद
मंगल पांडे
लक्ष्मीबाई
तात्या टोपे

जब देश में चारों ओर असन्तोष का वातावरण था, तो अंग्रेज़ी सरकार ने सैनिकों को पुरानी बन्दूकों के स्थान पर नई राइफलें देने का निश्चय किया। इन राइफलों के कारतूस में सूअर तथा गाय की चर्बी प्रयुक्त की जाती थी और सैनिकों को राइफलों में गोली भरने के लिए इन कारतूसों के सिरे को अपने दाँतों से काटना पड़ता था। इससे हिन्दू और मुसलमान सैनिक भड़क उठे। उन्होंने ऐसा महसूस किया कि अंग्रेज़ सरकार उनके धर्म को नष्ट करना चाहती है। इसलिए जब मेरठ के सैनिकों में ये कारतूस बाँटे गए तो 85 सैनिकों ने उनका प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। इस पर उन्हें कठोर दण्ड देकर बन्दीगृह में डाल दिया गया। सरकार के इस व्यवहार पर भारतीय सैनिकों ने 10 मई, 1857 के दिन "हर–हर महादेव, मारो फिरंगी को" का नारा लगाते हुए विद्रोह कर दिया।

लार्ड रिपन

लार्ड रिपन

लार्ड रिपन ने भारत में हर दस वर्ष में जनगणना करने का नियम बनाया और सन् 1881 में पहली बार गणना कराई, जोकि अब तक हर दस साल के बाद की जाती है। 1882 ई. में लार्ड रिपन ने कई सुधार किए। उसने म्यूनिसिपल बोर्ड तथा शिक्षा में सुधार किया। वित्तीय शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया। केन्द्रीय सूची में अफ़ीम, रेल, डाकघर, नमक टैक्सटाइल आदि साधन रखे गए। प्रान्तीय सूची में शिक्षा, पुलिस, जेल, प्रेस, तथा सार्वजनिक कार्य रखे गए। तीसरी सूची में भूमिकर, जंगल स्टैम्प कर आदि रखे गए, इन मुद्दों के द्वारा प्राप्त आय को केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों में बाँटा गया। लार्ड रिपन ने सारे देश में स्थानीय बोर्डों का जाल बिछा दिया और गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ा दी।

गोपाल कृष्ण गोखले

लार्ड कर्ज़न

1905 से 1919 के बीच में राष्ट्रीय आंदोलन उग्रवादियों के हाथ में रहा। उग्रवादियों के प्रमुख नेता बाल, लाल, पाल (बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चन्द्र पाल) थे। लाला लाजपत राय ने उदारवादियों की नीति पर असन्तुष्ट होकर कहा था कि हमें बीस लगातार आंदोलन करने के बाद भी रोटी के बदले पत्थर मिले। हम अंग्रेज़ों के आगे अब और अधिक समय तक भीख नहीं माँगेंगे और न ही उनके सामने गिड़गिड़ायेंगे। दक्षिण अफ्रीका में तो भारतीयों की हालत बहुत शोचनीय थी। रंगभेद की दृष्टि के कारण उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें अस्पतालों तथा होटलों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। बच्चे उच्च संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते थे। रजिस्ट्रेशन एक्ट (1907) के तहत भारतीयों को अपराधियों के तरह दफ़्तरों में अपने नाम लिखवाने पड़ते थे और अपनी अंगुलियों की छाप देनी पड़ती थी। लार्ड कर्ज़न की दमन नीति (1898 से 1905) ने भारतीयों पर अनेक अत्याचार किए थे। उसने अपने भाषण में भारतीयों को बहुत ही अपमानजनक शब्द कहे थे और कार्यकुशलता के नाम पर कलकत्ता कार्पोरेशन आफिसयल सीक्रेट एक्ट, इंडियन यूनीवर्सटी एक्ट, कई ऐसे क़दम उठाए जिनका उद्देश्य भारतीय एकता को दुर्बल करना तथा भारतीय भावनाओं का गला घोंटना था। 1907 ई. में बंगाल भंग सम्बन्धी घोषणा होते ही गरम दल सक्रिय हो गया। उन्होंने दिसम्बर 1907 में बंगाल के गवर्नर की गाड़ी पर बम फैंकने का प्रयत्न किया। फिर ढाका के मजिस्ट्रेट पर गोली चलाई। परन्तु वह बच निकला। मुजफ़्फ़पुर बम फटने से कैनेडी तथा उसकी पुत्री की मृत्यु हो गई। पंजाब और महाराष्ट्र में भी इस तरह की घटनाएँ होने लगीं।[1]

ग़दर पार्टी की स्थापना

बाल गंगाधर तिलक

सन् 1913 में अमेरिका में बसने वाले भारतीयों ने गदर पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी के प्रमुख नेता सोहनसिंह भकना, लाला हरदयाल, बाबा बसाखा सिंह, पं. काशीराम और उधमसिंह थे। इस पार्टी के हज़ारों भारतवासी अमेरिका से भारत आए। उन्होंने लाहौर, फ़िरोजपुर, अम्बाला, मेरठ, आगरा आदि सैनिक छावनियों में सैनिकों को विद्रोह करने की प्रेरणा दी और 25 फरवरी 1915 को गदर का दिन रखा। लेकिन कुपाल सिंह के विश्वासघात ने इस योजना को असफल कर दिया। गदर पार्टी की तरह इंडो जर्मन मिशन ने भी टर्की और काबुल का सहयोग प्राप्त करके भारत को स्वतंत्र कराने की योजना बनाई और अस्थायी भारत सरकार की स्थापना की, जिसके राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप और प्रधान मंत्री बरकत अल्लाह थे। लेकिन परिस्थिति अनुकूल न होने के कारण ये देशभक्त भी सफल नहीं हो सके। सौभाग्य से दक्षिण अफ्रीका में भारतवासियों को महात्मा गांधी के रूप में एक ऐसा नेता मिला जिसने सब भारतवासियों को संगठित किया। उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन चलाया और भारतीयों पर लगाए गए क़ानून रोक दिए।

गांधी जी के आंदोलन

महात्मा गाँधी

बम्बई प्रान्त में जितेन्द्रनाथ ने 61 दिन भूख हड़ताल करके अपने प्राण त्याग दिए। गांधी ने नमक क़ानून तोड़ने के लिए डांडी मार्च किया। क़ानून तोड़ने पर अंग्रेज़ों ने गांधी जी को गिरफ़्तार कर लिया। लेकिन देश में आंदोलन ज़ोर पकड़ गया, इसलिए गांधी जी को रिहा कर दिया गया। अंग्रेज़ों ने तीन बार लन्दन में गोल मेज कांफ़्रेन्स बुलाई, लेकिन गांधीजी हर बार निराश ही वापस लौटे। 3 सितम्बर 1939 को द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस अधिवेशन बम्बई में हुआ। उसमें "भारत छोड़ो" प्रस्ताव पास हुआ। पंडित मोतीलाल नेहरू तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी स्वतंत्रता के लिए बहुत काम किया। अंग्रेज़ सरकार ने दमन नीति का सहारा लिया। इस बीच नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भारत से बाहर रहकर भारत को स्वतंत्र कराने का प्रयत्न किया। उनका विचार था कि द्वितीय विश्वयुद्ध का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। और "दिल्ली चलो" का नारा दिया। लेकिन नेताजी किसी दुर्घटना में मारे गए, इसलिए यह आंदोलन भी असफल हो गया। तत्पश्चात् 18 फरवरी 1946 को बम्बई में सैनिक विद्रोह उठ खड़े हुए। सैनिकों ने अपनी बैरकों से निकलकर अंग्रेज़ सैनिकों पर धावा बोल दिया और पाँच दिन तक अंग्रेज़ी सैनिकों को मौत के घाट उतारते रहे। अन्त में अंग्रेज़ों को यह बात स्पष्ट हो गई कि अब वे भारत को अधिक समय तक अपना ग़ुलाम बनाकर नहीं रख सकते।

स्‍वतंत्रता की राह

20वीं शताब्‍दी में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस और अन्‍य राजनीतिक संगठनों ने महात्मा गाँधी के नेतृत्‍व में एक देशव्‍यापी आंदोलन चलाया। महात्‍मा गांधी ने हिंसापूर्ण संघर्ष के विपरीत 'सविनय अवज्ञा अहिंसा आंदोलन' को सशक्‍त समर्थन दिया। उनके द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए मार्च, प्रार्थना सभाएं, विदेशी वस्‍तुओं का बहिष्‍कार और भारतीय वस्‍तुओं को प्रोत्‍साहन देना आदि अचूक हथियार थे। इन रास्तों को भारतीय जनता ने समर्थन दिया और स्‍थानीय अभियान 'राष्‍ट्रीय आंदोलन' में बदल गए। इनमें से कुछ मुख्‍य आयोजन - 'असहयोग आंदोलन', 'दांडी मार्च', 'नागरिक अवज्ञा अभियान' और 'भारत छोड़ो आंदोलन' थे। शीघ्र ही यह स्‍पष्‍ट हो गया कि भारत अब उपनिवेशवादी शक्तियों के नियंत्रण में नहीं रहेगा और ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं की मांग को मान लिया। यह निर्णय लिया गया कि यह अधिकार भारत को सौंप दिया जाए और 15 अगस्‍त 1947 को भारत को यह अधिकार सौंप दिया गया।

भारतवर्ष का विभाजन

15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान दो हिस्सों में बँटकर स्वतंत्र हो गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। उसी दिन से हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। सरकारी बिल्डिंगों पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है तथा रौशनी की जाती है। प्रधानमंत्री प्रातः 7 बजे लाल क़िले पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं। हज़ारों लोग उनका भाषण सुनने के लिए लाल क़िले पर जाते हैं। स्कूलों में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है और बच्चों में मिठाईयाँ भी बाँटी जाती हैं। 14 अगस्त को रात्रि 8 बजे राष्ट्रपति अपने देश वासियों को सन्देश देते हैं, जिसका रेडियो तथा टेलीविज़न पर प्रसारण किया जाता है।[1]

स्वतंत्र भारत की घोषणा

15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस पर जवाहरलाल नेहरू, लॉर्ड माउन्ट बैटन और एडविना

14 अगस्‍त 1947 को रात को 11.00 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्‍वतंत्रता को मनाने की एक बैठक आरंभ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12.00 बजे भारत को आज़ादी मिल गई और भारत एक स्‍वतंत्र देश बन गया। तत्‍कालीन स्‍वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण 'नियति के साथ भेंट' दिया।

'“जैसे ही मध्‍य रात्रि हुई, और जब दुनिया सो रही थी, भारत जाग रहा होगा और अपनी आज़ादी की ओर बढ़ेगा। एक ऐसा पल आता है जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर जाते हैं. . . क्‍या हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिए पर्याप्‍त बहादुर और बुद्धिमान हैं और हम भविष्‍य की चुनौती को स्‍वीकार करने के लिए तैयार हैं?”' - पंडित जवाहरलाल नेहरू

इसके बाद तिरंगा झण्‍डा फहराया गया और लाल क़िले की प्राचीर से राष्ट्रीय गान गाया गया।

आयोजन

स्‍वतंत्रता दिवस समीप आते ही चारों ओर खुशियां फैल जाती है। सभी प्रमुख शासकीय भवनों को रोशनी से सजाया जाता है। तिरंगा झण्‍डा घरों तथा अन्‍य भवनों पर फहराया जाता है। स्‍वतंत्रता दिवस, 15 अगस्‍त एक राष्‍ट्रीय अवकाश है, इस दिन का अवकाश प्रत्‍येक नागरिक को बहादुर स्‍वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान को याद करके मनाना चाहिए। स्‍वतंत्रता दिवस के एक सप्‍ताह पहले से ही विशेष प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा देश भक्ति की भावना को प्रोत्‍साहन दिया जाता है। रेडियो स्‍टेशनों और टेलीविज़न चैनलों पर इस विषय से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। शहीदों की कहानियों के बारे में फिल्‍में दिखाई जाती है और राष्‍ट्रीय भावना से संबंधित कहानियां और रिपोर्ट प्रकाशित की जाती हैं।

स्वतंत्रता की पूर्व संध्या

राष्‍ट्रपति द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन लाल क़िले से तिरंगा झण्‍डा फहराया जाता है। राज्‍य स्‍तर पर विशेष स्‍वतंत्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें झण्‍डा फहराने के आयोजन, मार्च पास्‍ट और सांस्‍कृतिक आयोजन शामिल हैं। इन आयोजनों को राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किया जाता है और मुख्‍यमंत्री इन कार्यक्रमों की अध्‍यक्षता करते हैं। छोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्‍थानों, आवास संघों, सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों और राजनीतिक संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

स्‍वतंत्रता दिवस का प्रतीक पतंग

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल क़िले पर तिरंगा झण्‍डा लहराया जाता है

स्‍वतंत्रता दिवस का एक और प्रतीक पतंग उड़ाने का खेल है। आकाश में ढेर सारी पतंगें दिखाई देती हैं जो लोग अपनी अपनी छतों से उड़ा कर भारत की स्‍वतंत्रता का समारोह मनाते हैं। अलग अलग प्रकार, आकार और रंगों की पतंगों तथा तिरंगे बाज़ार में उपलब्‍ध हैं। इस दिन पतंग उड़ाकर अपने संघर्ष के कौशलों का प्रदर्शन किया जाता है।

प्रभातफेरी

स्कूलों और संस्थाओं द्वारा प्रात: ही प्रभातफेरी निकाली जाती हैं जिनमें बच्चे, युवक और बूढ़े देशभक्ति के गाने गाते हैं और उन वीरों की याद में नुक्क्ड़ नाटक और प्रशस्ति गान करते हैं।

देशभक्ति का प्रदर्शन

भारत एक समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत वाला देश है और यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ के नागरिक देश को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने की वचनबद्धता रखते हैं जहां तक इसके संस्‍थापकों ने इसे पहुंचाने की कल्‍पना की। जैसे ही आसमान में तिरंगा लहराता है, प्रत्‍येक नागरिक देश की शान को बढ़ाने के लिए कठिन परिश्रम करने का वचन देता है और भारत को एक ऐसा राष्‍ट्र बनाने का लक्ष्‍य पूरा करने का प्रण लेता है जो मानवीय मूल्‍यों के लिए सदैव अटल है।

तिरंगे के साथ ही दिखने लगा इंद्रधनुष

15 अगस्त, 1947 को यूं तो देश आजाद हो गया था, लेकिन 15 अगस्त को जब पहली बार तिरंगा फहराया गया तो उस समय अचानक से आसमान में इंद्रधनुष नजर आया, जिसे देखकर सब लोग हैरान रह गए थे। आजादी के बाद से ही हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के लाल क़िले पर आयोजित किया जाता है। यह ऐतिहासिक कार्यक्रम 16 अगस्त, 1947 से चला आ रहा है, जब लाल क़िले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ध्वजारोहण किया था। तब पूरा देश जश्न के माहौल में डूबा हुआ था और हर जगह लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे।[2]

उमड़ पड़ा था जनसैलाब

इतिहास के झरोखों से देखें तो दिल्ली की सड़कों पर तब लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था और वे एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे। लोग सड़कों, पार्कों और चौराहों पर गीत गा रहे थे और अधिकतर लोग तिरंगे को हाथ में लेकर संसद की तरफ बढ़ रहे थे। कहा जाता है कि यह एक ऐसा सैलाब था जिसका जोश सातवें आसमान पर था और यह दृश्य वाकई में अद्भुत था, जिसकी कोई कल्पना भी कोई नही कर सकता था। युवा पूरी रात घूमते रहे। इसी तरह की खबरें तब देश के अन्य हिस्सों से भी आ रहीं थीं।

इंद्रधनुष का नज़र आना

इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो तब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 16 अगस्त की सुबह-सुबह साढ़े आठ बजे लाल क़िले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया। इतिहासकारों की मानें तो उस समय पंडित नेहरू ने सुभाषचंद्र बोस के 'चलो दिल्ली' के नारे और लाल क़िले से आजादी का झंडा फहराए जाने के सपने का जिक्र किया था। कोलकाता के रहने वाले शेखर चक्रवर्ती ने अपने संस्मरणों 'फ्लैग्स एंड स्टैम्प्स' में लिखा है- 15 अगस्त, 1947 के दिन वायसराइल लॉज (अब राष्ट्रपति भवन) में जब नई सरकार को शपथ दिलाई जा रही थी, तो लॉज के सेंट्रल डोम पर सुबह साढ़े दस बजे आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहली बार फहराया गया था। इस दौरान आसमान में इंद्रधनुष दिखाई दिया, जिसे देखकर हर कोई हैरान रह गया।

इंद्रधनुष की इस घटना का जिक्र लॉर्ड माउंट बेटन ने भी अपनी रिपोर्ट में किया था, जिसमें उन्होंने इंद्रधनुष के रहस्यमयी तरीके से अचानक दिखने का जिक्र करते हुए इसे चमत्कार से कम नहीं कहा था। 15 अगस्त, 1947 को जब संसद के सामने तिरंगा फहराया गया तो ऐसा लगा कि आसमान भी प्रफुल्लित हो उठा है और उसी समय बारिश की हल्की बौछारें होने लगीं और कुछ देर बाद इंद्रधनुष निकल आया। इन सबके अलावा एक घटना का अक्सर जिक्र होता है जिसके अनुसार, जब पंडित नेहरू लाल क़िले की प्राचीर से झंडा फहरा रहे थे तो उस समय साफ नीले आसमान में एक इंद्रधनुष नजर आया है। इस इंद्रधनुष को देखकर वहां उपस्थित हर शख्स हैरान रह गया था।



लाल क़िले पर तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्री

लाल क़िले पर तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्री

जश्न-ए-आजादी के सिलसिले में लाल किले की प्राचीर से सबसे ज्यादा 17 बार तिरंगा लहराने का अवसर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिला, वहीं उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी ने भी राष्ट्रीय राजधानी स्थित सत्रहवीं शताब्दी की इस धरोहर पर 16 बार राष्ट्रध्वज फहराया। नेहरू ने आजादी के बाद सबसे पहले 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर झंडा फहराया और अपना बहुचर्चित संबोधन दिया। नेहरू जी 27 मई, 1964 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। इस अवधि के दौरान उन्होंने लगातार 17 स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया। आजाद भारत के इतिहास में गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर ऐसे नेता रहे जो प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का एक भी बार मौका नहीं मिल सका। नेहरू के निधन के बाद 27 मई, 1964 को नंदा प्रधानमंत्री बने, लेकिन उस वर्ष 15 अगस्त आने से पहले ही 9 जून, 1964 को वह पद से हट गए और उनकी जगह लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। नंदा 11 से 24 जनवरी, 1966 के बीच भी प्रधानमंत्री पद पर रहे। इसी तरह चंद्रशेखर 10 नवंबर, 1990 को प्रधानमंत्री, बने लेकिन 1991 के स्वतंत्रता दिवस से पहले ही उस वर्ष 21 जून को पद से हट गए। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद नंदा कुछ दिन प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन बाद में 24 जनवरी, 1966 को नेहरू की पुत्री इंदिरा गाँधी ने सत्ता की बागडोर संभाली। नेहरू के बाद सबसे अधिक बार जिस प्रधानमंत्री ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, वह इंदिरा ही रहीं। इंदिरा 1966 से लेकर 24 मार्च, 1977 तक और फिर 14 जनवरी, 1980 से लेकर 31 अक्टूबर, 1984 तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं। बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने 11 बार और दूसरे कार्यकाल में पाँच बार लाल किले पर झंडा फहराया। स्वतंत्रता दिवस पर सबसे कम बार राष्ट्रध्वज फहराने का मौका चौधरी चरण सिंह-28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980; विश्वनाथ प्रताप सिंह-2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर, 1990; एच. डी. देवगौड़ा-1 जून, 1996 से 21 अप्रैल, 1997 और इंद्र कुमार गुजराल-21 अप्रैल, 1997 से लेकर 28 नवंबर, 1997 को मिला। इन सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों ने एक-एक बार 15 अगस्त को लाल किले से राष्ट्रध्वज फहराया।

9 जून, 1964 से लेकर 11 जनवरी, 1966 तक प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री और 24 मार्च, 1977 से लेकर 28 जुलाई, 1979 तक प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई को दो- दो बार यह सम्मान हासिल हुआ। स्वतंत्रता दिवस पर पाँच या उससे अधिक बार तिरंगा फहराने का मौका नेहरू और इंदिरा गाँधी के अलावा राजीव गाँधी, पी. वी. नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मिला है। राजीव 31 अक्टूबर, 1984 से लेकर एक दिसंबर, 1989 तक और नरसिंह राव 21 जून, 1991 से 10 मई, 1996 तक प्रधानमंत्री रहे। दोनों को पाँच-पाँच बार ध्वज फहराने का मौका मिला। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर चुके अटल बिहारी वाजपेयी जब 19 मार्च, 1998 से लेकर 22 मई, 2004 के बीच प्रधानमंत्री रहे तो उन्होंने कुल छह बार लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। इससे पहले वह एक जून 1996, को भी प्रधानमंत्री बने, लेकिन 21 अप्रैल, 1997 को ही उन्हें पद से हटना पड़ा था। वर्ष 2004 के आम चुनाव में राजग की हार के बाद संप्रग सत्ता में आया और मनमोहन सिंह ने 22 मई, 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उन्हें छ: बार तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला।[3]

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 गुप्ता, वेद प्रकाश “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास”, भारतीय उत्सव और पर्व, 112।
  2. आजादी की वो सुबह, जब पहली बार तिरंगा फहराते ही आसमान में नजर आने लगा इंद्रधनुष (हिंदी) timesnowhindi.com। अभिगमन तिथि: 15 अगस्त, 2020।
  3. तिरंगा:किसने लहराया, कितनी बार (हिंदी) webdunia.com। अभिगमन तिथि: 06 अगस्त, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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