"द्वैतवाद": अवतरणों में अंतर
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'''द्वैतवाद''' [[दर्शन]] से सम्बन्धित एक वाद है, जिसके प्रणेता [[मध्वाचार्य]] थे। 'एक' से अधिक की स्वीकृति होने के कारण यह 'द्वैत' तथा 'त्रैत' दोनों ही नामों से अभिहित है। इस [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] के अनुसार प्रकृति, जीव तथा परमात्मा तीनों का अस्तित्त्व मान्य है। मध्वाचार्य ने 'भाव' और 'अभाव' का अंकन करते हुए भ्रम का मूल कारण अभाव को माना है। इस मत में विभिन्न दर्शनों में से अनेक तत्त्व गृहीत हैं। द्वैत में भेद की धारणा का बड़ा महत्त्व है। भेद ही [[पदार्थ]] की विशेषता कहलाता है, अत: उसे 'सविशेषाभेद' कहा गया। मुक्ति चार प्रकार की होती है:- | |||
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मध्वाचार्य का दार्शनिक सिद्धान्त द्वैतवाद है। यह | मध्वाचार्य का दार्शनिक सिद्धान्त द्वैतवाद है। यह [[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] के अद्वैतवाद के नितान्त प्रतिकूल है, और उसका प्रबल विरोधी है। मध्वाचार्य ने जीवन की वास्तविकता समझते हुए उसे व्यावहारिक और रूचिपूर्ण बनाने का आधार अपने द्वैतवाद में प्रस्तुत किया। इनके अनुसार दो [[पदार्थ]] या तत्त्व प्रमुख हैं, जो स्वतंत्र और अस्वतन्त्र हैं। स्वतन्त्र तत्त्व परमात्मा है, जो [[विष्णु]] नाम से प्रसिद्ध है, और जो सगुण तथा सविशेष है। अस्वतन्त्र तत्त्व जीवात्मा है। ये दोनों तत्त्व नित्य और अनादि हैं, जिनमें स्वाभाविक भेद है। यह भेद पाँच प्रकार का हैं, जिसे शास्त्रीय भाषा में 'प्रपंच' कहा जाता है। | ||
*ईश्वर अनादि और सत्य हैं, भ्रान्ति-कल्पित नहीं। | *ईश्वर अनादि और सत्य हैं, भ्रान्ति-कल्पित नहीं। | ||
*ईश्वर जीव और जड़ पदार्थों से भिन्न है। | *ईश्वर जीव और जड़ पदार्थों से भिन्न है। | ||
*जीव और जड़ पदार्थ अन्य जीवों से भिन्न है एवं एक जड़ पदार्थ दूसरे पदार्थों से भिन्न है। | *जीव और जड़ पदार्थ अन्य जीवों से भिन्न है एवं एक जड़ पदार्थ दूसरे पदार्थों से भिन्न है। | ||
*जब तक यह तात्विक भेद बोध उदित नहीं होता, तब तक मुक्ति संभव नहीं। | *जब तक यह तात्विक भेद बोध उदित नहीं होता, तब तक मुक्ति संभव नहीं। | ||
मध्वाचार्य के सिद्धान्त की रूपरेखा निम्नाँकित श्लोकों में व्यक्त की गई है- | मध्वाचार्य के सिद्धान्त की रूपरेखा निम्नाँकित श्लोकों में व्यक्त की गई है- | ||
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भेदो जीवगणा हरेरनुचरा नीचोच्च भावं गता।1। | भेदो जीवगणा हरेरनुचरा नीचोच्च भावं गता।1। | ||
मुक्तिर्नैव सुखानुभूतिरमला भक्तिश्च तत्साधने, | मुक्तिर्नैव सुखानुभूतिरमला भक्तिश्च तत्साधने, | ||
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द्वैतवाद दर्शन से सम्बन्धित एक वाद है, जिसके प्रणेता मध्वाचार्य थे। 'एक' से अधिक की स्वीकृति होने के कारण यह 'द्वैत' तथा 'त्रैत' दोनों ही नामों से अभिहित है। इस दर्शन के अनुसार प्रकृति, जीव तथा परमात्मा तीनों का अस्तित्त्व मान्य है। मध्वाचार्य ने 'भाव' और 'अभाव' का अंकन करते हुए भ्रम का मूल कारण अभाव को माना है। इस मत में विभिन्न दर्शनों में से अनेक तत्त्व गृहीत हैं। द्वैत में भेद की धारणा का बड़ा महत्त्व है। भेद ही पदार्थ की विशेषता कहलाता है, अत: उसे 'सविशेषाभेद' कहा गया। मुक्ति चार प्रकार की होती है:-
- सालोक्य
- सामीप्य
- सारूप्य
- सायुज्य
दार्शनिक सिद्धान्त
मध्वाचार्य का दार्शनिक सिद्धान्त द्वैतवाद है। यह शंकराचार्य के अद्वैतवाद के नितान्त प्रतिकूल है, और उसका प्रबल विरोधी है। मध्वाचार्य ने जीवन की वास्तविकता समझते हुए उसे व्यावहारिक और रूचिपूर्ण बनाने का आधार अपने द्वैतवाद में प्रस्तुत किया। इनके अनुसार दो पदार्थ या तत्त्व प्रमुख हैं, जो स्वतंत्र और अस्वतन्त्र हैं। स्वतन्त्र तत्त्व परमात्मा है, जो विष्णु नाम से प्रसिद्ध है, और जो सगुण तथा सविशेष है। अस्वतन्त्र तत्त्व जीवात्मा है। ये दोनों तत्त्व नित्य और अनादि हैं, जिनमें स्वाभाविक भेद है। यह भेद पाँच प्रकार का हैं, जिसे शास्त्रीय भाषा में 'प्रपंच' कहा जाता है।
- ईश्वर अनादि और सत्य हैं, भ्रान्ति-कल्पित नहीं।
- ईश्वर जीव और जड़ पदार्थों से भिन्न है।
- जीव और जड़ पदार्थ अन्य जीवों से भिन्न है एवं एक जड़ पदार्थ दूसरे पदार्थों से भिन्न है।
- जब तक यह तात्विक भेद बोध उदित नहीं होता, तब तक मुक्ति संभव नहीं।
मध्वाचार्य के सिद्धान्त की रूपरेखा निम्नाँकित श्लोकों में व्यक्त की गई है-
श्री मन्मध्वमते हरि: परितर: सत्यं जगत् तत्वतो,
भेदो जीवगणा हरेरनुचरा नीचोच्च भावं गता।1।
मुक्तिर्नैव सुखानुभूतिरमला भक्तिश्च तत्साधने,
ह्यक्षादि त्रितचं प्रमाण ऽ खिलाम्नावैक वेद्मो हरि:।2।
- विष्णु सर्वोच्च तत्त्व है।
- जगत सत्य है।
- ब्रह्म और जीव का भेद वास्तविक है।
- जीव ईश्वराधीन है।
- जीवों में तारतम्य है।
- आत्मा के आन्तरिक सुखों की अनुभूति ही मुक्ति है।
- शुद्ध और निर्मल भक्ति ही मोक्ष का साधन है।
- प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द तीन प्रमाण हैं।
- वेदों द्वारा ही हरि जाने जा सकते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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