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विवरण देवनागरी वर्णमाला में चवर्ग का दूसरा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, स्पर्श, अघोष और महाप्राण वर्ण है। ‘छ’ का अल्पप्राण वर्ण ‘च’ है।
व्याकरण [ संस्कृत (धातु) छो + ड / क ] पुल्लिंग- छेदन, भाग, अंश, टुकड़ा। विशेषण- छेदक, स्वच्छ, चंचल, छह (6)। उदाहरण- छठि छ राग रस रागिनी।[1]
विशेष ‘छ’ के पहले आकर मिलने वाले ‘च’ से सन्युक्त रूप ‘च्छ’ बनता है (अच्छा, स्वच्छ) और ‘श’ से ‘श्छ’ (निश्छल)।
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अन्य जानकारी संस्कृत के ‘क्ष’ वाले शब्दों के तद्भव रूपों में प्राय: ‘क्ष’ का रूप ‘च्छ’ या ‘छ’ हो जाता है। जैसे- प्रतीक्षा-प्रतीच्छा, क्षोभ-छोभ, शिक्षा-सिच्छा, क्षिति-छिति।

देवनागरी वर्णमाला में चवर्ग का दूसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, स्पर्श, अघोष और महाप्राण वर्ण है। ‘छ’ का अल्पप्राण वर्ण ‘च’ है।

विशेष-
  • ‘छ’ के पहले आकर मिलने वाले ‘च’ से सन्युक्त रूप ‘च्छ’ बनता है (अच्छा, स्वच्छ) और ‘श’ से ‘श्छ’ (निश्छल)।
  • अपने बाद आए ‘र’ और ‘व’ से ‘छ’ के सन्युक्त रूप ‘छ्र’ और छ्व बनते हैं। (उच्छ्रय, उच्छ्रवास)।
  • संस्कृत- व्याकरण के अनुसार अंत में स्वर वाले शब्द और बाद में आने वाले शब्द की, जो ‘छ’ से आरम्भ हो, संधि या समास होने पर, ‘छ’ का परिवर्तन ‘च्छ’ में हो जाता है (अनु+छेद = अनुच्छेद; स्व+छंद = स्वच्छंद, आ+छादन = आच्छादन) परंतु हिंदी में ‘च्छ’ वाले कुछ गृहीत शब्दों के अतिरिक्त प्राय: सामान्य ‘छ’ ही बना रहता है (वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया, परंतु हिंदी में वृक्ष–छाया; छत्र + छाया = छत्रच्छाया, परंतु हिंदी में छत्र-छाया)।
  • संस्कृत के ‘क्ष’ वाले शब्दों के तद्भव रूपों में प्राय: ‘क्ष’ का रूप ‘च्छ’ या ‘छ’ हो जाता है। (प्रतीक्षा-प्रतीच्छा, क्षोभ-छोभ, शिक्षा-सिच्छा, क्षिति-छिति)।
  • [ संस्कृत (धातु) छो + ड / क ] पुल्लिंग- छेदन, भाग, अंश, टुकड़ा। विशेषण- छेदक, स्वच्छ, चंचल, छह (6)। उदाहरण- छठि छ राग रस रागिनी।[2]

छ की बारहखड़ी

छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छः

छ अक्षर वाले शब्द


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूरसागर (10/3246)
  2. सूरसागर (10/3246)

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