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गाली में गरिमा घोल-घोल
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गाली में गरिमा घोल-घोल,
क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल
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क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल।
  
कितने मीठे, कितने प्यारे
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कितने मीठे, कितने प्यारे,
अर्पण के अनजाने विरोध
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अर्पण के अनजाने विरोध,
कैसे नारद के भक्ति-सूत्र
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कैसे नारद के भक्ति-सूत्र,
 
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!
 
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!
  
हिल उठे झूलने भरे झोल
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हिल उठे झूलने भरे झोल,
 
गाली में गरिमा घोल-घोल।
 
गाली में गरिमा घोल-घोल।
  
जब बेढंगे हो उठे द्वार
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जब बेढंगे हो उठे द्वार,
जब बे काबू हो उठा ज्वार
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जब बेकाबू हो उठा ज्वार,
इसने जिस दिन घनश्याम कहा
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इसने जिस दिन घनश्याम कहा,
 
वह बोल उठा परवर-दिगार।
 
वह बोल उठा परवर-दिगार।
  
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गाली में गरिमा घोल-घोल।
 
गाली में गरिमा घोल-घोल।
  
ये बोले इनका मृदुल हास्य
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ये बोले इनका मृदुल हास्य,
वे कहें कि उनके मृदुल बोल
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वे कहें कि उनके मृदुल बोल,
भूगोल चुटकियाँ देता है
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भूगोल चुटकियाँ देता है,
 
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।
 
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।
  
कुछ तो अपने फरफन्द खोल
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कुछ तो अपने फरफन्द खोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल।।
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गाली में गरिमा घोल-घोल॥
  
  

09:11, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण

गाली में गरिमा घोल-घोल -माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, गरीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

गाली में गरिमा घोल-घोल,
क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल।

कितने मीठे, कितने प्यारे,
अर्पण के अनजाने विरोध,
कैसे नारद के भक्ति-सूत्र,
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!

हिल उठे झूलने भरे झोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल।

जब बेढंगे हो उठे द्वार,
जब बेकाबू हो उठा ज्वार,
इसने जिस दिन घनश्याम कहा,
वह बोल उठा परवर-दिगार।

मणियों का भी क्या बने मोल।
गाली में गरिमा घोल-घोल।

ये बोले इनका मृदुल हास्य,
वे कहें कि उनके मृदुल बोल,
भूगोल चुटकियाँ देता है,
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।

कुछ तो अपने फरफन्द खोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल॥

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