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उपरोक्त में अन्तिम दो ग्रंथ अप्राप्य हैं। '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें '[[सूरसागर]]', '[[सूरसारावली]]', '[[साहित्य लहरी]]', 'नल-दमयन्ती' और 'ब्याहलो' के अतिरिक्त 'दशमस्कंध टीका', 'नागलीला', 'भागवत्', 'गोवर्धन लीला', 'सूरपचीसी', 'सूरसागर सार', 'प्राणप्यारी' आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।<ref name="bhds">{{cite web |url=http://www.bharatdarshan.co.nz/hindi/index.php?page=surdas |title=सूरदास |accessmonthday=[[4 नवंबर]]  |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारत दर्शन |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल भाव।
 
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल भाव।
 
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥</poem></blockquote>
 
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥</poem></blockquote>
=='सूरसागर'==
 
सूरदास की जीवनी के सम्बन्ध में कुछ बातों पर काफ़ी विवाद और मतभेद हैं। सबसे पहली बात उनके नाम के सम्बन्ध में है। 'सूरसागर' में जिस नाम का सर्वाधिक प्रयोग मिलता है, वह सूरदास अथवा उसका संक्षिप्त रूप सूर ही है। सूर और सूरदास के साथ अनेक पदों में स्याम, प्रभु और स्वामी का प्रयोग भी हुआ है परन्तु सूर-स्याम, सूरदास स्वामी, सूर-प्रभु अथवा सूरदास-प्रभु को कवि की छाप न मानकर सूर या सूरदास छाप के साथ स्याम, प्रभु या स्वामी का समास समझना चाहिये। कुछ पदों में सूरज और सूरजदास नामों का भी प्रयोग मिलता है, परन्तु ऐसे पदों के सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे सूरदास के प्रामाणिक पद हैं अथवा नहीं। 'साहित्य लहरी' के जिस पद में उसके रचयिता ने अपनी वंशावली दी है, उसमें उसने अपना असली नाम सूरजचन्द बताया है, परन्तु उस रचना अथवा कम से कम उस पद की प्रामाणिकता स्वीकार नहीं की जाती। निष्कर्षत: 'सूरसागर' के रचयिता का वास्तविक नाम सूरदास ही माना जा सकता है।
 
 
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[[सूरदास]] की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना '[[सूरसागर]]' है। एक प्रकार से 'सूरसागर' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है।<ref>'सूरसागर'</ref> 'सूरसागर' के अतिरिक्त '[[साहित्य लहरी]]' और '[[सूरसारावली|सूरसागर सारावली]]' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं, परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है।<ref>'सूरसागर सारावली' और 'साहित्य लहरी'</ref> सूरदास के नाम से कुछ अन्य तथाकथित रचनाएँ भी प्रसिद्ध हुई हैं, परन्तु वे या तो 'सूरसागर' के ही अंश हैं अथवा अन्य कवियों को रचनाएँ हैं। 'सूरसागर' के अध्ययन से विदित होता है कि [[कृष्ण]] की अनेक लीलाओं का वर्णन जिस रूप में हुआ है, उसे सहज ही [[खण्डकाव्य]] जैसे स्वतन्त्र रूप में रचा हुआ भी माना जा सकता है। प्राय: ऐसी लीलाओं को पृथक रूप में प्रसिद्धि भी मिल गयी है। इनमें से कुछ हस्तलिखित रूप में तथा कुछ मुद्रित रूप में प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए 'नागलीला' जिसमें [[कालियदह|कालिय दमन]] का वर्णन हुआ है, '[[गोवर्धन लीला]]', जिसमें गोवर्धनधारण और [[इन्द्र]] के शरणागमन का वर्णन है, 'प्राण प्यारी' जिसमें प्रेम के उच्चादर्श का पच्चीस [[दोहा|दोहों]] में वर्णन हुआ है, मुद्रित रूप में प्राप्त हैं।
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सूरदास की जीवनी के सम्बन्ध में कुछ बातों पर काफ़ी विवाद और मतभेद हैं। सबसे पहली बात उनके नाम के सम्बन्ध में है। 'सूरसागर' में जिस नाम का सर्वाधिक प्रयोग मिलता है, वह सूरदास अथवा उसका संक्षिप्त रूप 'सूर' ही है। सूर और सूरदास के साथ अनेक पदों में स्याम, प्रभु और स्वामी का प्रयोग भी हुआ है, परन्तु सूर-स्याम, सूरदास स्वामी, सूर-प्रभु अथवा सूरदास-प्रभु को [[कवि]] की छाप न मानकर सूर या सूरदास छाप के साथ स्याम, प्रभु या स्वामी का समास समझना चाहिये।
  
  
हस्तलिखित रूप में 'व्याहलों' के नाम से [[राधा]]-[[कृष्ण]] विवाह सम्बन्धी प्रसंग, 'सूरसागर सार' नाम से रामकथा और रामभक्ति सम्बन्धी प्रसंग तथा 'सूरदास जी के दृष्टकूट' नाम से कूट-शैली के पद पृथक ग्रन्थों में मिले हैं। इसके अतिरिक्त 'पद संग्रह', 'दशम स्कन्ध', 'भागवत', 'सूरसाठी' , 'सूरदास जी के पद' आदि नामों से 'सूरसागर' के पदों के विविध संग्रह पृथक रूप में प्राप्त हुए है। ये सभी 'सूरसागर के' अंश हैं। वस्तुत: 'सूरसागर' के छोटे-बड़े हस्तलिखित रूपों के अतिरिक्त उनके प्रेमी भक्तजन समय-समय पर अपनी-अपनी रुचि के अनुसार 'सूरसागर' के अंशों को पृथक रूप में लिखते-लिखाते रहे हैं। 'सूरसागर' का वैज्ञानिक रीति से सम्पादित प्रामाणिक संस्करण निकल जाने के बाद ही कहा जा सकता है कि उनके नाम से प्रचलित संग्रह और तथाकथित ग्रन्थ कहाँ तक प्रमाणित हैं।
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कुछ पदों में सूरज और सूरजदास नामों का भी प्रयोग मिलता है, परन्तु ऐसे पदों के सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे सूरदास के प्रामाणिक पद हैं अथवा नहीं। 'साहित्य लहरी' के जिस पद में उसके रचयिता ने अपनी वंशावली दी है, उसमें उसने अपना असली नाम सूरजचन्द बताया है, परन्तु उस रचना अथवा कम-से-कम उस पद की प्रामाणिकता स्वीकार नहीं की जाती। निष्कर्षत: 'सूरसागर' के रचयिता का वास्तविक नाम सूरदास ही माना जा सकता है।
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[[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-9.jpg|[[सूरदास]], सूरकुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]]|thumb|left|200px]]
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[[सूरदास]] की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना '[[सूरसागर]]' है। एक प्रकार से 'सूरसागर' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है।<ref>'सूरसागर'</ref> 'सूरसागर' के अतिरिक्त '[[साहित्य लहरी]]' और '[[सूरसारावली|सूरसागर सारावली]]' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं, परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है।<ref>'सूरसागर सारावली' और 'साहित्य लहरी'</ref> सूरदास के नाम से कुछ अन्य तथाकथित रचनाएँ भी प्रसिद्ध हुई हैं, परन्तु वे या तो 'सूरसागर' के ही अंश हैं अथवा अन्य कवियों को रचनाएँ हैं।
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13:32, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

सूरदास विषय सूची
सूरदास की रचनाएँ
Surdas.jpg
पूरा नाम महाकवि सूरदास
जन्म संवत् 1540 विक्रमी (सन् 1483 ई.) अथवा संवत 1535 विक्रमी (सन् 1478 ई.)
जन्म भूमि रुनकता, आगरा
मृत्यु संवत् 1642 विक्रमी (सन् 1585 ई.) अथवा संवत् 1620 विक्रमी (सन् 1563 ई.)
मृत्यु स्थान पारसौली
अभिभावक रामदास (पिता)
कर्म भूमि ब्रज (मथुरा-आगरा)
कर्म-क्षेत्र सगुण भक्ति काव्य
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि
विषय भक्ति
भाषा ब्रज भाषा
पुरस्कार-उपाधि महाकवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं-

  1. सूरसागर
  2. सूरसारावली
  3. साहित्य-लहरी
  4. नल-दमयन्ती
  5. ब्याहलो


उपरोक्त में अन्तिम दो ग्रंथ अप्राप्य हैं। 'नागरी प्रचारिणी सभा' द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें 'सूरसागर', 'सूरसारावली', 'साहित्य लहरी', 'नल-दमयन्ती' और 'ब्याहलो' के अतिरिक्त 'दशमस्कंध टीका', 'नागलीला', 'भागवत्', 'गोवर्धन लीला', 'सूरपचीसी', 'सूरसागर सार', 'प्राणप्यारी' आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।[1]

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज़ की पंछी, फिरि जहाज़ पै आवै॥
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
परम गंग को छाँड़ि पियासो, दुरमति कूप खनावै॥
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल भाव।
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥

सूरसागर

सूरश्याम मंदिर, सूरकुटी, सूर सरोवर, आगरा

सूरदास की जीवनी के सम्बन्ध में कुछ बातों पर काफ़ी विवाद और मतभेद हैं। सबसे पहली बात उनके नाम के सम्बन्ध में है। 'सूरसागर' में जिस नाम का सर्वाधिक प्रयोग मिलता है, वह सूरदास अथवा उसका संक्षिप्त रूप 'सूर' ही है। सूर और सूरदास के साथ अनेक पदों में स्याम, प्रभु और स्वामी का प्रयोग भी हुआ है, परन्तु सूर-स्याम, सूरदास स्वामी, सूर-प्रभु अथवा सूरदास-प्रभु को कवि की छाप न मानकर सूर या सूरदास छाप के साथ स्याम, प्रभु या स्वामी का समास समझना चाहिये।


कुछ पदों में सूरज और सूरजदास नामों का भी प्रयोग मिलता है, परन्तु ऐसे पदों के सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे सूरदास के प्रामाणिक पद हैं अथवा नहीं। 'साहित्य लहरी' के जिस पद में उसके रचयिता ने अपनी वंशावली दी है, उसमें उसने अपना असली नाम सूरजचन्द बताया है, परन्तु उस रचना अथवा कम-से-कम उस पद की प्रामाणिकता स्वीकार नहीं की जाती। निष्कर्षत: 'सूरसागर' के रचयिता का वास्तविक नाम सूरदास ही माना जा सकता है।

सूरदास, सूरकुटी, सूर सरोवर, आगरा

सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना 'सूरसागर' है। एक प्रकार से 'सूरसागर' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है।[2] 'सूरसागर' के अतिरिक्त 'साहित्य लहरी' और 'सूरसागर सारावली' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं, परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है।[3] सूरदास के नाम से कुछ अन्य तथाकथित रचनाएँ भी प्रसिद्ध हुई हैं, परन्तु वे या तो 'सूरसागर' के ही अंश हैं अथवा अन्य कवियों को रचनाएँ हैं।


'सूरसागर' के अध्ययन से विदित होता है कि श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं का वर्णन जिस रूप में हुआ है, उसे सहज ही खण्डकाव्य जैसे स्वतन्त्र रूप में रचा हुआ भी माना जा सकता है। प्राय: ऐसी लीलाओं को पृथक् रूप में प्रसिद्धि भी मिल गयी है। इनमें से कुछ हस्तलिखित रूप में तथा कुछ मुद्रित रूप में प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए 'नागलीला' जिसमें कालिय दमन का वर्णन हुआ है, 'गोवर्धन लीला', जिसमें गोवर्धनधारण और इन्द्र के शरणागमन का वर्णन है, 'प्राण प्यारी' जिसमें प्रेम के उच्चादर्श का पच्चीस दोहों में वर्णन हुआ है, मुद्रित रूप में प्राप्त हैं।


हस्तलिखित रूप में 'व्याहलों' के नाम से राधा-कृष्ण विवाह सम्बन्धी प्रसंग, 'सूरसागर सार' नाम से रामकथा और रामभक्ति सम्बन्धी प्रसंग तथा 'सूरदास जी के दृष्टकूट' नाम से कूट-शैली के पद पृथक् ग्रन्थों में मिले हैं। इसके अतिरिक्त 'पद संग्रह', 'दशम स्कन्ध', 'भागवत', 'सूरसाठी' , 'सूरदास जी के पद' आदि नामों से 'सूरसागर' के पदों के विविध संग्रह पृथक् रूप में प्राप्त हुए है। ये सभी 'सूरसागर के' अंश हैं। वस्तुत: 'सूरसागर' के छोटे-बड़े हस्तलिखित रूपों के अतिरिक्त उनके प्रेमी भक्तजन समय-समय पर अपनी-अपनी रुचि के अनुसार 'सूरसागर' के अंशों को पृथक् रूप में लिखते-लिखाते रहे हैं। 'सूरसागर' का वैज्ञानिक रीति से सम्पादित प्रामाणिक संस्करण निकल जाने के बाद ही कहा जा सकता है कि उनके नाम से प्रचलित संग्रह और तथाकथित ग्रन्थ कहाँ तक प्रमाणित हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूरदास (हिन्दी) भारत दर्शन। अभिगमन तिथि: 4 नवंबर, 2010
  2. 'सूरसागर'
  3. 'सूरसागर सारावली' और 'साहित्य लहरी'

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