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हरे हरे नित बाग़ लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
 
हरे हरे नित बाग़ लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
 
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
 
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे सन्न्यासी।
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जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
 
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
 
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
 
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
 
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।

11:43, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

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चाकर राखो जी -मीरां
मीरांबाई
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

स्याम! मने चाकर राखो जी
गिरधारी लाला! चाकर राखो जी।
चाकर रहसूं बाग़ लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला।
ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।।
हरे हरे नित बाग़ लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।

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