एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

"पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो -मीरां" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replace - "गुरू" to "गुरु")
 
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
 
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
  
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
+
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो॥
  
 
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
 
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
पंक्ति 40: पंक्ति 40:
 
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
 
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
  
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
+
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
  
 
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥  
 
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥  

14:47, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो -मीरां
मीरांबाई
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो॥

जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।

खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥

सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।

'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥

संबंधित लेख