"चैतन्य महाप्रभु के नृत्य का रहस्य" के अवतरणों में अंतर

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[[राधा|राधारानी]] की भूमिका अदा करते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु जी उनके भाव में रथयात्रा के समय रथ के पीछे रहकर भगवान जगन्नाथ जी की परीक्षा की लीला करते हैं ,'क्या श्रीकृष्ण हमारा स्मरण करते हैं? मैं यह देखना चाहता हूँ कि क्या सचमुच उन्हें हमारी परवाह है? यदि परवाह है तो वे अवश्य ही प्रतीक्षा करेंगे और यह पता लगाने की प्रयत्न करेंगे कि हम कहाँ हैं?' आश्चर्य की बात तो यह है कि श्री महाप्रभु जी जब-जब रथ के पीछे चले जाते, तब-तब रथ रुक जाता। भगवान श्रीजगन्नाथ प्रतीक्षा करते और देखने का प्रयास करते कि राधा कहाँ है? व्रजवासी कहाँ हैं? भगवान श्रीजगन्नाथ, जो कि साक्षात् [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] हैं, श्री चैतन्य महाप्रभु को यह दिव्य भाव बतलाना चाहते हैं कि यद्यपि मैं वृन्दावन से दूर था, किन्तु मैं अपने भक्तों को, विशेषतया राधारानी को भूला नहीं हूँ।<ref>लोकनाथ स्वामी (हिन्दी मासिक पत्रिका भगवद्दर्शन जनवरी 1994 से संग्रहीत)</ref><ref>{{cite web |url=https://www.facebook.com/bbgovind1/posts/605782812831124 |title= Shree Chaitanya Mahaprabhu Charitable Trust (फेसबुक वाल) |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी }}</ref>
 
[[राधा|राधारानी]] की भूमिका अदा करते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु जी उनके भाव में रथयात्रा के समय रथ के पीछे रहकर भगवान जगन्नाथ जी की परीक्षा की लीला करते हैं ,'क्या श्रीकृष्ण हमारा स्मरण करते हैं? मैं यह देखना चाहता हूँ कि क्या सचमुच उन्हें हमारी परवाह है? यदि परवाह है तो वे अवश्य ही प्रतीक्षा करेंगे और यह पता लगाने की प्रयत्न करेंगे कि हम कहाँ हैं?' आश्चर्य की बात तो यह है कि श्री महाप्रभु जी जब-जब रथ के पीछे चले जाते, तब-तब रथ रुक जाता। भगवान श्रीजगन्नाथ प्रतीक्षा करते और देखने का प्रयास करते कि राधा कहाँ है? व्रजवासी कहाँ हैं? भगवान श्रीजगन्नाथ, जो कि साक्षात् [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] हैं, श्री चैतन्य महाप्रभु को यह दिव्य भाव बतलाना चाहते हैं कि यद्यपि मैं वृन्दावन से दूर था, किन्तु मैं अपने भक्तों को, विशेषतया राधारानी को भूला नहीं हूँ।<ref>लोकनाथ स्वामी (हिन्दी मासिक पत्रिका भगवद्दर्शन जनवरी 1994 से संग्रहीत)</ref><ref>{{cite web |url=https://www.facebook.com/bbgovind1/posts/605782812831124 |title= Shree Chaitanya Mahaprabhu Charitable Trust (फेसबुक वाल) |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी }}</ref>
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[[चित्र:Chaitanya-Mahaprabhu-ji.jpg|thumb|250px|left|चैतन्य महाप्रभु]]
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भगवान चैतन्य महाप्रभु के लिए भगवद-भजन ही सर्वस्व था। वे [[नृत्य]] करते हुए [[कीर्तन]] करते और मग्न रहते थे। उन्हें भौतिक दुनिया के लोगों से सरोकार नहीं रहता था और इसी कारण उनके जान-पहचान का दायरा सीमित था। बात उन दिनों की है, जब [[चैतन्य महाप्रभु]] श्रीवास पंडित के आवास में रहते थे। श्रीवास पंडित के आंगन में उनका नृत्य-कीर्तन चलता रहता। श्रीवास पंडित के घर के सारे सदस्य और नौकर-चाकर चैतन्य महाप्रभु को जानते थे और उनके प्रति श्रद्धा-भाव रखते थे, किंतु महाप्रभु कभी आगे रहकर किसी से बातचीत नहीं करते थे। वहीं पर एक सेविका काम करती थीं, जो चैतन्य महाप्रभु के लिए प्रतिदिन [[जल]] लेकर आती थी। महाप्रभु ने तो कभी उस पर ध्यान नहीं दिया, किंतु वह उनके प्रति अत्यंत श्रद्धा-भाव से भरी हुई थी और सोचती थी कभी तो भगवान उसे आशीष देंगे।
  
भगवान चैतन्य महाप्रभु के लिए भगवद-भजन ही सर्वस्व था। वे [[नृत्य]] करते हुए [[कीर्तन]] करते और मग्न रहते थे। उन्हें भौतिक दुनिया के लोगों से सरोकार नहीं रहता था और इसी कारण उनके जान-पहचान का दायरा सीमित था। बात उन दिनों की है, जब [[चैतन्य महाप्रभु]] श्रीवास पंडित के आवास में रहते थे। श्रीवास पंडित के आंगन में उनका नृत्य-कीर्तन चलता रहता। श्रीवास पंडित के घर के सारे सदस्य और नौकर-चाकर चैतन्य महाप्रभु को जानते थे और उनके प्रति श्रद्धा-भाव रखते थे, किंतु महाप्रभु कभी आगे रहकर किसी से बातचीत नहीं करते थे। वहीं पर एक सेविका काम करती थीं, जो चैतन्य महाप्रभु के लिए प्रतिदिन [[जल]] लेकर आती थी। महाप्रभु ने तो कभी उस पर ध्यान नहीं दिया, किंतु वह उनके प्रति अत्यंत श्रद्धा-भाव से भरी हुई थी और सोचती थी कभी तो भगवान उसे आशीष देंगे। उसकी सेवा तो साधारण थी, किंतु धैर्य अटल था और इस कारण विश्वास भी प्रबल था। अंतत: एक दिन महाप्रभु को बहुत गर्मी लगने लगी और उन्होंने [[स्नान]] करने की इच्छा प्रकट की। तब उपस्थित भक्तों ने उसी सेविका को जल लाने के लिए कहा। वह दौड़-दौड़कर अनेक घड़े भरकर लाई और फिर श्रीवास आंगन में भक्तों ने मिलकर महाप्रभु को स्नान कराया। उस दिन महाप्रभु ने स्वयं के लिए इतना परिश्रम करने वाली सेविका को देखा, उसके श्रद्धा भाव सेवा-कर्म को पहचाना और उसके सिर पर हाथ रखकर हार्दिक आशीर्वाद दिया। सेविका धन्य हो गई, क्योंकि उसका अभिलाषित सुख उसे प्राप्त हो गया। धैर्य धारण करने पर मन में विश्वास की ऐसी अखंड जोत जलती है, जो कृपा में अवश्य ही परिणति होती है। वस्तुत: धैर्य से प्राप्त विश्वास ही निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/news/MP-OTH-MAT-latest-dhar-news-023004-593799-NOR.html |title=विश्वास से पाया महाप्रभु का आशीर्वाद |accessmonthday=15 मई |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दैनिक भास्कर |language=हिन्दी }}</ref>
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13:17, 7 सितम्बर 2016 का अवतरण

चैतन्य महाप्रभु विषय सूची
चैतन्य महाप्रभु के नृत्य का रहस्य
चैतन्य महाप्रभु
पूरा नाम चैतन्य महाप्रभु
अन्य नाम विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर
जन्म 18 फ़रवरी सन् 1486 (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा)
जन्म भूमि नवद्वीप (नादिया), पश्चिम बंगाल
मृत्यु सन् 1534
मृत्यु स्थान पुरी, उड़ीसा
अभिभावक जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी
पति/पत्नी लक्ष्मी देवी और विष्णुप्रिया
कर्म भूमि वृन्दावन, मथुरा
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण के मिलन में ही श्रीजगन्नाथ पुरी में श्री चैतन्य महाप्रभु जी के अभिनय का रहस्य छुपा हुआ है। श्रीमहाप्रभु के कुछ ही पार्षद इसे समझते हैं। इस्कान के संस्थापक ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज जी का कहना था कि रथयात्रा उत्सव का सारा भाव श्रीकृष्ण को कुरुक्षेत्र से वृन्दावन वापस लाने का है। पुरी स्थित श्रीजगन्नाथ जी का भव्य मन्दिर द्वारका राज्य को प्रदर्शित करता है, जहाँ श्रीकृष्ण परम-ऐश्वर्य का भोग करते हैं तथा गुण्डिचा मन्दिर, वृन्दावन का रूप है, जहाँ भगवान को लाया जाता है, जो कि उनकी मधुरतम लीलाओं की जगह है।


राधारानी की भूमिका अदा करते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु जी उनके भाव में रथयात्रा के समय रथ के पीछे रहकर भगवान जगन्नाथ जी की परीक्षा की लीला करते हैं ,'क्या श्रीकृष्ण हमारा स्मरण करते हैं? मैं यह देखना चाहता हूँ कि क्या सचमुच उन्हें हमारी परवाह है? यदि परवाह है तो वे अवश्य ही प्रतीक्षा करेंगे और यह पता लगाने की प्रयत्न करेंगे कि हम कहाँ हैं?' आश्चर्य की बात तो यह है कि श्री महाप्रभु जी जब-जब रथ के पीछे चले जाते, तब-तब रथ रुक जाता। भगवान श्रीजगन्नाथ प्रतीक्षा करते और देखने का प्रयास करते कि राधा कहाँ है? व्रजवासी कहाँ हैं? भगवान श्रीजगन्नाथ, जो कि साक्षात् श्रीकृष्ण हैं, श्री चैतन्य महाप्रभु को यह दिव्य भाव बतलाना चाहते हैं कि यद्यपि मैं वृन्दावन से दूर था, किन्तु मैं अपने भक्तों को, विशेषतया राधारानी को भूला नहीं हूँ।[1][2]

चैतन्य महाप्रभु

भगवान चैतन्य महाप्रभु के लिए भगवद-भजन ही सर्वस्व था। वे नृत्य करते हुए कीर्तन करते और मग्न रहते थे। उन्हें भौतिक दुनिया के लोगों से सरोकार नहीं रहता था और इसी कारण उनके जान-पहचान का दायरा सीमित था। बात उन दिनों की है, जब चैतन्य महाप्रभु श्रीवास पंडित के आवास में रहते थे। श्रीवास पंडित के आंगन में उनका नृत्य-कीर्तन चलता रहता। श्रीवास पंडित के घर के सारे सदस्य और नौकर-चाकर चैतन्य महाप्रभु को जानते थे और उनके प्रति श्रद्धा-भाव रखते थे, किंतु महाप्रभु कभी आगे रहकर किसी से बातचीत नहीं करते थे। वहीं पर एक सेविका काम करती थीं, जो चैतन्य महाप्रभु के लिए प्रतिदिन जल लेकर आती थी। महाप्रभु ने तो कभी उस पर ध्यान नहीं दिया, किंतु वह उनके प्रति अत्यंत श्रद्धा-भाव से भरी हुई थी और सोचती थी कभी तो भगवान उसे आशीष देंगे।

उसकी सेवा तो साधारण थी, किंतु धैर्य अटल था और इस कारण विश्वास भी प्रबल था। अंतत: एक दिन महाप्रभु को बहुत गर्मी लगने लगी और उन्होंने स्नान करने की इच्छा प्रकट की। तब उपस्थित भक्तों ने उसी सेविका को जल लाने के लिए कहा। वह दौड़-दौड़कर अनेक घड़े भरकर लाई और फिर श्रीवास आंगन में भक्तों ने मिलकर महाप्रभु को स्नान कराया। उस दिन महाप्रभु ने स्वयं के लिए इतना परिश्रम करने वाली सेविका को देखा, उसके श्रद्धा भाव सेवा-कर्म को पहचाना और उसके सिर पर हाथ रखकर हार्दिक आशीर्वाद दिया। सेविका धन्य हो गई, क्योंकि उसका अभिलाषित सुख उसे प्राप्त हो गया। धैर्य धारण करने पर मन में विश्वास की ऐसी अखंड जोत जलती है, जो कृपा में अवश्य ही परिणति होती है। वस्तुत: धैर्य से प्राप्त विश्वास ही निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचाता है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लोकनाथ स्वामी (हिन्दी मासिक पत्रिका भगवद्दर्शन जनवरी 1994 से संग्रहीत)
  2. Shree Chaitanya Mahaprabhu Charitable Trust (फेसबुक वाल) (हिन्दी)। ।
  3. विश्वास से पाया महाप्रभु का आशीर्वाद (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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