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[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu.jpg|चैतन्य महाप्रभु<br /> Chaitanya Mahaprabhu|thumb|250px]]
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{{चैतन्य महाप्रभु विषय सूची}}
चैतन्य महाप्रभु [[भक्तिकाल]] के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के [[गौड़ीय संप्रदाय]] की आधारशिला रखी । भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त [[वृन्दावन]] को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया । चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन 1486 की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के [[नवद्वीप]] (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब मायापुर कहा जाता है । बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें निमाई कहकर पुकारते थे । गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर आदि भी कहते थे । चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई । उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है ।
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{{सूचना बक्सा साहित्यकार
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|चित्र=Chetanya-Mahaprabhu.jpg
इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे । साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे । इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था । बहुत कम उम्र में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे । इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया । निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद् चिंतन में लीन रहकर राम व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे । 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ । सन 1505 में सर्प दंश से पत्नी की मृत्यु हो गई । वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ । जब ये किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया । सन 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने गया गए, तब वहां इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई । उन्होंने निमाई से कृष्ण-कृष्ण रटने को कहा । तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे । भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए । सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने । इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की । निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से [[ढोल|ढोलक]], [[मृदंग]], [[झांझ|झाँझ]], [[मंजीरे]] आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया । 'हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे । हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे` नामक अठारह शब्दीय कीर्तन महामन्त्र निमाई की ही देन है ।
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|चित्र का नाम=चैतन्य महाप्रभु  
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|पूरा नाम=चैतन्य महाप्रभु
इनका पूरा नाम विश्वम्भर विश्र और कहीं श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र मिलता है। चैतन्य ने चौबीस वर्ष की उम्र में वैवाहिक जीवन त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था।  वे कर्मकांड के विरोधी और श्रीकृष्ण के प्रति आस्था के समर्थक थे।  चैतन्य मत का एक नाम 'गोडीय वैष्णव मत' भी है।  चैतन्य ने अपने जीवन का शेष भाग प्रेम और भक्ति का प्रचार करने में लगाया।  उनके पंथ का द्वार सभी के लिए खुला था।  हिन्दू और मुसलमान सभी ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। उनके अनुयायी चैतन्यदेव को [[विष्णु के अवतार|विष्णु का अवतार]] मानते हैं।  अपने जीवन के अठारह वर्ष उन्होंने उड़ीसा में बिताये।  छह वर्ष तक वे दक्षिण भारत, वृन्दावन आदि स्थानों में विचरण करते रहे।  48 वर्ष की अल्पायु में उनका देहांत हो गया।  मृदंग की ताल पर कीर्तन करने वाले चैतन्य के अनुयायियों की संख्या आज भी पूरे [[भारत]] में पर्याप्त है।
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|अन्य नाम=विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर
==चैतन्य सम्प्रदाय==
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|जन्म= [[18 फ़रवरी]] सन् 1486<ref name="Gaudiya"/> ([[फाल्गुन]] [[शुक्लपक्ष|शुक्ल]] [[पूर्णिमा]])
{{मुख्य|चैतन्य सम्प्रदाय}}
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|जन्म भूमि=[[नवद्वीप]] ([[नादिया ज़िला|नादिया]]), [[पश्चिम बंगाल]]
*इस संप्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु हैं।
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|मृत्यु=सन् 1534
*तात्विक सिद्धांत की दृष्टि से इसे अचिंत्य भेदाभेदवादी संप्रदाय कहते हैं।
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|मृत्यु स्थान=[[पुरी]], [[ओड़िशा|उड़ीसा]]
*इसके अनुसार परमतत्त्व एक ही हैं जो [[सच्चिदानंद स्वरूप]] हैं, जो अनंत शक्ति संपन्न तथा अनादि है।
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|अभिभावक=जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी
*उपाधि भेद के द्वारा उसको परमात्मा, ब्रह्म औ भगवान कहा गया है।
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|पालक माता-पिता=
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|पति/पत्नी=लक्ष्मी देवी और [[विष्णुप्रिया]]
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|संतान=
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|कर्म भूमि=[[वृन्दावन]]
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|कर्म-क्षेत्र=
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|मुख्य रचनाएँ=
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|विषय=कृष्ण भक्ति
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|भाषा=
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|विद्यालय=
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|शिक्षा=
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|पुरस्कार-उपाधि=
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|प्रसिद्धि=चैतन्य सगुण भक्ति को महत्त्व देते थे। भगवान का वह सगुण रूप, जो अपरिमेय शक्तियों और गुणों से पूर्ण है, उन्हें मान्य रहा।
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|विशेष योगदान=
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|नागरिकता=भारतीय
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|संबंधित लेख=
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|शीर्षक 1=
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|पाठ 1=
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|शीर्षक 2=
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|पाठ 2=
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|अन्य जानकारी=महाप्रभु चैतन्य के विषय में [[वृन्दावनदास ठाकुर|वृन्दावनदास]] द्वारा रचित '[[चैतन्य भागवत]]' नामक [[ग्रन्थ]] में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण [[कृष्णदास कविराज|कृष्णदास]] ने 1590 में '[[चैतन्य चरितामृत]]' शीर्षक से लिखा था। [[प्रभुदत्त ब्रह्मचारी|श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]] द्वारा लिखित 'श्री श्री चैतन्य-चरितावली' गीता प्रेस गोरखपुर ने छापी है।
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|बाहरी कड़ियाँ=[http://pustak.org/bs/home.php?bookid=8200 चैतन्य महाप्रभु -अमृतलाल नागर]
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|अद्यतन=
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'''चैतन्य महाप्रभु''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Chaitanya Mahaprabhu'',  जन्म: 18 फ़रवरी सन् 1486<ref name="Gaudiya"/> - मृत्यु: सन् 1534) [[भक्तिकाल]] के प्रमुख संतों में से एक हैं। इन्होंने [[वैष्णव|वैष्णवों]] के [[चैतन्य सम्प्रदाय|गौड़ीय संप्रदाय]] की आधारशिला रखी। भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊँच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त [[वृन्दावन]] को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। महाप्रभु चैतन्य के विषय में [[वृन्दावनदास ठाकुर|वृन्दावनदास]] द्वारा रचित '[[चैतन्य भागवत]]' नामक [[ग्रन्थ]] में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण [[कृष्णदास कविराज|कृष्णदास]] ने 1590 में '[[चैतन्य चरितामृत]]' शीर्षक से लिखा था। [[प्रभुदत्त ब्रह्मचारी|श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]] द्वारा लिखित 'श्री श्री चैतन्य-चरितावली' [[गीता प्रेस गोरखपुर]] ने छापी है।
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==परिचय==
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{{main|चैतन्य महाप्रभु का परिचय}}
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चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन् 18 फ़रवरी सन् 1486<ref name="Gaudiya">{{cite web |url=http://gaudiyahistory.com/caitanya-mahaprabhu/ |title=Chaitanya Mahaprabhu |accessmonthday=15 मई |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=Gaudiya History |language=अंग्रेज़ी }} </ref>की [[फाल्गुन]] [[शुक्लपक्ष|शुक्ल]] [[पूर्णिमा]] को [[पश्चिम बंगाल]] के [[नवद्वीप]] ([[नादिया]]) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब 'मायापुर' कहा जाता है। बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे। चैतन्य महाप्रभु के द्वारा [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय]] की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत् तक में है। कवि कर्णपुर कृत 'चैतन्य चंद्रोदय' के अनुसार इन्होंने केशव भारती नामक संन्यासी से [[दीक्षा]] ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व माँ का नाम शचि देवी था।
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==जन्म काल==
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{{main|चैतन्य महाप्रभु का जन्म काल}}
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चैतन्य के जन्मकाल के कुछ पहले सुबुद्धि राय [[गौड़]] के शासक थे। उनके यहाँ [[अलाउद्दीन हुसैनशाह|हुसैनख़ाँ]] नामक एक पठान नौकर था। राजा सुबुद्धिराय ने किसी राजकाज को सम्पादित करने के लिए उसे रुपया दिया। हुसैनख़ाँ ने वह रकम खा पीकर बराबर कर दी। राजा सुबुद्धिराय को जब यह पता चला तो उन्होंने दंड स्वरूप हुसैनख़ाँ की पीठ पर कोड़े लगवाये। हुसैनख़ाँ चिढ़ गया। उसने षड्यन्त्र रच कर राजा सुबुद्धिराय को हटा दिया। अब हुसैन ख़ाँ पठान गौड़ का राजा था और सुबुद्धिराय उसका कैदी। हुसैनख़ाँ की पत्नी ने अपने पति से कहा कि पुराने अपमान का बदला लेने के लिए राजा को मार डालो। परन्तु हुसैनख़ाँ ने ऐसा न किया। वह बहुत ही धूर्त था, उसने राजा को जबरदस्ती [[मुसलमान]] के हाथ से पकाया और लाया हुआ भोजन करने पर बाध्य किया। वह जानता था कि इसके बाद कोई [[हिन्दू]] सुबुद्धिराय को अपने समाज में शामिल नहीं करेगा। इस प्रकार सुबुद्धिराय को जीवन्मृत ढंग से अपमान भरे दिन बिताने के लिए ‘एकदम मुक्त’ छोड़कर हुसैनख़ाँ हुसैनशाह बन गया।
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==विवाह==
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{{main|चैतन्य महाप्रभु का विवाह}}
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निमाई (चैतन्य महाप्रभु) बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका [[विवाह]] लक्ष्मी देवी के साथ हुआ। सन् 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री [[विष्णुप्रिया]] के साथ हुआ।
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==कृष्ण भक्ति==
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{{main|चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति}}
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चैतन्य को इनके अनुयायी [[कृष्ण]] का [[अवतार]] भी मानते रहे हैं। सन् 1509 में जब ये अपने पिता का [[श्राद्ध]] करने [[बिहार]] के [[गया]] नगर में गए, तब वहां इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई। उन्होंने निमाई से 'कृष्ण-कृष्ण' रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की [[भक्ति]] में लीन रहने लगे। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए। सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने। इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की। निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से [[ढोल|ढोलक]], [[मृदंग]], [[झांझ|झाँझ]], [[मंजीरा|मंजीरे]] आदि [[वाद्य यंत्र]] बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर 'हरि नाम संकीर्तन' करना प्रारंभ किया।
  
==वीथिका==
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<div align="center">'''[[चैतन्य महाप्रभु का परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div>
चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-1.jpg|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Chetanya Mahaprabhu Temple, Govardhan, Mathura
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चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Chetanya Mahaprabhu Temple, Govardhan, Mathura
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चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-4.jpg|गुरु पूर्णिमा पर चैतन्य वैष्णव संघ के श्रद्धालु, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Of Chetanya Vaishnav Group On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-5.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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<references/>
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-26.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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==बाहरी कड़ियाँ==
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-7.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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*[http://panchjanya.com/arch/2007/9/23/File27.htm चैतन्य महाप्रभु]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-27.jpg|गुरु पूर्णिमा पर शंख बजाती श्रद्धालु युवती, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Lady Blowing Conch On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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*[http://www.vichar.bhadas4media.com/sahitya-jagat/1638-2011-10-17-11-00-13.html गौरांग ने आबाद किया कृष्‍ण का वृन्‍दावन ]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-8.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
+
*[http://www.gaudiya.com/ Gaudiya Vaishnava]
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-10.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का भजन-कीर्तन, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan, Mathura
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*[http://www.dlshq.org/saints/gauranga.htm Lord Gauranga (Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu)]
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*[http://gaudiyahistory.com/caitanya-mahaprabhu/ Gaudiya History]
{{प्रचार}}
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*[http://www.iskcontruth.com/2015/02/sri-gaura-purnima-special-scriptures.html Sri Gaura Purnima Special: Scriptures that Reveal Lord Chaitanya’s Identity as Lord Krishna]
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*[http://www.philtar.ac.uk/encyclopedia/hindu/devot/gauvai.html Gaudiya Vaishnavas]
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*[http://www.hindisahityadarpan.in/2013/05/chaitanya-mahaprabhu-life-history-iskon.html चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय]
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*[http://radhakripa.com/radhakripa/radhakripa.php?pageid=book&book=chaitnya_sandesh&article=introduction परिचय- चैतन्य महाप्रभु ]
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*[http://pustak.org/bs/home.php?bookid=8200  जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (लेखक- अमृतलाल नागर)]
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*[http://hindi.speakingtree.in/spiritual-blogs/seekers/god-and-i/32526 श्री संत चैतन्य महाप्रभु]
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*[http://sk1960.blogspot.in/2013/03/blog-post.html चैतन्य महाप्रभु यदि वृन्दावन न आये होते तो शायद ही कोई पहचान पाता कान्हा की लीला स्थली को]
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*[https://www.youtube.com/watch?v=9p99dnKpTVA Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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11:44, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

चैतन्य महाप्रभु विषय सूची
चैतन्य महाप्रभु
चैतन्य महाप्रभु
पूरा नाम चैतन्य महाप्रभु
अन्य नाम विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर
जन्म 18 फ़रवरी सन् 1486[1] (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा)
जन्म भूमि नवद्वीप (नादिया), पश्चिम बंगाल
मृत्यु सन् 1534
मृत्यु स्थान पुरी, उड़ीसा
अभिभावक जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी
पति/पत्नी लक्ष्मी देवी और विष्णुप्रिया
कर्म भूमि वृन्दावन
विषय कृष्ण भक्ति
प्रसिद्धि चैतन्य सगुण भक्ति को महत्त्व देते थे। भगवान का वह सगुण रूप, जो अपरिमेय शक्तियों और गुणों से पूर्ण है, उन्हें मान्य रहा।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था। श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा लिखित 'श्री श्री चैतन्य-चरितावली' गीता प्रेस गोरखपुर ने छापी है।
बाहरी कड़ियाँ चैतन्य महाप्रभु -अमृतलाल नागर
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

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चैतन्य महाप्रभु (अंग्रेज़ी:Chaitanya Mahaprabhu, जन्म: 18 फ़रवरी सन् 1486[1] - मृत्यु: सन् 1534) भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी। भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊँच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृन्दावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था। श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा लिखित 'श्री श्री चैतन्य-चरितावली' गीता प्रेस गोरखपुर ने छापी है।

परिचय

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चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन् 18 फ़रवरी सन् 1486[1]की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब 'मायापुर' कहा जाता है। बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे। चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत् तक में है। कवि कर्णपुर कृत 'चैतन्य चंद्रोदय' के अनुसार इन्होंने केशव भारती नामक संन्यासी से दीक्षा ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व माँ का नाम शचि देवी था।

जन्म काल

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चैतन्य के जन्मकाल के कुछ पहले सुबुद्धि राय गौड़ के शासक थे। उनके यहाँ हुसैनख़ाँ नामक एक पठान नौकर था। राजा सुबुद्धिराय ने किसी राजकाज को सम्पादित करने के लिए उसे रुपया दिया। हुसैनख़ाँ ने वह रकम खा पीकर बराबर कर दी। राजा सुबुद्धिराय को जब यह पता चला तो उन्होंने दंड स्वरूप हुसैनख़ाँ की पीठ पर कोड़े लगवाये। हुसैनख़ाँ चिढ़ गया। उसने षड्यन्त्र रच कर राजा सुबुद्धिराय को हटा दिया। अब हुसैन ख़ाँ पठान गौड़ का राजा था और सुबुद्धिराय उसका कैदी। हुसैनख़ाँ की पत्नी ने अपने पति से कहा कि पुराने अपमान का बदला लेने के लिए राजा को मार डालो। परन्तु हुसैनख़ाँ ने ऐसा न किया। वह बहुत ही धूर्त था, उसने राजा को जबरदस्ती मुसलमान के हाथ से पकाया और लाया हुआ भोजन करने पर बाध्य किया। वह जानता था कि इसके बाद कोई हिन्दू सुबुद्धिराय को अपने समाज में शामिल नहीं करेगा। इस प्रकार सुबुद्धिराय को जीवन्मृत ढंग से अपमान भरे दिन बिताने के लिए ‘एकदम मुक्त’ छोड़कर हुसैनख़ाँ हुसैनशाह बन गया।

विवाह

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निमाई (चैतन्य महाप्रभु) बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मी देवी के साथ हुआ। सन् 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ।

कृष्ण भक्ति

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चैतन्य को इनके अनुयायी कृष्ण का अवतार भी मानते रहे हैं। सन् 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया नगर में गए, तब वहां इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई। उन्होंने निमाई से 'कृष्ण-कृष्ण' रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए। सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने। इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की। निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झाँझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर 'हरि नाम संकीर्तन' करना प्रारंभ किया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 Chaitanya Mahaprabhu (अंग्रेज़ी) Gaudiya History। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2015।

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