अमोहिनी

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अमोहिनी प्राचीन भारत में महाक्षत्रप शोडास के शासन काल में एक जैन भिक्षु की शिष्या थी।

  • राजुबुल के बाद उसका पुत्र शोडास (लगभग ई. पूर्व 80-57) शासनाधिकारी हुआ था। इस सिंहशीर्ष के शिलालेख पर शोडास की उपाधि 'क्षत्रप' अंकित है, किन्तु मथुरा में ही मिले अन्य शिलालेखों में उसे 'महाक्षत्रप' कहा गया है। कंकाली टीला, मथुरा से प्राप्त एक शिलापट्ट पर संवत (?) 72 का ब्रह्मी लेख है, जिसके अनुसार स्वामी महाक्षत्रप शोडास के शासनकाल में जैन भिक्षु की शिष्या अमोहिनी ने एक जैन विहार की स्थापना की थी।[1]
  • शुंग और शक क्षत्रप काल में पहुंचते-पहुंचते मथुरा को कला-केन्द्र का रूप प्राप्त हो गया था। जैनों का देवनिर्मित स्तूप, जो आज के कंकाली टीले पर खड़ा था, उस काल में विद्यमान था। इस समय के तीन लेख, जिनका सम्बन्ध जैन धर्म से है, अब तक मथुरा से मिल चुके हैं। यहाँ से इस काल की कई कलाकृतियां भी प्राप्त हो चुकी हैं, जिनमें बोधिसत्त्व की विशाल प्रतिमा,[2] अमोहिनी का शिलापट्ट,[3] कई वेदिका स्तम्भ जिनमें से कुछ पर जातक कथाएं तथा यक्षणियों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, प्रमुख हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रज का शक कुषाण काल
  2. लखनऊ संग्रहालय, बी 12 बी
  3. लखनऊ संग्रहालय, जे.1

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