पूज्यपाद

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आचार्य पूज्यपाद (अंग्रेज़ी: Acharya Pujyapada) विक्रम संवत की छठी और ईसा की पाँचवीं शती के बहुश्रुत विद्वान एवं जैन आचार्य थे। जैन मुनि बनने से पूर्व इनका नाम देवनन्दि था।

परिचय

पूज्यपाद के पिता का नाम माधव भट्ट और माता का नाम श्रीदेवी था। ये कर्नाटक के कोले नामक ग्राम के निवासी थे और ब्राह्मण कुल के भूषण थे। इनका घर का नाम देवनन्दि था। ये एक दिन अपनी वाटिका में विचरण कर रहे थे कि उनकी दृष्टि सांप के मुख में फँसे हुए मेंढ़क पर पड़ी, इससे उन्हें विरक्ति हो गयी और ये जैनेश्वरी दीक्षा लेकर महामुनि हो गए। ये अपनी तपस्या के प्रभाव से महान प्रभावशाली मुनि हुए हैं। कथा में ऐसा वर्णन आता है कि ये अपने पैरों में गगनगामी लेप लगाकर विदेह क्षेत्र में जाया करते थे।

समय काल

पूज्यपाद के समय के सम्बन्ध में विशेष विवाद नहीं है। आचार्य अकलंक देव ने अपने तत्त्वार्थवार्तिक में सर्वार्थसिद्धि के अनेकों वाक्यों को वार्तिक का रूप दिया है। शब्दानुशासन सम्बन्धी कथन की पुष्टि के लिए इनके जैनेन्द्र व्याकरण के सूत्रों को प्रमाण रूप में उपस्थित किया है। अत: पूज्यपाद अकलंक देव के पूर्ववर्ती हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। इन्होंने अपने समाधिशतक में तो कुन्दकुन्ददेव के मोक्षपाहुड की अनेकों गाथायें ज्यों की त्यों संस्कृत में भाषान्तररूप की हैं तथा गृद्धपिच्छाचार्य का समय विक्रम की द्वितीय शताब्दी का अन्तिम पाद है। अत: पूज्यपाद का समय विक्रम संवत् 300 के पश्चात् ही संभव है।[1]

पूज्यपाद स्वामी ने अपने जैनेन्द्र व्याकरण सूत्रों में भूतबलि, समन्तभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र और प्रभाचन्द्र नामक पूर्वाचार्यों का निर्देश किया है। नन्दिसेन की पट्टावली में देवनंदि का समय विक्रम सं. 258-308 तक अंकित किया है।

रचनाएँ

पूज्यपाद आचार्य द्वारा रचित अब तक निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं-

  1. दशभक्ति
  2. जन्माभिषेक (पंचामृताभिषेक)
  3. सर्वार्थसिद्धि
  4. समाधितन्त्र
  5. इष्टोपदेश
  6. जैनेन्द्र व्याकरण
  7. सिद्धिप्रिय स्तोत्र

वर्तमान में एक जन्माभिषेक मुद्रित ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है, इसे पूज्यपाद द्वारा रचित माना गया है। इसकी रचना प्रौढ़ और प्रवाहमय है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी (हिंदी) hi.encyclopediaofjainism.com। अभिगमन तिथि: 16 मई, 2020।

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