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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि -डॉ. प्रभाकर माचवे]]'''</div>
 
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि -डॉ. प्रभाकर माचवे]]'''</div>
1976 में गत [[विश्व हिन्दी सम्मेलन]] के बाद आज तक, छह वर्षों में अनेक श्रेष्ठ और ज्येष्ठ, प्रवीण और नवीन भारतीय साहित्यकार, भाषावैज्ञानिक, हिन्दीप्रेमी अहिन्दी-भाषी विद्वान, कवि, उपन्यासकार, नाटककार आदि को क्रूर काल हम में से छीनकर ले गया। उन सब का स्मरण एक लेख में करना सम्भव नहीं। फिर भी विश्व हिन्दी सम्मेलन ने जिनका सम्मान प्रथम और द्वितीय सम्मेलनों में किया था और जो सक्रिय रूप से इस संस्था से संबंद्ध थे, जिनके आशीर्वादों की छत्रछाया में [[हिन्दी]] का कार्य बढ़ा, ऐसे सब सहृदय साहित्य-सेवकों को हमारी विनम्र प्रणाम-श्रद्धांजलि निवेदित है। '''[[स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि -डॉ. प्रभाकर माचवे|.... और पढ़ें]]'''
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[[1976]] में गत [[विश्व हिन्दी सम्मेलन]] के बाद आज तक, छह वर्षों में अनेक श्रेष्ठ और ज्येष्ठ, प्रवीण और नवीन भारतीय साहित्यकार, भाषावैज्ञानिक, हिन्दीप्रेमी अहिन्दी-भाषी विद्वान, कवि, उपन्यासकार, नाटककार आदि को क्रूर काल हम में से छीनकर ले गया। उन सब का स्मरण एक लेख में करना सम्भव नहीं। फिर भी विश्व हिन्दी सम्मेलन ने जिनका सम्मान प्रथम और द्वितीय सम्मेलनों में किया था और जो सक्रिय रूप से इस संस्था से संबंद्ध थे, जिनके आशीर्वादों की छत्रछाया में [[हिन्दी]] का कार्य बढ़ा, ऐसे सब सहृदय साहित्य-सेवकों को हमारी विनम्र प्रणाम-श्रद्धांजलि निवेदित है। '''[[स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि -डॉ. प्रभाकर माचवे|.... और पढ़ें]]'''
 
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ट्रेन आई और भगदड़ मच गयी -श्रीकृष्ण पांडेय]]'''</div>
 
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ट्रेन आई और भगदड़ मच गयी -श्रीकृष्ण पांडेय]]'''</div>
 
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<div id="rollnone"> [[चित्र:Train.jpg |right|border|110px|link=ट्रेन आई और भगदड़ मच गयी -श्रीकृष्ण पांडेय]] </div>
1895 में जन्म लिया हुआ सिनेमा 100 से ज्यादा वर्ष पार कर चुका है। मजे की बात यह है कि सिनेमा ईजाद होने के मात्र 6 माह बाद [[भारत]] पहुँच गया। भारत में लूमिएर बंधुओं का पहला प्रदर्शन [[मुंबई]] के वाट्सन होटल में 7 जुलाई 1896 में किया गया था। इस प्रदर्शन में [[भारतीय सिनेमा]] के पितामह [[दादा साहब फाल्के]] भी उपस्थित थे। चूंकि लुमिएर बंधुओं ने व्यापार के उद्देश्य से इस तकनीकी की खोज की थी तो उनका इरादा इसे जल्द से जल्द पूरे विश्व में दिखाकर ज्यादा से ज्यादा धन कमाना था। इन सौ से अधिक वर्षों में सिनेमा कहाँ से कहाँ पहुँच गया है कहने की आवश्यकता नहीं। आज हालीवुड से [[बॉलीवुड]] तक एक से बढ़कर एक विशेष तकनीक की फिल्में बन रही है। लेकिन सिनेमा के जन्म से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियाँ जो बहुत ही अद्भुत एवं रोमांचक है शायद ही आप जानते हों। '''[[ट्रेन आई और भगदड़ मच गयी -श्रीकृष्ण पांडेय|.... और पढ़ें]]'''
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[[1895]] में जन्म लिया हुआ सिनेमा 100 से ज्यादा वर्ष पार कर चुका है। मजे की बात यह है कि सिनेमा ईजाद होने के मात्र 6 माह बाद [[भारत]] पहुँच गया। भारत में लूमिएर बंधुओं का पहला प्रदर्शन [[मुंबई]] के वाट्सन होटल में 7 जुलाई 1896 में किया गया था। इस प्रदर्शन में [[भारतीय सिनेमा]] के पितामह [[दादा साहब फाल्के]] भी उपस्थित थे। चूंकि लुमिएर बंधुओं ने व्यापार के उद्देश्य से इस तकनीकी की खोज की थी तो उनका इरादा इसे जल्द से जल्द पूरे विश्व में दिखाकर ज्यादा से ज्यादा धन कमाना था। इन सौ से अधिक वर्षों में सिनेमा कहाँ से कहाँ पहुँच गया है कहने की आवश्यकता नहीं। आज हालीवुड से [[बॉलीवुड]] तक एक से बढ़कर एक विशेष तकनीक की फिल्में बन रही है। लेकिन सिनेमा के जन्म से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियाँ जो बहुत ही अद्भुत एवं रोमांचक है शायद ही आप जानते हों। '''[[ट्रेन आई और भगदड़ मच गयी -श्रीकृष्ण पांडेय|.... और पढ़ें]]'''
 
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09:50, 26 जनवरी 2017 का अवतरण

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1976 में गत विश्व हिन्दी सम्मेलन के बाद आज तक, छह वर्षों में अनेक श्रेष्ठ और ज्येष्ठ, प्रवीण और नवीन भारतीय साहित्यकार, भाषावैज्ञानिक, हिन्दीप्रेमी अहिन्दी-भाषी विद्वान, कवि, उपन्यासकार, नाटककार आदि को क्रूर काल हम में से छीनकर ले गया। उन सब का स्मरण एक लेख में करना सम्भव नहीं। फिर भी विश्व हिन्दी सम्मेलन ने जिनका सम्मान प्रथम और द्वितीय सम्मेलनों में किया था और जो सक्रिय रूप से इस संस्था से संबंद्ध थे, जिनके आशीर्वादों की छत्रछाया में हिन्दी का कार्य बढ़ा, ऐसे सब सहृदय साहित्य-सेवकों को हमारी विनम्र प्रणाम-श्रद्धांजलि निवेदित है। .... और पढ़ें

Train.jpg

1895 में जन्म लिया हुआ सिनेमा 100 से ज्यादा वर्ष पार कर चुका है। मजे की बात यह है कि सिनेमा ईजाद होने के मात्र 6 माह बाद भारत पहुँच गया। भारत में लूमिएर बंधुओं का पहला प्रदर्शन मुंबई के वाट्सन होटल में 7 जुलाई 1896 में किया गया था। इस प्रदर्शन में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के भी उपस्थित थे। चूंकि लुमिएर बंधुओं ने व्यापार के उद्देश्य से इस तकनीकी की खोज की थी तो उनका इरादा इसे जल्द से जल्द पूरे विश्व में दिखाकर ज्यादा से ज्यादा धन कमाना था। इन सौ से अधिक वर्षों में सिनेमा कहाँ से कहाँ पहुँच गया है कहने की आवश्यकता नहीं। आज हालीवुड से बॉलीवुड तक एक से बढ़कर एक विशेष तकनीक की फिल्में बन रही है। लेकिन सिनेमा के जन्म से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियाँ जो बहुत ही अद्भुत एवं रोमांचक है शायद ही आप जानते हों। .... और पढ़ें

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