सर्वोदय आश्रम, रमेश भाई ...और निर्मला देशपांडे -बृजेश कबीर
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सर्वोदय आश्रम, रमेश भाई ...और निर्मला देशपांडे -बृजेश कबीर
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संपादक | अशोक कुमार शुक्ला |
प्रकाशक | भारतकोश पर संकलित |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 80 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | रमेश भाई के प्रेरक प्रसंग |
प्रकार | संस्मरण |
मुखपृष्ठ रचना | प्रेरक प्रसंग |
सर्वोदय आश्रम, रमेश भाई ...और निर्मला देशपांडे
आलेख: बृजेश कबीर
सदस्य,अन्तर्ध्वनि, हरदोई
रमेश भाई के लिए 'कबीर' का कहा- ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया... फिर तो आज केवल बृजेश ही.... मुझे अफ़सोस है कि कल एक ऐसी शख्सियत की सालगिरह खामोशी से गुजर गई, जिसने आसमाँ की ओर पत्थर तो तबीयत से उछाला था, अब सुराख फिर दिखने वालों को तो दिखता ही है ...हरदोई में सर्वोदय आंदोलन की लौ जलाने वाले रमेश भाई का कल मई दिवस के साथ जन्मदिवस भी था ...ऐसा भी नहीं है की किसी ने याद नहीं किया अशोक शुक्ल जी नहीं भूले 'ऊसर सुधार कार्यक्रम' के सिपाही की यौम-ए-पैदाइश को ...भूली अन्तर्ध्वनि भी नहीं और अपने नियमित कैलेंडर में याद किया रमेश भाई को ...पर हम उन्हें कुछ समग्रता में याद करना चाहते थे... लेकिन बिजली कल मेरे दफ़्तर से दूर रही ...हाँ, कुलदीप की मैरिज एन्वरसरी वाली पोस्ट परसों ही तैयार कर ली थी, सवाल उठेगा सो पहले ही साफ करना ज़रूरी है...
स्व0 रमेश भाई जन्मदिवस समारोह
खैर, अब तो विकिपीडिया ही बता देता है की रमेश भाई पहली मई 1951 की गोपामऊ के निकट थमरवा गाँव में पैदा हुए, विनोबा भावे के भू-दान आंदोलन और उनकी मानसपुत्री निर्मला देशपांडे की प्रेरणा से सर्वोदय मूवमेंट से जुड़े और 1983 में यहाँ सिकन्दरपुर में आश्रम की बुनियाद धर दी, ठहराव उनकी नियति नहीं थी, क़दम हरदोई से बाहर भी गये और 25 ज़िलों में ऊसर सुधार की दिशा में जागृति फैलाई, 19 नवंबर 2008 को नश्वर दुनिया छोड़ गए और उनकी इच्छा के मुताबिक़़ पुत्र अनुराग के रहते बेटी रश्मि ने मुखाग्नि दी ...यानी पीछे भी रूढियों पर चोट की ...अब उनकी पत्नी उर्मिला के निर्देशन में आश्रम में सृजनात्मक कार्य सतत् हैं...
मैं, सर्वोदय आश्रम, रमेश भाई ...और निर्मला देशपांडे
इन तीनों से साक्षात्कार हुआ मेरा, जब मैं छोटा ही था ...बात 99-2000 की है ...मैं उन दिनों पत्रकारिता में फ्रेशर था और जनसत्ता एक्सप्रेस के लिए लिखता था ...उसी दौर में निर्मला देशपांडे जी का आना हुआ सर्वोदय आश्रम में ...मैं भी दर्शन और इंटरव्यू की लालसा में पहुँचा वहाँ ...पहले प्रार्थना सभा का हिस्सा बना ...फिर रमेश भाई से हुई मुलाक़ात ...उन्होने निर्मला दी के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया ...सचमुच दैवीय रूप ही था और तब और भी निखरा लगा जब उन्होने मुझे क़रीब बुलाया और माथे का बोसा ले लिया ...अद्भुत वात्सल्य का अनुभव हुआ था हमे निर्मला दी के भीतर...वो उनसे मेरी पहली और आख़िरी भी भेंट थी...
इसके सालों बाद 2006 में शाहजहाँपुर दैनिक जागरण में रहते वहाँ के विनोबा सेवा आश्रम की ओर से सालाना आयोजित होने वाले खादी मेले में दुबारा रमेश भाई से मुलाक़ात का सौभाग्य मिला, लेकिन दुर्भाग्य से आख़िरी भी...विनोबा सेवा आश्रम के संचालक रमेश भैया ...रमेश भाई के साढ़ू हैं, दरअसल उर्मिला जी तीन बहने हैं, विमला जी रमेश भैया को और एक और बहन हमारे मित्र बृजेश श्रीवास्तव को ब्याही हैं...
और हाँ, एक गजब इत्तफ़ाक़ देखें ...निर्मला देशपांडे की पुण्यतिथि और रमेश भाई का जन्मदिवस एक ही दिन है....
खैर, सही ही लिखा गया है रमेश भाई के लिए 'कबीर' का कहा- ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया...
फिर तो आज केवल बृजेश ही....
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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