सुखों की श्रृंखला से वस्तुतः बाहर हुआ हूँ मैं,
कि जबसे प्रेम के पथ पर सुनो तत्पर हुआ हूँ मैं,
मेरा प्रतिरूप बनकर अब निरंतर साथ चलते हैं,
दुखों को इस तरह कुछ आजकल रुचिकर हुआ हूँ मैं,
हवाले मृत्यु के कर दो या जीवन दान दो मुझको,
तुम्हारे फैसलों पर अंततः निर्भर हुआ हूँ मैं,
मुझे पत्थर समझकर छूने की कोशिश नहीं करना,
बिखर जाऊंगा निश्चित तौर पर जर्जर हुआ हूँ मैं,
मेरे अपनों ने मुझसे मित्रता ऐसी निभाई है,
कि प्रतिपल शत्रुओं के वास्ते अवसर हुआ हूँ मैं,
ग़ज़ल के रूप में परिपूर्ण हो तुम मेरे ही कारण,
कई हिस्सों में बँटकर टूटकर शेअर हुआ हूँ मैं