पर्वतीय वर्षा

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पर्वतीय वर्षा आर्द्र हवाओं के मार्ग में किसी पर्वत की स्थिति के कारण हवाओं के ऊपर उठने तथा संघनन होने के परिणामस्वरूप होने वाली वर्षा को कहा जाता है। आर्द्र पवनों के मार्ग में अवरोधक रूप में पर्वत की स्थिति, सागर से पर्वत श्रेणी की निकटता, पर्वत का अधिक ऊँचा होना तथा प्रचलित पवन में पर्याप्त आर्द्रता की उपस्थिति पर्वतीय वर्षा के लिए आदर्श दशाएँ होती हैं।

  • अपने चलने के मार्ग में पर्वतीय अवरोध के कारण हवाएँ पर्वतीय ढाल के सहारे ऊपर उठती हैं।
  • ये हवाएँ ऊँचाई के साथ-साथ ठंडी होती जाती हैं और एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने पर वे संतृप्त हो जाती हैं।
  • इस प्रकार हवाओं के संतृप्त होने से संघनन प्रारंभ हो जाता है तथा वर्षा होने लगती है।
  • ऐसी स्थिति में हवाओं के सम्मुख स्थित पर्वतीय ढाल पर सर्वाधिक वर्षा होती है।
  • अपने मार्ग के पर्वतों को पार करके जब हवाएँ दूसरे ढाल के सहारे नीचे उतरती हैं, तो उनके तापमान में वृद्धि होने लगती है।
  • तापमान में वृद्धि के कारण और संघनन के अभाव में वर्षा प्रायः नहीं हो पाती है या फिर ये बहुत कम होती है।

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