"मै और कविता -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर
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अगर कहो तुम सम्मुख तेरे | अगर कहो तुम सम्मुख तेरे | ||
दुःख का पारावार मै रख दूँ | दुःख का पारावार मै रख दूँ | ||
व्यथित शब्द का | व्यथित शब्द का जगत् उठाकर | ||
मै इन तेरे चरणो में रख दूँ | मै इन तेरे चरणो में रख दूँ | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 54: | ||
मेरे गगन की चाँदनी हो | मेरे गगन की चाँदनी हो | ||
शिथिल नभ की बाँह में जो | शिथिल नभ की बाँह में जो | ||
खोयी | खोयी हुई वो यामिनी हो | ||
पर क्या तेरे अमर प्रेम की | पर क्या तेरे अमर प्रेम की |
07:40, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
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वो मेरी कविता तुम आकर |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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